Tuesday, June 4, 2024

'हाथी मेरे साथी - (1971)' ...........जानवर और इंसान के रिश्तों पर बनी सुपर स्टार राजेश खन्ना की सबसे कामयाब फिल्म

'हाथी मेरे साथी - (1971)'

सिने प्रेमियों ने राजेश खन्ना को रोमांटिक हीरो के रूप में बेहद पसंद किया गया ,70 दशक में उनकी आंख झपकाने और गर्दन टेढ़ी करने की अदा के लोग दीवाने हो गए थे,राजेश खन्ना द्वारा पहने गए गुरु कुर्त्ते खूब प्रसिद्ध हुए और कई लोगों ने उनके जैसे कुर्त्ते पहने,लड़कियों के बीच राजेश खन्ना बेहद लोकप्रिय थे,लड़कियों ने उन्हें खून से खत लिखे उनकी फोटो से शादी तक कर ली कुछ ने अपने हाथ या जांघ पर राजेश का नाम गुदवा लिया,उस दौर की युवा लड़कियां उनका फोटो तकिये के नीचे रखकर सोती थी स्टुडियो या किसी निर्माता के दफ्तर के बाहर राजेश खन्ना की सफेद रंग की कार रुकती थी तो लड़कियां उस कार को ही चूम लेती थी लिपिस्टिक के निशान से सफेद रंग की कार गुलाबी हो जाया करती थी उस दौर में पैदा हुए ज्यादातर लड़कों के नाम 'राजेश' रखे गए .....यह था राजेश खन्ना के स्टारडम का वो जादू जिसकी बराबरी आज भी कोई दूसरा नहीं कर पाया राजेश खन्ना जब सुपरस्टार थे तब एक कहावत बड़ी मशहूर थी 

ऊपर आका और नीचे काका। ..

1969 से 1975 के बीच राजेश ने हिंदी सिनेमा के दर्शको को कई सुपरहिट फिल्में दीं जब भी हिंदी सिनेमा की सदाबहार फिल्मों की बात की जाएगी तब राजेश खन्ना की फिल्म 'हाथी मेरे साथी 'को जरूर याद किया जाएगा 50 साल पहले 1 मई 1971 में मजदूर दिवस वाले दिन जब 'हाथी मेरे साथी 'रिलीज हुई थी तब इस ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया था इसमें राजेश खन्ना और तनुजा मुख्य भूमिकाओं में थे सहायक भूमिका में डेविड ,सुजीत कुमार ,के एन सिंह ,मदनपुरी ,अभी भटाचार्य ,जूनियर महमूद और नाज थे यह फिल्म दक्षिण भारत के मशहूर फिल्म निर्माता सैंडो एमएमए चिन्नप्पा थेवर ने बनाई थी जो उनकी ही 1967 की तमिल फिल्म देइवा चेयल की रीमेक थी यह उस समय किसी दक्षिण भारतीय फिल्म निर्माता द्वारा बनाई गई सबसे सफल हिन्दी फिल्म थी जिसने दक्षिण भारतीय फिल्म निर्माताओँ के लिए हिंदी सिनेमा के दरवाजे खोले ,हाथी मेरे साथी 'न केवल 1971 की सबसे बड़ी हिट थी बल्कि यह राजेश खन्ना के करियर की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म भी थी भारत में इसकी शुद्ध आय 35 मिलियन थी और इसकी कुल घरेलू कमाई 70 मिलियन थी यह फिल्म सोवियत संघ में भी ब्लॉकबस्टर थी जहां 1974 में इसके 34.8 मिलियन सिनेमा टिकट बिके थे इस फिल्म ने सुपरस्टार राजेश खन्ना के स्टारडम को और ऊँची उड़ान दी थी ''हाथी मेरे साथी'' में ड्रामा,संगीत,अभिनय और इंसान और जानवरो की दोस्ती की शानदार कहानी थी आदमी और जानवर के बीच दिखाया गया रिश्ता पूरी तरह से सराहनीय है जो बच्चो को भी बहुत पसंद आया

