1925 के आसपास बम्बई नगरी में 'इंपीरियल कम्पनी' ने महबूब खान को अपने यहाँ सहायक के रूप में रख लिया जहाँ से उन्होंने अपने सिने करियर की शुरूआत 1927 में प्रदर्शित फिल्म‘अलीबाबा एंड फोर्टी थीफस’ से सहायक अभिनेता के रूप में की। इसके बाद महबूब ख़ान सागर मूवीटोन से जुड़ गए और कई फ़िल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया। उन्होंने फ़िल्म 'बुलबुले बगदाद' में खलनायक का किरदार निभाया। वर्ष 1935 में उन्हें ‘जजमेंट आफ अल्लाह’ फिल्म के निर्देशन का मौका मिला।
अरब और रोम के बीच युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म दर्शको को काफी
पसंद आई। महबूब खान को 1937 में ‘जागीरदार’ फिल्म को निर्देशित करने का मौका मिला महबूब खान की 'जागीरदार'
(1937 ) उनकी फिल्म 'मनमोहन 'के बाद आई थी 'जागीरदार' महबूब खान
की चौथी फिल्म थी इसके पहले की उनकी फिल्मे टिकट खिड़की पर कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई थी
'जागीरदार' महबूब की एक रोमांटिक ,ड्रामा फिल्म थी इसमें पिता-पुत्र की भूमिकाएँ सुरेंद्र और मोतीलाल ने निभाई थी हिन्दी सिनेमा में कुछ अभिनेता ही ऐसे हुए जिन्होंने नैसर्गिक अभिनय (नैचरल एक्टिंग) के सहारे कामयाबी हासिल की। जिसमे से मोतीलाल सर्वप्रमुख हैं मोती लाल जी तब फिल्मो में नए नए आये थे लेकिन बाद में उन्होंने आगे चल कर अपने वास्तविक अभिनय से हिंदी सिनेमा के पहले "रियलिस्टिक एक्टर " की इमेज बनाई उनके खाते में अनेक अच्छी फिल्में दर्ज हैं मोतीलाल ने अपनी शालीन,मैनरिज्म और स्वाभाविक संवाद अदायगी से तमाम नायकों को पीछे छोड़ दिया। ......फिल्म जागीरदार अन्य कलाकार थे - बिब्बो, याकूब, माया बनर्जी, पांडे, जिया सरहदी और भूड़ो आडवाणी ......मोती लाल जी को छोड़ कर सारे कलाकार अपने ज़माने के मंझे हुए कलाकार थे जिन दिनों महबूब सागर मूवीटोन में निर्देशक के रूप में कार्य करते थे उन दिनों सागर मूवीटोन को कलाकरों की नर्सरी कहा जाता था।...... बेनर्जी, कुमार और चिमनलाल लोहार जैसे जबरदस्त कलाकार वहाँ मोजूद थे संगीतकारों में हीरेन बोस और अनिल बिस्वास अपनी मधुर धुनों से ‘सिल्वर-किंग’, ‘जागीरदार ’ और ‘फारबिडन-ब्राइड’ जैसी फिल्मों को सजा रहे थे यही से महबूब खान को अनिल विश्वास जैसा संगीतकार मिला और दोनों ने एक साथ कई फिल्मो में काम किया उन दिनों पाश्व गायकी का प्रचलन में नहीं थी इसलिए सुरेंदर बिब्बो और मोतीलाल के साथ साथ खुद अनिल विश्वास ने भी 'जागीदार ' में गीत गाये
बाबू भाई मेहता की लिखी कहानी एक जागीरदार सुरेंद्र ( सुरेंद्र ) की है जो सामाजिक रूढ़ियों के चलते अपनी गरीब प्रेमिका नीला ( बिब्बो ) से गुप्त विवाह करने के लिए बाध्य होता है जागीरदार सुरेंद्र जिसे एक दुर्घटना में उसे मृत मान लिया जाता है प्रेमिका अपने होने वाले बच्चे को वैधता प्रदान करने के लिए एक गरीब किसान श्रीपत ( पांडे ) से विवाह कर लेती है। जागीरदार सुरेंद्र के लौटने पर स्त्री