‘आनंदमठ’- (1952) |
जब
हमारा
हिंदुस्तान
गुलामी
की
जंजीरो
में
जकड़ा
खड़ा
था
तो
देश
की
आज़ादी
की
लड़ाई
में
हिंदी
सिनेमा
ने
भी
अपनी
महत्वपूर्ण
भूमिका
निभाई
..... बंधन
(1940) ,शहीद (1948) ,किस्मत (1949
) आदि
फिल्मों
के
माध्यम
से
ब्रिटिश
हकूमत
के
खिलाफ
हिंदी
सिनेमा
ने
अपनी
आवाज़
बुलंद
की
भी
इस
आवाज़
को
अंग्रेज़ो
ने
अपने
दमन
चक्र
से
दबाया
भी
.....कई
फिल्में
अंग्रेज़ो
ने
सेंसर
कर
दी
और
कवि
प्रदीप
और
अन्य
कई
कलाकारों
को
भूमिगत
भी
होना
पड़ा
लेकिन
ऐसी देशभक्ति से
परिपूर्ण
फिल्मे
आती
रही
और
देश
भक्ति
का
जज्बा
जागती
रही
फिर
वो
सुनहरा
दिन
भी
आया
जब
देश
ब्रिटिश
दासता
से
मुक्त
हुआ
लेकिन देशभक्ति से
परिपूर्ण
फिल्मो
का
आना
जारी
रहा
और
और
हमारे
फ़िल्मकार
इन
फिल्मो
में
माध्यम
से
बेनाम
शहीदों
को
अपनी
भावपूर्ण
श्रद्धांजलि
देते
रहे
वास्तव
में
ये
फिल्मे
उस
दौर
के
इतिहास
को
जानने
और
समझने
का
बेहतर
विकल्प
है
किताबो
और
दस्तावेज़ों
से
इतिहास
की
जानकारी
केवल
शिक्षित
व्यक्ति
ही
ले
सकता
है
लेकिन
ऐतिहासिक
फिल्मे
सबके
लिए
उपलब्ध
है
बशर्त
की
उन
फिल्मो
में
इतिहास
को
तोडा
मरोड़ा
न
गया
हो
30 जून
1952 को
रिलीज़
हुई
'आनन्दमठ'
फिल्म
में
बंकिम
चंद्र
चटोपाध्याय
ने
अंग्रेज़ो
की
चूले
हिला
देने
वाले
मशहूर
'सन्यासी
आंदोलन
' के
उन
अनाम
शहीदों
को
याद
किया
गया
है
जिसके
बारे
में
आज
भी
शायद
देश
के
लोग
ज्यादा
नहीं
जानते
"आनन्दमठ
" देश भक्ति जा
जज्बा
जगाने
वाली
फिल्म
है
जिसे
सन
1872 में
प्रकाशित'
बंकिम
चंद्र
चटोपाध्याय
'द्वारा
लिखित
कालजयी
कृति ‘आनंदमठ’ पर
बनाया
गया....
'सन्यासी
आंदोलन
' पर
बनी
ये
पहली
और
शायद आखरी
फिल्म
है
'आनन्दमठ '' मूल उपन्यास |
आम तौर पर हमारे इतिहास में मई 1857 के विद्रोह को भारत का पहला 'स्वाधीनता संग्राम' कहा गया है लेकिन उससे पहले 1770 में हुए इस 'संन्यासी विद्रोह ' को अंग्रेज़ इतिहासकार अपनी सुविधानुसार सन्यासियों के भेष में सिर्फ लुटेरों की लूटमार ही बताते रहे है जो सही नहीं है इसी बात को प्रमुखता से फिल्म 'आनंदमठ ' के निर्माता हेमेन गुप्ता ने फिल्म में दर्शाया है ये फिल्म बंगाल अकाल की उसी विभीषका और अंग्रेज़ो के विरुद्ध लड़े गए 'सन्यासी आन्दोलन ' को एक सच्ची श्रद्धांजलि है जिसे हमारे इतिहास में वाजिब और सम्मानजनक स्थान कभी नहीं मिला
भारत भूषण और रंजना |
फिल्म 1770 में बंगाल में पड़े भीषण अकाल से प्रारम्भ होती है ...आधी आबादी अकाल और महामारी की भेंट चढ़ चुकी है जब लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे है और एक दूसरे को ज़िंदा भूनकर खा रहे है क्या राजा और क्या रंक सब यहाँ-वहाँ सुरक्षित जगह की तलाश में भाग रहे है एक तो खाने के लाले दूसरे खेती से अन्न उत्पन्न न होने पर भी अंग्रेजों द्वारा लगान का दबाव उन्हें मरने मारने पर मजबूर कर रहा है ......राजा महेन्द्र ( भारत भूषण ) और कल्याणी ( रंजना ) अपने अबोध शिशु को लेकर राज्य से दूर जाना चाहते हैं क्योंकि यहाँ लूट-पाट-डकैती आदि की घटनाएँ हो रही है ,डकैतों द्वारा कल्याणी को पकड़ लिया जाता है पर वह जान बचाती दूर जंगल में भटक जाती है। और राजा महेन्द्र को अंग्रेज़ सिपाही पकड़ लेते हैं ,भवानन्द नामक संन्यासी उसकी रक्षा करता है। भवानन्द (अजीत ) आत्मरक्षा में अंग्रेज सिपाहियों और जरनल को मार देता है वहाँ दूसरा संन्यासी जीवानन्द पहुँचता है। भवानन्द और जीवानन्द ( प्रदीप कुमार ) दोनोंसन्यासी प्रधान सत्यानन्द ( पृथ्वी राज कपूर ) के शिष्य हैं जो ’आनन्दमठ‘ नामक आश्रम में रहकर देश सेवा और मानवता के लिए निरंतर कर्म कर रहे है
