24 जुलाई 1937 को एबटाबाद ( पाकिस्तान ) में जन्में मनोज किसी परिचय के मोहताज़ नहीं देश के बंटवारे के बाद महज दस साल की उम्र में वह परिवार संग दिल्ली चले आए थे उनका परिवार
दिल्ली में एक शरणार्थी के तौर पर रहने लगा। उनकी शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में
ही हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘हिंदू कॉलेज’ से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई
पूरी करने के बाद मनोज ने फ़िल्म इंडस्ट्री में जाने का मन बना लिया। मनोज कुमार अपनी जवानी के दिनों में दिलीप कुमार से प्रभावित थे 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने शहीद देखी थी 1949 में दिलीप साहब और कामिनी कौशल स्टारर फिल्म 'शबनम' रिलीज हुई इस फिल्म को वो अपने मामा के साथ देखने गए इस फिल्म में दिलीप के किरदार का नाम'' मनोज '' था हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी को यह नाम भा गया और उन्होंने हमेशा के लिए इसे अपना लिया मनोज कुमार खुद ही स्वीकार करते हैं कि अभिनेता बनने की प्रेरणा उन्हें दलीप कुमार की फिल्म 'शहीद' (1948) देखने के बाद मिली इस फिल्म में दिलीप कुमार का अभिनय, उनकी भाव-भंगिमाएं उन पर कुछ इस कदर छा गयी कि दिल्ली से मुंबई आने और अपनी फ़िल्मी पारी शुरू करने तक उन पर बखूबी छायी रही मुंबई आने के वर्षों बाद मनोज अभिनेता के रूप में स्थापित तो हो गए लेकिन हीरो के रूप में उनके हाव-भाव, मैनेरिज्म, संवाद बोलने की स्टाइल आदि पर दिलीप कुमार का प्रभाव बना रहा 1968 में जब उन्हें फिल्म 'आदमी' में दिलीप कुमार के साथ कास्ट किया गया तो एक अजीब सी स्थिति पैदा हो गयी
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दलीप कुमार मनोज कुमार और सिम्मी ग्रेवाल फिल्म 'आदमी ' (1968 ) | | | |
फिल्म 'आदमी' में दिलीप कुमार के साथ कास्ट किया जाना मनोज कुमार के लिए एक सपने के सच होने जैसा ही था इस फिल्म में उनका सामना उसी दलीप कुमार से होने जा रहा था, जिनकी फ़िल्में देख-देखकर उन्होंने एक्टिंग का ककहरा पढ़ा था विजय भट्ट की फिल्म 'हरियाली और रास्ता '(1962) की कामयाबी के साथ मनोज कुमार स्टार तो बन गए लेकिन उन पर लगा दिलीप कुमार की नक़ल का ठप्पा उनके साथ चलता रहा बतौर अभिनेता अपनी कोई अलग शैली विकसित करने में मनोज कुमार नाकाम रहे भावनात्मक दृश्यों में हाथ से आधा मुह ढांप कर संवाद अदायगी की अदा जिसने उन्हें काफी ख्याति दिलवाई उसे भी विशेषज्ञ दिलीप कुमार की ही नक़ल मानते हैं फिल्म 'आदमी ' की शूटिंग के दौरान दिलीप साहब मनोज कुमार के रूप में अपने ''एक्टिंग क्लोन '' को देख कर ताज्जुब में पड़ गए मनोज कुमार उनके सामने बिलकुल उनके ही अन्दाज़ में एक्टिंग कर रहे थे पहले तो दिलीप कुमार समझ ही नहीं पाए कि मनोज एक्टिंग कर रहे हैं या मजाक में उनकी नक़ल उतार रहे हैं लेकिन जब बात उनकी समझ में आयी तो वो मुस्कुराने लगे आखिरकार उन्होने ही इस फिल्म के लिए पहली बार अपने अभिनय शैली में कुछ तब्दीलियाँ लाई और इस तरह आदमी दो दिलीप कुमार की फिल्म होने से बच गयी मनोज कुमार को भी इस बात का एहसास हुआ और उन्होंने दलीप कुमार की छवि से बाहर आने का फैसला कर किया
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'आदमी ' -( 1968 ) |
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फिल्म 'शहीद ' (1965) के प्रीमियर पर श्री लाला बहादुर शास्त्री जी के साथ कामिनी कौशल ,मनमोहन ,और मनोज कुमार
