Saturday, February 10, 2018

जब उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ मुग़ले-ए-आज़म के निर्देशक के.आसिफ की जिद के आगे हार मान गए

उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ
मुगले-ए-आज़म के पीछे महज़ के.आसिफ का निर्माण और निर्देशन ही नहीं था बल्कि उनकी दीवानगी भी थी उन्होंने हर वो संभव कोशिश की जो उनकी फिल्म मुगले-ए-आज़म को भव्यता के उच्चतम स्तर पर ले जाये वह 1960 में बन रही अपनी चर्चित फिल्म ‘मुगले आजम’ में "राग सोहनी" और "रागेश्वरी " पर आधारित दो गीतों का शास्त्रीय गायन चाहते थे संगीत निर्देशक नौशाद थे ये बात उन्होंने नौशाद को बताई उन्होंने नौशाद को कहा की ...."क्लासिकल संगीत की सर्वश्रेष्ठ हस्ती कौन है." ? नौशादजी ने कहा ...."उस्ताद बड़े गुलाम अली खान" के.आसिफ ने तुरंत कहा "तो नौशाद साब चलो उनके घर जायंगे और उनको अपनी फिल्म में गाने के लिए के लिए साइन करेंगे ."अब नौशाद तो उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ के शागिर्द थे और वो अच्छी तरह जानते थे की कसूर पटियाले घराने ( अविभाजित पंजाब ) से सम्बन्ध उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ को फिल्मवालों से बड़ी नफ़रत थी बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ बहुत तंदुरुस्त और लहीम शहीम शख्स थे उनकी शक्ल पहलवानों जैसी थी अपने प्रोग्राम के दौरान वो कभी भी होटल में नहीं ठहरते थे किसी खाली जगह में ही रहना पसंद करते थे जहाँ अपना खाना खुद बनाते जब वो सफ़र करते थे तो ट्रेन में उनके साथ एक असली घी का कनस्तर चलता था उन्हें हमेशा पता रहता था कि इससे ज़्यादा नहीं गाना है श्रोता चिल्लाते रहते थे... एक और ... एक और.लेकिन ख़ाँ साहब उनकी बात नहीं मानते थे वो फिल्मो में गाना अच्छा नहीं मानते थे उनका मानना था की की फिल्मो में शास्त्रीय संगीत के साथ न्याय नहीं किया जाता बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ फिल्मवालों को "भांड ,मिरासी " नामो से चिढाते थे ऐसे में फ़िल्मकार के.आसिफ को बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ के घर ले जाना मतलब मुसीबत को दावत देना था उन्हें खान साहेब के गुस्से का शिकार भी होना पड़ सकता था

 संगीतकार नौशाद
वक्त ले कर के.आसिफ की जिद के चलते नौशाद मजबूरन उन्हें लेकर ख़ाँ साहब के घर पहुँच गए......दुआ ,सलाम ,ख़ैरियत के बाद नौशाद ने बातचीत शुरू की  .. "आसिफ आप से मिलना चाहते थे ..? " बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ जी ने अनमने ढंग से कहाँ ..."फरमाये" दरअसल में बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ जी पहले ही इस बात से नाराज थे की आसिफ बिना जूते उतारे ही उनकी बैठक में आ गए थे जो उन्हें कतई पसंद न था नौशाद जी इस बात को भांप चुके थे आसिफ ने ख़ाँ साहब के सामने बैठ कर सिगरेट जलाई और कहने लगे.. " क्या आप मेरी फिल्म के लिए गायेंगे ख़ाँ साहब "...? ख़ाँ साहब मन ही मन आगबबूला हो गए और सोचने लगे बड़ा बदतमीज आदमी है एक तो बिना जूते उतारे घर के अन्दर आ गया और उपर से मेरे सामने सिगरेट पी रहा है बड़े मिजाज से मुझसे ही पूछ रहा है आप मेरी फिल्म के लिए गायेंगे ? गुस्से को जज्ब कर ख़ाँ साहब चुप बैठे रहे अपने उस्ताद ग़ुलाम अली ख़ाँ को गुस्से में खामोश बैठे देख नौशाद साहेब समझ गए की ये तूफान के आने से पहले की ख़ामोशी है वो वापिस जाने के लिए अपने जूते तलाशने लगे लेकिन बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साब की चुप्पी से के.आसिफ को लगा की बात बन गई और खां साहेब उनकी फिल्म में गाने को राजी हो गए है

