हमारे देश के दर्शकों में हमेशा ही रहस्य रोमांच से भरपूर फिल्में देखने की
रूचि रही है और रहस्य रोमांच विषय हमारे फिल्मकारों का का भी मनपसंद
रहा है लेकिन कुछ ही फिल्मे और फ़िल्मकार ऐसे रहे है जो इस कसौटी पर खरे
उतरे है ऐसी रहस्य भरी फिल्मों को बनाने में राज खोसला की खास दिलचस्पी रही
थी 7 फ़रवरी 1964 को राज खोसला की सुपरहिट फिल्म "वो कौन थी "
प्रदर्शित हुई इस फिल्म ने दर्शकों की रीढ़ की हड्डी में जैसी सिरहन पैदा की
वैसा बहुत कम ही फिल्मों में ही हुआ है राज खोसला चाहते थे की उनकी फिल्म
में ऐसी अभिनेत्री हो जो सिर्फ अपनी रहस्यमयी मुस्कान से हाल में बैठे
दर्शको को डरा दे ....वो कौन थी " के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री
के रूप में निम्मी का चयन किया गया था लेकिन बाद में राज खोसला ने निम्मी
की जगह साधना का चयन किया रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की
रहस्यमई मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गए इस फ़िल्म के लिए साधना को मोना
लिसा की तरह मुस्कान के लिए 'शो डाट' कहा गया था साधना के शानदार अभिनय और
मदन मोहन के कर्ण प्रिय गीतों ने फिल्म में जान डाल दी उस समय "वो कौन थी "
ने लगभग 90 लाख का व्यवसाय किया था
मनोज कुमार और साधना पर भारी बारिश में फिल्माएं गए पहले ही दृश्य के जरिए
राज खोसला दर्शकों का ध्यान आकर्षित करते हैं फ़िल्म की शुरुआत एक बेहद
सर्द और धुंध से ढकी तूफ़ानी रात से होती है भयंकर बारिश पड़ रही है
डॉक्टर आनन्द (मनोज कुमार) अपनी कार में जा रहे हैं अचानक सामने एक लड़की
(साधना) आ जाती है आनन्द अपनी कार रोक कर उसको अपनी कार से उसके गंतव्य तक
छोड़ देने का प्रस्ताव रखते हैं जिसे वह इस शर्त पर मान लेती है कि आनन्द
उससे कोई भी सवाल नहीं करेंगे रास्ते में जब आनन्द उस लड़की से उसका नाम
पूछते हैं तो वह अपना नाम संध्या बताती है और जब आनन्द उसकी अंगुली से
निकलते ख़ून के बारे में पूछते हैं तो वह जवाब देती है कि पेंटिंग के लिए
पॅंसिल छीलते समय ब्लेड से उसकी अंगुली कट गई है। जब आनन्द उस लड़की से उस
चोट में पट्टी बांधने की बात कहते हैं तो वह लड़की कहती है कि ...."उसे ख़ून
अच्छा लगता है " अचानक एक वीरान क़ब्रिस्तान पर वह लड़की आनन्द को रुकने को
कहती है आनन्द उस लड़की से पूछता है कि यहाँ कहाँ जाना है ? आंनद के
सवालो का बिना कोई जवाब दिए वह लड़की उस धुंध में क़ब्रिस्तान के अंदर चली
जाती है क़ब्रिस्तान का दरवाज़ा अपने आप खुलता और बंद हो जाता है आंनद उस
सर्द रात में भी पसीने पसीने हो जाता है
एक रात को आनन्द को अनजान व्यक्ति का फ़ोन आता है फ़ोन करने वाला उन्हें
कहता है कोई बहुत सख्त बीमार है और उनको तुरन्त आना होगा। डा॰ आनन्द उस
व्यक्ति के साथ एक वीरान हवेली में जाते हैं। हवेली के अंदर से विलाप की
आवाज़ आ रही होती है। जब डा॰ आनन्द उस कमरे में पहुँचते हैं तो देखते हैं
