Thursday, January 4, 2018

हर हर महादेव (1950) ....जिसने निरूपा राय को ' सती पार्वती 'का दर्जा दिया

हर हर महादेव (1950)
आरम्भ के युग में केवल मूर्ति और भगवान के बनाये तैल चित्रो के माध्यम से ही पूजा और धार्मिक अनुष्ठान करने का चलन था लेकिन ये महंगा था मूर्ति और तैल चित्र बनवाना हर वर्ग के बस की बात नहीं थी कागज़ अभी प्रचलन में नहीं था तब राजा रवि वर्मा ने जब सबसे पहले हिन्दू देवी देवताओ औरअन्य पौराणिक कथा के किरदारों की पेंटिंग बना कर उन्हें प्रिंट कर बेचा तो घर घर में उनके बनाये चित्रो की पूजा होने लगी हालाँकि इस का विरोध भी हुआ तर्क ये दिया गया की अगर सब अपने घर में भगवान के चित्रो की पूजा करने लगे तो मंदिर में कोई नहीं जायेगा बावजूद इसके हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्तेमाल राजा रवि वर्मा के चित्रों में दिखता हैं उन्होंने लगभग 30 वर्ष भारतीय चित्रकला की साधना में लगाए मुंबई में लीथोग्राफ प्रेस खोलकर उन्होंने अपने चित्रों का प्रकाशन किया था राजा रवि वर्मा की लोकप्रियता इतिहास में पुराण व देवी देवताओं के चित्रों के कारण हुई ठीक उसी तरह हमारे आरम्भिक मूक सिनेमा के फिल्मकारों ने भी धार्मिक फिल्मो से ही सिनेमा की दुनिया में आगाज़ किया हिंदी सिनेमा के इतिहास की पहली फिल्म राजा हरिश्चंन्द्र (1913) ही पौराणिक कथा पर आधारित थी उसके बाद मोहिनी भस्मासुर (1913 ) श्री कृष्ण जन्म (1918 ) लंका दहन (1917),कालिया मर्दन (1919) ,जैसी फिल्मे भी दादा साहेब फाल्के ने बनाई और जे,जे मदान ने उन्हें अपने बनाये विशेष सिनेमा घरो में रिलीज़ कर खूब पैसा भी बटोरा क्योंकि वो अच्छी तरह जानते थे की पौराणिक फिल्मो का महत्त्व कभी कम नहीं हो सकता उन्हें लगा कि रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक महाकाव्यों से फिल्मों के लिए अच्छी कहानियां मिलेंगी मूक सिनेमा के फिल्मकारों  के पास सभी तरह का हुनर था वह लगातार अपनी फिल्मो में नए नए प्रयोग कर दर्शको का मनोरंजन करते रहे

त्रिलोक कपूर
जब हमारे फिल्मकारों ने पौराणिक कथा के किरदारों को सिनेमा के परदे पर जीवित कर दिया तो दर्शक भावविभोर हो गए और सिनेमा घर मंदिर बन गए बाकायदा जूते उतार कर और सिर ढक कर ऐसी फिल्मे देखी जाती थी और सिनेमा के परदे पर पैसे ,फल ,फूल भी चढ़ाये जाते थे .उपलब्ध रेकॉर्ड के अनुसार लंका दहन फिल्म की टिकट खिड़की पर आमदनी इतनी अधिक थी कि सिक्को को पतीलों  में भर कर उसके परिवहन के लिए सशस्त्र सुरक्षादल से रक्षित बैलगाड़ी का प्रयोंग किया जाता था 1937 में दादासाहब ने अपनी पहली और अंतिम सवाक फिल्म "गंगावतरण" भी धार्मिक ही बनाई  वक्त के साथ कई नामी सितारे भी फिर भक्ति सिनेमा की ओर आकर्षित हुए और उन्होंने कई भक्ति फिल्मों में काम किया शायद इसी कारण भक्ति फिल्मे बनती रही और सफल भी होती रही लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये भी रही की हमारे नामी फिल्मकारों ने धार्मिक फिल्मो को भव्य स्तर पर बनाने से हमेशा परहेज़ किया उनका शायद मानना था की ऐसी फिल्मो का दर्शक वर्ग सीमित है इसलिए उनका मुनाफा भी कम होगा परिणाम स्वरूप हिंदी धार्मिक फिल्मो की तुलना सी ग्रेड फिल्मो की श्रेणी में ही होती रही लेकिन विजय भट्ट जैसे फिल्म निर्माताओं ने अच्छी धार्मिक ,रोमांटिक ,पारिवारिक ,ऐतिहासिक फिल्मे बना इस मिथक को तोडा भी हर हर महादेव भी एक ऐसी ही फिल्म है जो न केवल हिट रही बल्कि 60 लाख का शानदार कलेक्शन भी बॉक्स ऑफिस पर बटोरा

