Monday, February 5, 2018

जब दलीप कुमार ने नौशाद साहेब से नाराज़ हो कर फिल्म अधूरी छोड़ दी

संगीतकार नौशाद और दलीप कुमार


दिलीप कुमार....... बस एक नाम भर नहीं हैं, दिलीप कुमार भारतीय सिनेमा का आकाश का ध्रुवतारा हैं जिनकी अदाकारी युगों-युगों तक याद की जाती रहेगी दिलीप कुमार की शख्सियत के बारे में सिर्फ इतना ही कहना काफी होगा की उनकी फिल्में देखकर ही कई अभिनेताओं ने एक्टिंग सीख ली वैसे तो दलीप साहेब अपने मधुर स्वभाव के लिए मशहूर है लेकिन कुछ एक ऐसे किस्से अपवाद है जिनमे उन्होंने गुस्से में आ कर निर्माताओं की फिल्मे छोड़ देने से भी गुरेज़ नहीं किया लेकिन अपनी गलती का एहसास होते ही तुरंत माफ़ी भी मांग लेना भी उनकी आदत में शुमार था यही चीज़ दलीप साहेब को और भी महान बनाती है एक ऐसा ही किस्सा आज आपसे शेयर करने जा रहा हूँ जब दलीप कुमार ने गुस्से में आ कर नौशाद साहेब की फिल्म अधूरी छोड़ दी थी 

बंबई के एक मशहूर बिजनेस मैन थे माखन लाल जैन .......माखन लाल जी फिल्मो के बेहद शौकीन और मशहूर संगीतकार नौशाद के बहुत बडे प्रसंशक थे जैन साब ने एक फ़िल्म बनाने की सोची वो नौशाद साब के पास गए और कहा की.... "मैं एक फिल्म बनाना चाहता हूँ सारी ज़िम्मेदारी आपकी है कहानी से ले कर निर्देशक चुनने की ...हीरो हिरोइन सेलेक्ट करने की "... ,यानि की सब कुछ नौशाद को ही करना था संगीतकार नौशाद ने माखन लाल जैन का आग्रह मान लिया  माखन लाल जैन ने अपने निकट मित्र फिल्म मेकर राजेंदर जैन को इस फिल्म का निर्माता बना संगीतकार नौशाद को सारी बागडोर सौंप दी नौशाद साहेब ने नितिन बोस को फिल्म निर्देशित करने के लिए साइन किया और अज्म बजीदपुरी को कहानी लिखने का जिम्मा दिया गया

कहानी के अनुसार ,दिलीप ,निम्मी ,नर्गिस के साथ साथ अशोक कुमार और मोती लाल ,सुरेंदर ,याकूब लाला को भी साइन कर लिया ..... दिलीप साहेब उन दिनों अपने कॅरियर के क्षितिज पर थे थे बहुत मसरूफ़ रहते थे शूटिंग की डेट्स की समस्या हमेशा बनी रहती थी लेकिन कहानी सुन कर उन्होने नौशाद साहेब को एक साथ डेट्स दे दीं और कहा की "जितनी डेट्स दी हैं उन्ही मे आप मेरा काम खतम कर दें " लेकिन जब शूटिंग शुरू हुयी तो काम बढता चला गया और डेट्स कम होती चली गयीं डेट्स खतम हो गयीं और काम बाकी रह गया केवल कुछ सीन्स बाकी रह गये अब दिलीप की डेट्स की ज़रूरत थी लिहाजा दलीप कुमार ने पहले अब तक जो शूट हुआ है उसके रशेज़ अकेले मे देखने की बात कही नौशाद साहेब ने इसका इंतज़ाम किया उन्होंने फिल्म के दृश्य देखे दिलीप साहेब को ना जाने क्या हुआ की रशेस देख कर खुश नही हुए और दलीप कुमार ने नौशाद जी से कहा की..." मुझे ये फ़िल्म बिल्कुल भी पसंद नही आई ......निहायत ही ऊल जलूल किस्म की फ़िल्म बनी है और जैसा आपने मुझे कहानी सुनाई थी और जो बयान किया था ऐसा कुछ नही है फिल्म में " नौशाद साहेब ने समझाया की अभी पूरी फ़िल्म बन जाने दीजिये .... मुकम्मल हो जाये फ़िर देखियेगा लेकिन दिलीप साहेब को बात जंची नही और उन्होने आगे की डेट्स देने से मना कर दिया 


