झांसी की रानी (1953 ) |
अगर कभी ईमानदारी से भारतीय सिनेमा का इतिहास लिखा जायेगा तो उसमे एक पूरा
अध्याय 'सोहराब मोदी ' जी का होगा अपनी बुलंद आवाज ही नहीं अपने बुलंद इरादो
के लिए भी सोहराब मोदी जी जाने जाते है पारसी होने के बावजूद भी वो जिस
अंदाज़ में हिंदी और उर्दू बोलते थे दर्शक हैरान रह जाते थे .....सोहराब
मोदी जी का बचपन रामपुर में बीता था जहां उनके पिता नवाब के यहां अधीक्षक थे
नवाब रामपुर का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था रामपुर में ही सोहराब मोदी जी ने
फर्राटेदार उर्दू सीखी वहीं उन्होंने संवाद को गंभीर और सधी आवाज में बोलने
का लहज़ा भी सीखा जो बाद में उनकी विशेषता बन गयी नवाब साहेब का
महल बहुत ही भव्य और आलीशान था इस महल की भव्यता को देख कर ही सोहराब मोदी
जी को भव्य इतिहासिक फिल्मो को बनाने की प्रेरणा मिली मानो इस महल की
स्मृतिया सोहराब मोदी को कटोच कटोच कर ये कहती हो की भारत की भव्यता और
समृद्ध इतिहास को करोडो देशवासियों तक पहुंचने का जिम्मा अब उनका है सोहराब मोदी जी ने कुछ मूक फ़िल्मों के अनुभव के साथ एक पारसी रंगमंच से बतौर अभिनेता के रूप में शुरुआत की थी.........जब उन्होंने अपने स्वर्णिम इतिहास के पन्नो को टटोला तो इतनी समृद्ध विरासत देखकर हैरान रह गए और उन्होंने इसे सिनेमा के माध्यम से आम जन तक पहुंचने का बीड़ा उठाया सोहराब मोदी जी ने सन 1935 में 'स्टेज फ़िल्म कंपनी ' की स्थापना की थी 1936
में स्टेज फ़िल्म कंपनी 'मिनर्वा मूवीटोन' हो गयी और इसका प्रतीक चिह्न शेर
हो गया प्राचीन रोम के ग्रंथो में कला और व्यवसाय की देवी को "मिनर्वा "के
नाम से जाना जाता है ....जेलर (1938) , डाइवोर्स (1938), पुकार (1939),भरोसा (1940) सिकंदर (1941)
,शीशमहल (1950) ,कुंदन (1955) ,राजहठ (1956) ,नौशेरवा-ए-आदिल (1957) जैसी
फिल्मो का निर्माण उन्होंने मिनर्वा मूवीटोन के अंतर्गत किया ऐतिहासिक
फ़िल्में बनाने में वे सबसे आगे थे
सोहराब मोदी की 6 जनवरी 1953 में रिलीज फिल्म ‘झांसी की रानी ईस्टमैनकलर
में बनायी गयी पहली भारतीय फिल्म थी 'झांसी की रानी ' ने भारत में रंगीन
फिल्मों के उस युग की शुरुआत कर दी जिसने भारतीय सिनेमा के पर्दों को
रंग-बिरंगा कर दिया। सोहराब मोदी द्वारा निर्देशित झाँसी की रानी का
निर्माण मिनर्वा मूवीटोन के बैनर ने किया गया था भारत की पहली टेकनीकलर फ़िल्म ‘झांसी की रानी’ को सोहराब मोदी ने बड़ी लगन से बनाया था तकनीशियनों, सेट,और युद्ध के दृश्यों पर दिल खोलकर खर्च किया इसके लिए वे हालीवुड से तकनीशियन और साज-सामान लाये थे इस फिल्म को बनाने में मिनर्वा मूवीटोन ने काफी पैसा खर्च किया सोहराब मोदी जी ने अपनी सबसे महत्वकांक्षी फिल्म ‘झांसी की रानी' बनाने से पूर्व एक विशाल रिसर्च टीम बनाई जिसने सोहराब मोदी के निर्देश पर ग्वालियर,चंदेरी,मेरठ दिल्ली,लखनऊ,कोलकाता का दौरा किया और लगभग 70 इतिहासकारो से मिलकर 3500 पन्नो की रिपोर्ट सोहराब मोदी को सौंपी फिल्म के 32 मुख्य कलाकारों के लिए 1400 साक्षात्कार लिए गए रानी लक्ष्मी बाई फिल्म को भव्य बनाने के लिए 2100 पुरुष सैनिको ,4200 महिलाओं ,200 बच्चो, 5007 घोड़ो ,300 ऊँटो ,200 हाथियों, 50 बैलगाड़ियों, 3600 तलवारो , 600 बंदूकों, 1000 ढालो ,1100 भालो और लगभग 11500 किलो बारूद का इस्तेमाल किया 65 साल पहले बनी इस फिल्म में लगभग 75 लाख रुपये खर्चा आया ये एक हिन्दी ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म है इसमें सोहराब मोदी की पत्नी मेहताब
