चंदूलाल शाह और केदार नाथ शर्मा |
हिंदी फिल्म जगत में केदार नाथ शर्मा का नाम एक ऐसे फिल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने राज कपूर, भारत भूषण, मधुबाला, माला सिन्हा और तनुजा को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वर्ष 1933 में केदार शर्मा को देवकी बोस की निर्देशित फिल्म ' पूरन भगत ' देखने का मौका मिला इस फिल्म से वह इस कदर प्रभावित हुए कि निश्चय किया कि वह फिल्मों में ही अपनी किस्मत आजमाएंगे अपने इसी सपने को पूरा करने के लिये केदार शर्मा कोलकता चले गए कोलकाता में केदार शर्मा की मुलाकात फिल्मकार देवकी बोस से हुई भी और उनकी सिफारिश से उन्हें न्यू थियेटर में बतौर छायाकार शामिल कर लिया गया वर्ष 1934 में दिखाई गई फिल्म 'सीता' बतौर सिनेमाटोग्राफर केदार शर्मा की पहली फिल्म थी इसके बाद न्यू थियेटर की फिल्म 'इंकलाब '(1935) में केदार शर्मा को एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला
इधर फिल्म जगत् में 'चंदूलाल शाह' के नाम से विख्यात चंदूलाल जे. शाह ने लीक से हटकर नए-नए विषयों पर फिल्म बनाने की परंपरा शुरू की वह फिल्म-निर्माताओं की संस्था 'इम्पा' जो आज भी सर्वाधिक अधिकार संपन्न संस्था हैव 'मोशन पिक्चर्स सोसायटी ऑफ इंडिया' के संस्थापक थे। वह 'फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया' के प्रथम अध्यक्ष भी रहे। 'भारतीय सेंसर बोर्ड' के फिल्म जगत् से बननेवाले प्रथम सदस्य भी वही थे
नीलकमल (1947 ) |
न्यू ओरियेंटल फिल्म कंपनी अपनी पहली फिल्म 'नीलकमल' की तैयारी कर रही थी ये फिल्म चंदूलाल शाह और केदार शर्मा मिलकर बना रहे थे इस फिल्म की मुख्य भूमिका अभिनेत्री बेगम पारा और कमल चटर्जी निभाने वाली थी लेकिन इसी बीच कमल चटर्जी और केदार नाथ शर्मा ने गुपचुप शादी रचा ली थी दुर्भाग्य वश किसी बीमारी के कारण कमल चटर्जी का नील कमल में अभिनय करना संभव नहीं हुआ, और उनकी मौत हो गई तब मृत्यु पूर्व उन्होंने केदार शर्मा से वचन लिया कि 'नीलकमल' में उनकी भूमिका 'बेबी मुमताज 'करेगी और केदार शर्मा ने अपना वचन निभाया भी.... नीलकमल' बनी और राज कपूर की इस पहली फिल्म की हीरोइन मुमताज (मधुबाला ) बनी .... प्रेम और सौंदर्य की देवी "वीनस " के नाम से जानी जाने वाली मधुबाला कच्ची उम्र में ही नायिका बन गईं और बेबी मुमताज़ के नाम से फिल्मो में बाल भूमिकाये भी कर रही थी मधुबाला के घर का नाम मुमताज था
कम ही लोग जानते है की मधुबाला की पहली फिल्म नीलकमल (1947 ) के निर्माता चंदूलाल शाह उन्हें फिल्म में नहीं लेना चाहते थे जब फिल्म बननी शुरू हुई तो चंदूलाल शाह ने केदार शर्मा से पूछा कि "फिल्म के कलाकार कौन हैं ?."....उन्होंने जवाब दिया -...."राजकपूर, बेगम पारा और मुमताज।' "....... चंदूलाल शाह समझे की केदार शर्मा ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री मुमताज शांति को फिल्म में लिया गया है बाद में जब सचाई सामने आई तो आगबबूला हो उठे बोले ...... 'केदार तुम्हारा दिमाग खराब है एक बच्ची को अभिनेत्री बनाओगे ? तुमने मुझे धोखा दिया है इसे निकालो फिल्म से "....केदार शर्मा ने कहा - 'मेरा विश्वास करो, वह यह भूमिका निभा लेगी।' '......चंदूलाल चीखे....".तुम्हारा विश्वास गया भाड़ में, .....