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मनोज कुमार एक एक्टर होने के साथ-साथ एक लेखक भी रहे हैं उस समय वो मात्र 11 रुपये में कहानियाँ लिखते थे आप को ताज्जुब होगा की ज्यादातर वो कहानियाँ 'हॉरर ' होती थी उनकी इन कहानियाँ पर कई छोटी फिल्मे भी बनी लेकिन उन्होंने इस का क्रेडिट नहीं लिया उन्होंने बॉलिवुड में फिल्म 'फैशन' के साथ 1957 में
डेब्यू किया था। इस फिल्म में मनोज ने एक 80 वर्षीय बुजुर्ग का किरदार
निभाया था। हालांकि, फिल्म कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई। जब उन्हें 1960 में बनी फिल्म 'कांच की गुड़िया'
में अभिनेत्री सईदा खान के अपोजिट पहला लीड रोल मिला। इस फिल्म से दर्शकों
के बीच मिली पहचान का मनोज कुमार ने पूरा फायदा उठाया और फिर पीछे मुड़कर
नहीं देखा।
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'उपकार' - (1967 ) में प्रेम चोपड़ा के साथ मनोज कुमार |
मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिए लोगों को देशभक्ति की भावना का गहराई से एहसास कराया, जिसने उन्हें हर दिल अजीज फिल्मकार बना दिया। 1967 में रिलीज हुई 'उपकार' की प्रेरणा मनोज कुमार को देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहाहुर शास्त्री से मिली थी मनोज कुमार के विशेष आमंत्रण पर लाल बहादुर शास्त्री जी 'शहीद (1965) ' देखने आए हालांकि उनके पास वक़्त बहुत कम था लेकिन जब उन्होंने शहीद देखनी शुरू की तो अपनी सीट से उठ भी नहीं पाए फ़िल्म देखते हुए उनकी आंख में आंसू आ गए फ़िल्म ख़त्म होने के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने फ़िल्म में भगत सिंह का किरदार निभाने वाले अभिनेता मनोज कुमार से अपने नारे 'जय जवान जय किसान' को लेकर किसान और सैनिकों पर आधारित कोई फ़िल्म बनाने को कहा लाल बहादुर शास्त्री की इच्छा का मान रखते हुए मनोज ने डायरेक्शन क्षेत्र में कदम रखा और 'उपकार' जैसी सुपरहिट फिल्म बनाई भी । लाल बहादुर शास्त्री से मुलाकात के बाद मनोज कुमार ने दिल्ली से बम्बई वापिस जाते हुए सफर में ही सिगरेट की खाली डिब्बी पर फिल्म 'उपकार' की कहानी लिख डाली लेकिन उनकी फिल्म 'उपकार 'लाल बहादुर शास्त्री देख नहीं पाए फिल्म की रिलीज़ से
पहले ही 1966 में उनका ताशकंद में देहांत हो गया इस बात का मनोज कुमार को आज भी
मलाल है मनोज कुमार को फिल्म 'उपकार' के लिए नेशल अवॉर्ड से भी नवाजा गया। फिल्म 'उपकार' की शूटिंग के दौरान कई
दिनों तक उन्होंने शूटिंग सिर्फ इसलिए रोक दी थी कि शॉट लेते समय उन्हें
मनचाही लाइट नहीं मिल पा रही थी। अब इसे फिल्मों को बनाने को लेकर उनकी ललक
व लगन ही कहा जाएगा। इसके साथ ही मनोज को फिल्मी संगीत की भी काफी अच्छी
समझ है। उनकी हर फिल्म के सभी गानें काफी हिट रहे हैं।
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मनोज कुमार नंदा फिल्म "शोर "( 1972) में |
मनोज कुमार ने ज्यादातर देशभक्ति वाली फिल्में ही की। मनोज कुमार ने
देशभक्ति फिल्में बनाकर ये साबित किया कि ऐसी फिल्मों से भी पैसा कमाया जा
सकता है। ज्यादातर फिल्मों में मनोज कुमार के किरदार का नाम 'भारत 'था, इस वजह से लोग उन्हें
'भारत कुमार' भी कहने लगे। मनोज कुमार ने कई रोमांटिक रोल भी अदा किए हैं। जिनमें
उनका हिरोइन के साथ रोमांस करने का अपना ही अलग अंदाज हुआ करता था। उनके
