हमारे हिंदी सिनेमा के कई दिग्गज अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने समय समय पर देश की राजनीति में अपना भाग्य आजमाया लेकिन सफलता केवल "सुनील दत्त साहेब " जैसे नाममात्र के लोगो को ही मिली अधिकांश का अनुभव राजनीति में आकर बुरा ही रहा लेकिन इसके इसके विपरीत जब भी देश पर कोई संकट आया तो भी हमारे कलाकार देश के साथ खड़े नजर आये और कुछ तो देश के भीतर ही राजनितिक नेतृत्व के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करने से भी पीछे नहीं हटे मैं आज आपको अपनी "यादो के झरोखे से " श्रृंखला के सफर में एक ऐसे मशहूर कलाकार के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसने देश में सन 1975 से 1977 में लगे आपातकाल के दौरान अपनी आवाज़ ही बुलंद नहीं की बल्कि अपनी एक अलग राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ा दिया जिसके बारे में आज बहुत ही कम लोगो को जानकारी है ....जी हाँ .....वो थे हमारे हिंदी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता ... "देवानंद साहेब "
ये बात सन 1975 की बात है जब देश में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने जबरन आपातकाल लागू कर दिया स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी
की गई देश के आम नागरिको के मूलभूत संविधानिक अधिकार छीन लिए गए इंदिरा गाँधी जी के इस फैसले से पूरा देश सन्न था इस आपातकाल से हमारा फिल्म उद्योग और कलाकार भी प्रभावित हुए ऐसे ही माहौल में उस दौरान दिल्ली में हो रहे एक राजनीतिक समारोह पर देव साहब को शामिल होने का न्यौता मिला देवसाहब इस समारोह में शामिल भी हुए लेकिन वो उस समय हैरान परेशान हो गए जब इस समारोह के आयोजको ने देवानंद साहेब से एक विशेष राजनैतिक पार्टी की जय जयकार करने का आग्रह किया गया बड़े दृढ निश्चय से स्वाभिमानी देव साहब ने ये न्यौता अस्वीकार कर दिया उन्होंने किसी की भी जयकार करने से स्पष्ठ रूप से मना कर दिया देवसाहब प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी के देश में इमरजेंसी लगाने से पहले ही ख़फ़ा थे वो आयोजको को नाराज़ कर समारोह छोड़ कर वापिस चले आये देव साहेब को ये आभास हो गया था की इसका खामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ सकता है
ये अघोषित आपातकाल का दौर था सरकार को नाराज करने के परिणामस्वरूप देवानंद पर गाज गिरना तय था और हुआ भी वही.......... उनकी फ़िल्मों और गानों पर दूरदर्शन और विविध भारती में बैन लगा दिया गया देवसाहब की फिल्मे और उनके गाने दूरदर्शन और रेडियो पर से गायब हो गए चूंकि उस समय देश में केवल सरकारी सेवा के माध्यम से ही प्रसारण होता था तो देव साहेब को नुकसान होना लाजिमी था देव आनंद ने इसे सरकार की तानाशाही करार दिया और उस समय के सूचना और प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ल से मिलने दिल्ली जाने का फैसला किया और वो दिल्ली पहुँच भी गए दिल्ली आकर देवआनंद ने उस समय के सूचना प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ल से मिले और उन्होंने अपना गुस्सा और विरोध ज़ाहिर किया और उनसे कहा कि,......"हम लोकतंत्र में रहते हैं. क्या हमें अपनी मन के मुताबिक चलने का कोई हक़ नहीं है " देव आनंद साहेब ने पुरजोर तरीके से अपने ऊपर लगे प्रतिबन्ध का विरोध सूचना प्रसारण मंत्री के सामने दर्ज़ किया
