Thursday, February 22, 2018

इफ़्तेख़ार....साफ़,सधी रोबदार उर्दू में संवाद बोलने वाला एक सशक्त अभिनेता

एक उम्दा अभिनेता थे जिन्हें हम सब इफ़्तेख़ार के नाम से जानते हैं इफ़्तेख़ार साहेब का नाम आते ही हमारी यादो में सिनेमा के परदे पर वर्दी में नज़र आने वाले एक रौबदार सख्त पुलिस ऑफ़िसर की छवि उभरती है जो किसी भी हालत में मुजरिम और जुर्म से समझौता नहीं करता इफ़्तेख़ार का असली नाम ' सैयदाना इफ़्तेख़ार अहमद शरीफ़ था 'उनका जन्म पंजाब के जालंधर शहर में हुआ था  ......आम दर्शक शायद इस बात से अनजान हैं कि चरित्र अभिनेता इफ़्तेख़ार न सिर्फ़ एक बेहतरीन गायक और चित्रकार थे बल्कि अभिनय के शुरूआती दौर में कुछ फ़िल्मों में बतौर हीरो भी नज़र आए थे इफ़्तेख़ार साहेब को गाने का बेहद शौक़ था गायक अभिनेता के.एल सहगल के तो वो दीवाने थे और उन्हीं जैसा के नामचीन गायक बनना भी चाहते थे उस समय देश की सबसे बड़ी म्यूज़िक कंपनी HMV का हेड ऑफिस कलकत्ता हुआ करता था इसलिए अपना शौंक पूरा करने के लिए उनका कलकत्ता जाना लाज़िमी था तो इफ़्तेख़ार साहेब चले आये अपने सपनो के शहर कलकत्ता .......HMV में उनका ऑडिशन हुआ और उनके गानो का एक प्राइवेट एल्बम भी निकला और साथ ही एक मशहूर फिल्म कंपनी में नौकरी भी लग गई यही नहीं उन्हें अपनी पहली फिल्म तकरार (1944 ) भी मिल गई जिसमे उनके साथ उस ज़माने की अभिनेत्री जमुना थी कुछ और फिल्मे भी उन्होंने बतौर हीरो साइन की जो ज्यादा चली नहीं लेकिन जिस कलकत्ता से उन्हें नाम और शोहरत मिली उसी कलकत्ता को देश के विभाजन के समय में हुए दंगो के कारण छोड़ना भी पड़ा परिवार के अन्य लोग तो पाकिस्तान चले गए लेकिन इफ़्तेख़ार बम्बई आ गए बम्बई में आ कर संघर्ष फिर नए सिरे से शुरू हो गया
 
कोलकाता में ही एक बार अभिनेत्री और गायिका कानन देवी ने इफ़्तेख़ार का परिचय अशोक कुमार से कराया था बंबई आने पर इफ़्तेख़ार साहेब “बॉम्बे टॉकीज़” में अशोक कुमार से मिले अशोक कुमार उन दिनों बड़े स्टार थे अशोक कुमार ने उन्हें 1950 में बनी बॉम्बे टॉकीज़ की फ़िल्म “मुक़द्दर” में एक अहम भूमिका भी दी आगे चलकर इफ़्तेख़ार गांगुली फैमिली के खास सदस्य बन गए इफ़्तेख़ार ने गांगुली परिवार के साथ खुशियाँ और गम ही नहीं बल्कि अपना हुनर भी बांटा अशोक कुमार ने इफ़्तेख़ार से पेंटिंग सीखी इफ़्तेख़ार साहेब ने अशोक कुमार को पेंटिंग के गुर और ब्रश स्ट्रोक,रंगो की बारीकियां समझाई इफ़्तेख़ार ने लखनऊ के कॉलेज ऑफ आर्ट्स से पेंटिंग में डिप्लोमा कोर्स किया हुआ था अशोक कुमार इफ़्तेख़ार से इतना प्रभावित हुए की उम्र में उनसे काफ़ी बड़ा होने के बावजूद वो इफ़्तेख़ार को हमेशा पेंटिंग में ताउम्र अपना गुरू मानते रहे इफ़्तेख़ार बेहतरीन पेंटर थे किशोर कुमार भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके किशोर कुमार जी ने अपनी होम प्रोड्कशन की फिल्म “दूर गगन की छांव में” इनकी प्रतिभा का भरपूर इस्तेमाल किया “दूर गगन की छांव में”(1964) के शीर्षक गीत की बैकग्राऊंड के लिए बनाई पेंटिंग्स उन्होंने ख़ासतौर से इफ़्तेख़ार से बनवाई और फिल्म में रोल भी दिया इफ़्तेख़ार साहेब ने भी बड़े मन से किशोर कुमार और उनके बेटे अमित गांगुली की पेंटिंग्स बनाई जिसे फिल्म की नामावली में इस्तेमाल किया गया 1969 में बनी बी.आर.फ़िल्म्स की फ़िल्म “इत्तेफ़ाक़” उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट मानी जाती है इस फिल्म में उन्होंने पुलिस ऑफिसर की यूनिफार्म ऐसी पहनी की फिर वो उनके जिस्म से दो दशक तक नहीं उतरी

