Thursday, March 1, 2018

आर.के स्टूडियो की वो सदाबहार मशहूर होली.......राज कपूर जैसी होली मनाते थे आज कोई नहीं मना सकता है

रंगों का त्योहार आते ही बॉलीवुड इंडस्ट्री में अगर किसी 'होली उत्सव' का जिक्र होता है तो वह है 'आर.के की होली ' ....... बॉलीवुड में होली खेलने की परंपरा शोमैन राज कपूर के आर.के स्टूडियो से शुरू हुई थी एक जमाना था जब होली के दिन फिल्मी जगत के सभी छोटे-बडे कलाकार आर.के स्टूडियो में जमा होकर रंगों की मस्ती में डूब जाते थे आर.के स्टूडियों की होली फिल्म इंडस्ट्री की सबसे अलग होली हुआ करती थी होली खेलने की परंपरा वास्तव में पृथ्वीराज कपूर ने शुरु की थी जिसे राज कपूर ने 1950 में आर.के स्टूडियो के निर्माण के साथ संस्थागत रूप दे दिया था राज कपूर के लिए फिल्म निर्माण एक टीम वर्क था और उसके लिए उनसे पास शंकर जयकिशन, मुकेश, शैलेन्द्र, हसरत जैसे लोगों की पूरी टीम थी। आर. के. की होली में जब यह पूरी टीम शामिल होती थी तो मानों सारा माहौल इंद्रधनुषी रंगों,ठहाकों और कहकहों से गूंज उठता हर कोई प्यार से एक-दूसरे को रंगने और मौज-मस्ती करने में व्यस्त हो जाता 



पूरे भारत में आर.के स्टूडियो एक मात्र ऐसी जगह थी जहाँ लगभग सभी फिल्म स्टार्स एक साथ एक जगह जमा होकर होली खेलते थे आर.के.स्टूडियो की होली में मेहमानों का स्वागत उन पर रंग भरी बाल्टी उड़ेलकर किया जाता था और उसके बाद उन्हें रंग भरे पूल में डुबकी भी लगानी पड़ती थी। आर.के स्टूडियो में एक टैंक हुआ करती थी होली का त्योहार आते ही इसकी साफ-सफाई की जाती है और उसमे सुगंधित गाढ़ा रंग भरा जाता है इस रंग भरे हौज में सभी को कम से कम एक डुबकी लगानी अनिवार्य होती है इस ऐतिहासिक कुंड में नरगिस, वैजयंतीमाला से लेकर डिम्पल, श्रीदेवी तक और राजेन्द्र कुमार, मनोज कुमार से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ, मिथुन तक फिल्म जगत के सभी सितारे डुबकियां लगा चुके हैं कहते है एक बार वैजयंतीमाला ने होली खेलने में जरा आनाकानी की तो उन्हें उस रंग भरे टैंक में सात बार डुबकियां लगवाई गईं भांग के बिना होली का मजा अधूरा ही माना जाता है आर.के स्टूडियो में भांग के नशे में हमारे प्रिय सितारे ऐसी हरकतें करते हैं जिन्हें देखकर आप खुद चकरा जाये  लेकिन राजकपूर इस बात का पूरा ख्याल रखते थे कि होली की रंग में किसी तरह का भंग न पडे और ख़ासतौर से महिलाओं के साथ होली के नाम पर छेडखानी न की जाए





इस स्टूडियो की होली में कथक नर्तकी सितारा देवी का ठुमकेदार होली डांस भी विशेष रूप से चर्चा में रहता है। सितारा देवी एक ऐसी नर्तकी हैं जिन्होंने कपूर घराने की तीन पीढ़ियों के साथ डांस किया है पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर, रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, राजीव कपूर आदि सितारा देवी के साथ होली के रंग भरे माहौल में नाच चुके हैं 1982 की होली के मौके पर सितारा देवी ने बेहद खूबसूरत डांस पेश किया। उस समय वह कपूर खानदान के अपने प्रति लगाव और प्रेम से भावुक हो उठीं और उन्होंने राज कपूर के सबसे छोटे बेटे राजीव कपूर को माथा चूमकर आशीर्वाद दिया प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना सितारा देवी कई कई घंटे नाचती थी राज कपूर के साथ पंजाब से प्रसिद्ध भांगड़ा डांसर जोगिंदर सिंह भी अपने पंजाबी भंगड़ा डांस से सबका मनोरंजन करते थे आर.के स्टूडियो में होली उत्सव का मतलब भांग व फूड फेस्टिवल था  दोपहर तक चलने वाले इस रंग-बिरंगे प्रोग्राम में बॉलिवुड सितारे म्यूजिक की थाप पर अपनी सुध-बुध खोकर झूमते रहते थे सभी अपने-बेगाने भेदभाव भुलकर साथ में नाचते थे कई नए कलाकारों को यहां अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता था जैसे अमिताभ बच्चन को मिला था अमिताभ बच्चन की लगातार 9 फ़िल्में असफल होने के बाद वह एक बार आर.के स्टूडियो चले आए तब राज कपूर ने उनसे कहा ..."अमित आज कोई धमाल हो जाए देखो कितने सारे लोग आए हैं सब तुम्हारी प्रतिभा देख सकेंगे."....."तब पहली बार अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज़ में अपने पिता हरिवंशराय बच्चन का 'रंग बरसे भीगे चुनर वाली' गाया और इस कदर झूमे कि सब उनके दीवाने हो गए सालों बाद यश चोपड़ा ने उसे गाने को अपनी फ़िल्म सिलसिला (1981) में इस्तेमाल किया

