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' बम्बई का बाबू ' का आरम्भिक पोस्टर |
1948 के लगभग
चेतन आनंद, देवानंद और
विजय आनंद पाली हिल में एक साथ रहते थे जल्द ही राज खोसला भी इसी परिवार के साथ रहने लगे
राज खोसला फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे उनके पारिवारिक मित्र और अभिनेता देवानंद ने राज खोसला को अपनी फिल्म
बाजी (1951) में गुरूदत्त के सहायक निर्देशक के तौर पर नियुक्त कर दिया वर्ष 1954 में राज खोसला को स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर फिल्म
'मिलाप '(1955) को निर्देशित करने का मौका मिला देवानंद और गीताबाली अभिनीत फिल्म 'मिलाप 'की सफलता के बाद बतौर निर्देशक राज खोसला फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए व 1960 में राज खोसला ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और 'बंबई का बाबू ' का निर्माण करने का निर्णय किया '
बम्बई का बाबू (1960 )' में पहले बतौर नयिका
मधुबाला को साइन किया गया मधुबाला ने ये फिल्म साइन भी कर ली और कुछ रील की शूटिंग भी की लेकिन अचानक मधुबाला ने 'बंबई का बाबू ' में काम करने से इंकार कर दिया
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देवानंद और सुचित्रा सेन फिल्म 'बम्बई का बाबू ' के एक दृश्य में |
मधुबाला के निर्णय से सब हैरान थे मधुबाला ने फिल्म में काम न करने की वजह इसकी कहानी को बताया दरअसल इस फिल्म का कथानक उस समय के हिसाब से काफी बोल्ड और नया था यह फ़िल्म प्रसिद्ध अमरीकी लेखक
ओ. हॅनरी की एक लघु कथा
A Double Dyed Deceiver से प्रेरित थी जिसमे भाई बहन की अनोखी कहनी का चित्रण था मधुबाला के फिल्म छोड़ने की वजह यही थी बम्बई का बाबू से पहले देवानंद और मधुबाला की फिल्म
काला पानी (1958 ) हिट हो चुकी थी और दोनों
निराला ( 1950), आराम (1951) , जैसी फिल्मे भी कर चुके थे और बम्बई का बाबू में नयिका का रोल देवानंद की बहन का शेड लिए हुए था फिल्म में नायक नायिका के मध्य एक गलतफहमी है जिसे सिर्फ नायक जानता है परन्तु नायिका इस सच से अनभिज्ञ है और नायक को अपना भाई मानती है इस बात से मधुबाला की के पिता अताउल्लाह खान को सख्त एतराज़ था वो नहीं चाहते थी की मधुबालां उस समय के एक सुपरहिट अभिनेता देवानंद की बहन का रोल करे मधुबाला के इंकार से राज खोसला के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई उन्होंने मधुबाला को विस्तार से रोल बता भी दिया था फिल्म के आरम्भिक कुछ सीन शूट हो चुके थे फिल्म के पोस्टर और फ़िल्मी पत्रिकाओं मधुबाला की तस्वीर छप चुकी थी जिसमे मधुबाला को ही 'बम्बई का बाबू ' फिल्म की नायिका दिखाया गया है ऐसे में नुकसान होना लाज़िमी था
उन्होंने इस फिल्म के सह निर्माता
जाल मिस्तरी से बात की और उन्हें मधुबाला के निर्णय से अवगत कराया मधुबाला के प्रशंसक रहे निर्माता जाल मिस्तरी अड़ गए की मधुबाला ही ये फिल्म करेगी नहीं तो फिल्म नहीं बनेगी काफी दिनों तक जाल मिस्तरी को मनाने के बाद अन्त में राजखोसला ने मधुबाला से कुछ हद तक मिलती जुलती बांग्ला और हिंदी की अभिनेत्री
सुचित्रा सेन का नाम उन्हें बताया जिन्होंने तब तक चंद हिंदी फिल्मे ही की थी और बांग्ला फिल्मो में व्यस्त थी राज खोसला ने उन्हें आश्वस्त किया की जब आप फिल्म में सुचित्रा सेन को देखेंगे तो आप को मधुबाला की याद जरूर आएगी जाल मिस्तरी मान गए और ऐसा हुआ भी अगर आप ये फिल्म देखेंगे तो फिल्म के कई दृश्य और सुचित्रा सेन के हँसने का अंदाज़ आपको भी मधुबाला की याद दिलाएगा इस फिल्म में सुचित्रा सेन की जैसी खूबसूरती उभर कर आई थी उसे दर्शको ने पहले कभी नहीं देखा था इस प्रकार राज खोसला ने फिल्म 'बम्बई का बाबू ' सुचित्रा सेन के साथ पूरी की राजिंदर बेदी ने देव आनंद और सुचित्रा सेन के मध्य ऐसे दृश्य और ऐसे संवाद रचे हैं जो दर्शको को विस्मित कर देने के साथ तनाव से भी भर देते है मजरूह सुल्तानपुरी ने गजब गीत लिखे और सचिन देब बर्मन ने ऐसी धुनें बनाई हैं जो पचास साल भी फिजां में ताजगी घोल देते है बम्बई का बाबू का संगीत जबरदस्त हिट भी हुआ हिंदी फिल्म संगीत के इतिहास में सबसे अच्छे कुछ कोरस गीतों में 'बम्बई का बाबू 'के दो गीत शामिल हैं हांलाकि फिल्म दर्शको और आलोचको के बीच सराही गई लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इसे अपेक्षित कामयाबी नही मिल पाई। फिल्म की असफलता से राज खोसला भी आर्थिक तंगी में फंस गए नायक-नायिका के भाई-बहन दिखाए जाने को दर्शकों ने स्वीकार नहीं किया हालाँकि
ओ. हॅनरी की मूल कहानी से फिल्म का कलाइमेक्स अलग था अंत में नायक कुंदन अपने दोस्त की बहन माया की शादी करवा कर अपना फ़र्ज़ निभाता है जिससे वो बेहद प्यार भी करता था नायक को को पता है कि वह कुंदन नहीं है और इसीलिये वह अपने अंदर माया के प्रति उत्पन्न प्रेम के भावों को रोक नहीं पाता बस इसी बात को अभिनेत्री मधुबाला और हिंदी सिनेमा के दर्शको ने स्वीकार नहीं किया नतीजा फिल्म नहीं चली लेकिन सत्तर के दशक में बी.आर.चोपडा के पुत्र
रवि चोपडा ने जब निर्देशन की कमान संभाली तो उन्होंने बम्बई का बाबू के कथानक को कम तनाव उत्पन्न करने वाला बनाकर
अमिताभ और
सायरा बानो को लेकर
जमीर (1975 ) फिल्म का निर्माण किया लेकिन इसे भी ज्यादा सफलता नहीं मिली लेकिन जिस तरह से राजखोसला ने कहानी से प्रयोग कर 'बम्बई का बाबू ' को हिंदी सिनेमा की एक बिल्कुल भिन्न फिल्म बना दिया उसके कथानक की बराबारी न तो इससे पहले बनने वाली हिंदी फ़िल्में कर सकती हैं न बाद में बनने वाली कोई फिल्म कर सकेगी
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'बम्बई का बाबू ' के सेट पर मधुबाला ,चेतन आनंद और राज खोसला |
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