सत्यजित राय और राजकपूर |
मेरा नाम जोकर’ (1970) राजकपूर का एक बड़े बजट का ड्रीम प्रोजेक्ट था ,एक ऐसा विशाल कैनवास जिस पर राजकपूर ने अपनी जिंदगी के सभी रंग उड़ेल कर रख दिए ,ये उस ज़माने की सबसे महंगी थी जिसमे राजकपूर ने अपनी ज़िंदगी में देखे तमाम सपने और कामयाबियों-नाकामियां को एक दस्तावेज़ की शक्ल में फिल्म बना ईमानदारी से दर्शको के सामने रख दिया राजकपूर ‘मेरा नाम जोकर’को दुनिया का इतना बड़ा शो बनाने पर तुले थे कि आने वाले वक़्त में कोई बराबरी न कर सके और उन्होंने अपनी तमाम ज़िंदगी भर की कमाई इस फिल्म में लगा दी ,पूरे छह साल लग गए इस ड्रीम को पूरा करने में फिर जब ये फिल्म बनी तो राज कपूर ने चैन की सांस ली लेकिन वितरकों और फिल्म समीक्षकों की राय कुछ अच्छी नहीं थी राजकपूर कुछ बैचेन हो गए फिर अचानक ख्याल आया कि दुनिया में रिलीज करने से पहले 'मेरा नाम जोकर’ को किसी वर्ल्ड क्लास फ़िल्मी हस्ती से मोहर लगवाई जाये तो मामला बन सकता है ......चुना गया 'सत्यजीत राय ' को जो क्लासिक फिल्में बनाने में माहिर और वर्ल्ड सिनेमा में आईकॉन माने जाते थे राज साब ने सत्यजीत राय को न्यौता भेजा, उन्होंने स्वीकार भी कर लिया राय साहब बंबई तशरीफ़ लाये ,रेड कारपेट वेल्कम हुआ सत्यजीत राय जानते थे कि राजकपूर इससे पहले ‘बूट पालिश’, ‘आवारा’, ‘जागते रहा’ और ‘जिस देश में गंगा बहती है’ जैसी क्लासिक फिल्में बना चुके हैं वो उनके मुरीद थे इस फिल्म में हो सकता है की ‘मेरा नाम जोकर’ इन फिल्मो से कई कदम आगे निकल जाये
फिल्म मेरा 'नाम जोकर ' के उस प्रीव्यू शो में सत्यजीत के साथ राजकपूर ,सिम्मी ग्रेवाल ,और रशियन अभिनेत्री Eduard Sjereda |
एक स्पेशल शो हुआ ....सत्यजीत राय साहब ने बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ फिल्म देखी इस बीच राज साहब की नज़रें बराबर राय साहब के चेहरे पर उतरते-चढ़ते भावों को पढ़ने की कोशिश में लगी रही फिल्म खत्म हुई सबकी नज़रें राय साहब की ओर उठ गयीं राज साहब को पूरा इत्मीनान था कि राय साहब इस पर मोहर लगा देंगे राय साहब बहुत गंभीर थे और बोले – राज आपकी फिल्म तीन पार्ट में है ......पहला पार्ट बेहद अच्छा है, वर्ल्ड क्लास है इसे पहले रिलीज़ कर दो........दूसरा पार्ट बढ़िया इंटरटेनमेंट है तीन महीने बाद उसे रिलीज़ करोगे तो सुपर हिट होगा........और तीसरा पार्ट स्क्रैप कर दो इसकी जरुरत ही नहीं थी ....
सब हैरान-परेशान..... राज साब के सीने पर तो बिजली सी गिरी सत्यजीत राय क्या फ़रमा रहे हैं ? राज कपूर साहब ने अपने जज़्बात को कंट्रोल किया और राय साहब को आने के लिए धन्यवाद दिया साथ ही उसने से वादा किया कि उनके सुझावों पर गौर करेंगे... कहा तो राजकपूर सत्यजीत राय को अपनी फिल्म ये समझ कर दिखाने लाये थे की वो उन्हें जता सके की वो भी वर्ल्ड क्लास सिनेमा बना सकते थे लेकिन यहाँ तो सत्यजीत राय के सुझाव और कमेंट्स से उनका जोश ठंडा पड़ गया उन्होंने इस बारे में अपने दोस्तों से बात की ...फिल्म पहले ही काफी लेट हो चुकी थी ....'मेरा नाम जोकर ' भारत और रूस दोनों के सहयोग से बनी थी इसमें दोनों देशो के कलाकारों ने काम किया था ,राजकपूर की ख्याति फिल्म 'श्री 420 ' के बाद से ही रशिया सहित पूरी दुनिया में फैली थी राजकपूर रशिया में एक तरह से भारत के 'अघोषित ब्रांड अम्बेस्डर ' की तरह छाए हुए थे ऐसे में उन्हें लगा की उनकी इसी विश्व ख्याति के सहारे उनकी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' भी चल निकलेगी .....अंत में सत्यजीत राय की सलाह को दरकिनार कर राजकपूर ने 18 दिसम्बर 1970 को भारत में फिल्म 'मेरा नाम जोकर 'रिलीज़ कर दी ........नतीजा वही हुआ जिसकी आंशका सत्यजीत राय व्यक्त कर चुके थे ......बाक्स आफिस पर 'मेरा नाम जोकर 'औंधे मुंह जा गिरी ......वर्ल्ड क्लास तो दूर भारत के अखबार और फिल्म समीक्षा करने वाले पत्रकार ही 'मेरा नाम जोकर ' की धज्जियाँ उड़ा रहे थे भारतीय दर्शको को फिल्म समझ ही नहीं आई .......उम्मीद के विपरीत प्रेस से न तो अच्छे रिव्यू मिले और न ही सिनेमा हॉल्स को दर्शक........ राज साहब को अपने बनाये 'राजू जोकर' की नाकामी से ज़बरदस्त झटका लगा और उनका वर्ल्ड क्लासिक फिल्मे बनाने का सपना भी टूट गया.
अब ये कहना ना इंसाफ़ी होगा की अगर राजकपूर ने सत्यजीत राय की बात मान ली होती तो फिल्म चल जाती उस दौर में हर फिल्म एक फ़िल्मकार के लिए एक कृति के सामान होती थी और फिर 'मेरा नाम जोकर ' तो राजकपूर जैसे शिल्पकार की फिल्म थी 'मेरा नाम जोकर' के फ्लॉप होने के बावजूद भी राजकपूर इसके बारे में अक्सर कहते थे ......" भले ही मेरी इस फिल्म को दर्शको का प्यार नहीं मिला लेकिन जिस तरह एक माँ को उसके सभी बच्चे जान से ज्यादा प्यारे होते है ये फिल्म 'मेरा नाम जोकर' भी मेरे बच्चे की तरह है और में इसकी माँ हूँ ,अब माँ जन्म तो दे सकती है लेकिन अपने बच्चे के कर्म नहीं बदल सकती ,'मेरा नाम जोकर' मेरे दिल के हमेशा करीब है और रहेगी " ..'मेरा नाम जोकर' की नाकामी ने राजकपूर को आर्थिक और मानसिक रूप से तोड़ कर रख दिया था इस फिल्म की नाकामी के बाद वो अपने आर.के बैनर किसी भी फिल्म में मुख्य रोल या नायक के रूप में परदे पर नहीं आये. 'मेरा नाम जोकर 'की नाकामी से उबरने के लिए उन्हें युवा लवस्टोरी ‘बॉबी’ बनानी पड़ी इसकी बेमिसाल कामयाबी से आर्थिक नुक्सान की भरपाई तो हो गयी मगर नाकाम 'राजू जोकर' के टूटे दिल से उठती टीस मरते दम तक बरकरार रही
इन लेखों के हो सके तो सन्दर्भ ग्रंथ की एक सूची भी दिया करें। जिससे ये लेख प्रामाणिक हो जाये।
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