फैन्स को फिल्मों में उनके पहने बंद गले के कोट पसंद आते थे। उस दौर
का यह लेटेस्ट फैशन ट्रेंड ही बन गया था।
मनोज कुमार ने समय के साथ अपने लुक में ज्यादा बदलाव नहीं किया लेकिन इतना जरूर है कि उनका रोल हर फिल्म में दमदार ही होता था मनोज कुमार ही वह पहले शख्स थे जिन्होंने बॉलिवुड फिल्मों में पाकिस्तानी
ऐक्टरों को कास्ट किया था। उनकी फिल्म
क्लर्क (1989) में मोहम्मद अली और
जेबा ने काम किया था जो उस दौर के लिए काफी क्रांतिकारी कदम माना गया था।अपनी फिल्मों के जरिए समय-समय पर वह भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, आजादी और पश्चिमी सभ्यता के दुष्प्रभाव को दर्शाया है
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रोटी कपडा और मकान (1974) के सेट पर अमिताभ बच्चन के साथ मनोज कुमार
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शायद ये भी कम लोग जानते है मनोज जी ने अमिताभ बच्चन को भी फिल्म इंडस्ट्रीज छोड़ने से रोका था जब लगातार विफलताओं से हताश होकर अमिताभ बच्चन मुंबई छोड़कर अपने मां-बाप के पास दिल्ली वापस जा रहे थे तब उन्होंने अमिताभ को रोका और अपनी फ़िल्म 'रोटी, कपड़ा और मकान' में मौक़ा दिया तब लोग अमिताभ को नाकामयाबी की वजह से ताने दे रहे थे, तब मनोज जी को अमिताभ पर पूरा भरोसा था कि वो एक दिन बहुत बड़े स्टार बनेंगे. अमिताभ की पहली सोलो हिट 'जंजीर' थी, जो 'रोटी कपड़ा और मकान'(1974) से एक साल पहले यानी 1973 में रिलीज हुई थी। लेकिन यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि अमिताभ ने 'जंजीर' से पहले 'रोटी कपड़ा और मकान' साइन की थी जिस बात का अमिताभ जी आज भी आभार मानते है
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अपनी धर्मपत्नी शशि गोस्वामी के साथ मनोज कुमार |
मनोज कुमार के तमाम राजनेताओं से भी गहरे संबंध रहे हैं। तत्कालीन
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से लेकर इंदिरा गांधी और अटल बिहारी
वाजपेयी तक उनके कद्रदानों में शामिल रहे हैं। बावजूद इसके वो 1975 में लगे आपातकाल का विरोध करने वालो में सबसे आगे थे जिसके परिणाम स्वरूप उनकी फिल्म 'दस नम्बरी (1976) ' पर रोक लगा दी गई लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सरकार किस फैसले के खिलाफ कोर्ट चले गए ..........1970 के मध्य में मनोज की एक के बाद एक तीन हिट फिल्में आईं। जीनत अमान के साथ सामाजिक मुद्दों पर बनी ‘रोटी कपड़ा और मकान’ (1974) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का दूसरा फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। इसी दौरान उन्होंने हेमामालिनी के साथ ‘संन्यासी’ (1975) और ‘दस नंबरी’ (1976) रिलीज हुई जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। उनकी फिल्म
क्रांति (1981) ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के
सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए थे। मनोज कुमार ने अब तक बनाई गई सभी फिल्मों के
अनुभव का उपयोग करके अपनी अगली फिल्म 'क्रांति' बनाई, जिसने उनके करियर को
तो चरम पर पहुंचाया ही साथ ही साथ खराब दौर से गुजर रहे दिलीप कुमार की भी
शानदार वापसी करवाई। 19वीं सदी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बयान
करती फिल्म क्रांति की सफलता का अंदाजा, इस बात से लगाया जा सकता है कि उन
