Thursday, November 23, 2017

प्रेम पत्र का वो किस्सा जो राजकपूर की ‘संगम’ में अमर हो गया ...

राजेंद् कुमार और वैजयंतीमाला ,संगम -(1964 )

18 जून 1964 को प्रदर्शित फिल्म ‘संगम’ उस दशक की सर्वाधिक सुपरहिट फिल्म थी राजकपूर निर्मित यह पहली कलर फिल्म थी संगम अपने ज़माने की समकालीन फिल्मो में पहली ऐसी फिल्म थी जिसे यूरोप में फिल्माया गया था करीब 20 मिनिट की फिल्म को राजकपूर साहेब ने यूरोप के बेहद दिलकश बर्फीले लोकेशन पर शूट किया जिसमे से ज्यादातर सीन उनके और वैजन्तीमाला जी थे फिल्म की लंबाई बढ़ने की वजह से एडिटिंग में फिल्म में से कुछ दृश्य हटाने का सुझाव भी उन्होंने नहीं माना बल्कि फिल्म के दो मद्यांतर (इंटरवेल ) जरूर करवा दिए लेकिन दो इंटरवल के बाद भी एक मिनट भी दर्शक अपनी सीट से नही हिले 



प्रेम त्रिकोण पर आधारित कहानी में गोपाल वर्मा के रोल के लिए राजकपूर साहेब अभिनेता दलीप कुमार के पास गए और उन्हें संगम की कहानी सुनाई कहानी सुनने के बाद दलीप साहेब ने कहाँ. ..." ठीक है राज साहेब में ये फिल्म करूँगा ...लेकिन मेरी दो शर्ते है पहली ये की फिल्म की फाइनल एडिटिंग में खुद करूँगा ..... और दूसरी शर्त ये है की आप फिल्म में सुंदर खन्ना वाला रोल नहीं करेगे " ......अब ये राजकपूर साहेब के लिए बड़ी अचम्भे वाली बात थी की अपनी ही पहली रंगीन फिल्म में वो काम ना करे दरसअसल कहा जाता है की दलीप कुमार साहेब राजकपूर के साथ फिल्म करना ही नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने ये बेढंगी शर्त रखी वो जानते थे की राजकपूर इन शर्तो को कभी भी नहीं मानेगे मायूस राजकपूर साहेब ने देवानंद से गोपाल वर्मा के रोल के लिए संपर्क साधा लेकिन देव साहेब से भी बात नहीं बनी आखिर में आ कर राजेन्द्र कुमार जी को गोपाल वर्मा के लिए फाइनल किया गया
 


कहते है की प्रेम पत्रों की एक ख़ूबी ये है की ये राख़ हो जाते हैं पर कभी रद्दी नहीं होते..!!..संगम फिल्म का एक गाना ..."मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज नही होना " जबरदस्त हिट हुआ इस गाने से से जुड़ा रोचक तथ्य है कि गीतकार हसरत जयपुरी अपने युवावस्था में राधा नामक एक युवती से प्रेम किया करते थे और उन्होंने एक कविता लिखी थी जिसके बोल.ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज नही होना अलबत्ता वह इस पत्र को अपनी राधा को नहीं दे सके लेकिन उनका खत गाने के रूप मे फिल्म ‘संगम’ में फिल्माया गया फिल्म में रफ़ी साहेब की आवाज़ में यह इकलौता गीत था

