दलीप कुमार |
अभिनय सम्राट दलीप कुमार ने यूं तो अपनी लाइफ में कई हस्तियों से मुलाकात की लेकिन आज आपको उनका एक ऐसा किस्सा सुनाने जा रहे हैं जो ये बताता है कि इंसान की पहचान उसके पैसों से ही नहीं बल्कि सादगी से भी होती है ..........बात उन दिनों की जब दिलीप कुमार का नाम इंडस्ट्री में सबसे पॉपुलर अभिनेताओं में लिया जाता था क्या विदेश और क्या देश सब जगह उनके अभिनय का डंका बज रहा था उन दिनों उनका कैरियर शिखर पर था.......... एक बार दिलीप कुमार साहेब प्लेन से कहीं जा रहे थे इसी प्लेन में बैठे अन्य लोग दिलीप कुमार को अपने बीच देखकर क्रेजी हो गए कोई उनसे बात करने की कोशिश करने लगा तो कोई ऑटोग्राफ लेने लगा दलीप साहेब भी सबसे हँस कर मिल रहे रहे यहाँ तक की प्लेन का क्रू स्टाफ भी दलीप साहेब से मिलने को बेताब था अचानक दलीप कुमार की नज़र अपने साथ वाली सीट पर बैठे शख्स पर गई उनके बगल की सीट पर बैठे इस शख्स को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि उनके साइड वाली सीट पर कौन बैठा है ? वो शख्स विंडो से बाहर देखता हुआ आराम से मैगजीन पढ़ने में बिजी था दिलीप कुमार को ये देखकर आश्चर्य हुआ कि प्लेन में बैठा हर शख्स उनसे बात करना चाहता है उनसे ऑटोग्राफ लेना चाहता है लेकिन उनके पास बैठे साधारण से दिखने वाले शख्स को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है दलीप कुमार ने पहले सोचा की शायद कोई विदेशी न हो तभी वो उन्हें नहीं पहचान रहा लेकिन जब उन्होंने उसे गौर से देखा तो वो शख्स जो मैगज़ीन पढ़ रहा है वो हिंदी में थी उन्होंने अंदाज़ा लगा लिया की वो विदेशी नहीं हो सकता दिलीप जी को लगा कि इस दिलचस्प शख्स से बात करनी चाहिए और पता लगाना चाहिए की वो उन्हें जानता ही नहीं या जानकर न पहचानने का नाटक कर रहा है ? लेकिन बात शुरू कैसे करे ये उन्हें समझ नहीं आ रहा था ?
तभी दलीप साहेब की मन की बात जैसे पूरी हो गई अचानक ही उस शख्स ने दिलीप की तरफ देखा और उनसे 'हैलो ' कहा .........दिलीप ने भी 'हैलो ' का जवाब 'हैलो 'से दिया। ....... इस तरह दिलीप कुमार को उस शख्स से बात करने का मौका मिल गया। औपचारिक बातचीत के बाद दिलीप जी ने उस शख्स से पूछा ..... " क्या आप फिल्में देखते हैं साहेब ? .........उस व्यक्ति ने कहा ..." बहुत कम, दरअसल समय नहीं मिलता सालभर पहले एक फिल्म देखी थी। दिलीप ने कहा....." मैं फिल्मों में काम करता हूं " ....आगे से उस शख्स का जवाब और भी हैरान करने वाला था .......'बहुत बढ़िया, क्या करते हैं आप फिल्मों में ' ........ये जवाब सुनकर दलीप साहेब के चेहरे पर हैरानी और गुस्से के भाव एक साथ उभरे अब भला फिल्मो में कोई क्या करेगा ? दलीप कुमार जी ने अपने आप को सँभालते हुए शांत भाव से मुस्कुराते हुए उत्तर दिया........" जी मैं एक्टर हूं और फिल्मो में फ़िलहाल एक्टिंग ही करता हूँ "
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा |
उस शख्स ने कहा...... '' गुड़ जेंटलमेन '' ...... और इस तरह बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ दोनों के बीच बातें चलती रही और प्लेन लैंड हो गया। सफर अपने अंतिम पड़ाव पर आ गया दिलीप कुमार ने प्लेन से उतरते समय उस शख्स से हाथ मिलाकर कहा 'आपके साथ सफर अच्छा कटा, गुड बाय, मेरा नाम दिलीप कुमार है '। उस शख्स ने दलीप कुमार से हाथ मिलाया और कहा ...... ' मेरा नाम जे.आर.डी टाटा है '। .....टाटा का नाम सुनते ही दिलीप चौंक गए साधारण से दिखने वाले दुनिया और भारत भर में जाने पहचाने उद्यमी जे.आर.डी टाटा उनके साथ सफर कर रहे थे ? उन्होंने गर्म जोशी से एक बार फिर उनसे हाथ मिलाया और उन्हें न पहचानने के लिए माफ़ी भी मांगी इस वाकये का जिक्र दलीप साहेब ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'The Substance and the Shadow ' में भी किया है। उन्होंने लिखा कि .... " टाटा से वो मुलाकात मैं कभी नहीं भूल नहीं पाया। उनसे मिलने के बाद मुझे लगा कि इंसान की कीमत पैसों से नहीं बल्कि सादगी से आंकी जाती है। "
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा या जे आर डी टाटा भारत के वायुयान उद्योग और अन्य उद्योगो के अग्रणी थे। वे रतनजी दादाभाई टाटा और उनकी फ्रांसीसी पत्नी सुज़ेन्न ब्रीरे के पांच संतानो मे से दूसरे थे वे दशको तक टाटा ग्रुप के निर्देशक रहे और इस्पात, इंजीनीयरींग, होट्ल, वायुयान और अन्य उद्योगो का भारत मे विकास किया। 1932 में उन्होंने टाटा एयरलाइंस शुरू की भारत के लिए इंजीनियरिंग कंपनी खोलने के सपने के साथ उन्होंने 1945 में टेल्को की शूरूवात की 1938 में उन्हें भारत के सबसे बड़े औद्योगिक समूह टाटा एंड संस का अध्यक्ष चुना गया। दशकों तक उन्होंने स्टील, इंजीनियरिंग, ऊर्जा, रसायन के क्षेत्र में कार्यरत विशाल टाटा समूह की कंपनियों का निर्देशन किया। वह अपने व्यापारिक क्षेत्र में सफलता सादगी और उच्च नैतिक मानकों के लिए बहुत प्रसिद्ध थे
'The Substance and the Shadow ' |
किसी ने ठीक ही कहा है, जब परिचय ही देना पड जाए तो नामी कैसा. एक बार वाराणसी से लखनऊ पंजाब मेल द्वितीय वातानुकूलित में एक तरफ मैं और मेरी पत्नी और सामने की सीट प
ReplyDeleteर मुन्नवर राणा, उनका अटेंडेंट सफर भर ऊपर सोता रहा आैर उन्हें न पहचानने के कारण मैंने 6 घंटे का अवसर चूक दिया.
किसी ने ठीक ही कहा है, जब परिचय ही देना पड जाए तो नामी कैसा. एक बार वाराणसी से लखनऊ पंजाब मेल द्वितीय वातानुकूलित में एक तरफ मैं और मेरी पत्नी और सामने की सीट पर मुन्नवर राणा, उनका अटेंडेंट सफर भर ऊपर सोता रहा आैर उन्हें न पहचानने के कारण मैंने 6 घंटे का अवसर चूक दिया.
ReplyDeleteविनय साहेब ,आपने अपना बहुमूल्य कमेंट्स कर मेरे ब्लॉग को महका दिया ये मेरे लिए गर्व की बात है मेरी ये पोस्ट इस ब्लॉग पर सर्वार्धिक पढ़ी गई दूसरी सबसे बड़ी पोस्ट बन गई है इस ब्लॉग को लिखने की प्रेरणा आपके और शिशिर भाई साहेब से ही मिली है आप लोगो ने मुझे एक मंच दिया जहाँ से में अपनी बात कह सकता हूँ आप का धन्यवाद सर.....आगे भी मार्ग दर्शन करते करे
DeletePawan ji!
ReplyDeleteThanks a ton writing these beautiful blogposts. They are very interesting and very informative. It makes me nostalgic and makes me feel so good.
Keep writing! God bless!