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पुकार ' (1939) |
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सोहराब मोदी |
भारत में ऐतिहासिक फ़िल्मों को प्रतिष्ठा दिलाने का श्रेय सोहराब मोदी जी को जाता है। हालाँकि उनकी पहले की फ़िल्मों में पारसी थिएटर की झलक मिलती है। इसका कारण ये था की सोहराब मोदी भारतीय पारसी रंगमंच के कलाकार थे ओर स्वयं पारसी थे।उनकी आवाज इस कदर तरह बुलंद थी की अंधे तक उनकी फ़िल्मों के संवाद सुनने जाते थे ऐतिहासिक फ़िल्में बनाने में वे सबसे आगे थे हिंदी सिनेमा के
'भीष्म पितामह ' कहे जाने वाले सोहराब मोदी जी एक बार बचपन में अपने प्रिंसिपल से यह पूछने गये कि भविष्य में क्या बने ? तो उनके प्रिंसिपल ने बड़े सोच समझ कर कहा....
."तुम्हारी आवाज सुन कर तो यही लगता है कि तुम्हे या तो नेता बनना चाहिए या अभिनेता।" .......और सोहराब मोदी अभिनेता बन गये .......सोहराब मोदी जी का बचपन रामपुर में बीता था जहां उनके पिता नवाब के यहां अधीक्षक थे नवाब रामपुर का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था रामपुर में ही सोहराब मोदी जी ने फर्राटेदार उर्दू सीखी वहीं उन्होंने संवाद को गंभीर और सधी आवाज में बोलने का लहज़ा भी सीखा जो बाद में उनकी विशेषता बन गयी नवाब साहेब का महल बहुत ही भव्य और आलीशान था इस महल की भव्यता को देख कर ही सोहराब मोदी जी को भव्य इतिहासिक फिल्मो को बनाने की प्रेरणा मिली मानो इस महल की स्मृतिया सोहराब मोदी को कटोच-कटोच कर ये कहती हो की ' भारत की भव्यता और समृद्ध इतिहास को करोडो देशवासियों तक पहुंचने का जिम्मा अब तुम्हारा है' सोहराब मोदी जी ने कुछ मूक फ़िल्मों के अनुभव के साथ एक पारसी रंगमंच से बतौर अभिनेता के रूप में शुरुआत की थी जब उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा तो अपने स्वर्णिम इतिहास के पन्नो को टटोला तो इतनी समृद्ध विरासत देखकर वो दंग रह गए और उन्होंने इसे सिनेमा के माध्यम से आम जन तक पहुंचने का बीड़ा उठाया सोहराब मोदी ने सन 1935 में 'स्टेज फ़िल्म कंपनी' की स्थापना की थी 1936 में स्टेज फ़िल्म कंपनी
'मिनर्वा मूवीटोन ' हो गयी और इसका प्रतीक चिह्न 'शेर' हो गया। प्राचीन रोम के ग्रंथो में कला और व्यवसाय की देवी को "मिनर्वा "के नाम से जाना जाता है इसी मिनर्वा मूवीटोन बैनर के तले उन्होंने
' पुकार ' (1939) बनायीं का निर्माण किया जो इतिहास बन गई
'पुकार 'जहांगीर के इन्साफ़ पर बनी एक ज़बरदस्त फिल्म है जिसे दो अलग-अलग प्रेम कहानियों के साथ बड़ी चतुराई के साथ पिरोया गया है एक कहानी मंगल और कँवल की है तो दूसरी जहांगीर और नूरजहां की शायद व्यावसयिक सफलता के लिए ये जरुरी था फिल्म में जहांगीरी इंसाफ़ के साथ बेहरीन शानदार सेट्स ,सोहराब मोदी और चन्द्रमोहन का जीवंत अभिनय ,कमाल अमरोही के वज़नदार और जोशीले संवाद ,मीर साहब का मधुर संगीत और नसीम बानो का मंत्रमुग्ध कर देने वाला सौंदर्य ,सभी कुछ था तो भला फिल्म कैसे नहीं सुपरहिट होती ? सोहराब मोदी की 'पुकार 'को मुगल कालीन मुस्लिम समाज का अाइना भी कहा जाता है वह फिल्म मुगल शहंशाह जहांगीर के पौराणिक न्याय के बारे में बताती है शहंशाह जहांगीर के काल्पनिक न्याय की निष्पक्ष भावना पर 'पुकार ' मे प्रकाश डाला गया है शहंशाह जहांगीर तब खुद को असहाय पाता है जब एक धोबिन के पति की हत्या का आरोप खुद उनकी बेगम नूरजहां पर लगता है जिसे वो बेपनाह मोहब्बत करते है लेकिन इस घटना का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद नहीं है इसलिए मैंने काल्पनिक न्याय शब्द का प्रयोग किया है
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जिल्लो बाई ,सादिक अली ,और सोहराब मोदी |
कहानी मुग़ल काल से शुरू होती है जहाँ सल्तनत का शहंशाह जहांगीर ( चंद्रमोहन ) अपने शासनकाल मे न्याय के लिए जाना जाता है जिसके राज़ मे खून का बदला खून है उसने अपने महल