के हक का द्वंद्व उठ खड़ा होता है। इसका फायदा उठाकर खलनायक नारायण लाल ( याकूब ) श्रीपत की हत्या कर देता है क्योंकि नारायण लाल खुद नायिका नीला पर आसक्त है वो ना केवल जागीरदार को ही हत्या के जुर्म में फंसा देता है बल्कि उसके बेटे रमेश ( मोतीलाल ) को भी उसके खिलाफ खड़ा कर देता है। और अंत में जब हर कोई मान लेता है की जागीरदार कातिल है। तो बेटे को असली खलनायक का पता चलता है और अंत में वो जागीरदार को अपने पिता के रूप में स्वीकार करता है। ..फिल्म फोटोग्राफी के निदेशक केकी मिस्त्री और फरदून ईरानी थे इस फिल्म में महबूब साहेब का हॉलीवुड की फिल्मों के प्रति आकर्षण प्रखरता से सामने आता है।नायक और खलनायक को ओवरकोट और फेल्ट हैट ठीक हिचकॉक की फिल्मों की स्टाइल में पहनाए गए 'जागीरदार' टिकट खिड़की पर सफल रही आजकल हिट फिल्मी जोड़ियों की धूम है लेकिन उस समय भी ऐसी जोड़ियों की कमी नहीं थी। सुरेंद्र-बिब्बो की जोड़ी भी खूब चली थी। गायिका-अभिनेत्री बिब्बो और सुरेंद्र की फिल्में लोग बार-बार देखते थे।
अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन की पहली फिल्म 'धर्म की देवी' (1935) थी और अंतिम 'छोटी-छोटी बातें'(1965)। इसे अभिनेता मोतीलाल ने ही बनाया था। अनिल विश्वास संगीत को स्वतंत्र पहचान देने वाले प्रथम संगीतकार हैं। उन्होंने फिल्म संगीत को मराठी नाट्य एवं भक्ति संगीत से मुक्त कराया। उनका संगीत कालजयी है। कहा जाता है की लता मंगेशकर को नूरजहां की आवाज़ से बाहर निकाल कर लाने वाले अनिल विश्वास ही थे महबूब की जिद पर ही जागीरदार' का संगीत अनिल विश्वास को स्वतंत्र रूप से सौंपा गया। इस
फिल्म का संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ।... बिब्बो के स्वर में 'जीवन यूँ ही
बीत न जाए', सुरेंद्र के गाए - 'अगर देनी थी हूरो जन्नत हमको तो यहाँ देते'
और खुद अनिल विश्वास का गाया - 'वो ही पुराने खेल जगत के वो ही पुरानी
बात' आदि सभी गीत लोकप्रिय हुए। यहाँ तक कि गायन से अनभिज्ञ मोतीलाल
और माया बनर्जी के गाए गीत भी। गीतकार ज़िया सरहदी और पंडित इंद्र शर्मा थे। इस फिल्म ने बॉक्स आफिस पर कामयाबी दर्ज़ की। जागीरदार में
सुरेंद्र के बेटे के रूप में नवागंतुक मोतीलाल ने सजीव अभिनय किया। मोतीलाल के "अभिनय की आकस्मिक शैली" आलोचकों द्वारा सराही गई .......सागर मूवीटोन ने कुल 52 फ़िल्म बनाई थी इसमे 'जागीरदार 'का 31वा नंबर था वर्ष 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण फिल्म इंडस्ट्री को काफी आर्थिक
नुकसान का सामना करना पड़ा। इस दौरान 'सागर मूवीटोन ' की आर्थिक स्थिति काफी
कमजोर हो गयी और वह बंद हो गया । इसके बाद महबूब खान अपने सहयोगियों के साथ
'नेशनल स्टूडियो 'चले गये। आज महबूब खान की सागर मूवीटोन कृत फिल्म 'जागीरदार 'का वास्तविक प्रिंट उपलब्ध नहीं है लेकिन सुरेंदर और बिब्बो के गाये गाने जरूर उपलब्ध है
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