Jhoola - (1941) |
ब्रिटिश कालीन भारत में हमारा हिंदी सिनेमा भी आज़ादी की और तेज़ी से अग्रसर था कई मशहूर टाकीज़ कंपनियों ने फिल्म इंडस्ट्रीज़ में मजबूती से अपने पांव जमा लिए थे विदेशी भाषा की आयातित फिल्मो की जगह अब अच्छी हिंदी फिल्मे बनने लगी थी ,उच्च प्रोजेक्शन क्षमता वाले सिनेमा घर खुल रहे थे हमारे कलाकार पृथ्वी राज कपूर ,व्ही शांताराम ,अशोक कुमार ,सोहराब मोदी ,के.एल सहगल ,मोतीलाल ,मास्टर विनायक,साहू मोदक ,लीला चिटनीस ,कानन देवी ,देविका रानी ,बिब्बो ,जहाँआरा कज्जन ,ललिता पंवार ,दुर्गा खोटे ,भारत के घर घर में मशहूर हो रहे थे
ये वो जमाना था जब हम मूक फिल्मो को 10 वर्ष पीछे छोड़ आये थे .....फिल्मे पौराणिक ,धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित होती थी ...अधिकतर टाकीज़ कम्पनियाँ कलाकारों को मासिक वेतन पर काम पर रखती थी और उन्हें फिल्म में पार्श्वगायन करना लगभग अनिवार्य होता था .....1941 में सोहराब मोदी की 'सिकंदर ',महबूब खान की 'सिस्टर 'और व्ही शांताराम की 'पडोसी 'जैसी लगभग 6 दर्ज़न फिल्मे रिलीज़ हुई ....ठीक इसी वर्ष रिलीज़ हुई निर्माता ज्ञान मुखर्जी की फिल्म 'झूला '1941 की सुपरहिट साबित हुई इस फिल्म का निर्माण शशधर मुखर्जी ने बॉम्बे टॉकीज़ के बैनर तले किया था
झूला-(1941) में अभिनेता अशोक कुमार और लीला चिटनीस |
ज्ञान मुखर्जी ,पीएल संतोषी ,शाहिद लतीफ़ की लिखी कहानी के अनुसार गाँव की एक युवा विधवा कमला (करुणा देवी) अपना भूमि कर माफ कराने के लिए अपने गांव के नए जमींदार के पास जाती है क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है गाँव वालो ने पंचायत बुलाई है .......जहां कमला यह जानकर आश्चर्यचकित रह जाती है कि नया जमींदार कोई और नहीं बल्कि उसका एक समय का प्रेमी महेश (शाह नवाज) है महेश जिज्ञासावश कमला के दिवंगत पति के बारे में पूछता है लेकिन उसे यह जानकर आश्चर्य होता है कि उसने कभी शादी ही नहीं की थी कमला महेश ही ही अपना पति मानते हुए अपनी की इच्छा के विरुद्ध विवाह के लिए मजबूर होने से बचने के लिए विधवा होने का नाटक कर रही थी
झूला-(1941) में अशोक कुमार और मुमताज अली |
गैर-जिम्मेदार,अमीर महेश सच्चाई जानकर भी कमला के साथ के अपने रिश्ते को आगे बढ़ाने से साफ इनकार कर देता है पंचायत से वापस जाते समय वह टेलीग्राम भेजने के लिए गाँव के डाकघर में जाता है वहां उसकी मुलाकात झूले पर बैठी एकआकर्षक युवा लड़की गीता (लीला चिटनिस) से होती है जिस के प्रति महेश आकर्षित हो जाता है .......गीता इसी डाकघर के पोस्टमास्टर (वी.एच.देसाई) की भतीजी है शौंकिया फोटोग्राफर महेश शहर में अपने घर जाने से पहले गीता की तस्वीरें खींचता है .....