फिल्म 'हाथी मेरे साथी '' की कहानी में राजू (राजेश खन्ना) अपने चार पालतू हाथियों के साथ रहता है और सड़को पर इन्ही हाथियों के करतब दिखा अपना पेट पालता है ये हाथी उसकी आजीविका का मुख्य साधन है इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है राजू इन्हे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है क्योंकि जब वह छोटा था तो उन हाथियों ने एक रामू ने जंगली तेंदुए से उसकी जान बचाई थी उसके बाद राजू रामू और उसके तीन और दोस्तों के साथ ही रहने लगता है राजू ''प्यार की दुनिया'' नाम से एक चिड़ियाघर, शुरू करता है इसमें विभिन्न जंगली जानवर उसके हाथियों के साथ रहते हैं, इसमें वह बाघ, शेर, भालू और अपने चार हाथियों को रखता है वह सभी जानवरों को अपना दोस्त मानता है जिनमें से हाथी रामू उसके सबसे करीब है उसकी मुलाकात तनु (तनुजा) से होती है और दोनों को प्यार हो जाता हैं लेकिन तनु के अमीर पिता रतनलाल ( मदन पुरी ) उनके बेमेल प्यार का विरोध करते हैं लेकिन तनु की जिद के बाद वो उसे राजू से शादी करने की अनुमति दे देते हैं तनु जल्द ही राजू के घर में अपने को उपेक्षित महसूस करने लगती है जब वो माँ बनती तो हालात और बिगड़ जाते हैं तनु को लगता है कि राजू अपने परिवार से अधिक अपने जंगली जानवरो से प्यार करता है तनु को हमेशा यह डर लगा रहता है हाथी रामू कही उसके बच्चे को कोई नुकसान ना पहुंचा दे,उसका मानना है कि जानवर आखिर जानवर ही होता है उसका क्या भरोसा ? एक दिन तनु को गलतफहमी हो जाती है कि रामू उसके बच्चे को वास्तव में ही मारना चाहता है बस शंका का ये बीज रामू और तनु के बीच दरार पैदा कर देता है,तनु राजू को हाथी रामू और अपने परिवार में से किसी एक को चुनने को कह देती है अब राजू को अपनी पत्नी और बेटे और अपने जानवरो में से एक को छोड़ना है हाथी रामू अपने मालिक राजू और तनु को एक साथ लाने की कोशिश करता है लेकिन उसे हर बार गलत समझ लिया जाता है सरवन कुमार ( के.एन सिंह ) के कारण रामू को अपना जीवन बलिदान करना पड़ता है रामू अपनी कुर्बानी देकर दोनों को फिर से मिला देता है राजू भरे मन से अपने दोस्त रामू को अंतिम विदाई देता है


'हाथी मेरे साथी ' में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा संगीत और आनंद बख्शी के गीत थे एचएमवी पर इसके संगीत ने अपनी रिकॉर्डतोड़ बिक्री के लिए सिल्वर डिस्क जीता और ऐसा करने वाला वो पहला भारतीय ग्रामोफोन रिकॉर्ड बन गया ''धक धक कैसे चलती है गाड़ी धक धक", "सुनजा आ ठंडी हवा, थाम जा ए काली घटा","दिलबर जानी चली हवा मस्तानी" ,"दुनिया में रहना है तो" "चल चल मेरे साथी" "नफ़रत की दुनिया को" जैसे हिट गाने इस फिल्म में थे जिन्हे लता मंगेशकर ,किशोर कुमार ने गाया हालाँकि सभी गाने इतने रोमांटिक हैं लेकिन आखिरकार जब रामू (हाथी) मर जाता है, तो '' नफरत की दुनिया छोड़ के " गाना दिल को छू जाता है जो फिल्म में मोहम्मद रफी द्वारा गाया गया एकमात्र गीत था और ये गाना किशोर कुमार व लता मंगेशकर के गाए बाकी चारों गानों पर भारी पड़ा इस गाने के लिए गीतकार आनंद बख्शी को सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (एसपीसीए) से एक विशेष पुरस्कार भी मिला था पहले किशोर कुमार को इस गाने के लिए चुना गया था लेकिन रफ़ी साहेब ने इस गाने को बेहतरीन तरीके से गाया है जो किशोर कुमार के लिए शायद मुमकिन नहीं था 'नफरत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार'' ये गाना जिसने भी सुना वो सिनेमा हॉल में तो रोया ही लेकिन थिएटर के बाहर तक लोग रोते सुबकते हुए सिनेमाघरों से निकलते हुए देखे गए थे लेकिन पहले फिल्म के संगीत के लिए चिनप्पा देवर ने संगीतकार शंकर जयकिशन को साइन किया था लेकिन यह संगीतकार जोड़ी बहुत समय लेकर संगीत बनाती थे और देवर को फिल्म के गाने जल्दी चाहिए थे ताकि वे फटाफट शूटिंग पूरी कर फिल्म को रिलीज कर सकें तब उन्हें किसी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का नाम सुझाया गया लेकिन यह जोड़ी तो उन दिनों शंकर जयकिशन से भी ज्यादा व्यस्त थी देवर को कही से पता चला कि लक्ष्मीकांत के बेटे का पहला जन्मदिन है वह शाम को बिना बुलाए लक्ष्मीकांत के घर पहुंच गए रास्ते में उन्होंने सुनार से सोने की कुछ गिन्नियां खरीदीं और लक्ष्मीकांत के घर पहुंचकर उस साल भर के बच्चे पर वार कर न्योछावर कर दीं और वापिस घर लौट आए कहते है इसके बाद लक्ष्मीकांत को अपनी पत्नी की जिद पर ये फिल्म करनी प़ड़ी चिनप्पा देवर ने लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल को फिल्म के साइनिंग अमाउंट के तौर पर चांदी की प्लेट में रखकर एक एक लाख रुपये नगद दिए फिल्म के हिट होने के बाद इतनी ही रकम दोनों को और दी गई किसी हिंदी फिल्म के संगीतकार को एक फिल्म में संगीत देने के लिए मिली ये उस वक्त की सबसे बड़ी रकम बताई जाती है 

