Wednesday, January 24, 2018

जब सिर्फ सोहराब मोदी के कारण के.आसिफ के हाथो से " मुगले-ए-आजम " फिसलने से बच गई

के.आसिफ

करीमउद्दीन आसिफ यानि के.आसिफ एक बेहद दिलचस्प व्यक्तित्व का नाम था उनका व्यक्तित्व ही ऐसा है कि यदि कोई एक बार उनसे मिल ले तो उन्हीं का हो जाता था कब क्या कर बैठे सामने वाले को भी पता नहीं चलता था प्रसिद्ध लेखक सआदत हसन मन्टो से कहानी लिखवाने के लिये एक बार के.आसिफ उनके घर गये और उन्हें अपनी फिल्म के लिये कोई कहानी सुनाने के लिये कहा मन्टो ने सिगरेट के कश लगाने वाले इस चेनस्मोकर को मजा़क में कहा कि " मंटो से कहानी सुनने आये हो तो मिठाई ,विठाई तो लानी चाहिए थी " के.आसिफ ने सिगरेट का कश लगाया और मन्टो को बिना कुछ कहे घर से निकल गये मन्टो ने उन्हें रोकने की कोशिश की परन्तु के.आसिफ नहीं रुके मंटो अभी इस उधेड़बुन में ही थे की "ये आदमी आखिर गया कहाँ ?  कुछ देर बाद मन्टो ने देखा कि के.आसिफ. मिठाई, नमकीन और फलों से लदे फंदे रिक्शे पर चले आ रहे हैं

कुछ लोग मानते है की के.आसिफ का जन्म ही "मुग़ले- ए-आज़म "(1960) के बनाने के लिए हुआ था हिंदी सिनेमा के इस महाकाव्य को भव्य तरीके से रचने के लिए उन्होंने किसी से भी समझौता नहीं किया अपने आप से भी नहीं.......... मुगले-ए-आजम के.आसिफ के लिए केवल फिल्म नहीं एक जुनून थी फिल्म से जुड़ी उनकी फर्राखदिली की कई कहानियां आज तक चर्चित हैं और बड़े चाव से सुनी और सुनाई जाती है 1950 में के.आसिफ ने जब मुगल-ए-आजम की शूटिंग शुरू की तो उससे पहले उन्होंने केवल एक फिल्म फूल (1945) का निर्देशन किया था वहीं मिनर्वा मूवीटोन के शेर कहे जाने वाले सोहराब मोदी जी 1950 तक एक दर्जन से ज्यादा फिल्मों का निर्देशन कर चुके थे.....बहुत कम लोग जानते हैं कि ऐतिहासिक फिल्मों के लिए याद किए जाने वाले सोहराब मोदी की एक ना का हिन्दी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक फिल्मों में शुमार की जाने वाली फिल्म मुगल-ए-आजम के निर्माण में अहम भूमिका रही थी सोहराब मोदी ने मुगल-ए-आजम के निर्देशक के.आसिफ को फिल्म से निकाले जाने से बचाया था 

फिल्म मुग़ले ए आज़म के सेट पर दलीप कुमार और निगार सुल्ताना के साथ के.आसिफ

दरअसल बात ये थी की ......के.आसिफ मुगले-ए-आजम को भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे शानदार फिल्म बनाना चाहते थे वो इस फिल्म के निर्माण में किसी तरह का समझौता नहीं करना चाहते थे .... के.आसिफ के “परफेक्शनिस्ट” रवैये के कारण फिल्म का निर्माण खिंचता जा रहा था साथ ही साथ इसमें लगने वाली लागत भी बढ़ती जा रही थी शापूरजी पालनजी मिस्त्री जब भी उनसे फिल्म को जल्दी बनाने को कहते तो के.आसिफ सिगरेट का लम्बा कश खिंच कर बस यही कहते ...... " चिंता न करे सब हो जायेगा " .... फिल्म की  लगातर बढ़ती लागत से इसके निर्माता शापूरजी पालनजी मिस्त्री का धैर्य जवाब दे गया उन्होने तय किया कि वो के.आसिफ को हटा कर बाकि फिल्म का निर्देशन किसी और निर्देशक से कराएंगे उस दौर का हर निर्देशक अभिनेता को सोहराब मोदी की ऐतिहासिक फिल्मो का हवाला दिया करता था शापूरजी पालनजी मिस्त्री को लगा की मुग़ले ए आज़म जैसी ऐतिहासिक फिल्म के साथ सोहराब मोदी ही इन्साफ कर सकते है उन्होंने ठान लिया  की वो आसिफ की लेटलतीफी और सहन नहीं करेंगे मुगले-ए-आजम के निर्देशन के लिए सोहराब मोदी को लेना तय हो गया .... दोनों के बीच कई मीटिंग हुई .......आखिर बात पक्की हो गयी..
.