देव साहेब के विरोध का असर ये हुआ कि देव साहब जब तक दिल्ली से मुम्बई पहुँचते तब तक उनके ऊपर लगा बैन हटा दिया गया था लेकिन देव साहेब का गुस्सा शांत नहीं हुआ इससे पहले उनके मित्र गायक किशोर कुमार के साथ भी कुछ ऐसा हो चुका था उन्हें सरकार की नाराज़गी के चलते रेडियो और टीवी पर बैन किया जा चुका था देव साहेब ने बम्बई जाकर एक ऐसी राजनैतिक पार्टी के गठन करने का फैसला कर लिया जिस की मदद से देश में एक नई व्यवस्था बन सके उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया इमरजेंसी के प्रकरण से नाराज़ देव आनंद ने विरोध में एक नई राजनीतिक पार्टी 'नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया' का गठन कर लिया पार्टी बनाने के पीछे उनकी सोच थी कि देशभर से लोग उनसे जुड़ेंगे और उनकी मदद से देश में एक नई जागरूक व्यवस्था बन सकेगी बम्बई के परेल रोड पर पार्टी के दफ्तर के लिए जगह का भी चयन कर लिया गया इसके लिए देव साहेब ने खासतौर पर युवा वर्ग का आह्वान किया इस पार्टी का सदस्य बनने के लिए सदयस्ता अभियान चलाया गया इस सदयस्ता अभियान की रसीद बुक पर बाकायदा देवानंद साहेब की फोटो थी इस अभियान का उन्हें सकरात्मक परिणाम मिला कुछ लोग उनकी इस पार्टी के सदस्य बने भी सरकार की तानाशाही से नाराज़ देश के युवा वर्ग का समर्थन भी उन्हें मिलने लगा शिवाजी पार्क में देव साहेब ने एक बड़ा जलसा भी किया लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ आ गया की ये रास्ता उतना भी सरल नहीं है जितना वो समझ रहे है दलगत राजनीति करना उनके बस की बात नहीं है उस समय देश में आंतरिक सुरक्षा क़ानून (मीसा) लागू था वो अनावशयक रूप से वो सरकार की निगरानी में आ गए देवानंद साहेब को इस बात का एहसास भी हो गया कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए बहुत कम समय है और मन चाहे उम्मीदवार की कमी भी उन्हें खल रही थी आखिरकार अपने कई फ़िल्मी दोस्तों, शुभ चिंतको और अपने भाई विजय आनंद के समझाने पर पर उन्होंने सरकार से टकराव का रास्ता छोड़ने का निर्णय कर लिया इस प्रकार उन्होंने अपनी राजनीति पार्टी 'नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया' बनाने का विचार छोड़ दिया और वापिस फिल्मो में मशगूल हो गए
लेकिन उस समय राजनैतिक पार्टी न बनाने की टीस उनके मन में आजीवन रही सालों बाद एक पत्रकार सम्मलेन में देव आनंद ने अपने राजनैतिक सपनों के पतन का जिक्र करते हुए बताया,...... "राजनीति कोमल दिल कलाकारों के लिए नहीं है और मेरी "नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया' का पतन इसलिए हुआ क्योंकि उन्हें इलेक्शन लड़ने के लिए उचित उम्मीदवार ही नहीं मिले और मेरी पार्टी बनने से पहले ही ख़त्म हो गई " इस बात के लिए देव साहेब अपने दोस्तों का आभार भी मानते थे की उन्होंने समय रहते दूषित राजनीति में आने से उनको बचा लिया बात भी सही है दलगत राजनीति देवसाहब जैसे आदमी के बस की बात भी नहीं थी अगर कुछ दक्षिण भारत के कलाकारों की बात छोड़ दे तो ऐसी कई मिसाले है जब कई हिंदी फ़िल्मी कलाकार इस राजनीति में आये और लेकिन ज्यादातर को राजनीति रास नहीं आई उनको ये दूषित माहौल पसंद ही नहीं आया या कहे की वो इसमें फिट ही नहीं बैठे कुछ तो यहाँ तक भी कहने से भी नहीं चूके की वो राजनीति में इस्तेमाल किये गए ऐसे माहौल में देव साहेब का 'नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया' राजनितिक पार्टी बनाने का फैसला वापिस लेना बिलकुल सही निर्णय था देवआनंद जैसा सृजनशील इंसान गन्दी राजनीति ढांचे में बिलकुल फिट नहीं बैठता देव साहेब दुनिया भर के अपने चाहने वालो के दिलो में बसते थे देवसाहब जैसे कलाकार का राजनीति से दूर रहना ही सही निर्णय था
No comments:
Post a Comment