पहले साउथ के फिल्म निर्माता हिंदी फिल्मे बनाने से कतराते थे क्योंकि साउथ में हिंदी भाषा विरोधी आंदोलनों का एक इतिहास रहा है इसलिए साउथ के मशहूर फिल्म निर्माता सैंडो एम एम ए चिनप्पा देवर ने जब कोई हिंदी फिल्म को बनाने की सोची तो अपनी ही बनाई हुई बनाई फिल्म 'देइवा चेयल 'की कहानी को चुना लेकिन यह सब संयोग से ही हुआ दरअसल चिनप्पा देवर मशहूर अभिनेता और राजनीतिज्ञ एम जी रामचंद्रन की फिल्मों के निर्माता रहे हैं लेकिन जब 1969 में एमजीआर ने राजनीति में एंट्री की तो उनकी सियासी गतिविधियां एकदम से बढ़ गईं और फिल्मों से उनकी दूरी बढ़ती गई उनके पास समय का आभाव हो गया लिहाजा देवर तब बिना एमजीआर के छोटे बजट की एक फिल्म बनाने की तैयारी करने लगे एक दिन उनके पड़ोसी निर्देशक श्रीधर ने उन्हें एक हिंदी फिल्म बनाने का आइडिया दिया तो देवर के दिमाग में तुरंत अपनी ही फिल्म 'देइवा चेयल 'की रीमेक बनाने का ख्याल आया उन्होंने असली फिल्म में थोड़ी फेरबदल की और पहुंच गए अभिनेता संजीव कुमार के पास संजीव कुमार ने उनकी कहानी 'प्यार की दुनिया ' सुनी और उनसे कहा कि यह एक रोमांटिक फिल्म है और वो खुद को फिल्म के हीरो की रोमांटिक इमेज के हिसाब से उचित नहीं मानते संजीव कुमार ने चिनप्पा देवर को राजेश खन्ना को फिल्म में लेने का सुझाव दिया वो राजेश खन्ना से फिल्म 'आराधना 'की शूटिंग के दौरान उनसे मिले राजेश खन्ना को भी कहानी कुछ समझ नहीं आई लेकिन उन्होंने फिल्म करने से इंकार नहीं किया उन्होंने चिनप्पा देवर को कुछ समय देने का अनुरोध किया चिनप्पा देवर तो चेन्नई लौट गए पर राजेश खन्ना परेशान हो गए उनको कहानी पसंद नहीं आ रही थी फिल्म 'हाथी मेरे साथी 'में यही से सलीम- जावेद की एंट्री हुई राजेश खन्ना चिनप्पा देवर की फिल्म की कहानी 'प्यार की दुनिया 'लेकर सलीम खान के पास चले गए और उनसे कहा ''यार यह कहानी मेरी कुछ समझ से परे है इसमें कुछ ऐसा कर दो कि एक हिट फिल्म बन सके एडवांस पैसा अब वह लौटा नहीं सकते क्योंकि बंगला खरीदने के लिए उन्होंने वो पैसे पेशगी के तौर पर राजेंद्र कुमार को दे दिए है इसलिए उन्हें यह फिल्म हर हाल में करनी ही होगी