के.आसिफ
लेकिन ग़ुलाम अली ख़ाँ के मन में कुछ और ही चल रहा था वो किसी तरह से बदतमीज़ के.आसिफ से पीछा छुड़ाना चाहते थे उनको फिल्म में गाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन घर में आये मेहमान को कैसे जाने के लिए कहे ? उन्होंने सोचा की इससे पैसे ही इतने मांग लो की यह बदतमीज भाग जाए उन्होंने के.आसिफ से कहा ..."एक गाने के रूपये पचीस हजार लूंगा "  ये कह कर अब वो के.आसिफ का चेहरा देखने लगे उन्होंने सोचा की इतने पैसे सुनकर आसिफ भाग जायेगा और उनकी जान छूटेगी के.आसिफ ने इत्मियान से अपनी सिगरेट बुझायी और जेब से नोटों की गड्डिया निकाल कर कहा  "ख़ाँ साहब ये पकड़िए ....पचास हज़ार .....आप मुगले आज़म में एक नहीं दो गाने गायेगे " आप कल रिकॉडिंग पर आ जाये अब ख़ाँ साहब के सामने कोई चारा नहीं था....मरता क्या न करता नौशाद जी खड़े खड़े मुस्कुरा रहे थे बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ के.आसिफ के जाल में फंस चुके थे आसिफ ने खां साहेब को बुरी तरह अपने जाल में फंसा लिया उस समय जब लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी को हर गाने के लिए 500 रुपए मिला करते थे, और छोटे मोटे गायक तो सिर्फ महीने की एक मुश्त तनख्वाह पर बड़े बड़े स्टूडियो के अंतर्गत बनने वाली फिल्मो के लिए गाते थे बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ ने एक गाने के लिए 25000 रुपए की मांग की थी और के.आसिफ़ इसके लिए तुरंत राज़ी हो गए मगर यहाँ आप के.आसिफ का जूनून तो देखिये वो तो पूरे एक लाख रुपये जेब में डाल कर उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ के घर गए थे और फिर भी खुश थे की 50 हज़ार बच गए यानि की अगर खां साहेब एक गाने के एक लाख भी मंगाते तो आसिफ उन्हें हर हाल में साइन कर के ही घर वापिस आते

दूसरे दिन ग़ुलाम अली ख़ाँ साब अनमने ढंग से दादर मुंबई के रंगमहल स्टूडियो में पहुंच गए स्टूडियो का नजारा देख कर उन्होंने फरमान जारी कर दिया...."मैं खड़े हो कर नहीं गाऊंगा " के.आसिफ ने उनके लिए बिछायत लगवाई ख़ाँ साहब ने सुर लगाया और साउंड इंजिनियर भागकर ख़ाँ साहब के पास आया और उनसे गुजारिश की की इतने ऊँचे सुर में मत गाइये दरअसल उन दिनों वैक्स रेकोर्डिंग होती थी इसीलिए हाय पीच पर गाना रेकोर्ड नहीं होता था 1961 के बाद टेपरेकॉर्डर आने के बाद हाय पीच रेकोर्डिंग शुरू हुआ था ख़ाँ साहब को फिल्म रेकोर्डिंग की तकनीक सिखाई गयी लेकिन ख़ाँ साहब फिर अड़ गए उन्होंने के.आसिफ से पूछा ......" मैं किसी ऐसे वैसे सीन के लिए नहीं गा सकता मुझे कौन से सीन के लिए गाना गाना है जरा दिखा सकते हो क्या .....? आसिफ भी पूरी तरह तैयार थे एक दिन पहले ही सीन की एडिटिंग हो गयी थी.इसलिए तुरंत सीन दिखाया गया सीन था सलीम और अनारकली का रोमांस चल रहा है और दूर तानसेन गा रहा है मधुबाला को देखकर ख़ाँ साहब प्रसन्न हुए उन्होंने आसिफ के काम की बेहद तारीफ की ..." आपकी अनारकली काफी खूबसूरत है आसिफ आखिर तुमने ग़ुलाम अली ख़ाँ  को फिल्मो में गाने के लिए राजी कर ही लिया " और फिर डीलडौल में लंबे चौड़े बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ ने राजी ख़ुशी "मुगले ए आज़म फ़िल्म के लिए रिकॉर्डिंग करवाई और नौशाद साहेब के साथ पूरी रिकॉर्डिंग यूनिट ने राहत की साँस ली दरअसल उन्हें अभी भी यकीं नहीं हो रहा था की ग़ुलाम अली ख़ाँ फिल्म में गाने के लिए मान गए है
"मुगले ए आज़म" 1960
बड़े गुलाम अली खां को अदा किये गए इन रुपयों से कहीं ज्यादा श्रेय आसिफ को इस बात के लिए दिया जाना चाहिए कि उन्होंने इसका फिल्मांकन अत्यंत कल्पनाशीलता और गहरी संवेदना से किया पहला गाना "शुभ दिन आयो राज दुलारा " फिल्म के शुरू में फिल्माया गया और दूसरा गाना "प्रेम जोगन बन के " फिल्म में तानसेन द्वारा गाया जाता है जिसे अभिनेता सुरेंदर पर फिल्माया गया जो फिल्म में तानसेन बने थे इस गाने में दलीप कुमार मधु बाला को सिर्फ पंख से सहलाते है ये दृश्य भारतीय सिनेमा के इतिहास का बिना तरह की नग्नता के सबसे कामुक दृश्य माना जाता है नौशाद और आसिफ ने बड़ी मिन्नतें करके बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब को फिल्म में गाने के लिए तैयार किया था और उनकी रजामंदी से उत्साहित होकर के.आसिफ ने रिकॉर्डिंग के बाद ग़ुलाम अली ख़ाँ को दस हजार का नजराना भी दिया था सन् 1960 से पहले यह इतनी बड़ी रकम थी कि मुंबई में एक छोटा मोटा घर खरीदा जा सकता था के.आसिफ की जिद के बहाने ही सही संगीत की महान हस्ती उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ाँ साहब की आवाज फिल्म -"मुगले ए आज़म" - में अमर हो गयी 

                                                                                                                                                      

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