Wednesday, December 6, 2017

मोहम्मद रफ़ी तू बहुत याद आया ...

मोहम्मद रफ़ी.
रफी साहब जैसा फनकार कोई दूसरा ना हो पाया उनकी कुछ ऐसी अनकही बातें है उनकी गायकी के साथ व्यक्तिव को भी बयां कर रही हैं अनेक किस्सों में रफ़ी साहेब की दरियादिली और रहमदिली उन्हें खुदा का नेक बन्दा बनाती है रफ़ी साहेब को बॉक्सिंग के मुक़ाबले देखने का बहुत शौक था और मोहम्मद अली उनके पसंदीदा बॉक्सर थे.1977 में जब वह एक शो के सिलसिले में शिकागो गए तो आयोजकों को रफ़ी के इस शौक के बारे में पता चला. उन्होंने रफ़ी और अली की एक मुलाक़ात कराने की कोशिश की लेकिन यह इतना आसान काम भी नहीं था.लेकिन जब अली को बताया गया कि रफ़ी भी गायक के रूप में उतने ही मशहूर हैं जितना कि वह एक बॉक्सर के रूप में हैं, तो अली उनसे मिलने के लिए तैयार हो गए.दोनों की मुलाक़ात हुई और रफ़ी ने बॉक्सिंग पोज़ में मोहम्मद अली के साथ तस्वीर खिंचवाई

चार फ़रवरी 1980 को श्रीलंका के स्वतंत्रता दिवस पर मोहम्मद रफ़ी को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक शो के लिए आमंत्रित किया गया था उस दिन उनको सुनने के लिए 12 लाख कोलंबोवासी जमा हुए थे, जो उस समय का विश्व रिकॉर्ड था रफ़ी की आदत थी कि जब वह विदेश के किसी शो में जाते थे तो वहां की भाषा में एक गीत ज़रूर सुनाते थे उस दिन कोलंबो में भी उन्होंने 'सिंहली 'भाषा में एक गीत सुनाया लेकिन जैसे ही उन्होंने हिंदी गाने सुनाने शुरू किए भीड़ बेकाबू हो गई और ऐसा तब हुआ जब भीड़ में शायद ही कोई हिंदी समझता था श्रीलंका के राष्ट्रपति जे.आर जयवर्धने और प्रधानमंत्री प्रेमदासा उद्घाटन के तुरंत बाद किसी और कार्यक्रम में भाग लेने जाने वाले थे लेकिन रफ़ी के ज़बर्दस्त गायन ने उन्हें रुकने पर मजबूर कर दिया और वह कार्यक्रम ख़त्म होने तक वहां से हिले नहीं....

रफ़ी बहुत कम बोलने वाले, ज़रूरत से ज़्यादा विनम्र और मीठे इंसान थे न तो वह शराब या सिगरेट पीते थे और न ही पान खाते थे.बॉलीवुड की पार्टियों में भी जाने का उन्हें कोई शौक नहीं था घर पर वह सिर्फ़ धोती-कुर्ता ही पहनते थे लेकिन जब रिकॉर्डिंग पर जाते थे तो हमेशा सफ़ेद कमीज़ और पतलून पहना करते थे लेकिन रफ़ी साहेब को स्टाइलिश घड़ियों और फ़ैंसी कारों का बहुत शौक था लंदन की कारों के रंगों से वो बहुत प्रभावित रहते थे इसलिए एक बार उन्होंने अपनी फ़िएट कार को तोते के रंग में हरा रंगवा दिया था  उन्होंने एक बार मज़ाक भी किया था कि "हम अपनी कार को इस तरह से सजाते हैं जैसे दशहरे में बैल को सजाया जाता है "......रफ़ी कभी-कभी पतंग भी उड़ाते थे और अक्सर उनके पड़ोसी मन्ना डे उनकी पतंग काट दिया करते थे वह बहुत अच्छे मेहमाननवाज़ भी थे. दावतें देने का उन्हें बहुत शौक था रफी साहब ने कभी किसी को खाली हाथ नहीं लौटाया

रफी साहब के निधन से कुछ दिन पहले ही कोलकाता से कुछ लोग उनसे मिलने पहुंचे थे वो चाहते थे कि रफी साहब आने वाली काली पूजा के लिए गाना गाएं जिस दिन रिकॉर्डिंग थी उस दिन रफी के सीने में बहुत दर्द हो रहा था लेकिन उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया हालांकि रफी साहब बंगाली गाना नहीं गाना चाहते थे लेकिन फिरभी उन्होंने गया वो दिन 31 जुलाई 1980 रफी साहब का आखिरी दिन था जब उन्हें हार्ट अटैक आया था

आज रफ़ी साहेब के नाम से कितने मेमेरियल और सड़को के नाम रखे गए है लेकिन मेरा ऐसा मानना है की रफ़ी साहेब को उनके जीवित रहते वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके कि वह हक़दार थे इसका सबसे बड़ा कारण शायद रफ़ी साहेब ने सम्मान पाने के लिए कभी लॉबिंग नहीं की हालाँकि उनके सभी सरकारों के प्रधानमंत्रियों से अच्छे सम्बन्ध रहे है 1967 में जब उन्हें पद्मश्री मिला तो उन्होंने कुछ समय तक सोचा कि इसे अस्वीकार कर दें लेकिन दोस्तों के समझाने पर पद्मश्री लेने को तैयार हुए उन्हें मात्र पद्मश्री ही मिल सका उन्हें पद्मश्री से कही ज़्यादा मिलना चाहिए था वो निश्चित रूप से पद्मश्री से ज्यादा के हक़दार थे...                

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