दरअसल उन्हीं दिनों राजेश खन्ना जुबली कुमार अभिनेता राजेंद्र कुमार को उनका कार्टर रोड स्थित बंगला 'आशीर्वाद' बेचने के लिए मना रहे थे जितनी रकम राजेंद्र कुमार ने इस बंगले की कीमत के तौर पर राजेश खन्ना से मांगी राजेश खन्ना ने वही रकम फिल्म 'हाथी मेरे साथी 'में करने के नाम पर चिनप्पा देवर से मांग ली चिनप्पा देवर ने बड़ा दिल दिखाते हुए राजेश खन्ना ने जितनी रकम मांगी उसे स्वीकार कर उन्हें कुछ एडवांस भी दे दिया राजेश खन्ना की दुविधा अब सलीम जावेद को समझ आ चुकी थी उन्होंने राजेश खन्ना की दी गई पटकथा को फिर से काम क्या और उसे शानदार तरीके से दोबारा लिखा

कुछ समय के बाद जब 'आराधना' सुपरहिट हो चुकी थी चिनप्पा देवर फिर राजेश खन्ना से मिले ये पूछने कि वो जो हाथी और हीरो वाली कहानी उन्होंने सुनाई थी और जिसका एडवांस भी वह दे चुके हैं उस पर काम कब शुरू करना है ? इस बार उन्होंने राजेश खन्ना से कहा कि फिल्म 'आराधना' के सुपरहिट होने के बाद उन्हें कितनी रकम उनको और देनी है चिनप्पा देवर को लगा कि 'आराधना 'के हिट होने के बाद राकेश खन्ना अब उनसे और पैसे मांगेगे ? लेकिन राजेश खन्ना को उनकी यह बात चुभ गई


वह बोले कि ''अगर आराधना फ्लॉप होती तो क्या मैं अपनी मार्केट प्राइस कम करने को राजी होता ? आपकी फिल्म उसी रेट पर बनेगी जिस रेट पर तय हुई थी मैं आराधना के हिट होने के बाद भी वही रकम आपसे लूंगा जो पहले तय हुई है उन्होंने चिनप्पा देवर से कुछ दिन बाद आने को कहा ताकि शूटिंग की तारीखें तय हो सकें चिनप्पा देवर राजेश खन्ना के मुरीद बन गए देवर को कहानी दिखाने के बाद फिल्म की शूटिंग शुरू हुई फिल्म हाथी मेरे साथी के निर्देशन की जिम्मेदारी एम ए थिरुमुगम को मिली जो चिनप्पा देवर के छोटे भाई थे 1970 में वाहिनी स्टूडियो में फिल्म की शूटिंग शुरू हुई फिल्म के कुछ आउटडोर सीन ऊटी में भी फिल्माए गए है
फिल्म ब्लॉकबस्टर हुई और सलीम जावेद का नाम भी पूरी इंडस्ट्री के दिल औऱ दिमाग दोनों पर छप गया इस फिल्म को जब हिंदी में लिखा गया था तब बहुत सारी चीजों को सुधारा गया था इस फिल्म का दुखद पहलू ये रहा कि फिल्म में सलीम जावेद को लेखन का पूरा क्रेडिट दिलवाने का वादा राजेश खन्ना ने सलीम खान से पहली मुलाकात में किया था लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई तो संवाद लेखक के रूप में फिल्म में नाम इंदर राज आनंद का गया जबकि फिल्म को दोबारा लिखे जाने के बाद इसके 90 फीसदी संवाद सलीम जावेद ने लिखे थे जब फिल्म सुपरहिट हुई तो चिनप्पा देवर ने राजेश खन्ना के कहने पर मुंबई के ट्रेड अखबारों में एक इश्तहार जरूर दिया कि ये फिल्म सलीम जावेद ने लिखी है हालांकि इसमें भी दोनों के नाम गलत छपे राजेश खन्ना ने इस पूरे प्रकरण के दौरान जिस तरह से पेश आए उससे भी सलीम जावेद का दिल टूटा हाथी मेरे साथी में सलीम जावेद का नाम ओपनिंग क्रेडिट्स में स्क्रीनप्ले लिखने वालों के तौर पर आता है हालांकि दोनों की चाहत थी कि फिल्म की क्रेडिट्स में उनका नाम ‘रिटेन बाई सलीम जावेद’ के तौर पर जाए 
  


