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'ज्वाला ' - (1971) |
आदित्य सुंदरी मधुबाला की खिली ताजगी, चपल थरथराते नेत्र, सुगठित रेशमी
स्निग्ध देह और कोमल पंखुड़ी से लरजते होंठ की स्मृति मात्र से दर्शक आज भी
सुगंध से भर उठते हैं मधुबाला एक महकती अव्यक्त कविता है जिसके
विषय में लिखना हो, तो खुद एक कविता बनना पड़ता है मधुबाला भारतीय
मानस के अत्यंत निकट आई लेकिन हम उनके कितने निकट जा सके यह प्रश्न जटिल है
अलौकिक सौंदर्या ने जिन त्रासदियों को झेलकर स्वार्थी दुनिया को विदा कहा,
उससे जाहिर है कि रिमझिम फुहारों जैसी मुस्कान वाली मधुबाला को कोई नहीं
समझ सका किसी शोख श्वेत वनहंसिनी-सी मधुबाला के दैदीप्य व्यक्तित्व
का ही जादू था कि पर्दे पर उनकी पहली झलक के साथ थियेटर केसर की महक से
सराबोर हो जाता था। ....मधुबाला का मुस्कुराना गुलाल होता था .....और
शर्माना गुलाब ...
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'इंसान जाग उठा ' ( 1959 ) |
मधुबाला की आखरी फिल्म थी 'जवाला " (1971 ) थी इस फिल्म का निर्माण पचास के
दशक के आखरी दौर में शुरू हुआ मधुबाला की बीमारी के चलते ये फिल्म
बहुत मंद गति से बनी और इसमें कोई शक नहीं की अगर मधुबाला 1969 में इस
दुनिया से रुखसत नहीं हुई होती तो शायद ये फिल्म डिब्बे में ही बंद रहती
मधुबाला की मौत से उपजी सहानुभूति को भुनाने के लिए 'जवाला ' को बंद डिब्बे
से निकाल कर परदे तक पहुंचाया तकि मधुबाला की मौत से भी मुनाफा कमाया जा
सके फिल्म के कुछ दृश्य मधु की डुप्लीकेट के सहारे पूरे करवाए गए डबिंग भी
अन्य समकालीन अभिनेत्रियों से करवाई गई आशा पारेख और सोहराब मोदी
,प्राण के साथ निर्माता एवं निर्देशक एम वी रमन की इस फिल्म में नायक सुनील
दत्त थे हालाँकि सुनील दत्त ,मधु बाला शक्ति सामंत की 'इंसान जाग उठा ' ( 1959 ) में
पहले एक साथ काम कर चुके थे और इस फिल्म का एक गाना "चाँद सा मुखड़ा क्यों
शरमाया" मशहूर हुआ था
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सुनील दत्त ,मधु बाला शक्ति सामंत की 'इंसान जाग उठा ' ( 1959 ) में पहले एक साथ काम कर चुके थे
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मधुबाला की मौत के बाद ज्वाला रिलीज़ होने वाली थी सुनील दत्त ने फिल्म
देखी तो बेहद नाराज़ हुए फिल्म की नामवाली में उनका नाम मधुबाला से पहले था
ये बात और थी की सुनील दत्त उस समय अपने कॅरियर के मुकाम पर थे और दिवंगत
मधुबाला को लोग भूलने लगे थे लेकिन सच्चाई तो ये थी की मधुबाला
सुनील दत्त से सीनियर थी ये वो दौर था जब सभी फ़िल्मी कलाकार आपस
में कड़ी स्पर्धा बावजूद सम्मान आदर भाव रखते थे जैसे की भले ही किसी
फिल्म में अशोक कुमार का रोल दस मिनट का हो और नायक दलीप कुमार हो तो अशोक कुमार का ही नाम परदे पर पहले आएगा दलीप कुमार का बाद में .........ये
एक प्रोटोकॉल की तरह होता था जिस से सीनियर कलाकार को एक तरह से सम्मान
दिया जाता था सुनील दत्त को 'ज्वाला 'में अपना नाम मधुबाला से
पहले देख कर बड़ी तकलीफ हुई जबकि 'इंसान जाग उठा' में मधुबाला का नाम पहले
था यकीकन अगर मधुबाला जीवित होती तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगता और सुनील दत्त साहेब जैसा खुद्दार इंसान भला ये कैसे बर्दार्श्त कर लेता ?