कि वही संध्या मरी पड़ी है जिसको उस रात उन्होंने कब्रिस्तान के बाहर छोड़ा
था संध्या की माँ उसकी लाश के पास विलाप कर रही है। एक पुलिस अफसर आंनद को बताता है की इस हवेली में तो बरसो से कोई नहीं रहता तो आप फिर किसके इलाज के लिए यहाँ आये थे? ये सब इन पहाड़ी रातो में अक्सर होता रहता है पहले भी कई लोगो के साथ ऐसा हो चुका है ये आत्माओं का छलावा था अभी आनंद इस पहेली से
बाहर भी नहीं आ पाते की उनकी प्रेमिका सीमा (हेलन) का ख़ून हो जाता है। डा॰
आनन्द इस बात से डिप्रेशन में चले जाते हैं। उनका विवाह उनकी माँ ( रत्न
माला ) के कहने पर जिस लड़की से तय होता है उसका नाम भी इत्तफ़ाक़ से
संध्या है और उसकी सूरत हूबहू उसी संध्या से मिलती है जो आनन्द से
कब्रिस्तान और हवेली में एक बार ज़िंदा और एक बार लाश में रूप में मिल
चुकी थी ये सब देख कर डा॰ आनन्द का मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है और
उनको डा॰ सिंह ( के एन सिंह ) के कहने पर डा॰ लता ( प्रवीण चौधरी ) के साथ शिमला आराम करने भेज दिया जाता
शिमला की वादियों में फिर वही लड़की संध्या आंनद को रहस्मयी तरीके से बार बार दिखती है इस तिलिस्म से बुरी तरह टूट चुका आनंद संध्या के सम्मोहन में ख़ुदक़शी करने जा ही रहा होता हैं कि तभी लता उनको बचा लेती हैं ....... फिर परत दर परत खुलता है इस फिल्म का असली रहस्य जब रमेश ( प्रेम चोपड़ा ) डा॰ आनन्द के सामने आता है और कहता है की। ."अगर आज तुम पागल हो कर मर जाते तो तुम्हारी सारी जायदाद मुझे मिल जाती " रमेश डा॰ आनन्द को बताता है कि उसी ने सीमा का ख़ून करवाया था क्योंकि वह चाहता था कि डा॰ आनन्द का विवाह किसी भी तरीके से संध्या से हो जाये और और इस सारे पड़यंत्र में संध्या की जुड़वाँ बहन उसके साथ थी रमेश और आनंद में हाथापाई होती है और अंत में पुलिस पहुँच कर रमेश को हिरासत में ले लेती है पुलिस के अफ़सर ( राज मेहरा ) डा॰ आनन्द को बताते हैं कि संध्या की एक जुड़वा बहन भी थी जिसका पता संध्या को भी नहीं था (लेकिन रमेश को था ) क्योंकि संध्या के माँ-बाप बचपन में ही उसके अलग हो गये थे। और संध्या की जुड़वा बहन रमेश के चंगुल में फंसकर ग़लत काम करने लग गई थी। अंत में डा॰ आनन्द और असली संध्या का मिलन हो जाता है। फिल्म में मुख्य भूमिकाये मनोज कुमार ,साधना ,प्रवीण चौधरी, हेलेन ,धूमल, प्रेम चोपड़ा, मोहन चोटी और के.एन सिंह राज मेहरा ,सुदेश ने निभाई थी
क्लासिक्स फ़िल्म 'वो कौन थी ' मदन मोहन के लाज़वाब संगीत और लता मंगेशकर
की लाज़वाब गायकी के लिए भी याद की जाती है। "नैना बरसे रिमझिम" का आज भी
कोई जवाब नहीं है मदन मोहन राजा मेहदी अली खान के चहेते
संगीतकार बन गए जब कभी राजा मेहदी अली खान को अपने गीतों के लिए
संगीत की जरूरत होती थी, तो वह मदन मोहन को ही काम करने का मौका दिया करते
थे। नैना बरसे रिमझिम गाना 1952 में मदन मोहन द्वारा रचा गया थ लेकिन किसी