काका के करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्मो में एक' हाथी मेरे साथी 'की शूटिंग जब मद्रास (चेन्नई) और तमिलनाडु की कई दूसरी लोकेशन्स पर चल रही थी उन इलाकों में भी राजेश खन्ना के नाम पर भारी भीड़ जमा हो जाती थी ये हैरत की बात थी क्योंकि वहां हिंदी फिल्में आमतौर पर ज्यादा नहीं चलती थीं तमिल फिल्म इंडस्ट्री खुद काफी बड़ी थी और उसके अपने मशहूर स्टार थे लेकिन राजेश खन्ना का करिश्मा ही था जिसने भाषा की सरहदों को भी पार कर गया था ये करिश्मा उन्होंने उस दौर में कर दिखाया जब न तो टेलीविजन था, न 24 घंटे का एफएम रेडियो न बड़ी-बड़ी पीआर एजेंसियां
एक साक्षात्कार में तनुजा ने कहा,
"जब उनकी बेटी काजोल छह साल की थी तब मैंने उन्हें 'हाथी मेरे साथी ' फिल्म दिखाई थी और दो सप्ताह तक काजोल ने मुझसे बात नहीं की थी वो मुझे बार बार कहती 
"मम्मी, आपने हाथी को मार डाला!" 
तुम्हारी वजह से उसे मरना पड़ा!" 
उनकी छोटी बेटी तनीषा भी ऐसा ही मानती थी तनुजा ने बताया उन्हें पहले हाथियों के साथ काम करना पसंद नहीं आया आखिर वो जानवर थे किसी को भी नुकसान पहुंचा सकते थे लेकिन कुछ शुरुआती आशंकाओं और डर के बाद वे वास्तव में हाथी मुझे पसंद करने लगे खासकर वह हाथी जिसने रामू का किरदार निभाया था फिल्म में एक एक सीक्वेंस है जहां हाथी रामू को मुझे दरवाजे के अंदर धकेलना था और उसे एक सांप से लड़ना था जो बच्चे को काटने वाला था लेकिन हाथी रामू को मुझसे इतना प्यार हो गया था कि उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया उसका महावत आख़िरकार जब हार गया तो कैमरा मेन को हाथी, मेरी पीठ और मेरे गिरते हुए के अलग-अलग क्लोज़-अप शूट करने पड़े जिन्हे बाद में जोड़कर यह सीन पूरा किया गया "

फिल्म हाथी मेरे साथी को राजेश खन्ना ने पहले दिल्ली और आसपास के शहरों में 1 मई को रिलीज कराया फिल्म को शुरू के तीन दिनों में अच्छा रेस्पॉन्स नहीं मिला तो चिनप्पा देवर थोड़ा उदास थे इस पर राजेश खन्ना ने कहा कि आप दिल्ली आ जाओ यहां बैठकर बात करते हैं चिनप्पा देवर चेन्नई से ट्रेन से दिल्ली के लिए निकल पड़े और इधर सोमवार से फिल्म निकल पड़ी फिल्म की इतवार के बाद इतनी माउथ पब्लिसिटी हुई कि सोमवार के बाद से सारे थिएटरों में सारे शोज हाउसफुल होने लगे। फिल्म निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत के साथ मिलकर इसके बाद राजेश खन्ना ने फिल्म वितरण कंपनी शक्ति राज ने बनाई और इसी कंपनी ने बंबई में 14 मई को इस फिल्म को शानदार तरीके से रिलीज किया फिल्म इतनी बड़ी सुपरहिट हुई कि एम जी रामचंद्रन ने चिनप्पा देवर को बुलाकर इस फिल्म को फिर से तमिल में बनाने को कहा इस फिल्म की सफलता के बाद थेवर ने 1972 में इसे फिर से तमिल में 'नल्ला नेरम' के नाम से बनाया ये फिल्म तमिल में भी ब्लॉकबस्टर रही देवर फिल्म्स की हिंदी में उनकी सबसे बड़ी हिट फिल्म रही इसके बाद उन्होंने तमाम और फिल्में बनाई