के सामने एक विशाल घंटा लगा रखा है जिसे कोई भी फरियादी रात हो या
दिन कभी भी बजा कर सीधे जहांगीर से इंसाफ मांग सकता है शहंशाह जहांगीर खुद
सारे संगीन अपराधों का फैसला करते है मंगल सिंह ( सादिक अली ) मुगल शहंशाह जहांगीर के विश्वसनीय राजपूत सरदार संग्राम सिंह ( सोहराब मोदी ) का बेटा है। राजपूत मंगल सिंह और कंवर ( शीला ) की प्रेम कहानी के साथ फिल्म आगे बढ़ती है लेकिन कंवर और मंगल सिंह के खानदान एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं कंवर के परिवार के सदस्य मंगल सिंह के साथ शीला की शादी के खिलाफ हैं ,मंगलसिंह पर हमला होता है एक खूनी लड़ाई मे कंवर के पिता और भाई मंगल सिंह के हाथों में मारे जाते है अब मंगल सिंह मुगलिया सल्तनत के कानून का अपराधी है ,मंगलसिंह की जान ख़तरे में है इसलिए वो सल्तनत छोड़ कर भाग जाता है, शहंशाह जहांगीर संग्राम सिंह को हुक्म देते हैं कि वो अपने क़ातिल बेटे को ढूंढकर उनके के सामने फ़ौरन पेश करें ,सरदार संग्राम सिंह मुगलिया सल्तनत के प्रति वफादार होने के कारण मंगल सिंह को गिरफ्तार करके शहंशाह जहांगीर के अधिकारियों के हाथो में सौंप देता है जिसका मंगल सिंह की माँ ( जिल्लो बाई ) विरोध करती है संग्राम सिंह को यकीन है की शहंशाह जहांगीर उसके बेटे को माफ कर देंगे ,एक बाप होंने के नाते और अपनी वफ़ादारी का हवाला देकर संग्राम सिंह बादशाह जहांगीर से मंगल सिंह को माफ करने को कहते है ,लेकिन जहांगीर के लिए न्याय का मतलब खून के लिए खून ( यानी एक जीवन के बदले एक जीवन ) है जहांगीर संग्राम सिंह की दया याचिका को ठुकरा देते है, इंसाफ़ पसंद जहांगीर अपने विश्वसनीय राजपूत सरदार संग्रामसिंह की एक नहीं सुनता और मंगल सिंह को मौत की सज़ा सुना देता है ,लेकिन माहे-रमजान होंने के कारण मंगल सिंह की मौत की सज़ा को एक महीने के लिए टाल कर उसे कारावास मे डाल दिया जाता है जहांगीर की खूबसूरत बेगम नूरजहां ( नसीम बानो ) कंवर को सरदार संग्राम सिंह के सुपुर्द कर उसकी देखभाल करने को कहती है बेगम नूरजहां के कहने पर बेटे के गम में बुरी तरह टूट चुके संग्राम सिंह यतीम हो चुकी कुंवर की देखरेख की ज़िम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए तैयार हो जाते है
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चंद्रमोहन और नसीम बानो |
एक अप्रत्याशित घटना कहानी में एक रोचक मोड़ तब पैदा करती है जब महारानी नूरजहां अनजाने मे तीरंदाजी का अभ्यास करते हुए अपने तीर से एक धोबी को मार देती है संग्राम सिंह कँवल के कहने पर इस घटना में अपने बेटे मंगल सिंह की रिहाई की किरण देखता है ,संग्राम सिंह धोबिन
( सरदार अख्तर ) को ले कर जहांगीर के दरबार मे अाता है और जहांगीर से आँख के बदले आँख और खून के बदले खून वाले खून वाले इंसाफ की मांग करता है अपने सच्चे और निष्पक्ष न्याय के लिए प्रसिद्ध जहांगीर के सामने अब विकट चुनौती है क्योंकि अपराधी उनकी अपनी बेगम नूरजहां है जिसे वो बेपनाह मोहब्बत करता है ,संग्राम सिंह जहांगीर को कहता है की कानून की नजर मे सब समान है इसलिए इंसाफ होना चाहिए उसके बाद क्या होता है ये सिनेमा के इतिहास के सबसे यादगार दृश्यों में से एक है ............फ़िल्म का अंतिम दृश्य सिनेमा के इतिहास में अमर है। जब जहांगीर बने अभिनेता चंद्रमोहन धोबिन को अपनी जान लेने की पेशकश करते है फ़िल्म का कलाइमेक्स ग़ज़ब है जब जहांगीर धोबिन से कहता है की
'' जहांगीर के राज़
मे इंसाफ जरूर होगा हमारी महारानी ने तुम्हारे पति को मारा है तुम महारानी
के पति को मार डालो '' और धोबिन को अपनी छाती पर तीर चलाने को कहता है संग्राम सिंह को इस इन्साफ की कल्पना भी नहीं थी ,संग्राम
सिंह जहांगीर के इंसाफ का कायल हो जाता है और कहता है .....