भारत को स्वतंत्रता दिलाने और अखंड भारत की रचना करने वाले सरदार बल्लभभाई पटेल को जिस तरह ‘सरदार’ की उपाधि दी गई। ठीक उसी तरह, भारतीय सिनेमा में ही एक नाम ऐसा है, जिन्हें हिंदी सिनेमा जगत का ‘सरदार’ कहा जाता है ये फिल्मकार चंदूलाल शाह हैं ........सन् 1925 से 1955 तक कई चर्चित फिल्में बनाने वाले चंदूशाह अपनी जिद के पक्के थे अगर दोस्ती निभाने पाए आ जाते तो उनसा कोई दोस्त नहीं और अगर दुश्मनी पर
उतर आये तो सामने वाले से अपनी हार नहीं मानते थे चंदूशाह से सरदार पटेल की
भी अच्छी दोस्ती थी एक बार सरदार पटेल ने उनसे चुनाव में कांग्रेस के लिए
एक लाख रुपए की मांग की चंदूलाल ने एक झटके में ही यह रकम उन्हें दे दी
थी क्योंकि उन्हें सरदार
पटेल की प्रामाणिकता पर पूरा विश्वास था वे जानते थे कि सरदार पटेल जो भी
करेंगे, वह देश हित के लिए ही होगा
तो चंदूलालशाह अड़ गए की " इस बच्ची मुमताज़ को फिल्म से निकाल दो नहीं तो फिल्म में लगे मेरे पचहत्तर हजार रुपए तुम अभी मुझे वापस करो मुझे ये फिल्म नहीं बनानी " केदार शर्मा अपनी पत्नी कमल चटर्जी को मुमताज़ को फिल्म नील कमल में लेने का वचन दे चुके थे उस वचन से पीछे हटना उन्हें भी गंवारा नहीं था उन्होंने अपने दम पर फिल्म बनाने का फैसला कर लिया ... केदार नाथ शर्मा ने गहने और कीमती वस्तुएँ गिरवी रखकर चंदूलाल शाह का पैसा चुकाया और चंदूलाल शाह फिल्म से हमेशा के लिए अलग हो गए केदार शर्मा ने मधुबाला पर विश्वास कायम रख कर नील कमल खुद बनाने का फैसला किया उन्होंने अपने दम पर 'नीलकमल' बनाई केदार नाथ शर्मा ने अपनी इस फिल्म से सिने जगत को राजकपूर और मधुबाला जैसे दो चमकते सितारे दिए बेबी मुमताज का नायिका के रूप में अभिनय सराहा गया नीलकमल में उन्होंने 'गंगा' नाम की लड़की का शानदार किरदार निभाया नीलकमल' और 'महल' के बीच यानी 1946 से 1949 तक वे मेरे भगवान, इम्तिहान, चित्तौड़ विजय, दिल की रानी, अमर प्रेम अर्थात राधाकृष्ण, पराई आग, अपराधी, लाल दुपट्टा, सिंगार, पारस तथा नेकी और बदी फिल्मों में नायिका बनकर आई थीं लेकिन बेबी मुमताज़ से मधुबाला बनने के बाद उनकी पहचान महल' (1949) से बनी ' मुमताज़ से मधुबाला होने के पीछे भी मतभेद हैं कुछ लोगों का मानना है कि फिल्म 'इम्तिहान' के मोहन सिन्हा ने उन्हें यह नाम दिया, जबकि कुछ के अनुसार इंदौर के कवि हरिकृष्ण प्रेमी ने उन्हें मधुबाला के नाम से नवाजा वीनस यानी 'शुक्र' आकाश का सबसे अद्वितीय सितारा...... ज्योतिष शास्त्र
कहता है कि शुक्र कलात्मक गतिविधियों, सौंदर्य और भौतिक सुख-समृद्धि का
प्रतीक है ........रूप की यह अनुपम रोशनी इतनी प्रखर और पवित्र बनकर चमकी
कि उसे भारतीय सिनेमा का शुक्र-तारा कहा गया मधुबाला के सौंदर्य, कच्चे दूध
जैसी शुभ्र धवल मुस्कान, बिना काजल की कोरी आँखें और नर्म मधुर चेहरे ने
सुंदरता का अपूर्व प्रतिमान गढ़ा है एक ऐसा परिपूर्ण सौंदर्य, जो परिभाषाओं
से परे हैं, मिसालों से जुदा ...आज वह नहीं है कहीं नहीं है, किंतु फिर भी
है, असंख्य धड़कनों में...... हिंदी सिनेमा में सुंदरता से भरपूर
अभिनेत्रियों की कमी कभी नहीं किंतु संगमरमर पर तराशे शफ्फाफ ताजमहल सी
मधुबाला की बराबरी कोई नहीं कर सकी कि वास्तव में वो जितनी खूबसूरत
थीं, सिनेमा का कैमरा उसका दो प्रतिशत ही पकड़ सका है
राजकपूर और मधुबाला फिल्म 'नील कमल ' में |
इसके बाद मधुबाला ने अपने अभिनय और सौंदर्य के ऐसे-ऐसे करिश्मे पेश किए कि केदार शर्मा से नकद 75 हजार रुपए वापस माँगने वाले चंदूलाल शाह भी उनका लोहा मानने के लिए मजबूर हो गए यहाँ तक कि उन्होंने देव आनंद को लेकर मधुबाला के नाम से ही 'मधुबाला' (1950) फिल्म ही बना डाली।
मधुबाला को आज भारतीय रजतपट की "वीनस" कह पुकारा जाता है उसे अपनी फिल्म में अस्वीकार करने वाले चंदूलाल शाह और उसे लेकर 'नील कमल 'बनाने वाले केदार शर्मा आज इस दुनिया में नहीं है लेकिन उन दोनों का ये किस्सा आज भी फिल्म जगत में सुना और सुनाया जाता है .......सफलता कभी स्थायी नहीं होती हिंदी सिने जगत में एक समय राज करने वाले चंदूलाल शाह के अंतिम दिन दयनीय अवस्था में व्यतीत हुए हमेशा महंगी-महंगी और लग्जरी कारों में घूमने वाले चंदूभाई के जीवन का अंतिम समय ऐसा भी रहा कि उन्हें बसों से भी सफर करना पड़ा मूल जामनगर के चंदूशाह का नाम आज भी हिंदी फिल्मों के इतिहास में आदर के साथ लिया जाता है
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