बिमल रॉय 12 जुलाई 1909 - 8 जनवरी 1965 |
बिमल रॉय ज़्यादा
बोलते नहीं थे फ़िल्म हिट होने पर भी कोई पार्टी वगैरह नहीं रखते थे वो
फ़िल्मकार थे लेकिन अपने बच्चों को फ़िल्म से दूर रखते थे बिमल रॉय बहुत
सिगरेट पीते थे और इसी वजह से सिर्फ़ 56 साल की उम्र में कैंसर से उनकी मौत
हो गई सिगरेट ने एक महान फ़िल्मकार को हमसे हमेशा के लिए छीन लिया यथार्थवादी और समाजवादी के लिए विख्यात उनकी फ़िल्में मध्य वर्ग और
ग़रीबी में जीवन जी रहे समाज का आईना थीं अपने अंतिम दिनों में निर्देशक
बिमल रॉय एक फ़िल्म पर काम कर रहे थे जो कुंभ मेले पर आधारित थी फ़िल्म की
शूटिंग भी हुई.गुलज़ार इसका हिस्सा थे अगर यह फ़िल्म बनती तो शायद भारत का
पहला ऑस्कर भी बिमल रॉय ही लाते मधुबाला की भी इच्छा बिमल राय के साथ
काम करने की थी मधुबाला बिमल रॉय की फ़िल्म 'बिराज बहू' (1954 ) में काम
करना चाहती थीं उन्होंने बिमल रॉय के दफ़्तर के कई चक्कर लगाए लेकिन बिमल
उन्हें किसी कारण से फिल्म में कास्ट नहीं कर पाए ये भूमिका कामिनी कौशल को
मिल गई मधुबाला को अंतिम वक़्त तक इस बात का अफ़सोस रहा.अब ये
बेहद अफसोसजनक है की सिवाय एक डाक टिकट जारी करने के बिमल रॉय,का सम्मान
भारत सरकार ने कभी नहीं किया उन्हें कोई सम्मान नहीं मिला उनको जो प्यार और
सत्कार मिला वो उनके दर्शकों से ही मिला बिमल राय की सोच अपने समय से
आगे की थी वही कारण था की उनकी फिल्मो की नक़ल आज के दौर में भी हुई मधुमती
से प्रेरित होकर आज तक फ़िल्में बन रही हैं ऋषि कपूर की 'कर्ज़' (1980) और फ़राह
ख़ान की 'ओम शांति ओम '(2007) उसी पर आधारित थीं.बाद में संजय लीला भंसाली ने भी
'देवदास '(2002) बनाई, लेकिन वो 'देवदास' की ट्रेजेडी नहीं समझ पाए शायद बिमल दा
मर्म समझने की समझ इनमे से किसी के पास नहीं थी बिमल राय भले ही हमारे
बीच नहीं हैं, लेकिन उन्होंने फ़िल्मों की जो भव्य विरासत छोड़ी है वह
सिनेमा जगत् के लिए हमेशा अनमोल रहेगी
पवन मेहरा
(सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )
पवन मेहरा
(सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )
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