''राजा प्रजा का होता
है उसको अपनी जान इस तरह देने का कोई हक नही .....
इंसाफ हो गया है "........
धोबिन के पति के खून के बदले संग्राम सिंह धोबिन को मुवावजा दिलाता है धोबिन अपने पति के खून के लिए नूरजहां को माफ कर देती है, नूरजहां इस खुशी मे सल्तनत के सारे बंदियों को रिहा करने का फरमान
सुनाती है कारावास में कैद संग्राम सिंह का बेटा मंगल भी रिहा कर
दिया जाता है इस प्रकार मंगल और कुंवर का मिलन होता है और फिल्म सुखःद अंत की और बढ़ती है
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सोहराब मोदी और चंद्रमोहन |
फिल्म का संगीत एस.फर्नांडिस और मीर साहेब का है इस फिल्म के संगीतकार मीर साहब इससे पहले ‘मिनर्वा मूवीटोन’ की 1938 में बनी फिल्मों
'तलाक़'और
'जेलर' में भी संगीत दे चुके थे सिर्फ
सुनो वह गीत
सैंयां, जो हम सब के होश उड़ा दे...दिल में तू आँखों में तू साँसों में
तू लब पे तू ख़यालों में तू ....अंखियाँ तरसत हैं देखन को मन मोरा भरमा
गयो और लूट गयो...ज़िन्दगी का साज़ भी क्या साज़ है बज रहा है और
बेआवाज़ है... गाने ही लोगो की जुबा पर चढ़ पाए.....लेकिन गाने इस फिल्म की गति
को रोकते है ये पाश्व गायकी का दौर नहीं था इसलिए इन गानों को मेनका,सरदार अख्तर ,शीला और नसीम बानो ने ही अपने स्वर
दिए है
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नसीम बानो |
सोहराब मोदी अपनी फिल्म पुकार से बड़े प्रभावित थे वो अपनी क्लासिक फ़िल्म 'पुकार' का रीमेक बनाना चाहते थे सोहराब मोदी ने 1970 में 'पुकार' नाम से ही फ़िल्म का रीमेक बनाना शुरू किया था जिसमें राजकपूर, दिलीप कुमार, शशि कपूर, राखी और सायरा बानो के अलावा खुद सोहराब मोदी काम कर रहे थे इस फिल्म के लिए नौशाद को बतौर संगीतकार अनुबंधित भी कर लिया गया था और कुछ गाने भी रिकॉर्ड हो गए थे लेकिन ये फिल्म पूरी नहीं बन पायी सोहराब मोदी दिलीप कुमार को जहांगीर के रोल के लिए साइन करना चाहते थे दलीप कुमार ने बड़ी ही चतुराई से सोहराब मोदी को मना कर दिया है उन्होंने कहा की ....
