शम्मी कपूर और मोहम्मद रफ़ी |
रफ़ी साहेब की सबसे बड़ी विशेषता यह थी की वह जिस अभिनेता के लिए गाना गाते तो लगता था की की परदे पर वही अभिनेता गाना गा रहा है धर्मेंदर ,राजेंदर कुमार,जॉनी वॉकर, दलीप कुमार,की फिल्मो के गाने अगर आप सुनेगे तो आपको ये फर्क पता भी लगता है एक ऐसे ही अभिनेता थे शम्मी कपूर जिन के सफल करियर में रफ़ी साहेब की आवाज़ का अहम् रोल रहा है रफ़ी साहब की आवाज़ और शम्मी कपूर की अदाएं, एक दूसरे की पूरक कही जा सकती हैं, जैसे कि ..."दो जिस्म एक जान."...
शम्मी साहब अपनी फिल्मों के गीत-संगीत को बहुत अहमियत देते थे, इसलिए वे अपने नगमों की रिहर्सल के दौरान स्टूडियो में मौजूद रहना पसंद करते थे वे रफ़ी साहब की गायकी और उनके अंदाज़ के दीवाने तो थे ही शम्मी कपूर कहते थे कि ......."रफ़ी भाई, आप जैसा गाएंगे, मैं वैसी ही एक्टिंग करूंगा" तो रफ़ी साहब कहते कि "आप जैसी एक्टिंग करेंगे, मैं वैसा ही गाऊंगा." .कुछ ऐसी जुगलबंदी थी दोनों में ....एक बार फिल्म “एन इवनिंग इन पेरिस” (1967) की शूटिंग के दौरान शम्मी कपूर, विदेश में थे,और रफ़ी साहब बम्बई में शंकर जयकिशन के साथ,हसरत जयपुरी साहब के लिखे नायाब नगमे “ 'आसमान से आया फरिश्ता ” को रिकार्ड करा रहे थे जब ये गाना शूट हुआ, शम्मी कपूर सोच रहे थे कि न जाने कैसे मेरे हाव-भाव से रफी साहब गाने को मैच कर पायेंगे ?
लेकिन जब उन्होंने गाना देखा तो आकर सीधे रफी साहब के घर पहुंचे और पूछा, ."आपने बिल्कुल मेरे हाव-भाव के मुताबिक कैसे गा लिया"
रफी साहब ने सरलता से कहा कि ......"मैं जानता था कि अगर ऐसी सिच्यूऐशन होती तो तुम ऐसे गाओगे, ऐसे पैर पटकोगे इसको इस तरह से ही गाओगे ".......ये सुनकर शम्मी कपूर दंग रह गये और रफी साहब से लिपट गये यही वो वजह थी कि संगीतकार कोई भी क्यों न हो, शम्मी अपने नगमों के लिए हमेशा रफ़ी साहब को ही चुनते थे शम्मी कपूर हमेशा इस बात को मानते थे कि जो कामयाबी उन्हें हासिल हुई है उसमें रफ़ी साहब की आवाज़ का बहुत बड़ा और अहम योगदान है
लेकिन जब उन्होंने गाना देखा तो आकर सीधे रफी साहब के घर पहुंचे और पूछा, ."आपने बिल्कुल मेरे हाव-भाव के मुताबिक कैसे गा लिया"
रफी साहब ने सरलता से कहा कि ......"मैं जानता था कि अगर ऐसी सिच्यूऐशन होती तो तुम ऐसे गाओगे, ऐसे पैर पटकोगे इसको इस तरह से ही गाओगे ".......ये सुनकर शम्मी कपूर दंग रह गये और रफी साहब से लिपट गये यही वो वजह थी कि संगीतकार कोई भी क्यों न हो, शम्मी अपने नगमों के लिए हमेशा रफ़ी साहब को ही चुनते थे शम्मी कपूर हमेशा इस बात को मानते थे कि जो कामयाबी उन्हें हासिल हुई है उसमें रफ़ी साहब की आवाज़ का बहुत बड़ा और अहम योगदान है
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