बेजुबान जानवरों को रुपहले परदे पर इतने शानदार तरीके से दिखाने का प्रयोग हिंदी सिनेमा में इससे पहले नहीं हुआ। 14 मई 1971 की गर्मियों में रिलीज़ हुई 'हाथी मेरे साथी ' को 53 वर्ष पूरे हो गए है आज भी इस सुपरहिट फिल्म में रामू का किरदार निभाने वाला हाथी हिंदी सिनेमा के दर्शको को याद है हाथी मेरे साथी 'को 1969 से 1971 के बीच राजेश खन्ना की लगातार 17 हिट फिल्मों में से एक गिना जाता है,बेजुबान जानवरों को रुपहले परदे पर इतने शानदार तरीके से दिखाने का प्रयोग हिंदी सिनेमा में इससे पहले नहीं हुआ वाहिनी स्टूडियो में 1970 में फिल्म की शूटिंग शुरू हुई फिल्म के सारे आउटडोर सीन ऊटी में फिल्माए गए राजेश खन्ना की मेहमान भूमिका वाली फिल्म 'अंदाज ' ने एक ऐसी फिल्म का रिकॉर्ड भी बनाया जिसने देश के हर फिल्म वितरण क्षेत्र में 50 लाख रुपये कमाए लेकिन फिल्म 'अंदाज' का ये रिकॉर्ड तोड़ा राजेश खन्ना की ही फिल्म 'हाथी मेरे साथी' ने तोडा दिया जिसने देश के हर वितरण क्षेत्र में एक करोड़ रुपये की कमाई करने वाली पहली फिल्म का रिकॉर्ड बनाया
बच्चों के बीच फिल्म हाथी मेरे साथी का क्रेज इतना था कि स्कूलों की बुकिंग तक हफ्ते हफ्ते भर पहले एडवांस में करानी होती थी कुछ वर्ष पहले मशहूर अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा था 40 साल बाद भी 'हाथी मेरे साथी 'अपने जादू में बेजोड़ है और हिंदी सिनेमा में अभी तक इसकी प्रतिष्ठा और सफलता के बराबर कोई अन्य बाल फीचर फिल्म नहीं बनी है
 
 
'हाथी मेरे साथी' की रिकॉर्डतोड़ सफलता के बाद जानवर और इंसान के रिश्तों पर बनी माँ (1976),जानवर और इंसान (1972),सफ़ेद हाथी (1977) जैसी फिल्मो की बाढ़ सी आ आई हर कोई हाथी मेरे साथी की सफलता को भुनाना चाहता था लेकिन इनमे कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खरी नहीं उतर पाई थी जबकि इन फिल्मो में धर्मेंदर ,शशि कपूर ,शत्रुघ्न सिन्हा जैसे बड़े स्टार थे 'हाथी मेरे साथी' के बाद राजेश खन्ना और तनूजा की जोड़ी एक बार फिर मेरे जीवन साथी फिल्म में एक साथ परदे आई लेकिन यह फिल्म फ्लॉप साबित हुई थी 'हाथी मेरे साथी ' की यह हिट जोड़ी खुद दोबारा वही सफलता नहीं दोहरा पाई 

 राजेश खन्ना का बंगला 'आशीर्वाद'

राजेश खन्ना ने 'हाथी मेरे साथी' बनाने वाले चिनप्पा देवर से पारिश्रमिक के एवज में दी गई रकम से चर्चित 'आशीर्वाद 'बंगला राजेंद्र कुमार से ख़रीदा था उससे पहले इस बंगले के मालिक भारत भूषण थे राजेश खन्ना ने बम्बई के कार्टर रोड पर बने राजेंद्र कुमार के बंगले को 31 लाख में खरीदा इससे पहले राजेंद्र कुमार ने इस बंगले का नाम अपनी बेटी के नाम पर डिंपल रखा था और चूँकि डिम्पल राजेश खन्ना की पत्नी का नाम भी था इसलिए राजेश खन्ना ने बंगले का नाम बदलकर 'आशीर्वाद 'रखा... वो जिंदगी भर यही रहे इसी बंगले में उन्होंने अंतिम साँस ली राजेश खन्ना की अंतिम इच्छा थी कि उनके इस दुनिया से जाने के बाद आशीर्वाद बंगले को एक संग्रहालय बना दिया जाये जहाँ उनके चाहने वाले इनकी यादो से रूबरू हो सके लेकिन ऐसा हुआ नहीं राजेश खन्ना के निधन के दो साल बाद ही राजेश खन्ना के ऐतिहासिक स्टारडम का गवाह रहे इस बंगले को उनकी बेटी ट्विंकल और रिंकी ने बेच दिया 



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