राजकपूर की इस रंगीन महफ़िल में फ़िल्मी जगत की तमाम हस्तियाँ शामिल होती थी उन दिनों राजकपूर, देव आनंद, और दिलीप कुमार की दोस्ती की लोग कसमे खाते थे कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद भी इन तीनो अभिनेताओं में इतनी गहरी दोस्ती थी ये जब भी मिलते थे अपने सुख-दुःख से लेकर वो सारी बातें एक दुसरे के साथ बखूबी शेयर करते थे जो एक पति अपनी पत्नी को भी नहीं बताता राज कपूर और देव आनंद की दोस्ती तो ऐसी थी कि राज कपूर जरूरत पड़ने पर अपना मेकअप रूम सिर्फ और सिर्फ देव आनंद को ही इस्तेमाल करने के लिए दे देते थे जबकि राज कपूर के मेकअप रूम में किसी और का जाना निषेध था दिलीप कुमार अपने परिवार के साथ सबसे पहले राजकपूर के होली फेस्टिवल में आमंत्रित होते थे लेकिन इतनी अच्छी मित्रता के होते हुए भी देव आनंद एक ऐसे शख्स है जो राज कपूर की मशहूर होली के त्योहार में कभी उनके पास नहीं गए जबकि वो त्यौहार यारों के मिलन का त्यौहार है और साल में सिर्फ एक बार ही आता है होली में जहां एक तरफ फ़िल्मी सितारों का ताँता राज कपूर के घर लगा हुआ होता था तो वही दुसरी तरफ उनके प्रिय मित्र देव आनंद कभी मौजूद नहीं होते थे जबकि अहम सवाल है कि आखिर देव आनंद राजकपूर की होली पार्टी अटेंड क्यों नहीं करते थे.? आपको बता दे कि देव आनंद साहब को होली पसंद नहीं थी उन्हें रंगो से एलर्जी थी उसलिए आपने देखा होगा कि अपनी फिल्मो में भी देव जी ने होली के सीन बहुत ही कम दिए है राज कपूर जी, देव साहब के इस मजबूरी को बखूबी समझते थे इसलिए वे इस बात से कभी नाराज़ नहीं हुए की देवानंद आर.के स्टूडियो के होली में शामिल क्यों नहीं हुए


मनमोहन देसाई जैसे डायरेक्टर, दिलीप कुमार जैसे ऐक्टर, मुकेश जैसे सिंगर और शंकर जयकिशन जैसे कंपोजर इस मस्ती में नियमित रूप से शामिल होते थे उस ज़माने में जिस भी छोटे-बड़े कलाकार को राज कपूर के यहां होली खेलने का न्योता मिलता था वह बहुत गर्व महसूस किया करता था क्योंकि इससे इंडस्ट्री में उसकी हैसियत का अंदाज़ा होता था महान शोमैन राज कपूर व उनकी पत्नी कृष्णा को किसी राज्य के राजा- रानी की तरह विशाल कुर्सियों पर बैठे हुए होते थे लगभग पूरी इंड्रस्टी ही उनको होली की मुबारकबाद देने उनकी ओर चली आ रही होती थी दोपहर तक होली खेलने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनकर एक-दूसरे के घर जाकर मिलने का सिलसिला शुरू होता था सबके चले जाने के बाद शाम को 4 बजे राज कपूर से मिलने किन्नर आया करते थे आर.के स्टूडियो में वह लोग उनके सामने रंग उड़ाते, रंग लगाते और उन्हें भी अपने साथ नचवाते राज कपूर अपनी नई फ़िल्मों के गीत उन्हें सुनाते और उनकी मंजूरी मिलने के बाद ही उसे फ़िल्म में रखते राम तेरी गंगा (1985 ) के गानों में से एक गाना किन्नरों को अच्छा नहीं लगा तो राजकपूर ने उसी वक़्त रविन्द्र जैन को बुलाया और उन्हें एक नया गीत बनाने को कहा तब  'सुन साहिबा सुन'  बनकर तैयार हुआ और किन्नरों को वह बेहद पसंद आया उन्होंने राज कपूर को कहा  ....." देख लेना ये गीत सालों चलेगा " और ऐसा ही हुआ राजकपूर अपने आने वाली फिल्मो के गाने खासतौर पर इस मौके पर जोर शोर से बजाते थे नर्गिस ,निरुपा राय ,शम्मी ,पद्मिनी ,गीताबाली जैसी अभिनेत्रियां सभी भेदभाव भूल कर रंगो की मस्ती में डूब कर ढोल मंजीरे बजाती थी



