Friday, December 22, 2017

गूँज उठी शहनाई (1959 ) ..... शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के लिए अनमोल सांस्कृतिक विरासत.....

गूँज उठी शहनाई (1959 )
29,मई 1959 को रिलीज़ हुई हुई 'गूँज उठी शहनाई 'को हिंदी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ प्रेम कथाओं में से एक माना जाता है ये दूसरी प्रेम कहानियों से थोड़ा अलग थी बहुत कम प्रेम कहानियों में इस तरह के वास्तविक प्यार को मर्मज्ञ तरीके से भावना की गहराई के साथ फिल्माया गया है निर्माता विजय भट्ट की ये उत्कृष्ट फिल्म स्पष्ट करती है कि सच्चा प्यार आत्मा से होता न कि शरीर से.......... इस ब्लैक एन्ड वाइट फिल्म की सफलता में सबसे बड़ा योगदान फिल्म के संगीत कार वसंत देसाई जी का है फिल्म में 9 गाने हैं लेकिन उन्हें कहानी के साथ ऐसा पिरोया गया है की ये कहानी के प्रवाह को रोकते नहीं है यही वसंत देसाई जी की संगीतमय फिल्मो की विशेषता भी रही है गूँज उठी 1959 की पांचवी सबसे बड़ी हिट फिल्म है जिसने बॉक्स ऑफिस पर 1,80,00,000 करोड़ रूपये कमाए थे आज के हिसाब से आप इस रकम की तुलना कर अंदाजा लगा सकते है इसके क्या मायने है

राजेंद्र कुमार शहनाई-नवाज की भूमिका में
निर्माता विजय शंकर भट्ट द्वारा निर्देशित गूँज उठी शहनाई अभिनेता राजेंदर कुमार की आरंभिक फिल्मों में से सबसे बड़ी हिट फिल्म थी यही से उनकी जुबली कुमार बनने की यात्रा आरम्भ हुई उस्ताद बिस्मिल्लाह खान सितार वादक, अब्दुल हलीम जाफर खान के बीच जुगलबंदी के लिए ये फिल्म आज भी याद की जाती है भारत के गंगा जमुनी तहज़ीब के स्तम्भ रहे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई इस फिल्म का मुख्य आकर्षण है गूँज उठी शहनाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की एकमात्र हिंदी फिल्म है कहा तो ये भी जाता है की फिल्म वालो के अनावशयक हस्तक्षेप से परेशान हो कर उन्होंने फिर कभी भी हिंदी फिल्मों की तरफ रुख नहीं किया हालांकि उन्होंने कुछ क्षेत्रीय भाषायों की फिल्मों के लिए उन्होंने शहनाई जरूर बजाई जिसमे 1970 के दशक की कन्नड़ भाषा की फिल्म, 'Sanadi Appanna ' प्रमुख है

गूँज उठी शहनाई एक संगीतमय दुःखद प्रेम कथा है इस फिल्म में पहले अभिनेत्री आशा पारीख जी को लिया गया था और कुछ सीन शूट भी हो गए थे वह अभिनेत्री अमिता को लेने के पक्ष में थे निर्माता विजय भट्ट ने गूंज उठी शहनाई से आशा पारीख को इसलिए बाहर कर दिया था क्योंकि फिल्म निर्माता विजय भट्ट का मानना था की उनमे स्टार वैल्यू नहीं है और नवोदित आशा पारेख उनकी फिल्म के लिए घातक साबित हो सकती है आशा पारेख को फ़िल्मी दुनिया में काम करने का कोई खास अनुभव भी नहीं था फिल्म के नामचीन सितारों के बीच आशा पारीख एक ऐसा नाम था जो फिल्मो अभी संघर्ष कर रहा था इसलिए विजय भट्ट में अभिनेत्री अमिता पर दांव लगाया लेकिन उनका ये अंदाज़ा  गलत साबित हुआ और आशा पारीख आगे जा कर हिंदी सिनेमा की एक प्रख्यात अभिनेत्री बनी जिन्होंने आगे जाकर कई बेशुमार हिट फिल्मे दी नाम और शोहरत दोनों कमाई आशा पारेख की गिनती साठ के दशक की बड़ी अभिनेत्रियों में से होती है 


आशा पारेख और राजेंद्र कुमार

प्रकाश पिक्चर की यह फिल्म एक अनाथ शहनाई वादक किशन राजेंद्र कुमार ) की कहानी हैं जिसे रघुनाथ महाराज ( उल्हास ) पास पोस कर बड़ा करते है गांव राधापुर में रहने वाले गंगाराम ( मनमोहन कृष्ण ) की बेटी गोपी ( अमिता ) और किशन दोनों आपस में प्यार करते है और शादी करना चाहते है किशन की शहनाई की जादुई धुनों की गोपी दीवानी है लेकिन गोपी की मां जमुना ( लीला मिश्रा ) गोपी की शादी शेखर ( प्रताप कुमार ) से बचपन में तय कर चुकी है जो लखनऊ के रेडियो स्टेशन में काम करता जबकि किशन एक बेरोज़गार और गरीब है रघुनाथ महाराज की बेटी रामकली (अनीता गुहा  ) भी किशन को मन ही मन चाहती है दूसरी और गांव का डाकिया कन्हैयां ( आई.एस जौहर ) गोपी पर बुरी नजर रखता है गाँव वालो को भड़का कर गोपी और किशन में अलगाव पैदा कर देता है किशन को गाँव छोड़ना पड़ता है वह फैसला करता है वो कुछ बन कर वापिस लौटेगा किशन और गोपी की प्रेम कहानी से अंजान शेखर उसे आल इंडिया रेडिओ में नौकरी दिलवा देता है किशन एक मशहूर शहनाई वादक के रूप में मशहूर हो जाता है जल्द ही किशन का संगीत भारत के हर कोने तक पहुँच जाता है डाकिया कन्हैयां किशन के गोपी को लिखे पत्रों को रास्ते में ही गायब कर देता है गोपी की शादी शेखर से होती है किशन गोपी को बेवफा समझता है और शहनाई बजाना छोड़ देता है गोपी किशन के वियोग में बीमार हो जाती है और अंत में गोपी और किशन का दुःखद अंत होता है दोनों मर कर एक हो जाते है फिल्म सन्देश देती है ......सच्चा प्यार आत्मा से होता शरीर से.नहीं ........