इफ़्तेख़ार साहेब ने लगभग 300 के करीब फिल्मो में शानदार अभिनय किया  एक पुलिस अफसर के अभिनय के आलावा फिल्म नूरी (1979) ,तीसरी कसम (1966), संगम (1964) ,कंगन (1959) ,बंदिनी (1963) में निभाई चरित्र भूमिकाये भी अहम् थी साफ़ उर्दू जबान में सधे हुए संवाद बोलना उनकी विशेषता था ऐतिहासिक फिल्मे बनाने में अव्वल दमदार आवाज़ के धनी सोहराब मोदी ने उनकी आवाज़ से प्रभावित हो कर मिनर्वा मूवीटोन की मिर्ज़ा ग़ालिब (1954) में आखरी मुग़ल बहादुर शाह जफ़र का यादगार किरदार दिया जबकि पहले वो इस किरदार को वो खुद करने की सोच रहे थे हिंदी फिल्मों के अलावा, उन्होंने 1967 में अमेरिकी टीवी श्रृंखला 'माया' के दो एपिसोड और अंग्रेजी भाषा की फिल्मों बॉम्बे टॉकी (1970) और सिटी ऑफ़ जोय (1992) में अभिनय किया अपनी बुलंद आवाज़ के लिए पहचानी जाने वाली गुजरे ज़माने की अभिनेत्री बीना उनकी बहन थी ये उनके अभिनय की विविधता थी जहाँ वो यश चोपड़ा की फिल्म दिवार (1975) में एक भ्रष्ट बिजनेस मैन बन नायक अमिताभ बच्चन को जुर्म की दुनिया से परिचित करवाते है वही डॉन (1978 ) में एक पुलिस अफसर बन वो अमिताभ को कानून का सम्मान करने को भी कहते है फैशनेबल वाइफ (1938 ) जागते रहो (1956 ),बेदर्द ज़माना क्या जाने (1959 ) ,तीसरी मंज़िल (1966 ) ,हमराज़ (1967 ) ,जॉनी मेरा नाम ( 1970 ), हरे रामा हरे कृष्णा (1971 ),झील के उस पार (1973 ) ,36 घंटे (1974 ) , शोले (1975), दुल्हन वही जो पिया मन भाये (1977 ), द बर्निंग ट्रेन (1980 ) ,राजपूत (1982 ) उनकी कुछ मशहूर फिल्मे थी उन्होंने जज ,पुलिस कमिशनर ,सीआईडी इंस्पेक्टर ,डॉक्टर समेत कई चरित्र रोल फिल्मो में अदा किये 1993 में आई फिल्म ' काला कोट ' में निभाया प्रोफ़ेसर खुराना का किरदार उनका आखरी किरदार था अपनी पुत्री सईदा की कैंसर से हुई मौत को वो सहन न कर सके पुत्री की मौत के मात्र 24 दिन बाद ही 4 मार्च 1995 को 75 वर्ष की आयु में उनका मुंबई के एक हॉस्पिटल में इंतकाल हो गया लेकिन मेहबूब की मेहंदी का नवाब सफ़दरजंग ,झील के उस पार के दीवानजी ,निकाह का जुम्मन चाचा ,ज़ख़्मी के जज अशोक गांगुली ,हमराज़ के एडवोकेट जगमोहन कुमार ,नूरी के गुलाम नबी और डॉन का डी.एस.पी डिसिल्वा ,दिवार का मुल्खराज़ डावर हिंदी सिनेमा के दर्शको के जेहन में हमेशा अमर रहेगा....... पुलिसमैन की भूमिका में नजर आने वाले इफ्तिखार एक गायक भी थे, कलकत्ते में उनके कई गैरफिल्मी गीत रेकॉर्ड हुए थे लेकिन अफसोस यह है कि अंत तक उनके पास उनके गाया हुआ एक भी रेकॉर्ड नहीं रहा उन्होंने अपने चाहने वालों से अनुरोध करते रहे कि यदि किसी के पास भी यदि उनका गाया रेकॉर्ड हो तो उन्हें भेंट कर दें  ....अफ़सोस ऐसा हुआ नहीं  .....

22 फरवरी 1920  - 4 मार्च 1995
                                        

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