ने झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की भूमिका की थी सोहराब मोदी
राजगुरु ( शाही सलाहकार ) बने थे फिल्म 1857 के विद्रोह की पृष्ठभूमि
पर आधारित थी 19 वीं सदी में अंग्रेजों के खिलाफ सेना का नेतृत्व करने वाली
झांसी की बहादुर रानी लक्ष्मीबाई के बारे में थी इस फिल्म को अंग्रेजी में भी
डब किया गया था मोदी ने विदेशी बाजार के लिए इसका एक अंग्रेजी संस्करण
"टाइगर एंड दि फ्लेम " के नाम से 1956 में संयुक्त राज्य अमेरिका में जारी
किया गया लेकिन यह भारत में प्रदर्शित ही नहीं हो पाया अंग्रेजी संस्करण में कोई गीत नहीं था
पंडित एस.आर दुबे और पंडित गरीश ने बड़े शोध के बाद इसे एक पटकथा का रूप दिया यह फिल्म झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी के बारे में है जिसने हथियार उठाए और महिला होते हुए भी अंग्रेजों के खिलाफ अपनी सेना का नेतृत्व किया वह ऐसा करने वाली पहली क्रन्तिकारी महिलाओं में से एक थी .........इस फिल्म की कहानी 1857 के विद्रोह की आग में सुलग रहे भारत के झांसी रजवाड़े की है जिसे अंग्रेज़ किसी भी कीमत पर हड़पने पर आमादा है राजगुरु (सोहराब मोदी) का फैसला है कि झांसी को इतिहास में इसकी उचित मान्यता मिलनी चाहिए और वो किसी के अधीन नहीं रह सकते वह एक युवा लड़की मनु ( बेबी शिखा ) को राजगद्दी संभालने के तौर तरीके सिखाते है मनु के पिता को अंग्रेज़ो ने चालाकी से मार दिया था वह अंग्रेज़ो से मुकाबला करने के लिए कुछ बच्चों को इकट्ठा करती है मनु राजगुरु को प्रभावित करती है झांसी के बड़े शासक गंगाधर राव ( मुबारक ) से उसकी शादी होती है और वो और रानी बन जाती है मनु राजगुरु से शारीरिक लड़ाई और राजनीतिक प्रशासन और युद्ध कौशल के गुण
सीखती है राजगुरु मनु को अस्त्र शस्त्र का प्रशिक्षण देकर मजबूत बनांते है मनु जिसे अब लक्ष्मीबाई ( मेहताब ) कहा जाता है शादी के बाद वह एक मृत लड़के को जन्म
देती है। राजगुरु की सलाह मान झाँसी को अंग्रेज़ो के अधीन जाने से बचाने के
लिए लक्ष्मीबाई एक लड़के दामोदर राव को गोद ले लेती है जिसे अंग्रेज झाँसी रियासत के
उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार करने से इंकार कर देते है यही से वो जंग शुरू होती है जिसमे रानी लक्ष्मी बाई अपनी झाँसी को बचाते हुए अपने बच्चे के साथ शहादत दे देती है और वीरगति को प्राप्त होती है
सोहराब मोदी और मेहताब |
मेहताब और सोहराब मोदी के अलावा अन्य कलाकार मुबारक, बेबी, उल्हास, सप्रू,
राम सिंह, बेबी शिखा, मार्कोनी, और शकीला भी इस फिल्म में शामिल थे।फिल्म का संगीत वसंत देसाई ने दिया था हिंदी संस्करण में वसंत देसाई और पंडित
राधेश्यम के गीत थे प्लेबैक गायक मोहम्मद रफी, सुलोचाना कदम, सुमन पुरोहित,
परशुराम और पी.रमाकांत थे। मोहम्मद रफी की आवाज़ में दो गाने उल्लेखनीय
हैं: "अमर है झांसी की रानी" और "राजगुरु ने झांसी छोडी" ही छाप छोड़ पाये बाकि के अन्य गाने साधारण थे
इस फिल्म को हॉलीवुड के
