साल 1957 हिंदी सिनेमा के लिए बेहद खास रहा इस साल महबूब खान की फिल्म मदर
इंडिया रिलीज हुई जो उस दशक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म तो थी ही
साथ ही ऑस्कर के लिए फॉरेन लैंग्वेज फिल्म कैटगरी में नॉमीनेट होने वाली
पहली भारतीय फिल्म बनी ....मदर इंडिया बनाना महबूब खान का एक भव्य सपना था
महबूब खान अपनी फिल्म औरत (1940) से बेहद प्रभावित थे और उसे दुबारा भव्य
स्तर पर रंगीन में बनाना चाहते थे महबूब मियाँ हालीवुड से बेइंतिहा
मुतास्सिर थे वे सिसिल बी डिमेले की भव्य फिल्मों की तरह फिल्में बनाने का
ख्वाब किशोरावस्था से देखते थे पर अपनी फिल्मो में उस भव्यता को आवरण की
तरह इस्तेमाल करना चाहते थे ताकि फिल्मों की रूह सौ फीसदी हिंदुस्तानी रही इसमें वो कामयाब भी रहे मदर इंडिया इसका का जीता जागता सबूत है
मदर इंडिया में नर्गिस ने मुख्य भूमिका राजकपूर के मना करने के बाद भी
स्वीकार कर चुकी थी लेकिन शायद ज्यादा लोग नहीं जानते की महबूब खान
,बिरजू, के रोल के लिए उस समय के मशहूर हॉलीवुड स्टार 'साबू दस्तगीर ' को
लेना चाहते थे आज हम बिरजू के रोल के लिए सुनील दत्त साहेब का लोहा
मानते है लेकिन वो महबूब खान की पहली पसंद नहीं थे उन्हें ये रोल मजबूरी
में मिला था हॉलीवुड स्टार 'साबू दस्तगीर ' यूनिवर्सल पिक्चर्स
की थीफ़ ऑफ़ बग़दाद(1940 ) अरेबियन नाइट्स (1942), ,जंगल बुक (1942 ) व्हाइट
सैवेज (1943) और कोबरा वूमन (1944) में काम कर चुके थे और भारत में भी लोग
उन्हें बखूबी जानते थे और उनकी फेंटसी फिल्मो के दीवाने थे साबू
दस्तगीर मैसूर ( ब्रिटिश भारत ) में पैदा हुए थे 1944 में एक अमेरिकी
नागरिक बनने के बाद उन्होंने संयुक्त राज्य सेना की सेना में शामिल होकर बी
-24 लाइबेरेटर पर गनर के रूप में कार्य किया था उनकी वीरता और और बहादुरी
के लिए अमेरिकी सरकार ने प्रतिष्ठित फ्लाइंग क्रॉस से सम्मानित भी किया था
उन्हें अमेरिका की नागरिकता मिल चुकी थी जब वह 13 साल के थे तो
डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता रॉबर्ट फ्लैहर्टी उन्हें फिल्मो में लेकर आये
थे मदर इंडिया में बिरजू के रोल के लिए साबू दस्तगीर के साथ मिलकर महबूब
खान सारी तैयारी कर भी ली और वो शूटिंग के लिए भारत आने वाले थे लेकिन एक
समस्या आ खड़ी हुई उस समय के अमेरिका और भारत के नियमो के अनुसार उन्हें
भारत में काम करने के लिए जरुरी वर्क परमिट नहीं मिल सका........साबू दस्तगीर
भारत नहीं आ सके .....
