ऑल इंडिया रेडियो के लिए रिकॉर्डिंग करती मुबारक बेगम |
इस अनपढ़ और निरक्षर गायिका ने फिल्मी दुनिया में प्रवेश के पहले दो अवसर गंवाए पहली बार संगीतकार रफीक गजनवी ने अपनी फिल्म में गाने का अवसर दिया स्टुडियो की भीड़भाड़ देखकर वह घबरा गईं और बिना गाए घर लौटी। इस प्रसंग के कुछ दिनों बाद राम दरयानी ने उन्हें अपनी फिल्म में गाने का अवसर दिया इस बार भी वे 'फ्लॉप' रहीं दो अवसर चूकने वाली इस गायिका को तीसरा अवसर फिल्म अभिनेता याकूब ने फिल्म "आइये" (1949) में दिया मुबारक बेगम का शर्मीलापन फिर आड़े आ रहा था उनके हाथ पैर काँप रहे थे फिल्म में उन्होंने गाया- 'मोहे आने लगी अंगड़ाई।' इस फिल्म के संगीतकार थे शौकत देहलवी सन 1949 में 'आइए' नामक यह फिल्म प्रदर्शित हुई और फिर अंगड़ाई के साथ मुबारक बेगम ने ऊंचाई तक पहुंचने वाली सीढ़ियों पर कदम रखा इसके बाद 1951 में प्रदर्शित 'फूलों का हार' फिल्म में सभी गीत गाए उस जमाने में गायकों और पार्श्व गायकों का पारिश्रमिक बहुत कम था सौ से लेकर एक सौ पचास रुपये प्रति गीत मिलते थे फूलों के हार के संगीत निर्देशक हंसराज बहल थे।
मुबारक बेगम 1950 और 1960 के दौरान बॉलीवुड की फिल्मों में एक लोकप्रिय
पार्श्व गयिका थी मुबारक बेगम भले ही पढ़ी लिखी नहीं थीं, मगर गीत
रिकॉर्डिंग के पहले उसे दो बार किसी से पढ़वा लेती थीं उन्हें एक-एक
शब्द कंठस्थ हो जाता। मजाल है कि कोई गलती हो जाए सन् 1961 में केदार
शर्मा की फिल्म 'हमारी याद आएगी' प्रदर्शित हुई इस फिल्म के शीर्ष गीत
'कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी' ने लोकप्रियता के नए कीर्तिमान
स्थापित किए इस फिल्म का संगीत स्नेहल भाटकर ने दिया था। इस गीत के
लिए वो जीवन भर पहचानी गई लोकप्रियता के इसी क्रम में फिल्म 'हमराही' (1963 ) का
गीत 'मुझको 'अपने गले लगा लो' भी आया।... शंकर-जयकिशन ने इस फिल्म को अपने
संगीत से संवारा था। शायद मुबारक बेगम अपनी प्रतिभा को भुनाने के लिए सक्षम नहीं थी फिल्म
जगत में जिस तरह की राजनिति और गुटबाजी हावी थी वो उस से हमेशा ही दूर रही यही कारण है की उनको ज्यादा मशहूर फिल्मों में काम नहीं मिला उन्होंने
हमेशा पैसे और संगीत में से सिर्फ अच्छे संगीत को ही तवज्जो दी ममता (1952 ) ,चार चाँद (1953), चांदनी चौक ,गुल बहार (1954 ) ,कंगन ,शाही
लुटेरा ,खानदान ,बारादरी (1955 ) मधुमति (1958 ) "हमारी याद आएगी " (1961 )
हमराही (1963 ) ,शगुन (1964 ) ,नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे, जुआरी ,सरस्वती
चन्द्र ((1968 ) गंगा मांग रही बलिदान (1980 ) उनकी कुछ चर्चित फिल्में
है जिनमे उन्होंने लता मंगेशकर समेत कई दिग्गज कलाकारों के साथ काम
किया
जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी के साथ मुबारक बेगम |
शायद बहुत ही कम लोग ये जानते है की के.आसिफ की फिल्म मुगले आज़म (1960) के लिए
नौशाद साहिब ने भी मुबारक बेग़म, शमशाद बेग़म और लता मंगेशकर की आवाज़ों
में एक क़व्वाली रिकार्ड की थी जिसे शकील बदायूंनी जी ने बड़े चाव से
लिखा था जिसके बोल थे "हुस्न की बारात चली मौसमे बहार में, दिल का
चमन, बन के दुल्हन, हो के मगन, झूम उठा प्यार में" लेकिन फिल्म की
लम्बाई अधिक हो जाने के कारण इस क़व्वाली को फिल्म से हटा दिया गया मुबारक बेग़म को कई सालो तक इस बात का बड़ा अफ़सोस रहा। मुबारक बेगम
पैसे में ज्यादा संगीत में अधिक रुचि रखती थी यही कारण है की उनके
हिस्से में कम फिल्में आई और जो फिल्में उन्होंने की उसमे जयादातर फिल्में
सी और बी ग्रेड की थी गाने भी चले पर उनका कोई विशेष लाभ मुबारक
बेगम को नहीं मिला