"वो ना तो चंद्रमोहन है और न ही उनकी अांखे नीली है अलबत्ता उनकी पत्नी सायरा बानो की आँखें जरूर नीली है " कहा जाता है की अभिनेता चंद्रमोहन से वो अपनी तुलना नहीं चाहते थे 'पुकार' में चंद्रमोहन की नीली अांखे ग़ज़ब का अाकर्षण पैदा करती है 'पुकार' चंद्रमोहन की सुपरहिट फिल्मो में से एक थी 'पुकार' फ़िल्म से अभिनेता चंद्रमोहन रातो रात स्टार बन गए ......नसीम बानो नूरजहां के रोल मे खूबसूरत और मासूम लगी शायद इसलिए उन्हें
"एंजल फेस " कहा जाता है नसीम बानो की अभिनय प्रतिभा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल सोहराब मोदी और महबूब खान ने ही अपनी फिल्मो मे किया है उन्होंने सोहराब मोदी की पहली फिल्म हेमलेट बेस्ड
( खून का खून ) से डेब्यू किया था उनकी बेटी सायरा बानो भी आगे जा कर एक सफल अभिनेत्री बनी ......मराठी मुस्लिम परिवार की शोलापुर के स्टेशन मास्टर की बेटी शीला का असली नाम रोशनआरा था वो एक अच्छी गायिका भी थीं और अपने गीत खुद ही गाती थीं फिल्म 'पुकार' से पहले वो मिनर्वा की
'तलाक़'और
'जेलर' (1938) कर चुकी थी......सरदार अख्तर धोबिन के रोल में प्रभावित करती है बाद में उन्होंने महबूब खान से शादी की , महबूब खान की मशहूर फिल्म
औरत (1940 ) उनकी हिट फिल्म थी.....मंगल सिंह बने सादिक़ अली कुछ फिल्मो में अभिनय करने के बाद पाकिस्तान के शहर कराची चले गए और उनकी मृत्यु भी वही हुई ...........फिल्म के सभी सितारे
सोहराब मोदी, चंद्र मोहन, नसीम बानो, शीला, सरदार अख्तर, कुसुम सादिक़ अली, जिल्लो ब्लांचे, राम आप्टे, सादत, शाकिर, ग़ुलाम हुसैन, के जबरदस्त अभिनय और कमाल अमरोही के संवादों ,भव्य दृश्यों ने इस फिल्म की लोकप्रियता सुनिश्चित की पुकार सुपरहिट रही
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सोहराब मोदी और शीला |
फिल्मी अलोचक भी मानते है की प्रभावशाली एतिहसिक फिल्में बनाने में सोहराब
मोदी के कौशल का कोई भी मुकाबला नही सकता है। सोहराब मोदी की बनाई
फिल्मो मे एक अलग तरह का उत्साह और ईमानदारी है पुकार का हर दृश्य
अपने अाप मे एक क्षण है जिसने फ़िल्म को यादगार बना दिया है कमाल
अमरोही के साथ सोहराब मोदी की जोड़ी ने 1939 में बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाया
था फिल्म 'पुकार की ओपनिंग चौंधिया देने वाली थी। मैटिनी शो के लिए सुबह दस
बजे से कतार लग जाती थी, अमरोही की लिखी फिल्म 'पुकार- द ग्रेट मुगल' को
लोगों ने हाथों-हाथ लिया और मोदी के निर्देशन के साथ ही नसीम बानो और
चंद्रमोहन के काम को खूब पसंद किया गया। फिल्म रिकॉर्ड आठ महीने में
बनकर तैयार हो गई जनवरी 1940 तक 'पुकार' लगातार बीस हफ्तों तक बॉक्स
ऑफिस पर चलती रही। इस सफलता से उत्साहित होकर मोदी ने 1941 में
'सिकंदर' बनाई यह मोदी का एक और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था जिसमें उन्होंने
पृथ्वीराज कपूर को बतौर लीड अभिनेता साइन किया था 'सिकंदर' में खुद पोरस का किरदार खुद निभाया
'पुकार- द ग्रेट मुगल ' का हर दृश्य
की अपनी सुंदरता है लगभग आठ दशकों पुरानी 'पुकार' फिल्म का आनंद आज की युवा
पीढ़ी भी ले सकती है वर्षों के बाद भी अाप 'पुकार 'के दृश्यों और संवादों का
अानंद ले सकते है क्योंकि फिल्म की गुणवत्ता अच्छी है और ये पुरानी
नहीं लगती अाप सोहराब मोदी और अभिनेता चंद्रमोहन की शानदार अवाज़
को आँखे बंद करके महसूस कर सकते 'पुकार ' में महान अभिनेता 'सोहराब
मोदी' की संवाद अदायगी के सामने चंद्रमोहन अपने अाप को अच्छा अभिनेता साबित
करने मे सफल रहे हैं दोनों जब भी एक साथ परदे पर आते है अपने संवादों से समां बांध देते है 'पुकार' अपने समय की एक बेहद सफल फिल्म
है 'पुकार' निर्माता सोहराब मोदी साहब की महान उत्कृष्ट ,क्लासिककृति
है। जिसे हिंदी सिनेमा का स्वर्णिम इतिहास कभी नजरअंदाज नहीं कर सकता
Pari chehra Naseem
ReplyDeleteGreat Actress & Chandr Mohan was superb Sohrab Modi ka to khair Jawab hi nahi Still remembering 😇👑