Russell Lloyd ने एडिट किया था इस फिल्म को बनाने में मिनर्वा मूवीटोन ने काफी पैसा खर्च किया और अधिकतर साजो समान विदेशो से मंगवाया गया हॉलीवुड के टेक्नीशियन ने युद्ध के दृश्यों को सजीव कर दिया इस भव्य और ऐतिहासिक फिल्म को बनाने का खामियाज़ा सोहराब मोदी को भुगतना पड़ा फिल्म को प्रेस की प्रशंसा तो मिली लेकिन ये बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं पाई सोहराब मोदी वित्तीय संकट में फँस गए फिल्म के न चलने के लिए फिल्म समीक्षक मेहताब को दोषी मानते है जिसको सोहराब मोदी ने रानी लक्ष्मी बाई के रोल के लिए चुना गया था मेहताब की उम्र उस वक्त 35 वर्ष के करीब थी फिल्म में चरित्र और मेहताब की उम्र का फर्क इस रंगीन फिल्म में छुप ना सका और वो रानी लक्ष्मी बाई के मुख्य रोल में फिट नहीं बैठी मेहताब ने 1941 में केदार शर्मा की फिल्म 'चित्रलेखा' में एक बाथ सीन देकर सुर्खिया बटोरी थी महताब का असली नाम 'नजमा' था और वो गुजरात की एक मुस्लिम फैमिली से थी और उन्होंने 28 अप्रैल 1946 में अपने जन्मदिन के दिन ही अपने पहले पति अशरफ खान से तलाक लेकर सोहराब मोदी से विवाह किया था फिल्म वितरकों में मेहताब को लेने पर आपत्ति भी जताई थी लेकिन सोहराब मोदी ने उनकी बातो को कोई महत्त्व नहीं दिया झाँसी की रानी के फ्लॉप होने का मलाल सोहराब मोदी को जीवन भर रहा लेकिन वो
अपनी इस फिल्म से बेहद लगाव रखते थे 1983 में वो जब फिल्म' रजिया सुल्तान' की
शूटिंग कर रहे थे तो उन्होंने हेमा मालिनी से कहा था की अगर वो कभी अपनी
फिल्म 'झाँसी की रानी' का रीमेक बनायेगे तो लक्ष्मी बाई के रोल में उन्हें ही
लेंगे लेकिन उनकी ये इच्छा कभी पूरी न हो सकी
झांसी की रानी भले ही व्यवसयिक सफलता प्राप्त नहीं कर सकी पर 1953 में
सोहराब मोदी द्वारा निर्मित तथा निर्देशित फिल्म "झाँसी की रानी" का मूल
प्रिंट राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय (National Film Archive of India) पूना
में आज भी सुरक्षित है। इस फिल्म को भारतीय फिल्मो की पढाई करने वाले
स्टूडेंट को शोध के लिए भी दिया जाता है क्योंकि ये भारत की शुरुआती रंगीन फिल्मो में से एक थी भारतीय सिनेमा के "पितृ पुरुष "कहे जाने वाले सोहराब मोदी जी का दक्षिण
मुंबई में बनाया सिनेमाघर ‘न्यू एम्पायर’ भी था जो अब बंद हो गया
है इसे 21 फरवरी 1908 में बनाया गया था एक हजार सीट वाले इस
सिनेमाघर में पहले अंग्रेजी और हिंदी ड्रामा होते थे। 1937 से जब फिल्मों
का प्रदर्शन शुरू हुआ इसमें बड़े अच्छे एकॉस्टिक सिस्टम लगे थे
जिनसे साउंड और पिक्चर क्वालिटी परफेक्ट आती थी इसी वजह से 60 से 80
के दशक तक हॉलीवुड का पैरामाउंट स्टूडियो अपनी सब फिल्में ‘न्यू एम्पायर’
में ही लगाता था काश भारत सरकार सोहराब मोदीजी जी की इस आखरी निशानी
को सहेज पाती सोहराब मोदी जी भारतीय सिनेमा के नभ पर वो दो
दशक तक छाए रहे मेरा व्यक्तिगत रूप से ये मानना है है की हमारी फिल्म
इंडस्ट्री ने सोहराब मोदीजी के साथ न्याय नही किया उन्हें फिल्म
इतिहास में जितनी जगह मिलनी चाहिए थी उतनी उन्हें मिली .....बावजूद इसके फिर भी जब जब भी हिस्टोरिकल फिल्मो की चर्चा की जाएगी वो सोहराब मोदी के जिक्र के बिना अधूरी समझी जाएगी क्योंकि जिस तरह से उन्होंने हमारे इतिहास को गौरवांतित करने वाले पात्रो को सिनेमा के सुनहरे परदे पर बाजारवाद को दरकिनार कर सजीव करने का जोखिम लिया उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है
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