भी फिल्म में फिट नहीं हो सका इस गीत का कोई भो खरीददार उन्हें नहीं मिला
1964 जब उन्हें पता चला की राज खोसला को 'वो कौन थी ' के लिए एक हंटिंग गीत
चाहिए था तो उन्होंने इसे उन्हें सुनाया पहली बार सुनने के बाद ही राज
खोसला ने इसे फिल्म में डालने का फैसला कर लिया इस गाने की शूटिंग बेहद
ख़राब मौसम में कश्मीर में की गई लता जी के किसी कॉन्सर्ट के लिए विदेश चले
जाने के कारण इस गाने की रिकॉर्डिंग भी नहीं हो सकी ख़राब मौसम के चलते पूरी
यूनिट ने इस गाने को शूट करने का निर्णय लिया और मदन मोहन जी ने खुद बैक
ग्राउंड में ये गाना गाया कश्मीर में शूटिंग देखने वाले लोग साधना को एक
पुरुष की आवाज में गाते देख काफी हैरान परेशान भी हुए उन्होंने यहाँ तक कह
दिया की ये फिल्म फ्लॉप हो जाएगी किसी तरह शूटिंग पूरी की गई और जब लता जी
विदेश से वापिस आ गई तो फिल्म में उनकी आवाज़ में गाना दुबारा डब करके डाला
गया इसी तरह लग जा गले "गीत जब वह पहली निदेशक राज खोसला ने सुना तो इसे
अस्वीकार कर दिया गया था बाद ही वह मदन मोहन द्वारा आश्वस्त किये जाने के
बाद इसे फिल्म में रखा गया इन दोनों गीतों ने इतिहास रच दिया
यूँ तो मदन मोहन की चेहेती रही हैं लता मंगेशकर, ...लेकिन समय समय पर
उन्होने आशा भोसले से कुछ ऐसे गीत गवाए हैं जो केवल आशा भोंसले ही गा सकती
थी, क्योंकि यह गीत फिल्म के 'हेरोईन' साधना पर नहीं, बल्कि 'वेंप' हेलेन
पर फिल्माया जाना था इसलिए आशा भोंसले की आवाज़ चुनी गयी जिसमें ज़रूरत थी
एक मादकता की, एक नशीलेपन की, जो नायक को अपनी ओर सम्मोहित करे.और ऐसे
गीतों में आशा-जी की आवाज़ किस क़दर निखरकर सामने आती है यह किसी को बताने
की ज़रूरत नहीं. बस, फिर क्या था, आशा भोंसले ने इस गीत को इस खूबसूरती से
"टिक्की रिकी टिक्की " गाया कि इस फिल्म के दूसरे 'हिट' गीतों के साथ साथ
इस गीत ने भी सुननें वालों के दिलों में एक अलग ही जगह बना ली इस गीत में.
गीत के शुरू में आशा-जी के आलाप की हरकतें इस गीत को और ज़्यादा खूबसूरत
बनाती है."शोख नज़र की बिजलियाँ दिल पे मेरे गिराए जा" आज भी जब हम इस गीत
को सुनते हैं तो हमारी आँखों के सामने हेलेन बर्फ के मैदान पर
'आइस-स्केटिंग' करती हुई नज़र आती हैं लग जा गले , नैना बरसे ,जो हमने
दास्तां अपनी सुनाई ,छोड़ कर तेरे प्यार का दामन आदि गानों को लता जी रफ़ी
साहिब आशा जी और महिंदर कपूर ने अपने स्वर दिए फिल्म का आकर्षण "नयना बरसे
रिम झिम रिम झिम" गाना था फिल्म में जब जब भी ये गाना आता है दर्शक सहम
जाते है
'जा गले की फिर ये हंसी रात हो न हो '' गाने को फिल्म निर्माता निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने अपनी फिल्म साहब बीबी और गैंगस्टर रिटर्न ( 2013 ) के कलाइमेक्स में भी इस्तेमाल किया था और मात्र 2 मिनट से भी कम समय के इस गाने के लिए लगभग 20 लाख की रायल्टी चुकाई थी अभी हाल में ही स्टार प्लस के एक धारावाहिक ' कोई लौट के आया है ' (2017 ) में भी इस गाने को सिग्नेचर टूयन केरूप में बखूबी इस्तेमाल किया था इन बातो से इस गाने की लोकप्रियता का पता चलता है
