जुगनू (1947) |
1947 में देश जब अपनी आजादी की अंगड़ाई लेने की कोशिश कर रहा था तो बेहद गर्म महीने में 23 मई को फिल्म '' जुगनू '' ठन्डे हवा के झोंके की तरह आई और भारतीय जनमानस के दिलो दिमाग पर छा गई दलीप कुमार जैसा ट्रेजडी का बादशाह हमारे हिंदुस्तान को मिला जिसने अभिनय की सारी पुरानी और परम्परागत अवधारणाओं को तोड़कर एक ऐसी नई इबादत लिखी जिसे आज सारी दुनिया शिद्दत से पढ़ रही है सबसे बडी बात ये कि संवादों की अपनी जो रवानगी दलीप साहेब ने इस फिल्म में स्थापित की वह उनकी अंतिम फिल्म तक जारी रही आैर लोग उसके मुरीद रहे
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ज्वार भाटा (1944 ) से अपने अभिनय यात्रा शुरू करने वाले दलीप कुमार की '' जुगनू 'पहली हिट फिल्म थी जिसे मलिका ए तरन्नुम नूरजहां के शौहर शौकत हुसैन रिज़वी ने बनाया था नूरजहां इस फिल्म में दलीप साहेब की नायिका थी और उनका ही नाम फिल्म में 'जुगनू 'था फिल्म में नूरजहाँ, दिलीप कुमार, के आलावा गुलाम मोहम्मद, सुलोचना , लतिका, जिया, जिल्लो बाई , आगा, शशिकला और प्रसिद्ध पार्श्वगायक गायक मोहम्मद रफी ने भी अभिनय किया फ़िरोज़ निज़ामी के संगीत में रचे 'जहां बदला बफा का बेबफाई के सिवा क्या है' और 'हमें तो शाम गम में काटनी है जिंदगी अपनी है" जैसे कालजयी गानों ने इसमें चार चाँद लगा दिए 'वो अपनी याद दिलाने को ' गाने में परदे पर गायक मुहम्मद रफी भी हैं ये एक हास्य गीत था जुगनू के गीत दिल्ली से लेकर लाहौर तक की गलियों कूंचों में गूंजे शायद इस कारण ये '' जुगनू फिल्म उद्योग की किंवदंतियों में से एक बन गई
साल 1947 में दलीप कुमार और नूरजहां की फिल्म जुगनू रिलीज़ हुई थी। हर जुबां पर इस फिल्म का नाम था। लोग बड़ी संख्या में सिनेमा घरों में इस जोड़ी को देखने जा रहे थे। लेकिन शायद उन्हें नहीं पता था कि वह आखिरी बार इन दोनों कलाकारों को साथ देख रहे थे। जुगनू दहेज़ जैसी क्रुप्रथा के खिलाफ लड़ती कहानी पर बनी मार्मिक फिल्म थी जो मनोंरजन के साथ साथ एक सामाजिक सन्देश भी देती है जुगनू बॉक्स ऑफिस पर सफल रही लेकिन फिल्म रिलीज होने के कुछ समय बाद शौकत हुसैन रिजवी और उनकी पत्नी नूरजहां दोनों पाकिस्तान में जा कर बस गए थे उन्होंने दलीप कुमार को भी 'युसूफ खान ' का वास्ता देकर पाकिस्तान चलने को कहा लेकिन दलीप कुमार ने मरते दम तक हिंदुस्तान में रहने की अपनी इच्छा उनको बता दी इतिहास गवाह है पाकिस्तान में नूरजहां को मरते दम तक भारत जैसा प्यार और शौहरत कभी नहीं मिली नूरजहां के सभी नूर पाकिस्तान पहुंचकर खत्म हो गए लेकिन युसूफ खान साहेब हिंदुस्तान की अवाम के दिलो में आज भी दिल बन कर धड़कते है फिल्म जुगनू कॉलेज का बैकग्राउंड था लडको की शरारतें ,लडकियों और टीचर्स को परेशान करना वगैरह आजकल के जमाने मे तो यह आम बात है आज के कई नायको ने फिल्मो में कई बार ऐसे रोल किए हैं लेकिन उस जमाने मे फिल्म इंडिया और कई फिल्म पत्रिकाओं ने और लोगों ने भी इसकी आलोचना की थी फिल्म का एक गीत जो लतिका पर फिल्माया गया था अश्लीलता के कारण विवादास्पद बन गया था लेकिन फिल्म के संगीत ने सारी कमियों को ढक लिया और फिल्म हिट हुई थी
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