निरुपा राय और जीवन
निर्माता निर्देशक जयंत देसाई की हर हर महादेव 50 के दशक में पौराणिक फिल्मों की सबसे बड़ी हिट में से एक है इस पौराणिक फिल्म में त्रिलोक कपूर ,निरूपा राय ,नरंजन शर्मा,दुर्गा खोटे,शांता कुंवर ,जीवन ,और मिश्रा में प्रमुख भूमिकाये निभाई थी 40 और 50 के दशक को गीता दत्त जी के गायन का सबसे अच्छा काल कहा जाता है ऐसा उनके अपने प्रशंसक भी मानते है हर हर महादेव (1950) में अपने गायन से उन्होंने भक्ति गीतों में अपना स्थान बनाया उस्ताद संगीतकार अविनाश व्यास जी ने फिल्म हर हर महादेव में युवा गीता जी से जो गीत गंवाए प्रत्येक गीत अपने आप में एक उत्कृष्ट कृति है संगीतकार अविनाश व्यास जी ने गीता दत्त जी पर विश्वास जताते हुए 9 में से 7 गाने इस फिल्म में उनसे गंवाए....... टिम टिम तारे ,मन न मानें ,शिवशंकर भोले भाले ,कंकर कंकर से ,गुन गुन करता भंवरा ,रितु अनोखी प्यार अनोखा , जैसे सुंदर गीतों को गीता घोष राय चौधरी (गीता दत्त ) ,मुकेश चंद माथुर (मुकेश ) और एक गाने को जोहरा बाई अम्बाले वाली और सुलोचना कदम ने अपना स्वर दिया ऐसी फिल्मो में बाबू भाई मिस्तरी के अद्भुत फोटोग्राफिक्स वर्क का बोलबाला रहता था चाहे आकाश से पुष्प वर्षा ,देवताओं और असुरो का युद्ध  ,बादलो में अप्सराओं का नृत्य ,आग और पानी बरसाते शस्त्र हो बाबू भाई का कोई मुकाबला नहीं था वे अपने काम को बखूबी अंजाम देते थे


