Friday, February 9, 2018

फ़रहत एज़ेकेल ' नादिरा '.....एक हारी हुई औरत लेकिन जीती हुई नायिका

फ़रहत एज़ेकेल नादिरा
5 दिसम्बर  1932, - 9 फ़रवरी  2006


नादिरा अथवा 'फ़रहत एज़ेकेल नादिरा 'हिन्दी फ़िल्मों की ख्यातिप्राप्त और सुन्दर अभिनेत्रियों में से एक थीं। साठ से भी अधिक फ़िल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय की छाप छोडऩे वालीं नादिरा फ़िल्मी परदे परआत्मविश्वास से भरपूर नजर आती थीं लाजवाब ख़ूबसूरती और शाहाना अंदाज की शख़्सियत रखने के बावजूद उन्होंने उस दौर में खलनायिका बनना पसंद किया था जबकि अन्य नायिकाएँ इस तरह की भूमिकाएँ करने से घबराती थीं यह अभिनेत्री नादिरा की कामयाबी ही मानी जाएगी कि उन्हें हर बड़े हीरो के साथ काम करने का अवसर मिला उस समय की तिकड़ी भी उनकी उपेक्षा नहीं कर सकी नादिरा दिलीप कुमार के साथ 'आन में' आई और देव आनंद के साथ 'पॉकेटमार' (1956) में.... राजकपूर ने उन्हें फ़िल्म 'श्री 420' (1956) में 'माया' के अलग अंदाज वाली भूमिका दी अशोक कुमार के साथ 'नगमा' (1953)  शम्मी कपूर के साथ 'सिपहसालर' (1956)   प्रदीप कुमार के साथ 'पुलिस' (1958) और भारत भूषण के साथ 'ग्यारह हजार लड़कियाँ' (1962) आई जिनमें उन्होंने अधिकतर ऐसी महिला की भूमिका निभाई, जो नायक को अपनी अदाओं से जाल में फंसाने की कोशिश करती है सन1954 में उन्होंने गायक-अभिनेता तलत महमूद के साथ दो फ़िल्मों 'डाक बाबू' और 'वारिस' में भी काम किया नादिरा बोलती फिल्मो की TOMBOY 'S  LOOK  वाली पहले नायिका थी दिल अपना और प्रीत पराई (1960 ) ,पाकीज़ा (1972 ) ,सफर (1972 ) ,चेतना (1970 ) ,राजा जानी (1972 ) ,हँसते जख्म (1973 ) ,धर्मात्मा (1975 ) ,सागर (1985 ) आदि फिल्मो के माध्यम से उन्होने परदे पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज़ करवाई धारावाहिको किम (1984 ) और मार्गरिटा (1997 ) ,एक था रस्ट्री (1995) में नादिरा ने छोटे परदे पर भी काम किया

नादिरा का जन्म इज़राइल में एक बगदादी यहूदी परिवार में हुआ था उनकी परवरिश एक लड़के के समान हुई थी वह अपनी गली में वहाँ के लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थीं गिल्ली डंडा खेलना भी उन्हें बहुत पसन्द था उनके स्वभाव में लड़कों सी शरारत और हुड़दंगपन पूरी उम्र बना रहा वह महिला मित्रों से ज़्यादा खुशी, पुरुष जमावड़े में गपशप करके हासिल करती थी उनके अभिनय कैरियर की शुरुआत महबूब ख़ान की सन 1952 में निर्मित फ़िल्म 'आन' से हुई स्व. मेहबूब खान ने नागपाड़ा की गलियों से उठाकर उसे रजतपट की रूपहली दुनिया में पेश किया था जिसमें उन्होंने एक बिगडैल राजकुमारी की भूमिका निभाई थी आन'में उन्होंने उस समय की सहमी हुई नायिकाओं के विपरीत एक बोल्ड दृश्य भी दिया इस फ़िल्म में दिलीप कुमार उनके नायक थे इस फ़िल्म में नादिरा द्वारा निभाए गए राजकुमारी राजश्री के रोल के लिए उनसे पहले नर्गिस को चुना गया था लेकिन किस्मत कुछ और ही लिख रही थी महबूब ख़ान इस फ़िल्म को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते थे उन्होंने नर्गिस को तारीख़ देने के लिए कहा किंतु नर्गिस ने अपनी दुविधा जता दी कि उन्होंने राजकपूर की फ़िल्म 'आवारा' साइन कर ली है। महबूब ख़ान जानते थे कि नर्गिस कभी भी राजकपूर की बात नहीं टाल सकतीं महबूब ख़ान नर्गिस को अपनी फ़िल्म में न लेने की तकलीफ छिपा गए लेकिन उनकी पत्नी सरदार अख्तर ने तय किया कि वह नर्गिस का कोई विकल्प खड़ा करेंगी बहुत सोचने के बाद उनकी नजर 'फरहत' (नादिरा) पर टिक गई। उनके नाम पर महबूब भी सहमत हो गए अपनी फ़िल्म 'आन' में रोल देकर उनकी अलग तरह की सुंदरता को दुनिया के सामने लाने का मन बनाया उनसे बात की और तय हुआ कि वही 'आन' में दिलीप कुमार के अपोजिट हीरोइन होंगी नादिरा ने दलीप कुमार की अंदाज़ (1949 ) कुछ बरस पहले देख रखी थी उस समय फरहत बस ये जानती थी की वो दलीप कुमार नाम के बहुत बड़े अभिनेता है जो अपने डायलॉग्स उर्दू में बेहतर तरीके अच्छे से बोलते है और जिनकी फिल्मे और अभिनय का सारा देश दीवाना है दिलीप साहब के बारे में सुन-सुनकर कुछ ऐसा डर उनके दिलो-दिमाग़ पर हावी हो गया था कि जब उन्हें पहली बार आन  के सेट पर देखा तो फरहत घबरा गई दलीप साहेब उनकी परेशानी भांप गए फरहत जिसका हिंदी और उर्दू भाषा से दूर तलक तक कोई वास्ता न था उसे दलीप साहेब ने दिलचस्पी के साथ उर्दू अल्फ़ाज़ का सही उच्चारण और शूट के वक्त संवाद कैसे बोले जाते है तफ्सील से समझाया महबूब खान अख्तर ने फरहत को नया नाम दिया गया 'नादिरा', जो 'आन' के रिलीज होते ही रातोंरात स्टार बन गई

