मीना कुमारी और कमाल अमरोही |
शायद ज्यादा लोगो को पता नहीं की इस फिल्म 'अमर (1954) में मधुबाला का 'अंजू 'वाला रोल पहले मीना कुमारी करने वाली थी लेकिन दुर्भाग्यवश ये रोल वो नहीं कर सकी एक दिन मीना कुमारी ने पिता से कहा भी कि कमाल फिल्म 'दायरा ' (1952) बना रहे हैं और इसके लिए उन्हें उनकी जरूरत है हीरो दलीप कुमार के भाई नसीर खान थे और हीरोइन मीना कुमारी को लेना तय हुआ... अली बख्श भड़क गए ...लिहाज़ा उन्होंने मीना से ये फिल्म छोड़ देने को कहा और उनकी सारी शूटिंग डेट महबूब खान की 'अमर 'के लिए दे दी इसे कमाल अमरोही ने अपनी तौहीन समझा और अपनी बेगम मीना से महबूब खान की 'अमर 'छोड़ कर उनकी फिल्म' दायरा 'करने के लिए दबाव डाला इधर महबूब खान ने भी दिलीप ,मीना ,निम्मी को लेकर फ़िल्म "अमर " की शूटिंग शुरू कर दी हालाँकि मीना कुमारी ने कमाल अमरोही और महबूब खान दोनों की फिल्मो में तालमेल बिठाने की कोशिश भी की अभी शूटिंग के कुछ दिन ही बीते थे की मीना कुमारी जी सेट पर देर से पहुंचने लगी महबूब खान ने कुछ दिन तो अनदेखा किया लेकिन उसके बाद मामला गंभीर होता चला गया दिलीप कुमार साब उन दिनो बहुत बिजी स्टार थे सेट पर सारी तैयारियाँ हो चुकी होती थीं और सब बैठकर मीना जी का इंतज़ार करते रहते थे ये सिलसिला कई दिनो तक चला मीना जी से बात की तो उन्होने समय से आने का आश्वासन दिया मगर दूसरे दिन से फ़िर वही देरी से आना हुआ महबूब खान ने गुस्से मे कारण पूछा तो जो कारण मीना जी ने बताया उससे महबूब खान संतुष्ट नहीं हुए बहस शुरू हो गयी और आखिरकार महबूब साहेब ने गुस्से मे शूटिंग का पेक अप कर दिया मीना जी सेट छोड़कर चली गईं उस दिन शूटिंग नही हुयी अक्सर शूटिंग में लेट होने पर उनकी महबूब खान के साथ असहमति पैदा हो गई विवाद बढ़ गया... ..महबूब खान ने मीना कुमारी के वालिद अलीबक्श को कहाँ की ...:"आप फाइनली डिसाइड करे की मीना मेरी फिल्म करेगी या कमाल अमरोही की "... ? इस किस्से को विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर जाये ....