राजेंदर कुमार , अमिता ,अनीता गुहा  ,उल्हास ,मनमोहन कृष्ण , लीला मिश्रा , आई एस जौहर, प्रताप कुमार ,प्रेम धवन , राम मूरती के अभिनय से सजी गूँज उठी शहनाई एक सफल फिल्म मानी जाती है अनीता गुहा  का रोल उलझा हुआ था लेकिन उन्हें फिल्म फेयर बेस्ट सहायक अभिनेत्री अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था ये फिल्म वसंत देसाई के संगीत और भरत व्यास के लिखे अमर गीतों के लिए मशहूर है तेरी शहनाई बोले , तेरे सुर और मेरे गीत ,दिल का खिलौना हाय टूट गया ,कह दो कोई ना करे यहाँ प्यार , मैंने पीना सीख लिया , जीवन में पिया तेरा साथ रहे ,होले होल घुंघट के पट खोल ,अँखियाँ भूल गई सोना ,जैसे सुरीले गीतों को लता जी ,रफ़ी ,गीता दत्त ,ने अपनी आवाज़ में अमर कर दिया ,गीत तेरे सुर और मेरे गीत राग 'मारू बिहाग' जो 'बिहाग' का एक परवर्ती स्वरुप है को आधार बनाकर स्वरबद्ध किया गया है  'तेरे सुर और मेरे गीत' 'बिहाग' का सर्वोत्तम हिंदी गीत है गूँज उठी शहनाई से पहले अमीता ने बहुत कम फिल्मों में अभिनय किया है लेकिन यह शायद उसके कैरियर की सबसे अच्छी फिल्म है। साठ के दशक के रोमांटिक नायक राजेंद्र कुमार ने शहनाई-नवाज की भूमिका में बहुत अच्छा काम किया है त्रासदी वाले दृश्यों को देख कर लगता ये कोई नवोदित अभिनेता है अनीता गुहा रामकली की मुश्किल और जटिल भूमिका में शानदार अभिनय तो करती है लेकिन रामकली किशन को प्यार करती है,वह तो स्पष्ट है लेकिन वो किस तरह का प्यार है ? निर्देशक विजय भट्ट ने इस सवाल का सीधे उत्तर नहीं दिया है और दर्शकों पर ये सवाल उपयुक्त उत्तर खोजने के लिए छोड़ दिया है

अमिता और राजेंद्र  कुमार

उल्हास ,अनीता गृहा और राजेंद्र  कुमार
बिस्मिल्लाह खान साहब की शहनाई इस फिल्म खास बनाती है फिल्म गूँज उठी शहनाई (1959) में रामलाल ने उस्ताद बिस्मिलाह खान के साथ मिलकर शहनाई बजाई थी फिल्म की शुरुआत ही उनकी शहनाई से होती है इस फिल्म के हिट होने में उनकी शहनाई का बड़ा योगदान था लेकिन फिल्म में निर्माता विजय भट्ट ने उनको उचित सम्मान नहीं दिया उन्होंने रामलाल जी से वादा किया था की फिल्म के टाईटल में उनका नाम बिस्मिलाह खान के साथ आएगा लेकिन उनका नाम चार पांच लोगो के साथ साँझा करके फिल्म के टाईटल में दिया गया अपने किसी मित्र द्वारा उन्हें जब ये बात पता चली तो रामलाल इतने आहत हुए की उन्होने अपनी ही हिट फिल्म "गूँज उठी शहनाई " देखी ही नहीं अपने जीवन के अंतिम समय में उनको इस बात का मलाल भी रहा....गूँज उठी शहनाई उन लोगो के लिए भी खास है जो सच्चे प्रेम को आत्मा का मिलन मानते है फिल्म भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों के लिए सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है। संगीत भरत व्यास ने महान गीत लिखे हैं और भारतीय शास्त्रीय रागों के आधार पर वसंत देसाई ने उनके लिए महान संगीत रचना की है सभी क्लासिक गाने हैं जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों के लिए भी एक अनमोल उपहार है इस फिल्म का संगीत भारतीय सांस्कृतिक विरासत का एक समृद्ध हिस्सा है। जिसे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब और रामलाल 'हीरा पन्ना 'की शहनाई विशेष बनाती है 

उस्ताद बिस्मिलाह खान और संगीतकार वसंत देसाई

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