उस समय उसके पास आकर्षक शरीर तो था किंतु ऐसा शारीरिक सौन्दर्य न था जो उसे एकदम ऊंचे पायदान पर बैठा देता आन के बाद कुछ समय तक नादिरा के फिल्मी करियर में अंतराल रहा ये अंतराल ही उसके जीवन की सबसे बड़ी ट्रेजडी रही है इसी दौरान उसकी भेंट फिल्म महल (1949 ) के मशहूर गाने 'आएगा आने वाला ' के गीतकार-निर्माता;निर्देशक ,गीतकार नक़्शब से हो गई नक़्शब ने उसे अपनी फिल्म ‘नगमा’ (1954) में इस चैलेंज के साथ पेश किया था कि वह नादिरा को एक भरपूर यौवना के रूप में पेश करेगा और ‘नगमा’ जब रिलीज़ हुई तो लगा कि नक़्शब ने जो कुछ कहा था वह सच कर दिखाया है पर्दे पर नादिरा ने जब यह नगमा "बड़ी मुश्किल से दिल की बेकरारी को करार छीन गया " गाया था उस से नक़्शब भी बचा न रह सका और नादिरा के सामने निकाह का प्रस्ताव रख दिया उसने नादिरा से शादी करके उसे एक इज्जत का स्थान तो दे दिया लेकिन उसे टॉप की हीरोइन न बना सका.........‘नगमा’ भी बॉक्स ऑफिस पर सफल न हो सकी एक निठल्ले पति के रूप में नादिरा नक़्शब को झेल नहीं सकी ये शादी टूट गई कुछ अर्से बाद नक़्शब पाकिस्तान चला गया नादिरा ने दो विवाह किये थे लेकिन दोनों ही बार वह वैवाहिक सुख से वंचित रहीं नादिरा का दूसरा विवाह अरब देश के एक ग़ैरफ़िल्मी व्यक्ति से हुआ था ये निहायत रंगीन तबियत क़िस्म का आदमी सोने की खदानों का मालिक था जब घर पर ही खुलेआम सब होने लगा तो नादिरा ने उनका भी घर छोड़ दिया ये शादी केवल कुछ सप्ताह ही चल पाई पचास और साठ के दशक में नादिरा की शोहरत आसमान पर थी और राजकपूर की 'श्री चार सौ बीस' के एक गाने के बाद से तो उन्हें 'मुड़ मुड़ के गर्ल' ही कहा जाने लगा था नादिरा ने यह सोचकर राजकपूर की फिल्म‘श्री 420’ (1956) में वैम्प का रोल स्वीकार कर लिया कि लोग उनके अभिनय क्षमता को जान सके इन्होंने श्री 420 फिल्म में अमीर सोशलाइट 'माया' की भूमिका निभाई लेकिन ‘श्री 420’ के बाद उस पर वैम्पिश भूमिकाओं की वर्षो होने लगी इसका उन्हे एक नुकसान भी हुआ उन्हें अधिकतर ऐसी महिला की भूमिका मिलने लगी जो नायक को अपनी अदाओं से जाल में फंसाने की कोशिश करती है नादिरा ने वे सारे रोल ठुकरा दिये और इसी उधेड़बुन 3 साल की मुद्दत आंख झपकते ही गुजर गई और जब आंख खुली तो बहुत देर हो चुकी थी इस दौरान कुछ फिल्में बतौर हीरोइन की जिनमें ‘आकाश’ ‘डाक बाबू’ (1954) आदि भी असफल रही लोग उन्हें भूलने लगे थे तब उन्हें नये सिरे से ‘स्ट्रगल’ करना पड़ा और उसके बाद उसे अधिकतर सी-ग्रेड की स्टंट फिल्मों में ही काम मिला दिलीप कुमार अशोक कुमार की हीरोइन जयराज, आजाद की हीरोइन रह गई और धीरे-धीरे रंगीन फिल्मों की लहर ने सी-ग्रेड फिल्मों को उखाड़ कर फेंक दिया और इन सी-ग्रेड फिल्मो में भी काम मिलना बंद हो गया .........