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प्राण ,सुनील दत्त और उल्हास फिल्म ज्वाला (1971) में |
अब सुनील दत्त साहेब ने तुरंत निर्माता एवं निर्देशक एम.वी रमन से इस बात
का पुरजोर विरोध किया लेकिन ज्वाला रिलीज़ को तैयार थी और प्रचार सामग्री भी
बाजार में जा चुकी थी इसे वापिस मंगवाना मुमकिन नहीं था सुनील दत्त
अपनी बात पर अड़ गए .........आज के डिजिटल युग में भले ये काम आसान हो लेकिन उस समय फिल्म के मूल प्रिंट में नाम बदलवाना आसान नहीं था इसमें समय काफी लगता ....प्रिंट को दुबारा लैब में लेकर जाना पड़ता .....एडिटिंग दुबारा होती फिल्म के प्रिंट वितरकों से वापिस मँगवाने पड़ते एक बंद पड़ी फिल्म के ऊपर और ज्यादा खर्चा आ जाता ....आखिर काफी माथा पच्ची के बाद निर्माता एवं
निर्देशक एम.वी रमन ने सुनील दत्त से कहा की..." फिल्म की नामावली में तो
बदलाव अब संभव नहीं है लेकिन बची हुई प्रचार सामग्री में मधुबाला का नाम
पहले करवा देते है "......सुनील दत्त इस बात पर राजी हो गए फिल्म ज्वाला के नए हैंडमेड पोस्टर , होर्डिंग्स ,सिनेमा लॉबी कार्ड
,प्रोजेक्टर स्लाइड रातो रात छपवाए और बनवाये गए जिसमे मधुबाला के
चेहरे और नाम को प्रमुखता दी गई इस नई प्रचार सामग्री में मधुबाला का चेहरा सुनील दत्त के मुकाबले बड़ा था ...लेकिन फिल्म की नामावली में सुनील का ही
नाम पहले रहा ........ सुनील दत्त इन ज्वाला ...सुनील दत्त चाह कर भी इसे
नहीं बदलवा सके क्योंकि प्रिंट वितरकों के पास जा चुके थे फिल्म 'ज्वाला 'के ट्रेलर भी सिनेमाघरों में दिखाए जा चुके थे फिल्म सिनेमा घरो में जाने को तैयार थी अब इसे भाग्य की विडंबना ही कहेगे की अपनी ही पूर्णयता रंगीन फिल्म रिलीज़
होने से पहले ही हिंदी सिनेमा की सौंदर्य की देवी कहे जाने वाली मधुबाला इस
दुनिया से रुखसत हो चुकी थी
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सोहराब मोदी ,सुनील दत्त फिल्म ज्वाला (1971) में |
सुनील दत्त और मधुबाला की एक अन्य फिल्म 'इंसान जाग उठा' की शूटिंग हैदराबाद से लगभग 100 किलोमीटर दूर कृष्णा नदी पर
बन रहे नागार्जुन बांध के निर्माण की असली लोकेशन पर की गई थी बीमारी के
कारण डॉक्टरों ने मधुबाला को धूल भरे वातावरण में शूट करने से मना किया था
लेकिन फिर भी मधुबाला ने आउटडोर शूटिंग पर वास्तविक लोकेशन पर जा कर शूटिंग
की .........उन्होंने शूटिंग के दौरान सुनीलदत्त से कहा था
......." मुझे अपने देश के मजदूरों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर काम करना
अच्छा लग रहा है मैं अपने भारत को बनते हुए देख रही हूँ
"....ज्वाला की रिलीज़ के वक्त सुनील दत्त को मधुबाला की ये बात
याद थी उनकी दिली ख्वाइश थी हमेशा की तरह उनकी फिल्म में मधुबाला का ही नाम पहले आये ये एक कलाकार की दूसरे कलाकार को आखरी श्रद्धांजलि थी लेकिन अफ़सोस ऐसा हो न सका सुनील दत्त साहेब को एक भद्र इंसान के रूप में सारे जानते है
समाज में उनका रुतबा था और एक आम भारतीय सुनील दत्त में अपना अक्स देखता
था मधुबाला के परिवार से भी उनके अच्छे रिश्ते थे जब मधुबाला की मौत हुई
तो सुनील दत्त दिल्ली में थे और अपने सारे काम छोड़कर सबसे बम्बई पहुंच गए मधुबाला की मौत की खबर मिलने पर सबसे पहले बम्बई उनके घर जाने वालो में से सुनील दत्त पहले अभिनेता थे वो सीधे एयरपोर्ट से दिवंगत मधुबाला के घर पहुँच गए थे अपने साथी कलाकारों के साथ इस आदर और सम्मान का अब हमारी फिल्म इंडस्ट्रीज़ में आभाव है...
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