साबू दस्तगीर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक और हॉलीवुड फिल्मो के अभिनेता थे |
अब महबूब खान साहेब का परेशान होना लाज़िमी था पूरी यूनिट शूटिंग के लिए
तैयार थी और और अन्य कलाकारों की डेट्स भी समयनुसार फाइनल थी अब
बिरजू के अहम् रोल के लिए महबूब खान दलीप कुमार के पास गए क्योंकि दलीप
साहेब पहले बिरजू के रोल में दिलचस्पी दिखा चुके थे .........लेकिन बात
फिर नहीं बनी ............अब नरगिस ने दिलीप कुमार के साथ काम करने से इंकार कर दिया
नरगिस ने दलीप साहेब के साथ अंदाज़, (1949) बाबुल (1950) और दीदार (1951) जैसी सुपरहिट रोमांटिक
फिल्मे की थी लेकिन बिरजू का रोल ठीक इसके विपरीत था यानि मां और बेटे का
.......नरगिस का मानना था की भारत की संकुचित मानसिकता वाले दर्शक उन्हें
और दलीप कुमार को मां बेटे के रोल में कतई कही देखना चाहेगे ...वो अलग बात
थी की नरगिस खुद इस फिल्म में एक 80 साल की वृद्धा का रोल कर रही थी नरगिस ने लीड रोल में उम्र के कई पड़ावों को अपने अभिनय के भिन्न भिन्न शेड्स के साथ परदे पर दिखाया दो जवान बेटों की मां बनीं नरगिस की तब उम्र मात्र 26 वर्ष थी
महबूब खान ,सुनील दत्त, राजेंदर कुमार, नर्गिस मदर इंडिया के सेट पर |
अब ऐसे में महबूब को बहुत सोचने के बाद बिरजू के रोल के लिए सुनील दत्त के
पास गए सुनील दत्त साहेब बिरजू के रोल के लिए सहर्ष मान गए .......कहते है समय से आगे इंसान का भाग्य चलता है सुनील दत्त से साथ भी यही हुआ बिरजू का रोल न सिर्फ उनके अभिनय के रास्ते का मील का पत्थर साबित
हुआ बल्कि इस फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्हें नरगिस जैसी जीवन संगिनी भी मिली फिल्म की शूटिंग के दौरान एक सीन फिल्माया जा रहा था जिसमें आग लगाई गई थी नरगिस सचमुच आग से घिर गई थीं सुनील दत्त रियल लाइफ में भी हीरो बन कर आग
में कूद गए और नरगिस को सकुशल बचा कर ले आए। साथ में उन्होंने नरगिस का
दिल भी जीत लिया बाद में दोनों ने शादी कर ली सुनील दत्त और नर्गिस को हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत दाम्पंत्य जोड़ी माना जाता है अगर उस दिन विदेशी अभिनेता साबू दस्तगीर को भारत में काम करने का वीजा मिल जाता तो शायद हम मदर इंडिया में बिरजू के रोल में सुनील दत्त को नहीं साबू दस्तगीर को देख पाते
भगवान जो करता है अच्छे के लिए ही करता है इसमें कोई शक नहीं की यह नरगिस की बेहतरीन फिल्म मानी जाती है लेकिन दर्शको को बिरजू के किरदार के भी कई शेड्स देखने को मिले बिरजू थोड़ा बदमाश और गुस्से वाला है जो अपने माँ के हाथो में पहने कंगन का मोल अच्छी तरह जानता है वो अपने पारिवारिक मूल्यों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सका है यहाँ तक की अंत में अपनी जान भी दे देता है अब इस तरह का रोल वही व्यक्ति कर सकता था जिसे भारतीय ग्रामीण जीवन और किसानो की दुर्दशा के बारे में पता होता जिसके मन में सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश होता मेरे ख्याल से साबू दस्तगीर विदेशी होने के कारण इस बिरजू की भूमिका से सही न्याय नहीं कर पाते और फिर हिन्दुस्तान के सिने प्रेमियों को सुनील दत्त के रूप में उसका लाडला ''बिरजू '' भी नहीं मिल पाता ......25 अक्टूबर 2017 को हिंदी फिल्म इतिहास की सर्वोत्तम फिल्मों में से मानी जाने वाली 'मदर इंडिया' को रिलीज हुए 60 वर्ष पूरे हो गए इतने समय बाद भी इस फिल्म को आज भी याद किया जाना दर्शाता है कि कुछ कृतियों पर समय का कोई असर नहीं पड़ता है उन्हें युवा पीढ़ी आज भी बार बार नए माध्यमों से देखना पसंद करती है
पवन मेहरा
(सुहानी यादे ...बीते सुनहरे दौर की ...)
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