दो शादिया टूटने के पश्चात नादिरा के जीवन में कुछ और मर्द भी आए लेकिन उन मर्दो से कभी पति का प्यार नही मिल सका उन्हें ऐसा कोई मर्द न मिला था जो उनके वजूद को संभाल सके नादिरा के अधिकांश रिश्तेदारों के इज़रायल चले के जाने के कारण वे जीवन के अंतिम दिनों में अकेली रह गई थीं अपने समय की हसीन अभिनेत्री नादिरा ने एक अर्से तक एक हारी हुई औरत की तरह जिंदगी गुज़री और औरत बस एक बार हार जाए तो उसके पास कुछ भी नही बचता न सपने, न ख्याल, न तमन्ना न इज्जत, न अस्मत नादिरा ने अपनी हार का इंतकाम लेने के लिए उसके बाद कई बार बढ़ चढ़कर दांव लगाए किंतु वह हारती चली गई.... लाख जिंदादिली दिखाई ..... किंतु उसका दिल अंदर से छलनी हो चुका था दरअसल नादिरा को जीवन में ऐसा कोई न मिला जो उसका मार्ग दर्शन करता उसे न ही कोई ऐसा शौहर मिला और न कोई सच्चा दोस्त उसे जिंदगी में जितने लोग मिले वे गलत थे सच्चा और अच्छा दोस्त उन्हें मिला ही नहीं अंतिम तीन वर्षो में तो उन्होंने खुद को घर में कैद-सा कर लिया। वे बहुत ज़्यादा शराब पीने लगी थी शरीर की कमज़ोरी के कारण उन्हें कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया नादिरा को 27 दिसम्बर 2005 को मुंबई के भाटिया अस्पताल के 2 फ्लोर बेड़ नंबर 233 पर आईसीयू में भर्ती कराया गया उनकी नौकरानी शोभा जो उनकी बहुत देखभाल करती थी केवल वही उनके साथ थी उन्हें बहुत सारी नलियों से बांध दिया गया था उनका खाना, पीना सभी कुछ नलियों द्वारा प्रवेश कराया जाता था उनकी गर्दन को भी नीचे लटका दिया गया था नादिरा जी में उस समय थोड़ी सी समझ बाकी थी उनकी एक आँख प्रभावित थी वह उसे वो नहीं हिला पा रही थी  वह अपने हाथों को भी धीरे से हिला पा रही थी दरअसल वो वह 'टेबुरकुलर मेनेजाइटिस 'नामक बीमारी से ग्रसित थीं उनका लीवर पूरी तरह से नष्ट हो चुका था अंत में नादिरा कोमा में चली गयीं  .........9 फ़रवरी, 2006 को 74 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया जन्म से यहूदी रही नादिरा का अंतिम संस्कार उनकी इच्छानुसार हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार किया गया नादिरा को रेडियो सुनने का अधिक शौक था उनके घर में उनकी लाइब्रेरी थी जिसमें विलियम शेक्सपियर की किताबें थीं उनकी लाइब्रेरी में धार्मिक किताबें, विश्व युद्ध की किताबें, विवेकानन्द की किताबे भी रखी थी वह समाचार-पत्र पढऩे में रुचि रखती थीं और वह करेन्ट न्यूज के बारे में डिस्कस करती थीं वह अपने दोस्तों के साथ ताश भी खेलती थी नादिरा में अभिनय-कौशल की कमी नही थी किंतु वह एक भावुक स्त्री थी इसीलिए जीवन में सदा हारती रही है इसके बावजूद वह किसी को दोष नही देती थी उन्होंने इस्माइल मर्चेट की एक अंग्रेज़ी फ़िल्म 'काटन मैरी' (1999) में भी काम किया था फ़िल्म 'जूली' (1975) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का 'फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार' भी मिला था फिल्म जोश (2000) उनकी अंतिम फिल्म थी पचास और साठ के दशक में नादिरा की शोहरत आसमान पर थी वो अपने समय में सब से ज्यादा मेहनताना पाने वाली अभिनेत्री में से एक थी और सब से पहली अभिनेत्री भी थी जिसके पास रोल रॉयस कार थी नादिरा जी जीवन में एक हारी हुई औरत जरूर थी जिसका सबने अपने तरीके से इस्तेमाल किया लेकिन साहसिक निर्णय लेने वाली एक जीती हुई अभिनेत्री के रूप में हम उन्हें हमेशा याद रखेगे

                                                               
                                                                 

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