फिल्म को हाथ में लेने से पहले सोहराब मोदी मुगल-ए-आजम का सेट देखने गए लौटते समय उनकी गाड़ी खराब हो गयी तो शापूरजी ने अपने ड्राइवर को उन्हें घर छोड़ने के लिए कहाऔर इस छोटे से सफर में इतिहास का एक यादगार पन्ना लिखा गया शापूर जी का ड्राइवर रास्ते में सोहराब मोदी से कहने लगा कि ......“ साहब, आसिफ मियां भी अजीब आदमी है यहां शूटिंग पर अनारकली के लिए असली हीरे-मोती की जिद करता है लेकिन खुद उसके पास केवल दो जोड़ी कुर्ता-पाजामा है यहां दिन में हीरे-पन्नों और महलो की बात करता है, लेकिन खुद एक छोटे से घर में रहता है ......सोता भी चटाई पर है .... इतना ही नहीं जब पैसे मिलते है तो दोस्तों और स्टूडियो के मजदूरों में बांट देता है साहब ये के आसिफ बड़ा भला आदमी है बस थोड़ा सनकी है "........गाड़ी में ड्राइवर की बात का सोहराब ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उसकी बात उनके दिल में घर कर गई वो खामोशी से के.आसिफ के बारे में सोचते रहे अपने घर पहुंचने तक सोहराब मोदी अपना मन बना चुके थे घर पहुंचकर उन्होंने शापूरजी को फोन लगाया और "मुगल-ए-आजम "का निर्देशन करने से इनकार कर दिया सोहराब मोदी ने शपूरजी को ये सलाह भी दी ..." अगर आप अपनी फिल्म का भला चाहते हैं तो किसी और को इस फिल्म का निर्देशन मत दीजिएगा मुग़ले आज़म को केवल के.आसिफ ही बना सकता है ये फिल्म सिर्फ के.आसिफ की ही है  ".... अब जब सोहराब मोदी जैसा शख्स  ये बात कर रहा था तो इंकार का सवाल ही नहीं उठता था और फिर सोहराब मोदी के आलावा मुगले-ए-आज़म को वो किसी और के हांथो में नहीं सौंप सकते थे शापूरजी ने सोहराब मोदी की बात मान ली और इस तरह के.आसिफ के हाथ से मुगले-ए-आजम फिसलने से बच गई


ये के.आसिफ का जूनून ही था की फिल्म में मुहब्बत से लेकर जंग तक का ऐसा शानदार नजारा दर्शको देखने को मिला ...400 हाथी ,2000 ऊँट ,4000 घोड़े और 8000 पैदल सैनिक का हजूम जुटाना बेहद मुश्किल था इसके लिए के.आसिफ ने तमाम इंतज़ाम किये युद्ध के सीन को कुल सोलह कैमरों से फिल्माया गया था उनकी गुजारिश पर तब के भारत के रक्षा मंत्री श्री वी.के कृष्णा मेनन ने जयपुर में तैनात भारतीय सेना की इंफेंटरी डिवीज़न के घुड़सवार और सैनिक शूटिंग पर भेजने को राजी हुए सिनेमा के इतिहास में ये पहली बार हो रहा था की किसी फिल्म की शूटिंग में भारतीय सेना के जवान और घोड़े शामिल हो रहे था उसके बाद जो हुआ इतिहास है जब 1960 में मुगले-ए-आजम रिलीज हुई तो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई.....लोग करीमउद्दीन आसिफ के जूनून को देख कर आज भी कहते है की..." खुदा ने उन्हें "मुग़ले ए आज़म " बनाने के लिए ही इस धरती पर पैदा किया था " ....

                                    हजारो साल नरगिस ,अपनी बेनूरी पे रोती है !!
                                    बड़ी मुद्दत से होता है चमन में दिलावर पैदा !!
                                     ऐसे महा मानव को हमारा हजारो सलाम !




              
                                                                     पवन मेहरा  
                                                     (सुहानी यादे बीते सुनहरे दौर की  )
 
 

2 comments:

  1. Baah baah baah.. bus aur kuchh nhin.. jitana zyada junoon aasif sahab ko tha utana hi junoon aapko bhi hai Pawan Sir.. shandar jankari ka shukriya.

    ReplyDelete