भारत में आम तौर पर रीजिनल भाषा में बनने वाली फिल्में सम्बंधित भाषा के राज्य की सीमाओं में ही बंध कर ही रह जाती हैं। बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं जो अपनी भाषा की सीमाओं के इस बंधन को तोड़ पाती हैं। 1969 में आई पंजाबी फिल्म ' नानक नाम जहाज है ' एक ऐसे समय में आई थी जब पंजाबी फिल्म इंडस्ट्रीज़ हाशिये पर थी पंजाबी फिल्म बनाना एक घाटे का सौदा समझा जाता था ऐसे समय में निर्माता पन्ना लाल माहेश्वरी ने अपने जोखिम पर राम माहेश्वरी के निर्देशन में पंजाबी धार्मिक फिल्म 'नानक नाम जहाज है ' बनाने का निर्णय किया ........कहा जाता है की इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा उन्हें एक सच्ची घटना से मिली थी जो अमृतसर के पवित्र स्वर्ण मंदिर में घटित हुई थी फिल्म 'नानक नाम जहाज़ है ' उसी सच्ची घटना पर आधारित है इस फिल्म में उस समय के दिग्गज कलाकारों पृथ्वीराज कपूर, बीना ,आईएस जौहर, निशि ,विमी और सोम दत्त ( सुनील दत्त के भाई ) डेविड ,जगदीश राज ,सुरेश ने मुख्य भूमिकाओं में अभिनय किया है अभिनेता आईएस जौहर अपने ज़माने के एक प्रतिभावान कलाकार थे आई.एस जौहर का रोल फिल्म ग्रे शेड लिए हुआ था इतनी बड़ी स्टार कास्ट के बीच उन्होंने विलेन और हास्य अभिनेता दोनों का रोल बड़ी शिद्दत से निभाया फिल्म में उनके किरदार शोक्का द्वारा बोला गया तकिया कलाम ' पासा पुट्ठा पे गया ' बड़ा हिट हुआ था जिसे पंजाबी परिवारों में आज भी मजाक में एक दूसरे से बोला जाता है इस फिल्म में आई.एस जौहर द्वारा निभाए गए नेगेटिव कैरेक्टर से प्रभावित हो कर कई पंजाबी परिवारों ने अपने शरारती बेटों के नाम बदल कर 'शोक्का' कर दिए थे और अच्छे स्वभाव वाले बेटों का नाम 'गुरमीत' और बेटियों के नाम 'चन्नी' रखने पर प्रचलन भी इसी फिल्म से चला था
यह फिल्म 1947 के अमृतसर की कहानी है जहाँ एक धर्मनिष्ठ सिख और समृद्ध व्यवसायी गुरुमुख सिंह ( पृथ्वीराज कपूर ) अपनी पत्नी ( बीना ) और छोटे धर्म भाई प्रेम सिंह ( सुरेश ) के साथ रहते हैं। मुसीबत तब शुरू होती है जब प्रेम रतन कौर ( निशि ) से शादी करता है, जो दोनों भाइयों के बीच मतभेद पैदा करवा देती है ,घर और व्यवसाय बँट जाता है ,गुरुमुख सिंह का बेटा ( सोम दत्त ) अपनी चाची के हाथो अँधा हो जाता है ,गुरमीत की पत्नी चन्नी ( विम्मी ) अपने पति की आँखों की रोशनी के लिए भारत के सारे गुरुद्वारों के दर्शन करवाने का बीड़ा उठाती है कठिन से कठिन परिस्थियों में भी गुरुमुख सिंह अपने गुरु का भरोसा नहीं छोड़ता अंत में उसके विश्वास की जीत होती है गुरमीत की आँखों की रोशनी वापिस आ जाती है परिवार में सद्भाव स्थापित होता है। और वाहेगुरु की असीम कृपा से सारा परिवार फिर से एक हो जाता है इस फिल्म का नैतिक सन्देश यह था की आप अपने भीतर पनप रही बुराई को सच्चे दिल से छोड़ें
'नानक नाम जहाज़ है '15 अप्रैल 1969 को गुरु नानक जी के 500 वे प्रकाश उत्सव के अवसर पर रिलीज़ हुई थी इसने नेशनल अवार्ड (1970 ) और बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवार्ड भी जीता इस फिल्म ने अपने समय में अमृतसर में इतिहास रचा था। लोगों में इस फिल्म को देखने की इतनी श्रद्धा थी कि वे हॉल के बाहर चप्पल उतारकर अंदर जाते थे। जब फिल्म देखकर वे बाहर आते तो उन्हें लंगर परोसा जाता।