यही नहीं इस चिट्ठी से जुड़ा जो प्रसंग फिल्म में दिखाया गया है वो वाकया कुछ यूँ था राजकपूर साहेब और नरगिस जी को एक पार्टी के लिए बाहर जाना था और उन्हें देर रही थी राजकपूर साहेब हड़बड़ी में जब नर्गिस जी के घर गए तो उसके हाथ में एक कागज़ था जिसे वो पढ़ रही थी राजकपूर ने उससे पूछा कि ..'वो क्या है...?' तो नरगिस जी बोली...'कुछ नहीं कुछ नहीं....' उसने वो चिठ्ठी फाड़ दी और बोली ....'' चलो पार्टी के लिए देर हो रही है ". जब दोनों कार तक पहुंचे तो राजकपूर ने कहा....." मैं शायद अपना रूमाल अंदर भूल आया हूँ तुम चलो गाड़ी में बैठो में रुमाल लेकर आता हूँ "..... वो वापस नरगिस जी के घर गए तब तक नर्गिस की नौकरानी ने सफाई करके टुकड़े कूड़ेदान में डाल दिए थे राजकपूर साहेब ने वो चिट्ठी के फटे कागज़ों को कूड़े की टोकरी से उठा कर अपनी कोट की जेब में रख लिया अगले दिन उन्होंने उन फटे टुकड़ों को एक साथ रखा , जोड़ा और देखा कि वह एक निर्माता की ओर से शादी का पैगाम था जिसके बारे में नरगिस जी ने उन्हें नहीं बताया था एक चिठ्ठी से मिला जख्म इस कदर गहरा था कि कई साल बाद उनकी फिल्म संगम में असली जिंदगी का वो जख्म पर्दे पर उभर आया इस वाक्ये को हूबहू जैसा हुआ था फिल्म 'संगम 'में रखा गया


ये भी राजकपूर साहेब की जिंदगी का एक असल वाकया है ठीक बिलकुल वैसे ही जिस तरह उन्होंने नर्गिस जी से 1946 में हुई मुलाकात को 27 साल बाद बॉबी (1973) में हूबहू पर्दे पर उतार दिया आर के स्टूडियोज़ में राजकपूर की मशहूर कॉटेज के पीछे की तरफ एक कमरा है जो कभी नरगिस जी का कमरा हुआ करता था कहते हैं जब नर्गिस जी आरके स्टूडियो और राज कपूर साहेब की जिंदगी से निकल गई थीं तब भी कई सालों तक इस कमरे को वैसे ही रखा गया जैसा कि वो छोड़ गई थीं.उनकी याद हमेशा राज कपूर के साथ रही राजकपूर साहेब कभी नर्गिस को भूले ही नहीं थे नरगिस जी राज कपूर से ज़्यादा पढ़ी लिखी थीं उन्होंने क्वींस मेरी कॉन्वेंट से बीए पास किया था राज कपूर साहेब ने कालेज की अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की थी नर्गिस जी ने आर.के फ़िल्म्स के कम होते ख़ज़ाने को भरने के लिए बाहरी प्रोड्यूसरों की फ़िल्मों जैसे 'अदालत','घर संसार' और' लाजवंती '(1958) में काम किया बाद में राजकपूर साहेब ने उनके बारे में एक मशहूर लेकिन संवेदनहीन बयान दिया,.. '' मेरी बीबी मेरे बच्चों की माँ है, लेकिन मेरी फ़िल्मों का माँ तो नरगिस ही हैं.".
               

कहते है की दलीप कुमार साहेब के संगम में काम न करने की वजह भी नर्गिस जी थी अंदाज़ (1949 ) ,बाबुल (1950) ,मेला (1948) आदि फिल्मो में उनकी नायिका रही नर्गिस जी ने जिस तरह से राजकपूर साहेब के कहने पर फिल्मो का चुनाव करना शुरू कर दिया था उससे दलीप कुमार साहेब नाराज़ थे उनकी और नर्गिसजी की जोड़ी उस दौर में एक सफल फिल्म की गारंटी मानी जाती थी और दर्शक भी उनकी जोड़ी को पसंद करते थे लेकिन नर्गिस जी जिस तरह राजकपूर साहेब के प्रभाव में थी उससे दलीप साहेब कही न कही रश्क करते थे  दलीप कुमार साहेब वैसे भी संगम को 'अंदाज़ ' का रीमेक ही मानते थे शायद इसलिए उन्होंने राजकपूर की संगम में काम करने की बेतुकी शर्ते रखी वो अच्छी तरह जानते थे की राज साहेब उनकी शर्तो को कभी नहीं मानेगा लेकिन फिल्मो में कड़ी स्पर्धा के बावजूद राज साहेब और दलीप कुमार एक दूसरे के लिए जान देते थे दलीप कुमार और उनकी दोस्ती पेशावर से ही कॉलेज के ज़माने की थी दोनों ने जहाँ से ही हिंदी सिनेमा का महानायक बनने का सपना एक साथ देखा और उसे साकार भी किया

1 comment:

  1. NARGIS NE 57 ME SHADI KI OR US KE BAD FILMO ME KAM NAHI KIYA.

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