Tuesday, November 21, 2017

जब सहगल के एक भजन ने पृथ्वी राज कपूर को फिर से उनका दोस्त बना दिया ....

 कुंदन लाल सहगल और पृथ्वी राज कपूर

पृथ्वीराज कपूर जी को हमारे भारतीय हिंदी सिनेमा का ''भीष्म पितामह ''कहा जाता है जिन्होंने अपनी कड़क आवाज, रोबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर लगभग चार दशकों तक सिने दर्शकों के दिलों पर राज किया 1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी पृथ्वी थिएटर शुरू की पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया, जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफ़ी अलग था धीरे-धीरे दर्शकों का ध्यान थिएटर की ओर से हट गया, क्योंकि उन दिनों दर्शकों के ऊपर रूपहले पर्दे का क्रेज कुछ ज़्यादा ही हावी हो चला था  पृथ्वी थिएटर के प्रति उनकी लगन का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते है एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने नेहरू जी से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते पृथ्वीराज ने अपने थिएटर के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौक़ा दिया, जिनमें रामानंद सागर और शंकर जयकिशन जैसे बड़े नाम शामिल है हिंदी सिनेमा की पहली ''कपूर फैमिली ''के इस वट वृक्ष ने भारतीय सिनेमा को राजकपूर 'शम्मी कपूर ,शशि कपूर जैसे सितारे दिए जिन्होंने पृथ्वीराज कपूर की अभिनय परम्परा को जारी रखते हुए भारत की सीमाओं के बाहर भी अपने अभिनय से अपना परचम लहराया

हिंदी सिनेमा के बीते समय के ऐसे कई किस्से है जो बताते है है की तब कड़ी परिस्पर्धा के बावजूद सभी अभिनेताओं का अपने समकालीन अभिनेताओं से गहरा प्यार और भावनात्माक रिश्ता था भले ही चाहे आपस में कितना ही रंज ही लेकिन मुसीबत पड़ने पर सभी एक दूसरे की मदद करते थे और रिश्तो को टूटने से बचाने के लिए किसी भी कुर्बानी के लिए तैयार रहते थे ऐसे अनेक किस्सों से फ़िल्मी इतिहास भरा पड़ा है 1937 में एक फिल्म आई थी '' प्रेसिडेंट '' जिसमे पृथ्वीराज कपूर जी के साथ उस समय के हरफनमौला गायक और अभिनेता कुंदन लाल सहगल ने भी अभिनय किया था और डायरेक्टर थे नितिन बोस इस फिल्म का एक मशहूर गीत '' एक बंगला बने न्यारा '' जबरदस्त हिट भी हुआ था तब पृथ्वीराज कपूर और के एल सहगल अपने परिवार समेत माटुंगा मुंबई की एक ही बिल्डिंग में रहते थे और दोनों में दोस्ती भी बहुत गहरी थी पंजाबी होने के कारण दोनों में खूब बनती थी ............. लेकिन फिल्म ' प्रेसिडेंट ''के निर्माण के दौरान एक बात को लेकर के.एल सहगल साहेब और पृथ्वीराज कपूर जी में मनमुटाव हो गया पृथ्वीराज कपूर सहगल को सेट पर शराब पीने से रोकते थे लेकिन सहगल साहेब नहीं मानते थे संभवता इसी विवाद का मूल कारण भी यही था सहगल साहेब ने सेट पर पृथ्वीराज कपूर जी को कुछ ऐसा कह गया की दोनों में अनबन हो गई बात इतनी बढ़ गई कि दोनों की आपस में बोलचाल भी बंद हो गई और दोनों एक दूसरे को देख कर कन्नी काटने लगे

एक दिन इत्तेफाक से के. एल. सहगल शूटिंग के लिए घर से निकले तो पृथ्वीराज कपूर की मां मंदिर से आते हुए उन्हें गली में मिल गई उन्हें दोनों की अनबन की खबर नहीं थी उन्होंने सहगल से कहा..... "बेटा कुंदन कई दिन हो गए तुमने मुझे कोई भजन नहीं सुनाया और आजकल तू घर भी आता है तू आज और अभी कोई भजन मुझे सुना तभी तू आज काम पर जायेगा वर्ना नहीं " ........... सहगल साहेब ने रुक कर कुछ देर तक सोचा फिर पृथ्वीराज कपूर जी की मां को रुकने का इशारा कर वापिस पलट लिए और थोड़ी देर बाद ही सीढ़ियां चढते हुए वापस घर आ गए अपनी पत्नी आशा से बोलें ........"मुझे जरा मेरा हारमोनियम देना अपना हारमोनियम लेने आया हूं "....... इससे पहले उनकी पत्नी कुछ समझ पाती अगले ही पल हारमोनियम गले में बांधकर वह सीढ़ियां नीचे उतर गये ........फिर क्या  ....के.एल. सहगल ने पृथ्वी राज कपूर की माताजी को गली में से बुला कर घर की सीढ़ियों में बिठाया और खुद वही पर खड़े-खड़े ही सीढ़ियों पर "मधुकर श्याम हमारे चोर" भजन सुनाना शुरू कर दिया देखते ही देखते वहां अच्छा खासा मजमा लग गया और लोग मंत्रमुग्ध हो कर सहगल की आवाज़ में खो गए जब भजन खत्म हुआ तो भीड़ छंटी तो सहगल ने देखा की भीड़ के अंतिम छोर पर खड़े पृथ्वीराज कपूर भी भजन सुन कर सुबक रहे थे ......के. एल. सहगल ने फौरन गले से हारमोनियम उतारा और लिपट गए अपने दोस्त से और वो भी रोने लगे.....

" मैल मलल सब धोए दियो लिपटाए गले से सखा को सखा ने "

ये कितना भावुक दृश्य रहा होगा आप इसका अंदाजा शायद आज नहीं लगा सकते हैं पृथ्वीराज कपूर ने अपनी माँ के सामने कसम उठाई की अब दोनों एक दूसरे से कभी भी नाराज़ नहीं होंगे और ऐसा हुआ भी..

......तो ऐसा होता था उस समय का प्यार और दोस्ती ....

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