दिलीप साहेब के ऐसा कहने से नितिन बोस भी नाराज़ हो कर कलकत्ता वापिस चले गये ये सोच कर की अब फ़िल्म तो बनने से रही इधर नौशाद साहेब बुरी तरह फँस गये अब माखन लाल जैन ने नौशाद के भरोसे ही सारा पैसा लगाया था पर नौशाद ने भी ठान लिया की बची फिल्म वो बिना दिलीप कुमार के किसी तरह पूरी करेंगे निर्देशक नितिन बोस को दुबारा बुलाया गया पर वो नही आये तो उन्होने आखिरकार फ़िल्म के चीफ असिस्टेंट डाइरेक्टर जवाद हुसैन को लेकर शूटिंग शुरू कर दी अशोक कुमार निम्मी ,नर्गिस ने पूरा सहयोग दिया सिर्फ एक दो जगह जहाँ ज़रूरत पडी वहाँ दिलीप के डुप्लीकेट का इस्तेमाल किया गया और इस तरह थोडी परेशानियों के बावजूद फ़िल्म पूरी हुयी ....बिमल राय ने फिल्म को खूबसूरती से एडिट किया और 16 मार्च 1951 को भारत में रिलीज़ भी हो गई 


जब फिल्म रिलीज़ हुई तो उस वक्त दिलीप साहेब दिल्ली मे थे जब ये बात फैल गयी की फ़िल्म की चर्चा हो रही है तो दिलीप साहेब ने रात के शो मे चुपके से जा कर फ़िल्म देखी मेरी कहानी भूलने वाले ,बचपन के दिन भूला न देना ,हुए  हम जिन  के लिए बर्बाद ,नसीब तेरे दर पर आजमाने आया हूँ  गाने लोगो की जुबान पर थे पूरी फिल्म देख कर उन्हें अपने आप पर बेहद गुस्सा भी आया की उन्होंने नौशाद साहेब को बेवजह नाराज़ कर दिया अगले दिन फ्लाइट पकड़ कर बम्बई वापिस आये और नौशाद जी से मिले और कहा ......"नौशाद मियाँ जी मैं बहुत शर्मिंदा हूँ मैं शायद कही पर चूक गया फ़िल्म की कहानी को समझ नही पाया गलती हो गयी माफ़ी चाहता हूँ " दिलीप साहेब का बडप्पन था की उन्होने अपनी गलती स्वीकार ली और नौशाद जी का बडप्पन था की उन्होने अपने दोस्त को गले से लगा लिया बचपन के अधूरे प्रेम की कहानी पर प्रेम त्रिकोण को आधार बना कर बनी ये फिल्म शुरुआती हिंदी सिनेमा में बनाई जाने वाली विख्यात "ट्रेजेडी फिल्मो " में से एक है यह हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग की एक लोकप्रिय फिल्म बन गई और बाद में दिलीप कुमार को "ट्रैजडी किंग " का दर्ज़ा इसी फिल्म ने दिया.... तो दोस्तों जो फ़िल्म दिलीप साहेब ने नाराज़ हो कर अधूरी छोड़ दी थी वो फ़िल्म दिलीप साहेब की आज भी बेहतरीन फ़िल्मों मे से एक मानी जाती है .... फ़िल्म का नाम है ......." दीदार" !!.....


                                                                    पवन मेहरा  
                                                       (सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )
                                   
                                       

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