सत्यानंद ने साधु सन्यासियों की एक टोली बनाई है इस टोली को वे 'सन्तान 'कहते है सत्यानंद कल्याणी को भी खोज कर अपनी शरण में ले लेते है। महेन्द्र भी मातृभूमि की मुक्ति के लिये कुछ करना चाहता है। महेन्द्र भी अपनी पत्नी कल्याणी की इच्छानुसार इन सन्यासियों की टोली में शामिल हो जाता है। .......इधर राज्य में अकाल की भीषणता बढती जाती है। आनंदमठ के संन्यासियों द्वारा अंग्रेज़ो से लूटा अन्न और सामान भूखो लाचारों को बाँट दिया जाता है ,.....इसी बीच वारेन हैंस्टिंग्ज को ब्रिटेन द्वारा भारत का प्रथम गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया है जिसे हर हाल में इन संन्यासियों को ख़त्म करने को कहा गया है वह इन सन्यासियों को ख़त्म करने के लिये 'कैप्टन थॉमस ' को भेजता है। अंग्रेजों के सिपाही भवानंद ,सत्यानंद को पकड़ लेते हैं। रस्सियों से बांधकर दोनों को एक बैलगाड़ी में पटक देते हैं।...... इस बैलगाड़ी में सरकारी खजाना भी मौजूद है।... भवानंद ,सत्यानंद दोनों भाग निकलने में सफल हो जाते हैं। और अंग्रेजों का खजाना भी लूट लेते हैं इस लड़ाई में 'कैप्टन थॉमस ' मारा जाता है ....लेकिन भवानंद भी वीरगति को प्राप्त हो जाता है .......जीवानंद की पत्नी शांति ( गीता बाली ) भी एक बहादुर योद्धा है। .....वह मर्दाने वेश में घूम-घूम कर दुश्मनों की टोह लेती है। अंग्रेज अधिकारियों की आँख में धूल झोंकने के लिए वह दाढ़ी- मूछ लगाकर घूमती है। सत्यानन्द को दुश्मन की खबर उससे बराबर मिलती रहती है। .........अंत में अंग्रज़ो के साथ संघर्ष में जीवानंद भी मातृभूमि पर शहीद हो जाता है जीवानंद मरते समय आनंदमठ की सभी सन्तानो ले साथ ' 'वन्देमातरम ' गीत गाकर अपनी मातृभूमि की अंतिम आराधना करता है
गीता बाली और प्रदीप कुमार |
मुखिया सत्यानंद कहता है की ये लड़ाई अब नहीं रुकेगी उन्हें एक मन्त्र मिल गया है "वन्देमातरम " ....इसी के सहारे अब ये लड़ाई लड़ी जाएगी और सत्यानंद अंग्रेज़ो से लड़ने के लिए सन्यासियों और युवा वर्ग को तैयार करने का संकल्प लेता है सत्यानंद को मातृभूमि से कितना प्रेम है यह इस बात से साफ़ हो जाता है। जब वो कहता है की ........"हमारी तो बस एक ही माँ है और वह है मातृभूमि। ....न हमारी और कोई माँ है,...न पिता ,न पत्नी,,न बच्चे,,न घर द्वार !.... यह सुजला, सुफला धरती ही हमारी माँ है। " सत्यानंद के इसी विचार "वन्देमातरम " को आधार बना सैंकड़ो युवा सन्यासी अंग्रेज़ो से लड़ने का संकल्प लेते है और मातृभूमि की रक्षा करने और अपने प्राणो की आहुति देने बलिदान पथ निकल पड़ते है
अभिनेता प्रदीप कुमार ने आनंदमठ से हिंदी फिल्मों में कदम रखा इससे पहले वो कुछ बांग्ला फिल्मों में अभिनय कर चुके थे ,गायक 'हेमंत कुमार ' भी बांग्ला फिल्मों में बतौर गायक गाने गा चुके थे इस फिल्म से उन्होंने विधिवत रूप से बम्बई और हिंदी सिनेमा की और रुख किया और स्वतंत्र रूप से 'आनंदमठ 'का संगीत दिया हालांकि ये काम कठिन था क्योंकि फिल्म में गाने संस्कृत और हिंदी दोनों भाषा में थे मुख्य गीत भी बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का खुद का लिखा हुआ था लेकिन हेमंत दा इसमें सफल रहे बाद में हेमंत कुमार ,एस.मुखर्जी के साथ फिल्मिस्तान स्टूडियो में एक संगीतकार के रूप में काम करने लगे वंदे मातरम् गीत ने 1947 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी 1950 में सविधान बनने पर वन्देमातरम " को हमारा राष्ट्रीय गीत" घोषित किया गया इस गीत की धुन ने हेमंत दा को इतिहास में हमेशा के लिए अमर कर दिया
