कॉमेडी किंग ' महमूद ' |
प्रसिद्ध अभिनेता कॉमेडियन महमूद के पिता' मुमताज़ अली ' रंगमंच के बहुत मंझे हुए कलाकार थे अभिनय के आलावा नृत्य और संगीत पर भी गहरी पकड़ थी 1942 में आई फिल्म 'झूला' का उनका मशहूर गीत "मैं तो दिल्ली की दुल्हन लाया रे " उस दौर में मुंबई और भारत में होने वाले विवाह समारोहों में जरूर बजता था उनकी फिल्मे भी ठीक ठाक चलती थी इसलिए पैसे की किल्लत क्या होती उन्हें अभी तक पता नहीं था उनके पास अपना डांस ग्रुप "मुमताज अली नाइट्स" भी था जिसने उस समय पूरे भारत में अपने शो किये थे उनके महमूद को मिलाकर मीनू मुमताज़,अनवर अली ,ज़ुबेदा अली ,उस्मान अली ,खेरुनिस्सा अली ' शौकत अली हुसैनी अली समेत कुल आठ बच्चे थे .......घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं इसलिए सभी बच्चो की फरमाइशें पूरी हो जाती थी ऐसे ही एक बार उनके बेटे महमूद ने अपने जन्मदिन पर मुमताज़ अली से एक साइकिल की फरमाइश कर डाली जिसे मुमताज़ अली ने पूरा कर भी दिया और बेटे महमूद को चमचमाती नई साइकिल दिलवा दी
मुमताज़ अली |
बालक महमूद को अपनी ये साइकिल जान से भी प्यारी थी जिस पर बैठ वो पूरे मोहल्ले में इठलाते फिरते थे ये वो दौर था जब मुमताज़ अली साहेब को फिल्मो में काम मिलना धीरे धीरे कम हो रहा था कारण मुमताज़ अली साहेब को शराब पीने की बुरी लत थी पहले तो उन्होंने ये कह कर शराब पीना जारी रखा की सब ठीक होने पर छोड़ दूंगा लेकिन जल्दी ही ये लत उनकी जबरदस्त मजबूरी बन गई उन्होंने शराब पी कर फिल्म के सेट पर जाना शुरू का दिया इस बुरी आदत के कारण पहले तो उन्हें फिल्मो से निकाला जाने लगा बाद में उन्हें फिल्मो में काम मिलना पूरी तरह से मिलना बंद हो गया और फिल्म निर्माता उनसे कन्नी काटने लगे
सब कुछ जिस शराब के कारण तबाह हो रहा था वो शराब छूटने का नाम ही नहीं ले रही थी लिहाज़ा तंगहाली में मुमताज़ अली अपने घर का सामान भी बेचने लगे फिर एक वो दिन भी आया जब मुमताज़ अली की नज़र उस साइकिल पर पड़ी जो बड़े प्यार से अपने बेटे महमूद के लिए खरीद कर लाये थे शराब की लत से मजबूर पिता ने उस साईकल का सौदा कर दिया था महमूद को यह साइकिल बहुत अज़ीज थी वह किसी कीमत पर साईकल किसी को भी देना नहींचाहते थे जब खरीददार उनकी साईकल लेने आये तो उन्होंने अपने पिता से गुहार लगाई जिसका कोई असर मुमताज़ अली पर नहीं हुआ बल्कि वो उससे साईकल छीनने लगे एक बालक को सबसे ज्यादा अपना खिलौना प्यारा होता है ये साईकल भी बालक महमूद का सबसे ज्यादा प्यारी थी लिहाज़ा वो साईकल पकड़ कर उससे लिपट गए साईकल को जबरन घसीटे जाने से वो भी उसके साथ घसीटते चले गए इस प्रयास में उनके हाथ पैर भी छिल गए बेटे महमूद की जिद के आगे बाप मुमताज़ अली की शराब की लत जीत गई उनकी साईकल बिक गई
