बेगम अख्तर 7 अक्टूबर 1914 - 30 अक्टूबर 1974 |
बेगम अख्तर ने संगीत प्रेमियों को गजलों की बेहद कीमती विरासत सौंपी है माना जाता है कि उनकी आवाज में जो दर्द झलकता था उसे संगीत प्रेमी खुद दिल से महसूस कर सकते थे बेगम अख्तर के बचपन का नाम ''बिब्बी'' था वो फैजाबाद के शादीशुदा वकील असगर हुसैन और मुश्तरीबाई की बेटी थीं असगर और मुश्तरी एक-दूसरे से प्यार करते थे जिसके फलस्वरूप बिब्बी पैदा हुई थीं मुश्तरीबाई को जुड़वा बेटियां पैदा हुई थीं चार साल की उम्र में दोनों बहनों ने जहरीली मिठाई खा ली थी इसमें बिब्बी तो बच गईं लेकिन उनकी बहन का देहांत हो गया बाद में असगर ने भी मुश्तरी और बेटी बिब्बी को छोड़ दिया था उसके बाद दोनों को अकेले ही संघर्ष करना पड़ा बिब्बी ने सात साल की उम्र से उन्होंने गाना शुरू कर दिया था 13 साल की उम्र में बिब्बी, अख्तरी बाई हो गई थीं 15 साल की उम्र में अख्तरी बाई फैजाबादी के नाम से पहली बार मंच पर उतरीं
धीरे-धीरे शोहरत बढ़ी और अख्तरी बाई के प्रशंसक भी बढ़ गए उनको खाना बनाने
का भी ज़बरदस्त शौक़ था बहुत कम लोग जानते हैं कि उनको लिहाफ़ में गांठे
लगाने का हुनर भी आता था और तमाम लखनऊ से लोग गांठे लगवाने के लिए अपने
लिहाफ़ उनके पास भेजा करते थे वो अक्सर कहा करती थीं कि...... "ईश्वर से उनका निजी राबता है "....
जब उन्हें सनक सवार होती थी तो वो कई दिनों तक आस्तिकों की तरह कुरान
पढ़तीं लेकिन कई बार ऐसा भी होता था कि वो कुरान शरीफ़ को एक तरफ़ रख
देतीं.उन्हें सिगरेट की इतनी लत थी कि रमजान के दौरान इफ्तार करते वक्त
जल्दी-जल्दी नमाज पढ़तीं और एक कप चाय पीने के बाद तुरंत सिगरेट सुलगा
लेतीं जब दो सिगरेट फूंक लेती उसके बाद जाकर फिर आराम से बैठकर नमाज पढ़तीं
चेन स्मोकर बेगम अख्तर ने सिगरेट की लत के चलते ''पाकीजा'' (1972)
फिल्म छह बार देखी वह हॉल में पाकीजा फिल्म देखने गई इस दौरान उन्हें तलब
लगी हॉल में सिगरेट पीने की अनुमति नहीं थी इसलिए उन्हें बाहर जाकर सिगरेट
पानी पड़ती।इस दौरान फिल्म का कुछ न कुछ हिस्सा छूट जाता जिसके चलते वह
अगले दिन फिल्म का वो हिस्सा देखने आतीं और सिगरेट के चक्कर में दूसरा
हिस्सा छूट जाता। इस तरह पाकीजा फिल्म वह छह बार में पूरी देख पाई थीं
बढ़िया शराब भी उनकी बेहद कमजोर रग थी
एक बार का किस्सा है बेगम अख़्तर जवानों के लिए कार्यक्रम करने कश्मीर गईं कार्यक्रम में उन्होंने जम कर रंग जमाया जब वो लौटने लगीं तो फ़ौज के अफ़सरों ने उन्हें विह्स्की की कुछ बोतलें दीं तब के कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख़ अबदुल्लाह ने श्रीनगर में एक हाउस बोट पर उनके रुकने का इंतज़ाम करवाया था जब रात हुई तो बेगम ने वेटर से कहा कि वो उनका हारमोनियम हाउस बोट की छत पर ले आएं उन्होंने उनके साथ गईं अपनी शिष्या रीता गांगुली से पूछा,..... "तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा अगर मैं थोड़ी सी शराब पी लूँ?"...... रीता ने हामी भर दी वेटर गिलास और सोडा ले आया. बेगम ने रीता से कहा,....... "ज़रा नीचे जाओ और देखो कि हाउस बोट में कोई सुंदर गिलास है या नहीं? ये गिलास देखने में अच्छा नहीं है." रीता नीचे से कट ग्लास का गिलास ले कर आईं उसे धोया और उसमें बेगम अख़्तर के लिए शराब डाली उन्होंने चांद की तरफ़ जाम बढ़ाते हुए कहा, "अच्छी शराब अच्छे गिलास में ही पी जानी चाहिए." उस रात बेगम अख़्तर ने दो घंटे तक गाया ख़ासकर इब्ने इंशा की वो ग़ज़ल गाकर तो सबको अवाक कर दिया.
'कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा... कुछ ने कहा ये चांद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा....'
''अख्तरी बाई फ़ैज़ाबादी '' के नाम से मशहूर बेगम अख़्तर को ''ग़ज़ल की मलिका '' कहा जाता था और आज अगर वे होतीं तो 103 साल की होतीं भारत सरकार ने इस सुर साम्राज्ञी को पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया था उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था 30 अक्तूबर 1974 को बेगम अख्तर अहमदाबाद में मंच पर गा रही थीं तबीयत खराब थी, अच्छा नहीं गाया जा रहा था ज्यादा बेहतर की चाह में उन्होंने खुद पर इतना जोर डाला कि उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा, जहां से वे वापस नहीं लौटीं हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया उन्होंने किंग ऑफ़ डे (1933 ) ,आमिना (1934 ) जवानी का नशा (1935) ,नसीब का चक्कर(1936) कई फिल्मो में अभिनय भी किया उन्होंने महबूब खान की रोटी (1942 ) में शानदार अभिनय किया था बॉलीवुड में आज भी कई गाने बेगम अख्तर की गजल और ठुमरी से बनाए जाते है फिल्म 'डेढ़ इश्किया' (2014) का गाना ‘हमरी अटरिया पे आजा ओ संवरिया…' भी बेगम की गजल से लिया गया है मशहूर ग़ज़लों के अलावा भी बेगम अख़्तर की संगीतमय विरासत के कई पहलू रहे हैं
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