'जा गले की फिर ये हंसी रात हो न हो '' गाने को फिल्म निर्माता निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने अपनी फिल्म साहब बीबी और गैंगस्टर रिटर्न ( 2013 ) के कलाइमेक्स में भी इस्तेमाल किया था और मात्र 2 मिनट से भी कम समय के इस गाने के लिए लगभग 20 लाख की रायल्टी चुकाई थी अभी हाल में ही स्टार प्लस के एक धारावाहिक ' कोई लौट के आया है ' (2017 ) में भी इस गाने को सिग्नेचर टूयन केरूप में बखूबी इस्तेमाल किया था इन बातो से इस गाने की लोकप्रियता का पता चलता है
ब्लैक एन्ड वाइट में बनी वो कौन थी अपने समय की सबसे हॉरर और थ्रिल हिंदी
फिल्मों में से एक मानी जाती है बाद में ये फिल्म तमिल में Yaar Nee ? और
तेलुग में Aame Evaru ? के नाम से भी बनी और हिट रही तमिल वर्ज़न में
दिवंगत जयाललिता ने साधना वाला रोल किता था वो कौन थी ने बेस्ट अभिनेत्री
साधना ,बेस्ट Cinematographer Award for Black & White Film , बेस्ट म्यूजिक के फिल्म फेयर अवार्ड के लिए मदन मोहन नॉमिनेट जरूर हुए लेकिन ये अवार्ड उन्हें नहीं मिला लता मंगेशकर जी को जब पता चला की नॉमिनेट होने के बाद भी उन्हें फिल्म फेयर नहीं मिला तो उन्हें बहुत दुःख हुआ उन्होंने मदन मोहन से इस बात के लिए अफ़सोस जताया तो मदन मोहन ने हँसते हुए कहा ......."मेरे लिए ये बात क्या किसी अवार्ड से कम है क्या की लता मंगेशकर को मुझे अवार्ड न मिलने का दुःख हुआ " इस फ़िल्म से
हिन्दुस्तानी सिनेमा को नया विलेन भी मिला जिसका नाम था 'प्रेम चोपड़ा' था
अभिनेत्री साधना इस फिल्म में डबल रोल में थी अभिनेत्री साधना एक ऐसी
अदाकारा रही हैं, जिन्होंने चार फिल्मों 'वो कौन थी' (1964), 'मेरा साया'
(1966), 'गीता मेरा नाम' (1974) और 'महफिल' (1978) में डबल रोल किए। वो कौन
थी' (1964) में उनकी आंखें सस्पेंस को गहराने में कहर ढाने का काम करती है
इस फिल्म के प्रीमियर पर ख्याति प्राप्त निर्माता महबूब खान ने राज खोसला
को बधाई
देते हुए कहा कि "यार तू तो हिचकॉक का भी बाप निकला." . स्वर साम्राज्ञी
लता मंगेशकर वर्ष 1964 में आई फिल्म ''वो कौन थी'' के बेहद लोकप्रिय गीत
''लग जा गले'' के 50 साल पूरा होने पर खुश जताते हुए कहा था हैं ये गाना आज
भी नया और ताजा लगता है राज खोसला की "वो कौन थी " एक संगीतमय
रहस्य रोमांच से भरी थ्रिलर फिल्म थी जिसने आगे जा कर इस तरह की फिल्मों
के लिए एक अलग दर्शक वर्ग तैयार किया वो कौन थी बॉक्स ऑफिस पर सफल
रही हालांकि फिल्म के अंत में कुछ अनसुलझे रहस्य इसका वीक पॉइंट हैं फिर
भी रहस्य रोमांच से भरी फिल्मो के शौकीन दर्शक वर्ग को 'वो कौन थी ' निराश
नहीं करती
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