जिस तरह आर.के बैनर को अपने परिवार की तरह मानने वाले राजकपूर ने 1950 से होली खेलने का एक नया ट्रेंड शुरु किया उसकी वजह से आऱ.के स्टूडियो की होली सारी फिल्म इंडस्ट्री में मशहूर हो गई जिसके जरिये उस वक्त की फिल्म इंडस्ट्री का हर छोटा बड़ा सितारा होली खेलने जाया करता था लेकिन इस बीच वक्त बदल रहा था फिल्म इंडस्ट्री बदल रही थी और खासतौर से एक नई जैनेरेशन खड़ी हो रही थी हल्की मनोरंजक रोमांटिक फिल्मों का दौर पचास के दशक के खत्म होने और राजकपूर नर्गिस के अफेयर के खत्म होने के साथ ही अब फीका पड़ने लगा था नर्गिस ने सुनील दत्त से शादी कर ली इस रंगारंग सेलिब्रेशन का सिलसिला राज कपूर और उनके हमउम्र सिलेब्रिटीज की उम्र बहुत ज्यादा होने के बावजूद अस्सी के दशक तक बिना रुके चला  उसके बाद अस्थमा की वजह से राज साहब धीरे-धीरे होली के जश्न से दूर होने लगे और उन्होंने जीवित रहने के लिए एक बहुत बड़ी लडाई लड़ी लेकिन मौत की ताकत के आगे वह झुक गए और हिंदी सिनेमा के सबसे रंगीन अध्यायों में से एक का अंत हो गया 1988 में उनके इस दुनिया से चले जाने के बाद होली का वह यादगार सिलसिला खत्म हो गया अब बॉलीवुड में वो होली नहीं खेली जाती जो राजकपूर के जमाने में हुआ करती थी उस होली की अब केवल यादे शेष है


इसके बाद इंडस्ट्री के तमाम बड़े लोगों ने अपने यहां होली खेलने का रिवाज शुरू करना चाहा लेकिन आर.के. स्टूडियो की होली दोहराई नहीं जा सकी हालांकि कपूर फैमिली की नेक्स्ट जेनरेशन ने भी आर.के. स्टूडियो की होली को दोबारा जिंदा करने की भरपूर कोशिश की लेकिन शायद उनमें से किसी के पास भी राज कपूर जैसा पैशन नहीं था राज कपूर की परंपरा को कायम रखते हुए आज भी आर.के. स्टूडियो में होली पर भव्य आयोजन किए जाते हैं लेकिन राज कपूर जैसे होली मनाते थे आज कोई नहीं मना सकता है कभी जिस होली के त्योहार को " कपूर खानदान की होली " कहा जाता था अब वो पूरी तरह से खत्म हो गया वक्त बहुत बलवान है जो वक्त की चपेट में आ जाता है वक्त उसे समेट देता हैं इतिहास गवाह है कोई भी चीज हमेशा के लिए नहीं टिकती आज तो उन गौरवशाली होली के दिनों का सिर्फ एक ही गवाह है और वो आर.के स्टूडियो का रंगो वाला कुंड जिसमे ना जाने कितने नामचीन सितारे डूब कर रंगो से सरोबार हुए थे वो कुंड अब पूरी तरह से सूख गया है मगर आज भी वीराने में एक "अनंत शोक" की तरह राजकपूर की उस रंगीन होली का गवाह बन चुपचाप वहां खड़ा है .....आर. के स्टूडियो की होली वाली यादें अमिट है हर साल जब भी होली आती है राजकपूर की होली बहुत याद आती है राजकपूर को करीब से जानने वाले आज भी उस होली को याद कर कहते है ..." जाने कहाँ खो गए वो दिन जब हमारी होली हुआ करती थी " ?

2 comments:

  1. गजब की होली खेलते थे बीना भेद भाव के बस अब तो राज कपूर साहब जी की यादें ही रह गयी

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