Wednesday, June 27, 2018

जब 1976 में आपातकाल के दौरान ' किशोर कुमार 'की आवाज दबाई गई थी


  'किशोर कुमार '
देश में 44 साल पहले लगाए गए 'आपातकाल 'को लेकर प्रधानमंत्री ने हरफनमौला  'किशोर कुमार ' से जुड़े एक किस्से का जिक्र कर लंबे अरसे से भुला दिए गए उस किस्से को फिर से याद दिला दिया है किशोर कुमार के बारे में कहा जाता था की वो मस्तमौला आदमी थे और अपने मन की करते थे आज बात करते है आपातकाल और किशोर कुमार के उस ऐतिहासिक किस्से की जो आज 44 वर्ष बाद फिर सुर्खियों में है

1975 में देश में लगे आपातकाल का असर हमारे सिनेमा से जुड़े कलाकारों पर भी पड़ा जनता तो इस आपातकाल से त्रस्त थी ही हिंदी सिनेमा के कलाकार भी सरकार के तुगलकी फरमानो से परेशान थे सरकार ने आपातकाल को सही ठहराने और प्रचार करने के लिए इन कलाकारों को आगे आने के लिए कहा दरअसल इंदिरा गांधी के करीबी वी.सी शुक्ला के नेतृत्व में मंत्रालय चाहता था कि आपातकाल के बाद इंदिरा द्वारा लागू किए 20 सूत्रीय कार्यक्रम के रेडियो और टीवी पर प्रचार में बॉलिवुड मदद करे। कई कलाकार अनमने ढंग से आगे आये भी लेकिन कुछ थे जो इस सरकारी तानाशाही के खिलाफ अस्थाई तौर ही सही पर डटकर खड़े हो गए किशोर कुमार उनमे से एक थे किशोर कुमार उस दौर में बुलंदी पर थे वो राजेश खन्ना ,अमिताभ और देवानंद की आवाज माने जाते थे जो मौजूदा दौर में युवा वर्ग के नायक थे इसलिए सरकार ने अपने समर्थन में किशोर कुमार की लोकप्रिय आवाज की भी मदद चाही जो मुमकिन नहीं हो पाई। अप्रैल 1976 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों को पता लगा की किशोर कुमार सहयोग के लिए तैयार नहीं और वो आपातकाल का समर्थन करने और प्रचार करने के लिए तैयार नहीं है मंत्रालय के तत्कालीन जॉइंट सेक्रटरी सीबी जैन ने किशोर कुमार को फोन किया था। उन्होंने किशोर को सरकार के मंसूबों से अवगत कराते हुए उनसे उनके घर पर मुलाकात करनी चाही। लेकिन किशोर ने कहा कि ...." उनकी तबीयत ठीक नहीं। उन्हें हार्ट की समस्या है और डॉक्टर ने किसी से मिलने से मना किया है। ''....बार बार संपर्क करने पर किशोर ने साफ कर दिया कि वह किसी भी कीमत में रेडियो या टीवी के लिए नहीं गाएंगे। और न कोई स्टेज परफॉरमेंस देंगे

किशोर के इस दो टूक जवाब से अपने आप को अपमानित महसूस करते हुए जैन ने अपने तत्कालीन बॉस मंत्रालय के सेक्रटरी एस.एस.एच बर्नी को बड़ा चढ़ा कर बताया कि ''.....किशोर तो 'अशिष्ट' और 'मुंहफट' है और सरकार के विरोध में बयान दे रहे है '' ..इसके बाद बर्नी ने सूचना प्रसारण मंत्री मंत्री वी.सी शुक्ला की अनुमति के बाद एक आदेश पास कर ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर न केवल किशोर के गाने चलाने पर रोक लगा दी बल्कि उनके ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स की बिक्री को भी बाधित कर दिया। उस समय रेडियो मनोरंजन का प्रमुख स्रोत्र था ग्रामोफोन रेकॉर्ड और कैसेट अभी ज्यादातर लोगो की पहुँच से दूर थे और महंगे भी थे एकमात्र सरकारी चैनल दूरदर्शन पर तो खबरे तक सेंसर हो रही थी तो किशोर की फिल्मो और गानो की बात तो सोची भी नहीं जा सकती थी

  किशोर कुमार और सत्यजीत रे
इंदिरा सरकार का ये तानाशाही कदम केवल किशोर कुमार को ही पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से नहीं बल्कि फिल्म इंडस्ट्रीज़ में दूसरों को भी सरकार के सामने मजबूर करने के लिए उठाया गया था। जो आपातकाल का विरोध कर रहे थे लेकिन इस फैसले का जबरदस्त  विरोध भी हुआ इसे एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय फिल्म आर्टिस्ट के खिलाफ प्रतिकार के रूप में देखा गया लेकिन आपातकाल में विरोध की हर आवाज दबा दी गई किशोर कुमार भी परेशान हो गए इस प्रतिबन्ध का असर भी होने लगा ज्यादातर फिल्म निर्माता किसी भी झमेले से बचने के लिए किशोर कुमार को अपनी फिल्मो में लेने से बचने लगे किशोर कुमार को आयकर विभाग ने कुछ नोटिस भी भेजे गए ताकि उनपर दबाव बनाया जा सके  ......आपातकाल के दौरान अपने विरोधियों को कैद करने और आजादी पर अंकुश लगाने के सरकारी प्रयासों का असर ये हुआ की हुआ 14 जुलाई 1976 को किशार कुमार ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को खत लिखकर कहा कि ..." वह सहयोग करने के लिए तैयार हैं " किशोर कुमार की इस अंडरटेकिंग के बावजूद जैन ने कहा की... '' हम बैन हटा सकते हैं लेकिन आप अपने नोट में इस बात को भी दर्ज करे कि पहले यह देखा जाए कि आप ( किशोर कुमार ) सरकार को कितना सहयोग कर रहे हैं।''...इस ज्यादती के खिलाफ एक बार फिर फिल्म इंडस्ट्रीज़ में गुस्से की लहर दौड़ गई किशोर कुमार को सत्यजीत रे ,देवानंद ,विनोद खन्ना और मोहमद रफ़ी का समर्थन मिला बाद में मोहम्मद रफी और मन्ना डे ने संजय गांधी के खिलाफ मोर्चा खोला। रफी ने तो संजय से यहां तक पूछ लिया कि '' इस तरह का एक्शन लेने के बाद वे किस हक से खुद को पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे महान इंसान का पोता कहते हैं ? "....इस मामले में जब शाह आयोग ने तत्कालीन मंत्री वीसी शुक्ला को समन किया तो उन्होंने कहा कि वह इस खेदजनक मामले की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं और इसके लिए कोई भी अधिकारी दोषी नहीं है। यह मामला खत्म तब हुआ जब शाह आयोग बनाने वाली जनता पार्टी सरकार गिर गई।और तब किशोर कुमार पर प्रतिबन्ध हटा ....कहा जाता है कि मोहम्मद रफी और मन्ना डे के दखल के कुछ समय बाद किशोर कुमार पर लगाया गया बैन वापस ले लेने का निर्णय कर लिया गया था हालांकि किशोर कुमार की लोकप्रिय आवाज समय की परीक्षा में खरी उतरने में सफल रही। किशोर दा ने बड़े ही साहस के साथ इस गलत फैसले का सामना किया। लेकिन शायद गिरफ़्तारी के डर या कहे की बेवजह झमेले से बचने के लिए उन्होंने देर सवेर सरकार से सहयोग की बात कही होगी

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