पतंगा (1949 ) |
सन 1940 से 1950 तक का समय भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम युग कहलाता है इस साल बरसात,महल ,दुलारी, दिल्लगी, अंदाज़ ,बड़ी बहन जैसी सुपर हिट
फिल्में रिलीज़ हुई थी पतंगा 1949 की सांतवी सबसे ज्यादा कमाई करने
वाली हिंदी फिल्म है वर्मा प्रोडक्शंस के लिए एच.एस रवैल ( हरनाम
सिंह रवैल ) द्वारा पतंगा को निर्देशित किया गया था ये फिल्म सी
रामचन्द्र के मधुर संगीत के लिए जानी जाती है केवल सी.रामचन्द्र के
कर्णप्रिय गीतों के कारण पतंगा बॉक्स ऑफिस पर हिट रही फिल्म पतंगा में शमशाद बेगम का गाना 'मेरे पिया गए रंगून' आज
भी हिंदुस्तानियों की जुबान पर है, यह अलग बात है कि वास्तविक गाने से
ज्यादा युवा पीढ़ी को इसका रिमिक्स ज्यादा याद होगा लेकिन एक जमाना वो भी
था जब भारतवासी विदेश के नाम पर सिर्फ रंगून ही जानते थे निगार
सुल्ताना और गोप पर फिल्माए गए गीत" मेरे पिया गए रंगून वहां से किया हैं
टेलीफ़ोन " गाने ने तो उस समय तहलका मचा दिया आज भी यह फिल्म
केवल इस गाने के दम पर याद की जाती है इस गीत को सी रामचन्द्र
और शमशाद बेगम ने अपनी जादुई आवाज़ से अमर कर दिया 'पतंगा' में रंगून से
टेलीफोन पर नायक की विरह वेदना को व्यक्त करनेवाला पुरुष स्वर चितलकर
रामचन्द्र यानि सी.रामचद्र का ही है जिनको संगीतप्रेमी और उनके चाहने वाले अन्ना के नाम से भी जानते है
निगार सुल्ताना और श्याम |
आखिर बड़े नाटकीय अंदाज़ से उनको नौकरी मिल जाती है राजा रानी को चाहने लगता है रानी थिएटर की दुनिया का एक जाना पहचाना नाम बन जाती है रानी एक जागीरदार के लड़के श्याम (श्याम ) की मोहब्ब्त में पड़ कर राजा को भूल जाती है श्याम के पिता ( जागीरदार ) एक रसूखदार आदमी है जो अपने बेटे की शादी अपने दोस्त की बेटी पूर्णिमा ( पूर्णिमा ) से बचपन में ही तय कर चुके है वह अपने बेटे की शादी नाचने वाली रानी के साथ करने को राजी नहीं होते वो नाथा राम गोप और उसकी थिएटर कंपनी को बर्बाद करने की धमकी देते है राजा अपना प्यार कुर्बान कर के श्याम की शादी रानी से करवाने को तैयार हो जाता है .......लेकिन रानी श्याम की शादी पूर्णिमा से करवा देती है और कहती है की यही उसका सच्चा प्यार है ...... रानी राजा को ढूंढती है वो उसे उसी ट्रेफिक सिग्नल पर खड़ा मिलता है जहाँ वो उसे पहली बार मिला था दोनों का मिलन होता है और फिल्म का सुखद अंत ......
लाला याकूब |
निगार सुल्ताना ,याकूब, गोप , श्याम, पूर्णिमा , कुक्कू ,शयामा ,राज मेहरा ,
रणधीर, मोहन, रमेश सिन्हा के अभिनय से सजी इस फिल्म का विशेष आकर्षण सिर्फ
गोप और याकूब की अमर जोड़ी है दोनों को हमारे हिंदी सिनेमा का "लॉरेल
एन्ड हार्डी ''भी कहा जाता है दोनों में गज़ब की कैमिस्ट्री और टाइमिंग
है जो आज कल के किसी भी कलाकार में कम ही देखने को मिलती है जुबली
कुमार यानी राजेंद्र कुमार की फिल्मी दुनिया में ये पहली फिल्म थी बतौर
सहायक निर्देशक इस फिल्म में उन की एक छोटी सी भूमिका भी थी भगवानदास वर्मा जो पतंगा के निर्माता थे उन्होंने बाद में पूर्णिमा से शादी कर उनके पति बने पूर्णिमा का असली नाम “ मेहरबानों ” था पूर्णिमा के बेटे का बेटा याने पोता आज का बहू चर्चित और किसिंग स्टार “ इमरान हाशमी ” है, पतंगा के अभिनेता श्याम महशूर साहित्कार सादत हसन मंटो के घनिष्ट मित्र थे सादत हसन मंटो ने अपनी पुस्तक "सितारे फ्रॉम अदर स्काई" में अपने करीबी दोस्त श्याम को पूरा एक अध्याय समर्पित था 1951 में फिल्म ''शबिस्तान '' की शूटिंग के दौरान अभिनेता श्याम की दुःखद मौत हो गई थी
पूर्णिमा |
राजेंदर कृष्ण के लिखे गाने मेरे पिया गए रंगून वहां से किया हैं टेलीफ़ोन "
दिल से भुला दो तुम हमें , ओ दिलवालो दिल का लगाना अच्छा है ,कभी खामोश हो
जाना ठुकरा कर मुझ को जाने वाले गोरे गोरे मुखड़े पर गेसू जो छा गए बोलो जी
दिल लोगे तो क्या दोगे , पहले तो है नमस्ते नमस्ते , मोहब्बत की खुशी कभी
खामोश हो जाना , प्यार के जहाँ की ये निराली , बलम तुझे मेरा सलाम
कर्णप्रिय थे जिनको सी रामचद्र ,शमशाद बेगम ,लता मंगेशकर,मोहमद रफ़ी
ने अपनी आवाज दी ये मधुर गाने पहली ही बार सुनने वाले के दिल में उतर जाते है और वो उन्हें बिना गुनगुनाये नहीं रह पता...फिल्म 'पतंगा' के गानो की एक खास बात ये है इसके सबसे ज्यादा रिमिक्स बने है जिसे आज की पीढ़ी भी सुन रही है
अगर आप का मूड सही नहीं और उदास बैठे है तो मधुर संगीत और हास्य रस में डूबी पतंगा देखे यकीनन आप को गोप और याकूब की जोड़ी,पूर्णिमा और निगार सुल्ताना का अभिनय , डांसर कुक्कू का शानदार गीत निराश नहीं करेंगे लेकिन ये भी सच्चाई है की फिल्म पतंगा को देखने के बाद आपको सी. रामचंद्र के संगीत के आलावा सिर्फ याकूब और गोप लम्बे समय तक याद रहेगे इन दोनों का अभिनय फिल्म की जान है
चितलकर रामचन्द्र यानि सी.रामचद्र |
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