Friday, September 20, 2019

यादे उस बेमिसाल 'आनंद ' की ....जो कभी मरा नहीं करते ....


सुपरस्टार राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की फिल्म 'आनंद ( 1971 )' के कुछ किस्से बड़े मशहूर हुए थे इस फिल्म में राजेश खन्ना के अभिनय ,गुलज़ार साहेब के लिखे गीत ,राजेश खन्ना,अमिताभ के डायलॉग लोगों को आज भी याद है लेकिन फिल्म 'आनंद 'के लिए राजेश खन्ना निर्देशक की पहली पसंद नही थे ऋषिकेश मुखर्जी अपनी इस फिल्म 'आनंद' में अभिनेता राजकपूर को लेना चाहते थे 'आंनद' के शीर्षक रोल के लिए निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की पहली पसंद राज कपूर ही थे .........दरअसल ये फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी ने राजकपूर को ध्यान में रखकर ही लिखी थी 'आनंद' का वास्तविक चरित्र राजकपूर से प्रेरित था राजकपूर मुखर्जी को हमेशा " बाबू मोशाय " कहते थे। ऐसा माना जाता है कि मुखर्जी ने फिल्म तब लिखी थी जब एक बार राजकपूर गंभीर रूप से बीमार थे और मुखर्जी ने सोचा था कि उनकी मृत्यु हो सकती है। ........जब सही समय आया तो ऋषिकेश मुखर्जी स्क्रिप्ट लेकर राजकपूर के पास गए लेकिन राज साहेब अपने ही आर.के बैनर की फिल्मों मे व्यस्त थे और "बाबू मोशाय ऋषिकेश " के लिए समय न निकाल सके .......ऋषि दा ने इंतज़ार भी किया ऐसे ही वक्त निकलता गया फिर राज कपूर का बुढापा देखकर ऋषिकेष मुखर्जी को लगा की ये किरदार किसी और को देना चाहिए और उन्होंने अपना इरादा बदल दिया फिर शशि कपूर को मुख्य भूमिका की पेशकश की गई थी। लेकिन वो तो राजकपूर से भी ज्यादा व्यस्त थे


फिर बात आ कर ठहर गई अभिनेता और गायक 'किशोर कुमार' और 'महमूद ' पर ..... फिल्म में कैंसर के विशेषज्ञ डॉ॰ भास्कर बैनर्जी यानि बाबू मोशाय का किरदार महमूद द्वारा निभाया जाना था। महमूद तैयार भी हो गये उन्होंने ऋषि दा से कहा की .....''पहले किशोर से बात कर लो '' फिर इस फिल्म के लिए ऋषिकेश जी किशोर कुमार के पास गए ,बात पक्की हुयी...पर कुछ ऐसा हुआ की शूटिंग शुरु करने के कुछ ही दिन पहले किशोर कुमार को ऋषिकेश मुखर्जी ने फिल्म से 'आंनद 'से निकाल दिया किशोर कुमार को 'आनंद' फिल्म से निकाले जाने की इस घटना के पीछे का कारण काफी दिलचस्प है .......उस वक्त किशोर कुमार एक बंगाली फिल्म निर्माता के साथ कई स्टेज शो कर रहे थे लेकिन पैसो को लेकर कुछ अनबन हो गई तिलमिलाए और गुस्सा हुए किशोर घर लौटे और उन्होंने अपने बंगले के गार्ड को बड़े सख़्त लहज़े में साफ़ साफ़ कह दिया...... '' ख़बरदार ,उस बंगाली फिल्म निर्माता को मेरे घर के अंदर कभी मत आने देना  '' अब वो बात अलग है की किशोर खुद भी बंगाली ही थे ये वही वक्त था जब ऋषिकेश मुखर्जी किशोर कुमार के घर अपनी फिल्म 'आनंद' के बारे में कुछ चर्चा करने पहुंच गए जैसे ही उन्होंने एक फिल्म निर्माता के रूप में अपना परिचय किशोर दा के बंगले के गार्ड को दिया ,गार्ड को गलतफहमी हो गई जब गार्ड को पता चला की वो एक फिल्म निर्माता है और बंगाली भी तो उन्होंने अपने मालिक के हुक्म अनुसार बंगले के अंदर आने से मना कर दिया और साथ में यह भी कह दिया की ये हुक्म इनके मालिक किशोर कुमार का है इससे ऋषिकेश काफी गुस्सा हुए इस घटना से मुखर्जी बेहद आहत हुए उन्होंने किशोर कुमार के साथ काम नहीं करने और 'आनंद 'फिल्म को किशोर कुमार के बिना बनाने का फैसला कर लिया नतीजतन,महमूद को भी फिल्म छोड़नी पड़ी और इस तरह गार्ड की गलती के वजह से किशोर कुमार के हाथ से ये फिल्म निकल गयी और राजेश खन्ना को फिल्म के शीर्षक रोल के लिए चुन लिया गया .....ऋषिकेश दा ने इस फ़िल्म में संगीत देने के लिए पहले-पहल लता मंगेशकर से बात की थी लेकिन लता जी द्वारा मना कर देने पर संगीत निर्देशन का काम सलिल चौधरी को दिया गया। लता ने इस फ़िल्म में केवल एक गीत गाया है। हालाँकि 'आराधना' (1969 ) की सफलता के बाद से ही किशोर कुमार राजेश खन्ना की आवाज़ बन गए थे संगीतकार सलिल चौधरी ने गायक मुकेश से कहा की ....''उनकी आवाज़ 'आनंद' के किरदार को जीवित कर देगी '' लेकिन राजेश खन्ना किशोर की आवाज़ की जिद कर रहे थे फिर ऋषि दा और सलिल चौधरी के कहने पर उन्होंने सहमति व्यक्त कर दी .......' दूर कही जब दिन ढले जाये ' राजेश खन्ना को यह गीत इतना पसंद था की इसे अपने जीवन का फलसफा मानते थे राजेश खन्ना का जब भी जिक्र होगा 'आनंद 'के बिना अधूरा रहेगा ऋषिकेश मुखर्जी की इस क्लासिक फिल्म में कैंसर ( लिम्फोसर्कोमा आफ इंटेस्टाइन ) पीड़ित किरदार को जिस ढंग से उन्होंने जिया वह भावी पीढी के कलाकारों के लिये एक अभिनय की आदर्श मिसाल बन गया फिल्म 'आनंद' का किरदार उन्हें अमर कर गया