वालिद अलीबक्श ने अपनी बेटी को चेतावनी दी कि अगर वह कमाल अमरोही की शूटिंग के लिए गई तो उसके घर के दरवाजे उसके लिए हमेशा के लिए बंद हो जायेगे लेकिन अगले दिन मीना अपने पति कमल अमरोही की फिल्म की शूटिंग के लिए बॉम्बे टॉकीज के लिए रवाना हो गई एक तरफ बाप और एक तरफ पति की जिद में पिसती मीना कुमारी ने मजबूर बॉम्बे टॉकीज में अपने पति की फिल्म की शूटिंग की जब मीना कुमारी फिल्म 'दायरा ' की शूटिंग से वापस आईं तब उसके पिता ने दरवाजा खोलने से इनकार कर दिया मीना कुमारी ने अपनी कार का रास्ता बदल दिया और अपने वालिद से रिश्ता भी कमाल अमरोही उस समय बम्बई के सायन में रहते थे अगले दिन सवेरे सवेरे मीना जी के पास महबूब खान एक पैगाम पहुंचाया गया की "अमर " फ़िल्म मे अब वो नही हैं और दो दिन के बाद मीना जी की जगेह मधुबाला जी को ले लिया गया कमाल अमरोही की फिल्म 'दायरा 'मुकमल बनी और रिलीज़ भी हुई लेकिन सफल नहीं हो सकी अपने पति के घर पहुंचने के बाद भी मीना की जिदंगी में सुकून नहीं था जहां मैरिड लाइफ बिगड़ने लगी थी,वहीं उनका करियर ऊपर उठने लगा था 1960 के दौरान वे बड़ी स्टार बन गई थी इसी स्टारडम ने उनकी निजी जिदंगी में कड़वाहट भर दी थी एक बार सोहराब मोदी ने अपनी फिल्म के प्रीमियर में मीना कुमारी और कमाल अमरोही को बुलाया वहां चीफ गेस्ट महाराष्ट्र के राज्यपाल थे उनसे परिचय कराते हुए सोहराब मोदी ने कहा ......" ये मीना कुमारी हैं बेहतरीन अदाकारा और ये इनके पति हैं कमाल अमरोही " इस पर कमाल तमतमा गए उन्होंने तपाक से जवाब दिया "मैं कमाल अमरोही हूं और ये मेरी पत्नी मीना कुमारी हैं " यह कह कर वह फंक्शन से निकल गए
मीना कुमारी की सफलता कमाल अमरोही को खटक रही थी दोनों के बीच कड़वाहट इस कदर बढ़ गई कि अमरोही ने मीना कुमारी को फिल्में छोड़ने के लिए कहा। लेकिन मीना ने इनकार कर दिया अमरोही ने मीना पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी थी मीना ने भी इसका विरोध नहीं किया, लेकिन दोनों के संबंध फिर भी नहीं सुधरे इसी बीच कमाल ने फिल्म 'पाकीजा' (1972 ) बनाने की सोची, लेकिन वे भी आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे मीना ने अपनी सारी कमाई देकर पति की मदद की फिल्म बनने के दौरान दोनों के संबंध लगातार खराब होते गए नौबत तलाक तक पहुंच गई थी। मीना की तबीयत भी खराब रहने लगी थी उनका इलाज कर रहे एक डॉक्टर ने सलाह दी कि नींद लाने के लिए एक पेग ब्रांडी पिया करें डॉक्टर की यह सलाह भारी पड़ी ये पेग बढ़ते गए और उन्हें शराब की लत लग गई इस बीच 'पाकीजा' का निर्माण भी रूक गया। लंबे अर्से बाद सुनील दत्त और नर्गिस ने इसकी शूटिंग शुरू करवाई 14 साल बाद 4 फरवरी, 1972 को 'पाकीजा' स्क्रीन पर आई और 31 मार्च, 1972 को मीना दुनिया को अलविदा कह गई
मीना
जी की आदत थी रोज़ हर वक्त जब भी खाली होती डायरी लिखने की वह छोटी छोटी
सी पाकेट डायरी अपने पर्स में रखती थी ,गुलजार जी ने एक बार पूछा उनसे कि
......."यह हर वक्त क्या लिखती रहती हो," तो उन्होंने जवाब दिया कि ........"मैं
कोई अपनी आत्मकथा तो लिख नही रही हूँ बस कह देती हूँ बाद में सोच के लिखा
तो उस में बनावट आ जायेगी जो जैसा महसूस किया है उसको उसी वक्त लिखना अधिक
अच्छा लगता है मुझे" ......... ...और वही डायरियाँ नज़मे ,गजले वह
विरासत में अपनी वसीयत में गुलजार जी को दे गई गुलजार जी ने मीना जी की
भावनाओं की पूरी इज्जत की उन्होंने उनकी नज्म ,गजल ,कविता और शेर को एक
किताब का रूप दिया |.....मीना जी का विश्वास गुलजार पर सही था
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