सब कुछ जिस शराब के कारण तबाह हो रहा था वो शराब छूटने का नाम ही नहीं ले रही थी लिहाज़ा तंगहाली में मुमताज़ अली अपने घर का सामान भी बेचने लगे फिर एक वो दिन भी आया जब मुमताज़ अली की नज़र उस साइकिल पर पड़ी जो बड़े प्यार से अपने बेटे महमूद के लिए खरीद कर लाये थे शराब की लत से मजबूर पिता ने उस साईकल का सौदा कर दिया था महमूद को यह साइकिल बहुत अज़ीज थी वह किसी कीमत पर साईकल किसी को भी देना नहींचाहते थे जब खरीददार उनकी साईकल लेने आये तो उन्होंने अपने पिता से गुहार लगाई जिसका कोई असर मुमताज़ अली पर नहीं हुआ बल्कि वो उससे साईकल छीनने लगे एक बालक को सबसे ज्यादा अपना खिलौना प्यारा होता है ये साईकल भी बालक महमूद का सबसे ज्यादा प्यारी थी लिहाज़ा वो साईकल पकड़ कर उससे लिपट गए साईकल को जबरन घसीटे जाने से वो भी उसके साथ घसीटते चले गए इस प्रयास में उनके हाथ पैर भी छिल गए बेटे महमूद की जिद के आगे बाप मुमताज़ अली की शराब की लत जीत गई उनकी साईकल बिक गई
बाद में आगे जा कर महमूद साहेब इतने बड़े स्टार बने की फिल्म निर्माता उनके बिना कोई फिल्म बनाते ही नहीं थी हीरो कोई भी चल जाता पर फिल्म में महमूद दाल में नमक की तरह जरुरी समझे जाते थे उनके लिए फिल्मो में अलग से गाने तक लिखे जाते थे जो सिर्फ उन पर ही फिल्माए जाते थे समय करवट ले चुका था आज महमूद साहेब के पास बंगला था और उस बंगले के आगे कई बेशकीमती कारे भी खड़ी रहती थी लेकिन बचपन में उनसे छीनी गई उस साइकिल की टीस उसने मन में हमेशा बनी रही ........ये घटना साल 1956 में बनी फ़िल्म 'सी.आई.डी.' की शूटिंग के दौरान अभिनेता महमूद ने सुनाई थी इस बात का जिक्र भरी आँखों के साथ उन्होंने अपने एक इंटरव्यू मे किया था उस वक्त सेट पर निर्माता राज खोसला भी मौजूद थे महमूद द्वारा सुनाई गई बचपन की इस घटना का उनका पर गहरा प्रभाव पड़ा उनकी बताई ये बात राज खोसला के दिमाग में घूमती रही और 13 साल बाद मौक़ा मिलते ही उसे हूबहू फ़िल्म ‘दो रास्ते’ (1969) में इसे इस्तेमाल कर डाला इस फिल्म में एक सीन था जिसमें बलराज साहनी के घर और सामान की नीलामी हो रही है उस सामान में उनके बेटे जूनियर महमूद की साईकिल भी है जब बेटे की साईकिल उठाकर ले जाई जाती है तो वो साईकिल को छुड़ाने के लिए उसके साथ दूर तक घिसटता चला जाता है ......ये महमूद साहेब के बचपन की वही सच्ची घटना थी
महमूद साहेब के अब्बा मुमताज़ अली अपने ज़माने के बहुत बड़े डांसर थे लेकिन शराब की लत ने उनका करियर ख़त्म कर दिया आखरी बार 1974 में महमूद द्वारा ही निर्देशित फिल्म "कुंवारा बाप" के गाने "सज रही मेरी मां " में उन्हें नृत्य और अभिनय करते देखा गया था 6 मई 1974 को इसी वर्ष 59 साल की उम्र में उनका इंतकाल हुआ भले ही महमूद साहेब बाद में कई महँगी कारो के मालिक बने लेकिन इस साईकिल वाली घटना को वो जीवन भर नहीं भूले...
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