फिल्म 'आनंदमठ' के बाकि गीत शैलेंदर और हसरत जयपुरी ने लिखे थे .... 'धीरे समीरे तटनी तीरे, बसति बने बरनारी'... ,वन्दे मातरम् सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम्'... ,'दिल का पैमाना है, आँख का मैखाना है, मैं वो कली..',नैनों में सावन, मन मेरे फागुन, पल छीन .. ',नैनों में सावन, मन मेरे फागुन, पल छीन जले.'.. ,: कैसे रोकेगे ऐसे तूफ़ान को, ये उमंगे, ये दिल हैं... ,हरे मुरारे मधुकैट मारे, गोपाल गोविन्द... जय जगदीश हरे-... आ रे भंवरे आ, महकी मेरे मन की बगिया, फूल फूल पे जा..., वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम् आदि गीतों में से केवल वन्दे मातरम् सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम्...और जय जगदीश हरे ही हिट हुए.......फिल्म के गीतों को लता मंगेशकर ,गीता रॉय, हेमंत मुखर्जी ने अपने स्वर दिए आनंदमठ के 'वन्देमातरम' गीत को हेमन्त कुमार ने एक 'मार्चिंग सांग' के रूप में संगीतबद्ध किया था। इस फिल्म को 1953 में तमिल में डब कर Ananda Madam नाम से भी रिलीज़ किया गया
गीता बाली और प्रदीप कुमार |
फिल्मिस्तान कंपनी द्वारा निर्मित इस फिल्म में उस समय के चर्चित कलाकारों पृथ्वी राज कपूर, प्रदीप कुमार, अजीत, भारत भूषण, मुराद, माइकेल, सूदेश, भुजबल सिंह, बुरहान, जानकीदास, गोल्डस्टाइन, एस.एल.पुरी ,गीताबाली, रंजना,बिमल, शीला रमानी, बेबी निर्मल ने अभिनय किया था आनन्दमठ को आप उस ज़माने की 'मल्टी स्टार ' फिल्म कह सकते है व्यवसायिक रूप से 'आनंदमठ 'असफल रही लेकिन ये असफल रहने के बाद भी हिंदी सिनेमा में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है
संन्यासी आंदोलन और बंगाल अकाल की पृष्ठभूमि पर लिखी गई बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की किताब "आनन्दमठ " सन 1882 ई. में पहली बार छप कर आई। "आनन्दमठ "' पहले 'बंगदर्शन' नामक एक पत्रिका में धारावाहिक रूप में प्रकाशित होता रहा था। इस उपन्यास की क्रांतिकारी विचारधारा ने सामाजिक व राजनीतिक चेतना को जागृत करने का काम किया सबसे रोचक बात यह है की 'आनंदमठ ' नाम की कोई संस्था या आश्रम था ही नहीं बंकिम ने यह इतिहास स्वयं रचा और पाठकों को प्रेरणा दी। और उन्हें स्वार्थभाव से परे सोचने की शक्ति दी। बंकिमचंद्र ने देश के लिये ही जीने मरने वाले अमर पात्रों की रचना की और अपने इस उपन्यास के द्वारा मन्त्र दिया। "वन्देमातरम '' ( मातृभूमि को प्रणाम ) ....जो आगे जा कर स्वतंत्रता की चेतना का राष्ट्रव्यापी मंत्र बना। वन्देमातरम गीत जिसने सभी भारतवासियों को देश की आज़ादी के प्रति जागरुक किया और उनमें एक नई चेतना जागृत कर दी, वह "वन्देमातरम '' आनन्दमठ में ही संकलित था। फिल्म "आनन्दमठ " असफल होने के बाद भी 'वन्देमातरम ' का यही मूलमंत्र देश को देने में पूर्णयता सफल रही
.लेकिन आज ये बात शर्मनाक है की आज़ादी की लड़ाई में संजीवनी फूंकने का मन्त्र देने वाला हमारा राष्ट्रीय गीत ."वन्देमातरम "आज अपने ही देश में अपेक्षा का शिकार हो रहा है इस गीत को लेकर विवाद की जो खबरे आती रहती है वो दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि पूजा पद्धति भले ही भिन्न हो पर हर धर्म में अपनी जन्मभूमि को पूज्य कहा गया है ' वन्देमातरम ' का भी तो यही अर्थ है तो फिर विवाद कैसा ये समझ से परे है ?
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