ऐसे ही एक और  घटना का जिक्र करना भी जरुरी है जो इस फिल्म से जुडी है आज भले ही महानायक अमिताभ बच्चन को चार पीढ़िया जानती है पर 'आनंद 'की रिलीज़ के समय तक लोग फिल्म के अन्य स्टार अमिताभ बच्चन को नहीं जानते थे एक बार उनके ट्विटर आकउंट पर पर इस घटना को साझा करते हुए एक प्रशंसक ने उन्हें याद दिलाया कि उन्हें फिल्म से कैसे पहचान मिली फिल्म 'आनंद 'के रिलीज के दिन बच्चन अपनी कार का टैंक भरने के लिए एक पेट्रोल पंप पर गए और किसी ने उन्हें नहीं पहचाना लेकिन शाम को फिल्म की रिलीज के बाद जब वह उसी पेट्रोल पंप पर दुबारा गए तो लोगो ने उन्हें पहचान लिया खुद बच्चन साहेब ने ट्विटर पर पोस्ट किया था  " यह एक सत्य घटना है यह इरला में एसवी रोड पर एक पेट्रोल पंप था। " 

 ऋषिकेश मुखर्जी ने रिकॉर्ड़ 28 दिनों में फिल्म 'आनंद' की शूटिंग पूरी की। 12 मई 1971 को जब फिल्म रिलीज़ हुई तो शुरुआत धीमी रही लेकिन तो धीरे धीरे इसे फिल्म समीक्षको ने सराहा और 'आनंद 'हिट हुई इसके गीत आज भी सुने जाते है फ़िल्म 'आनंद' को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, राजेश खन्ना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। हृषिकेश दा को सर्वश्रेष्ठ कहानीकार व सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म संपादन के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार प्राप्त हुए

'आनंद' के संवाद आज भी युवा पीढ़ी द्वारा सोशल मिडिया पर धड्ड़ले से शेयर किये जाते है इसकी लोकप्रियता के चलते ही एक मशहूर वीडियो फिल्म कंपनी ने लगभग 48 वर्षो बाद इसे अपने स्टूडियो में रिस्टोर कर डीटीएस मास्टर ऑडियो ( HD ) के रूप में पुनर्जीवित कर दिया है आनद' को इस नए नए रूप में देखने का अलग ही मजा है 


ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मो की अपनी एक अलग ही पहचान रही है उन्होंने गुलज़ार साहब को निर्देश दिया था कि फ़िल्म 'आनंद ' कुछ ऐसे शुरु होनी चाहिए जिससे दर्शकों को शुरु में ही पता लग जाए कि 'आनंद' मर गया है। ऋषि दा दर्शकों को इस सस्पेंस में नहीं रखना चाहते थे कि 'आनंद 'की मौत हो जाएगी या वह बच जाएगा। ? इसके बजाए ऋषि दा दर्शकों का ध्यान पूरी फ़िल्म में इस बात पर रखना चाहते थे कि 'आनंद 'ने अपने जीवन को किस खूबी से जिया। यही फिल्म 'आनंद ' का मुख्य सन्देश भी था 

शायद  इसलिए  ''आनंद आज भी नहीं मरा , आनंद कभी मरेगा भी नहीं . '' 

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