मुबारक जब बुलंदियों को छू रही थीं तभी फिल्मी दुनिया की राजनीति ने उनकी
शोहरत पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया मुबारक को जिन फिल्मों में गीत
गाने थे उन फिल्मों में दूसरी गायिकाओं की आवाज को लिया जाने लगा
मुबारक बेगम का दावा है कि फिल्म 'जब जब फूल खिले' ( 1965 ) का गाना 'परदेसियों से
ना अंखियां मिलाना' उनकी आवाज में रिकॉर्ड किया गया लेकिन जब फिल्म का
रिकॉर्ड बाजार में आया तो गीत में उनकी आवाज की जगह लता मंगेशकर की आवाज
थी कुछ ऐसा ही फिल्म काजल (1965 ) में भी हुआ 'अगर मुझे न मिले तुम' मूल रूप से उनकी आवाज में रिकॉर्ड कराए गए थे बाद में इन्हे बदल
दिया गया उनके इस हाल पर तरस खा कर लोग कहते थे की ....."मुबारक उड़ने भी न
पाई और इसके पर क़तर दिए गए ".ऐसा कई बार हुआ वर्ष 1981 में 'रामू
तो दीवाना है' फिल्म में 'सांवरिया तेरी याद में' उनके द्वारा गाया गया
गया अंतिम फिल्मी गीत रहा शायद मुबारक बेगम की सबसे बड़ी कमजोरी यही थी की उसे इस बेरहम फ़िल्मी दुनिया में बने रहने के हथकंडे नहीं आते थे कहते है की केदार शर्मा जी ने जब मुबारक बेगम जी से कभी तन्हाईयो मे हमारी याद से यह गीत गवाने के लिये बुलाया था तो गीत गाने से पहले उन्होंने केदार जी से कहा कि..'उन्होंने दो दिन से कुछ नही खाया है' केदार जी ने उन्हें खाना खिलाया और फिर ये उनकी जिंदगी का सबसे मशहूर गाना रिकार्ड किया
बॉलीवुड के साथ इतने साल गुजारने वाली मुबारक को वहां से भी कोई आसरा नहीं
मिला और वह गुमनामी के अंधेरों में खोती चली गईं बेकारी के साथ
मुफलिसी ने उनका दामन थाम लिया लेमिंग्टन रोड के बड़े फ्लैट का
किराया चुका पाना मुश्किल होने लगा। सुनील दत्त ने उनकी मुश्किल को समझा
और अपने प्रभाव का उपयोग कर जोगेश्वरी में सरकारी कोटे से उनको एक छोटा-सा
फ्लैट दिलवा दिया। उन्हें सात सौ रुपये माहवार की पेंशन भी मिलने
लगी। मुबारक बेगम अपने जीवन के आखरी दिनों में मुंबई के उपनगर जोगेश्वरी
में अपने, बेटा भाभी और पोती के साथ बेहराम बाग में एक एक बेडरूम के
अपार्टमेंट में रहती थी अपने अंतिम समय में अपनी पुत्री के 2015 में
हुए निधन से वो आहत थी यही नहीं उन्होंने अपने अंतिम साक्षात्कार में
बिना नाम लिए बॉलीवुड के प्रति भी नाराजगी जाहिर की और जैसा की होता
है की ये फ़िल्मी सिर्फ चढ़ते सूरज को सलाम करती है ... मई 2016 की , प्रेस
की रिपोर्ट के अनुसार मुबारक बेगम अस्पताल में थी और उनका परिवार ने
उनके मेडिकल बिलों का भुगतान करने में असमर्थ था, मुबारक बेगम की आमदनी एक
एकमात्र का जरिया उनके पति की केवल 3000 हज़ार रूपये महीना पेंशन थी उनके बेटे, हुसैन शेख, एक टैक्सी ड्राइवर के रूप में काम करते है ...
..इस प्रकार पूरा परिवार एक अनिश्चित आय पर निर्भर था हलाकि ये खबर भी
है की अभिनेता सलमान खान और लता मंगेशकर जी ने उनकी आर्थिक सहायता की
है
मुबारक बेगम का एक लंबी बीमारी के बाद जोगेश्वरी स्थित अपने घर में 18
जुलाई 2016 को निधन हो गया। वर्ष 2008 में इस गायिका को 'फिल्म्स
डिवीजन' ने याद किया। उन पर एक वृत्तचित्र बनाया गया इसे गोआ में
हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था सैकड़ों गीतों
और ग़ज़लों को मुबारक बेगम ने अपनी आवाज दी थी जिसके लिए उन्हें याद
किया जाता रहेगा भले ही मुबारक बेगम की आवाज के दीवाने दुनियाभर में
फैले हुए हैं। लेकिन उनके अपने पड़ोसी विश्वास नहीं कर पाते कि थे यह बूढ़ी,
बीमार और बेबस औरत वह गायिका थी जिसके गीत कभी कारगिल से कन्याकुमारी
तक गूंजते थे।.....
मुबारक बेगम- (1936--18 जुलाई 2016) |
No comments:
Post a Comment