दिनों में 1.5 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने, बॉक्स ऑफिस पर 10 करोड़
से भी ज्यादा का बिजनेस किया था।मगर इसके बाद उनकी फिल्में कुछ खास कमाल नहीं
दिखा पाईं और उनकी 1989 में बनी फिल्म
‘क्लर्क’ फ्लॉप रही और ‘संतोष’, ‘कलयुग और रामायण जैसी फिल्मों से उनका करियर ग्राफ नीचे की ओर आता रहा। ‘कलयुग और रामायण अपने बोल्ड सब्जेक्ट की वजह से विवादों में भी घिर गई उन्होंने साल 1995 में ऐक्टिंग क्षेत्र से सन्यास ले लिया। इस
साल आई फिल्म
मैदान-ए-जंग बतौर ऐक्टर उनकी आखिरी फिल्म रही थी।
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क्रांति (1981) में दलीप कुमार के साथ मनोज कुमार |
मनोज कुमार ने राज कपूर की बेहद चर्चित फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' में काम किया था मनोज कुमार कहते हैं,... "जब
मेरे क़रीबी दोस्तों जैसे राज कपूर, देव आनंद और प्राण की फ़िल्में टीवी
पर आती हैं तो मैं चैनल बदल देता हूं क्योंकि उन कलाकारों की यादें मुझे
रुला देती हैं.''........आप मनोज कुमार की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात
से भी लगा सकते है अभी हाल ही में JNU प्रकरण में दिल्ली हाईकोर्ट की
माननीय जज ने भी देशद्रोह के आरोपी को जमानत देते वक़्त मनोज कुमार की
'उपकार' फिल्म के गाने "मेरे देश की धरती सोना उगले का " उदहारण दिया था ......फैशन,(1957),
काँच की गुडिया , हरियाली और रास्ता,(1961) शहीद, वो कौन थी (1964 )
गुमनाम, (1965 ) ,उपकार, पत्थर के सनम, (1967) ,पूरब और पश्चिम,(1969 )
पहचान,(1970) शोर (1972) रोटी कपड़ा और मकान,(1974 ) ,सन्यासी (1975) दस
नम्बरी (1976) ,क्रांति,( 1981) कलियुग और रामायण, (1987) ,क्लर्क (1989 )
,मैदाने जंग (1995 ) जैसी अनेक फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित 'हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी' यानी
मनोज कुमार 81 साल के हो गए हैं और पूरी तरह से सक्रिय है उन्होंने फिल्म 'ओम शांति ओम ' (2008 ) के एक सीन में अपना मजाक
बनाये जाने पर निर्माता फराह खान और हीरो शाहरुख़ खान की जम कर खिंचाई की
थी और उन्हें माफ़ी मांगने पर मजबूर कर दिया था मनोज कुमार हमारी फिल्म
इंडस्ट्रीज़ के जाने माने अभिनेता है इस तरह उनका मजाक बनाने पर कई दर्शको
और फ़िल्मी आलोचकों ने भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी .........कुछ ही दिनों पहले एक राष्ट्रीय अखबार को दिए गए इंटरव्यू के दौरान वर्तमान समय में देशभक्ति पर बनी फिल्मों की सार्थकता के सवाल पर उन्होंने कहा कि,....." आज देशप्रेम पर बनी फिल्मों की सफलता फिल्म के आइडिया पर निर्भर करती है। फिल्मों को लेकर हमारे दर्शकों की पसंद विभिन्न पकवानों से सजी खाने की थाली की तरह है, जिन्हें फिल्मों में भी वैरायटी यानि अलग-अलग तरह की चीजें पसंद आती हैं। जिस फिल्म में यह वैरायटी है वो सफल हो जाती है, भले ही वह देशभक्ति पर बनी फिल्म ही क्यों ना हो।" ........मनोज कुमार की फ़िल्में देख कर आपको यक़ीनन भारत से प्यार हो जाएगा। भगवान मनोज कुमार जी को सेहतमंद रखे और उन्हें लम्बी उम्र दे
Achi jankari di aapne thanks.🙏❤️🌹
ReplyDeleteAapke sabhi filmo ke lekh or kaha padh ne milenge batayenge please?
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/SYBSDKe
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