जीवन
निरूपा राय की किस्मत ने नया मोड़ लिया जब उन्हें ‘हर हर महादेव’ फिल्म में पार्वती की भूमिका मिली यह फिल्म खूब चली तथा निरूपा राय को देवी का दर्जा दे गयी इस फिल्म बाद  निरूपा राय ने ढेर सारी धार्मिक फिल्मों में काम किया, कभी सीता बनी, कभी दमयंती, कभी पार्वती और कभी द्रोपदी ......लोग तो सचमुच देवी पार्वती मां मानकर उन्हें पूजने लगे हर हर महादेव में शिव बने अभिनेता त्रिलोक कपूर भी कपूर खानदान से आते है वह अभिनेता पृथ्वी राजकपूर के भाई है और लाला बसेश्वर नाथ के दूसरे पुत्र थे उनकी पहली फिल्म चार दरवेश (1933) में आई थी लेकिन सफलता उन्हें धार्मिक फिल्मों से ही मिली उन्होंने निरूपा राय के साथ लगभग 18 फिल्मो में अभिनय किया उनमे ज्यादातर फिल्मे धार्मिक थी अभिनेता जीवन ने इस फिल्म में अपने चिरपरिचित अंदाज़ में महर्षि नारद मुनि की भूमिका निभाई थी नारद मुनि का अभिनय उनसे अच्छा आज तक कोई दूसरा अभिनेता नहीं कर सका फिल्मो में सबसे अधिक बार नारद मुनि का रोल करने का रिकार्ड भी जीवन जी के पास है
‘हर हर महादेव’ की सफलता के बाद त्रिलोक कपूर कपूर और निरूपा राय शिव पार्वती के रूप में मशहूर हो गए वो जहाँ भी जाते लोग उनके पांव छूते कई बार तो बड़ी असहज स्थिति बन जाती थी जब उनके प्रशंसक उनसे अपनी निजी समस्याए बता उनका हल करने को कहते ......एक बार तो हद हो कई जब निरुपा रायजी के घर एक दर्शक आकर उनके नौकर को कहने लगा कि ...."यहां देवी पार्वती रहती हैं, वह उनकी पूजा करने आया है " नौकर ने बहुत कहा कि यहां कोई देवी नहीं रहती परन्तु वह दर्शक अड़ा रहा और कहता रहा की वो देवी पार्वती के दर्शन किये बिना नहीं जायेगा और अंत में वह निरूपा राय की आरती उतारकर ही गया अपनी इसी इमेज को तोड़ने के लिए निरूपा राय बीच-बीच में स्टंट फिल्मों की नायिका भी बनीं, फिर ऐतिहासिक प्रेम कथाओं पर आधारित फिल्में भी यहा तक की 1951 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सिंदबाद द सेलर' में निरुपा रॉय ने नकारात्मक चरित्न भी निभाया लेकिन दर्शकों ने उन्हें इन भूमिकाओं में पसंद नहीं किया,बल्कि उनसे नाराज हो गये उन दिनों उनके पास दर्शकों के ढेर सारे पत्र आते थे कि उन्हें देवी पार्वती से ऐसी उम्मीद न थी कमोबेश यही हाल त्रिलोक कपूर का भी था उन्होंने ने भी अपनी शिव भगवान की इमेज तोड़ने के लिए सामाजिक फिल्मो की और रुख कर लिया ये सब 1950 में रिलीज़ हर हर महादेव का ही जादू था जिसके साथ ये सितारे अंत समय तक बंधे रहे

 
जब तक दुनिया है और हर हर महादेव जैसी धार्मिक फिल्मो का पौराणिक फिल्मो का महत्व बना रहेगा ये बात हमारे फ़िल्मकार जानते है इसलिए आज भी  VFX और अन्य डिजिटल माध्यमों से वो धार्मिक फिल्मो के साथ नए प्रयोग करते रहते है लेकिन उन्हें एक मर्यादा में रहकर इनके मूल पौराणिक स्वरूप से बिना छेड़छाड़ किये नए प्रयास करने होंगे ताकि इन फिल्मो का शाश्वत महत्त्व अनंत काल तक बना रहे 
 

2 comments:

  1. very intersting. Pawan ji aapki baat ekdam sahi hai. Aapne mujhe bataya ki aapki jaankari ke aage meri jaankari bahoot kam hai. Aaj dharmik filmon ki jagah tv serials ne le li hai. Maibe bhi ek film abhi Produce aur direct ki hai, Narsi Mehta ke jeewan par Nani Baai Ro Mayro. Film darshkon ko behad pasand aai, kaafi saare award bhi jeete. Best Film se lekar best Make up tak. But financial recovery abhi nahi hui.

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    1. श्रीमान जी अगर आप अपना नाम लिखते तो अच्छा होता माफ़ी चाहता हूँ मुझे याद है की मैंने कभी भी आपको ये नहीं कहा आपकी जानकारी की अपेक्षा मेरी जानकारी ज्यादा है

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