इधर महेश के पिता अपनी संपत्ति को अपने दो बेटों महेश और उसके दत्तक छोटे भाई रमेश के बीच समान रूप से वितरित करने का इरादा रखता है लेकिन महेश इस बँटवारे के खिलाफ है उसका अपने पिता से झगड़ा होता है इस झगड़े के दौरान उसके पिता को दिल का दौरा पड़ता है
रमेश (अशोक कुमार) अपने मरते हुए दत्तक पिता से आखिरी बार मिलने के लिए आता है लेकिन उसकी मृत्यु हो जाती है .........महेश अपने पिता की आधी संपत्ति एक ऐसे व्यक्ति को देने से इंकार कर देता जो उसका सगा बेटा भी नहीं है वह रमेश के साथ भी झगड़ा करता है अपने भाई के व्यवहार से निराश होकर रमेश गुस्से में घर छोड़ देता है
रमेश को नहीं पता कि अब उसे कहाँ जाना है ? रमेश एक ट्रेन में चढ़ जाता है वहां ट्रैन में वो झूले पर बैठी गीता की तस्वीर एक मैगजीन के कवर पेज पर देखता है मैगज़ीन में लिखी जानकारी से प्रभावित होकर रमेश तुरंत झरनाघाट की ओर जाने का मन बना लेता है....... झरनाघाट वह गाँव है जहाँ वो युवती गीता रहती है रमेश इस तथ्य से अनजान है कि 'झरनाघाट' उसकी विरासत का ही हिस्सा है
झूला-(1941) में अशोक कुमार,चिटनीस और करुणा देवी |
रमेश झरनाघाट में पोस्टमास्टर के सहायक (मुमताज अली) के पड़ोस में किराये के मकान में रहता है वह अपनी वास्तविक पहचान छुपाने के लिए एक 'उपनाम' का उपयोग करके गीता को प्रेम पत्र लिखता है परिस्थितियाँ गीता को यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि उसका गुमनाम प्रेमी कोई और नहीं बल्कि कैमरे वाला आदमी है जिसने उसकी फोटो खींची थी ( जो बाद में उसे पता चलता है कि वह उसके गाँव का जमींदार भी है ) परिणामस्वरूप गलतफहमियों की एक श्रृंखला उत्पन्न होती है जो अंततः क्लाइमेक्स में सुलझ जाती हैं आख़िरकार दोनों भाइयों में समझौता हो जाता है ......रमेश गीता से शादी कर लेता है और महेश कमला से शादी करने के लिए सहमत हो जाता है फिल्म का सुखद अंत होता है
अशोक कुमार की 'एक चतुर नार कर श्रृंगार ' को जहाँ दर्शक मंत्रमुग्ध होकर सुनते है वही किशोर कुमार की 'चतुर नार बड़ी होशियार' की धुन उन्हें थिरकने पर मजूबर करती है ....... झूला" से "पड़ोसन" तक की प्रगति इस बात का एक प्रमुख उदाहरण है कि संगीत कितनी आसानी से और अनुकूलनपूर्वक सांस्कृतिक सीमाओं और समय अवधि को पार कर सकता है ........लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा सरस्वती देवी द्वारा रचित यह मूल गीत केवल फिल्म में तो दिखाई दिया लेकिन इसे ऑडियो रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया गया .......
'झूला' 1941 की चौथी सबसे अधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्म थी अपनी पिछली सभी फिल्मों में अपनी नायिकाओं के बाद दूसरी भूमिका निभाने के बाद, ''झूला ''पहली फिल्म थी जिसमें अशोक कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई थी फिल्म की सफलता ने उन्हें उस युग के लोकप्रिय अभिनेताओं के रूप में स्थापित कर दिया इससे दो साल पहले किस्मत (1943) की अपार सफलता ने उन्हें स्टारडम तक पहुँचाया था उसके बाद अशोक कुमार ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और हिंदी फिल्म इंडस्ट्रीज़ में अपने जीवंत अभिनय के दम पर अपना वो मुकाम बनाया की लोग उन्हें आज भी एक 'हरफनमौला 'कलाकार कहते है
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