''नानक नाम जहाज़ है'' गोल्डन जुबली मनाने वाली एकमात्र पंजाबी फिल्म है। जिसके हिस्से में ये जबरदस्त सफलता आई क्योंकि इससे पहले किसी भी अन्य पंजाबी फिल्म ने स्क्रीन पर सिल्वर जुबली नहीं मनाई थी फिल्म अमृतसर में 50 सप्ताह और होशियारपुर में 50 सप्ताह तक चली जबकि 1969 में यहाँ की जनसंख्या केवल एक लाख के आसपास थी। जालंधर और लुधियाना में भी 40 सप्ताह, पटियाला में 19 सप्ताह चली चूंकि फिल्म के प्रिंट्स लिमिटेड थे इसलिए बाद में इतने सप्ताह दिल्ली और हरियाणा के शहरों में भी चलाए गए जहां जहाँ पंजाबी समुदाय की जनसंख्या अधिक थी इस फिल्म की टिकट लेने के लिए एक किलोमीटर लंबी कतार लगाती थी पंजाब में पहले 10 हफ्तों के लिए सामान्य रूप में केवल एक टिकट किसी एक व्यक्ति को या लेडीज को प्रदान किया गया था। लोग इस फिल्म को देखने के लिए अपने गाँवों से शहर तक ट्रॉलियों में जत्थों के रूप में आते थे उनके लिए ''नानक नाम जहाज़ है ''को देखना किसी तीर्थ पर जाने जैसा था और कई लोगो ने तो पहली बार सिनेमाघर में प्रवेश किया कानपुर, रुद्रपुर और सहारनपुर से दिल्ली तक सिर्फ लोग इस फिल्म को देखने के लिए आए जो उन दिनों अविश्वसनीय था ''नानक नाम जहाज़ ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस किया और हिट साबित हुई फिल्म की सफलता ने गुमनानी में जा चुकी पंजाबी फिल्म इंडस्ट्रीज़ में भी प्राण फूंक दिए 'नानक नाम जहाज़ है भारत की आज़ादी के बाद सबसे सफल फिल्म साबित हुई और बड़े बड़े हिंदी फिल्म निर्माता पंजाबी फिल्मे बनाने को प्रेरित हुए
''नानक नाम जहाज़ है'' गोल्डन जुबली मनाने वाली एकमात्र पंजाबी फिल्म है। जिसके हिस्से में ये जबरदस्त सफलता आई क्योंकि इससे पहले किसी भी अन्य पंजाबी फिल्म ने स्क्रीन पर सिल्वर जुबली नहीं मनाई थी फिल्म अमृतसर में 50 सप्ताह और होशियारपुर में 50 सप्ताह तक चली जबकि 1969 में यहाँ की जनसंख्या केवल एक लाख के आसपास थी। जालंधर और लुधियाना में भी 40 सप्ताह, पटियाला में 19 सप्ताह चली चूंकि फिल्म के प्रिंट्स लिमिटेड थे इसलिए बाद में इतने सप्ताह दिल्ली और हरियाणा के शहरों में भी चलाए गए जहां जहाँ पंजाबी समुदाय की जनसंख्या अधिक थी इस फिल्म की टिकट लेने के लिए एक किलोमीटर लंबी कतार लगाती थी पंजाब में पहले 10 हफ्तों के लिए सामान्य रूप में केवल एक टिकट किसी एक व्यक्ति को या लेडीज को प्रदान किया गया था। लोग इस फिल्म को देखने के लिए अपने गाँवों से शहर तक ट्रॉलियों में जत्थों के रूप में आते थे उनके लिए ''नानक नाम जहाज़ है ''को देखना किसी तीर्थ पर जाने जैसा था और कई लोगो ने तो पहली बार सिनेमाघर में प्रवेश किया कानपुर, रुद्रपुर और सहारनपुर से दिल्ली तक सिर्फ लोग इस फिल्म को देखने के लिए आए जो उन दिनों अविश्वसनीय था ''नानक नाम जहाज़ ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस किया और हिट साबित हुई फिल्म की सफलता ने गुमनानी में जा चुकी पंजाबी फिल्म इंडस्ट्रीज़ में भी प्राण फूंक दिए 'नानक नाम जहाज़ है भारत की आज़ादी के बाद सबसे सफल फिल्म साबित हुई और बड़े बड़े हिंदी फिल्म निर्माता पंजाबी फिल्मे बनाने को प्रेरित हुए
संगीत निर्देशक एस मोहिन्दर ने हमें एक ऐसा शानदार उपहार भेंट किया। जिसे कोई भी सच्चा पंजाबी कभी नहीं भूल सकता फिल्म की सफलता में सबसे बड़ा हाथ संगीतकार एस मोहिंदर के रचे गुरुबाणी और शब्दो का रहा उन्होंने इस फिल्म में मेरे साहिब ,बिसर गई ,हम मैले तुम उजले , मित्र प्यारे नू , देह शिवा वर मोहे , कल तारण गुरु नानक आया ,प्रभु जो तू ले लाज ,जैसे अमर भजनो को अमर संगीत में ढाला जो आज भी उतने लोकप्रिय है जितने 50 साल पहले थे आज भी आप चाहे किसी भी शहर में हो लेकिन नगर कीर्तन में इन गानो और भजनो को जरूर सुनते होंगे इन भजनो को महिंदर कपूर ,शमशाद बेगम ,मोहम्मद रफ़ी ,मन्ना डे ,लता मंगेशकर आशा भौंसले ,भाई समुंद सिंह रागी ,भूषण मेहता ,और खुद संगीतकार एस मोहिंदर ने स्वर दिए .....'देह शिवा वर मोहे को ' को भारतीय सेना के कई मशहूर बैंड मॅचिंग परेड के दौरान भी प्रमुखता से बजाते है फिल्म 'नानक नाम जहाज़ है ' को कई क्षेत्रीय भाषाओं में भी डब किया गया फिल्म की नामावली में उस समय के कुछ प्रसिद्ध राजनेताओं ज्ञानी जेल सिंह ,मोराज जी देसाई ,और सीमांत गाँधी अब्दुल गफ्फार खान और दलाई लामा आदि को भी दिखाया गया है गुरु नानक देव जी के 500 वा साला प्रकाश उत्सव पर फिल्म 'नानक नाम जहाज है ' बनाने और रिलीज़ करने से पहले शिरोमणि सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी दिल्ली और पंजाब ,सचखंड हुजूर साहेब कमेटी ,श्री अकाल तख़्त साहेब की धार्मिक सलाहकार कमेटी,और सिख धर्म के विद्वान् जानकारों की विशेष इज़ाज़त ली गई फिल्म में NCC कोर कमांडर अमृतसर ,खालसा कॉलेज अमृतसर का भी अमूल्य सहयोग रहा
इस शानदार पंजाबी नानक नाम जहाज है को बनाने के लिए निर्माता राम महेश्वरी धन्यवाद के पात्र है 1969 में बॉलीवुड की सबसे बड़ी म्यूजिकल हिट फिल्म 'आराधना' रिलीज़ हुई थी चारो और नए नए हीरो राजेश खन्ना का शोर मचा हुआ था किशोर कुमार के गाये फिल्म आराधना के गाने देश में गूँज रहे थे लेकिन पंजाबी फिल्म नानक नाम जहाज है 'की सफलता इसलिए बेहतर है क्योंकि इस फिल्म ने 1970 में 'आराधना' को हराकर सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था। रफ़ी के गाये 'मित्तर प्यारे नू' ने जालंधर रेडियो पर 1500 से अधिक बार बजाया गया जो किसी भी सार्वजनिक मीडिया पर प्रसारित किए गए गाने के मामले में वर्ल्ड रिकॉर्ड है। फिल्म नानक नाम जहाज है 'के शब्दो को सुनने के लिए पहली बार लोगों ने रेडियो खरीदा और रिकॉर्ड प्लेयर और कैसेट तो तो पहले से ही बिक रहे थे
मेरे ख्याल से 'नानक नाम जहाज़ है ' को भारतीय सिनेमा के सौ वर्षों की सबसे सफल और लोकप्रिय फिल्म कहना गलत नहीं होगा आज से 50 वर्ष पहले गुरुपर्व पर रिलीज़ हुई पंजाबी फिल्म 'नानक नाम जहाज़ एक ऐसी ही फिल्म है जो पंजाबी में बनी होने के बावजूद सारे भारत में लोकप्रिय हुई और हिंदी भाषी प्रदेशो में वैसी ही सफल हुई जैसी पंजाब में। ......फिल्म लगभग सभी पवित्र गुरूद्वारे के दर्शन भी करवाती है इस फिल्म में सारे भारत में फैले गुरुद्वारों को देखा जा सकता है और यह फिल्म बड़े मानवीय, सामाजिक तरीके से सिक्ख धर्म का दार्शिनक इतिहास हमारे सामने रखती है फिल्म के गाने आज भी सुनने वालो को ऐसा अनोखा आध्यात्मिक रूहानी एहसास करवाते है जिसे सिर्फ आँखे बंद करके महसूस किया जा सकता है एस मोहिंदर ने कई हिंदी और रीजिनल फिल्मो में सुपरहिट संगीत दिया है लेकिन उन्हें आज तक सिर्फ ' नानक नाम जहाज़ है ' के संगीत लिए ही लोग याद करते है और इस तथ्य को एस मोहिंदर बड़े गर्व से स्वीकार करते है इस फिल्म की सफलता से प्रभावित होकर अगले ही वर्ष 1970 में इसी धार्मिक विषय को लेकर एक पंजाबी फिल्म 'नानक दुखिया सब संसार ' परदे पर आई जिसमे पृथ्वीराज कपूर, दारा सिंह ,प्राण अचला सचदेव,बलराज साहनी जैसे बड़े सितारे थे इस फिल्म को अभिनेता दारा सिंह ने ही निर्देशित किया था फिल्म के गानो में रफ़ी ,मुकेश ,महिंदर कपूर जैसे गायको ने अपनी बेमिसाल आवाज़ भी दी ' नानक दुखिया सब संसार ' एक अच्छी फिल्म थी लेकिन वो 'नानक नाम जहाज़ है ' का इतिहास दोहरा नहीं पाई
'' नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला ''
बहुत ही सुंदर लेख लिखा है,,,, जितनी तारीफ की जाए कम है,,, बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDelete