1913 में राजा ' हरीश चंद्र ' के साथ मूक फिल्मो के बनने का दौर शुरू तो हो गया लेकिन सभ्रांत महिलाओं को फिल्मो में काम करने की इज़ाज़त नहीं थी महिलाओं के रोल पुरुषो द्वारा निभाए जाते थे या मुंहमांगे दाम मिलने पर इक्का दुक्का रोल पेशेवर वैश्याएं फिल्मो में करती थी इन वेश्याओ की फीस बहुत ज्यादा होती थी इसलिए हर किसी फिल्म निर्माता के लिए उन्हें अपनी फिल्म में लेना संभव नहीं होता था लेकिन एक नाम उस दौर में इस मिथक का अपवाद रहा या कहे की इस नाम ने चली आ रही उस अवधारणा को ही ध्वस्त कर दिया 1926 में 'बुलबुले ए परिस्तान 'नाम
की फिल्म भारत में प्रदर्शित होती है वैसे तो ये एक सामान्य फंतासी फिल्म
थी जिसमे ट्रिक फोटोग्राफ़ी का बेहतरीन इस्तेमाल किया गया था लेकिन यह फिल्म 'बुलबुले-ए-परिस्तान इसलिए चर्चित रही क्योंकि इसके साथ एक महिला निर्देशक फातिमा बेगम का नाम जुड़ा था जबकि उस समय ज्यादातर पारसी और एंग्लो इंडियन पुरुष फिल्म निर्माताओं,निर्देशकों का भारतीय फिल्म इंडस्ट्रीज़ में बोलबाला था एक रूढ़िवादी परिवार की किसी मुस्लिम महिला का फिल्म निर्माण में हाथ आज़माना वाकई एक क्रांतिकारी कदम था इसके लिए उन्हें न जाने कितने विरोधो और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा
बेगम फातिमा एक दृढ निशचय और हौंसले वाली महिला थी बेगम फातिमा ने उर्दू रंगमंच से अपना कैरियर शुरू किया बाद में वह फिल्मों में चली गई वो एक गौर वर्णीय महिला थी जो ब्लैक एन्ड वाइट परदे पर अपने गाढ़े मेकअप के कारण सुन्दर दिखती थी बेगम फातिमा ने आर्देशिर ईरानी की मूक फिल्म वीर अभिमन्यु (1922) से शुरुआत की फातिमा बेगम एक भारतीय अभिनेत्री, निर्देशक और पटकथा लेखक रही है लेकिन उन्हें भारतीय सिनेमा की पहली महिला फिल्म निर्देशक के रूप में ही याद किया जाता है एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से होने बावजूद उन्होंने उस समय 'बुलबुले ए परिस्तान ' का निर्देशन किया जबकि उस समय भी पुरुषों के लिए नाटकों और फिल्मों में महिलाओं की भूमिका करना आम बात थी क्योंकि महिलाये अब भी फिल्मो में काम करना अच्छा नहीं समझती थी वर्ष 1926 फ़िल्मी इतिहास में इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी वर्ष आर्देशिर ईरानी ने इंपीरियल फिल्म और पंजाब फिल्म कॉरपोरेशन की स्थापना लाहौर में की ....जेबुन्निसा, रूबी मेयर्स, मजहर खां, याकूब खां और जाल मर्चेंट आदि कलाकार ईरानी की इम्पीरियल फिल्म कम्पनी की ही देन हैं वर्ष 1926 में प्रर्दशित आर्देशिर इरानी की फिल्म ‘बुलबुले’ परिस्तान ' पहली फिल्म थी जिसका निर्देशन एक महिला ने किया था फिल्म में जुबैदा, सुल्ताना और पुतली ने मुख्य भूमिका निभाई थीं आर्देशिर ईरानी और रुस्तम ईरानी (एक बहुमुखी वकील जो बाद में इंपीरियल स्टूडियोज का प्रबंधन कर चुके है ) इस फिल्म के सिनेमेटोग्राफर थे 1926 में फातिमा बेगम ने फ़ातिमा फिल्म्स की स्थापना की,जिसे बाद में 1928 में विक्टोरिया-फ़ातिमा फिल्म्स के नाम से जाना जाने लगा ..............जल्दी बेगम फातिमा फंतासी सिनेमा के लिए एक अग्रणी नाम बन गई उन्होंने शुरुआती फिल्मो में विशेष प्रभावों के लिए नकली ट्रिक फोटोग्राफी का भरपूर इस्तेमाल किया इसके लिए उनकी तुलना फ़्रांस के मशहूर फिल्म अभिनेता ,निर्माता ,सेट डिजाइनर George Melies से भी की जाती है वह कोहिनूर स्टूडियोज और इंपीरियल स्टूडियोज में एक मात्र ऐसी अभिनेत्री थी जो अपनी फिल्मों में लेखन, निर्देशन, उत्पादन और अभिनय सभी करती थी बेगम फातिमा ने एक अच्छी कहानी लिख कर एक शानदार फतांसी से भरी परी कथा 'बुलबुले ए परिस्तान ' बना कर दर्शको को मुग्ध कर दिया दर्शक उड़ती सुंदर परिया और जादुई दृश्य देखने सिनेमा हालो तक खींचे चले आये .........वीर अभिमन्यु (1922 ),नेकी का ताज (1925 ) ,बम्बई की मोहिनी (1925),गुल-ए-बकावली (1924 ),काला नाग ( 1924 ), पृथ्वी वल्लभ (1924 ) कुछ मशहूर फिल्मे रही जिनमे उन्होंने अभिनय किया और Goddess of Love (1927 ) ,हीर राँझा (1928 ),चंद्रावती (1928 ),शकुंतला ,मीनार दीनार ,Goddess of Luck ,बुलबुले-ए-परिस्तान (1926 ) फिल्मो को उन्होंने निर्देशित किया
बेगम फातिमा एक दृढ निशचय और हौंसले वाली महिला थी बेगम फातिमा ने उर्दू रंगमंच से अपना कैरियर शुरू किया बाद में वह फिल्मों में चली गई वो एक गौर वर्णीय महिला थी जो ब्लैक एन्ड वाइट परदे पर अपने गाढ़े मेकअप के कारण सुन्दर दिखती थी बेगम फातिमा ने आर्देशिर ईरानी की मूक फिल्म वीर अभिमन्यु (1922) से शुरुआत की फातिमा बेगम एक भारतीय अभिनेत्री, निर्देशक और पटकथा लेखक रही है लेकिन उन्हें भारतीय सिनेमा की पहली महिला फिल्म निर्देशक के रूप में ही याद किया जाता है एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से होने बावजूद उन्होंने उस समय 'बुलबुले ए परिस्तान ' का निर्देशन किया जबकि उस समय भी पुरुषों के लिए नाटकों और फिल्मों में महिलाओं की भूमिका करना आम बात थी क्योंकि महिलाये अब भी फिल्मो में काम करना अच्छा नहीं समझती थी वर्ष 1926 फ़िल्मी इतिहास में इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी वर्ष आर्देशिर ईरानी ने इंपीरियल फिल्म और पंजाब फिल्म कॉरपोरेशन की स्थापना लाहौर में की ....जेबुन्निसा, रूबी मेयर्स, मजहर खां, याकूब खां और जाल मर्चेंट आदि कलाकार ईरानी की इम्पीरियल फिल्म कम्पनी की ही देन हैं वर्ष 1926 में प्रर्दशित आर्देशिर इरानी की फिल्म ‘बुलबुले’ परिस्तान ' पहली फिल्म थी जिसका निर्देशन एक महिला ने किया था फिल्म में जुबैदा, सुल्ताना और पुतली ने मुख्य भूमिका निभाई थीं आर्देशिर ईरानी और रुस्तम ईरानी (एक बहुमुखी वकील जो बाद में इंपीरियल स्टूडियोज का प्रबंधन कर चुके है ) इस फिल्म के सिनेमेटोग्राफर थे 1926 में फातिमा बेगम ने फ़ातिमा फिल्म्स की स्थापना की,जिसे बाद में 1928 में विक्टोरिया-फ़ातिमा फिल्म्स के नाम से जाना जाने लगा ..............जल्दी बेगम फातिमा फंतासी सिनेमा के लिए एक अग्रणी नाम बन गई उन्होंने शुरुआती फिल्मो में विशेष प्रभावों के लिए नकली ट्रिक फोटोग्राफी का भरपूर इस्तेमाल किया इसके लिए उनकी तुलना फ़्रांस के मशहूर फिल्म अभिनेता ,निर्माता ,सेट डिजाइनर George Melies से भी की जाती है वह कोहिनूर स्टूडियोज और इंपीरियल स्टूडियोज में एक मात्र ऐसी अभिनेत्री थी जो अपनी फिल्मों में लेखन, निर्देशन, उत्पादन और अभिनय सभी करती थी बेगम फातिमा ने एक अच्छी कहानी लिख कर एक शानदार फतांसी से भरी परी कथा 'बुलबुले ए परिस्तान ' बना कर दर्शको को मुग्ध कर दिया दर्शक उड़ती सुंदर परिया और जादुई दृश्य देखने सिनेमा हालो तक खींचे चले आये .........वीर अभिमन्यु (1922 ),नेकी का ताज (1925 ) ,बम्बई की मोहिनी (1925),गुल-ए-बकावली (1924 ),काला नाग ( 1924 ), पृथ्वी वल्लभ (1924 ) कुछ मशहूर फिल्मे रही जिनमे उन्होंने अभिनय किया और Goddess of Love (1927 ) ,हीर राँझा (1928 ),चंद्रावती (1928 ),शकुंतला ,मीनार दीनार ,Goddess of Luck ,बुलबुले-ए-परिस्तान (1926 ) फिल्मो को उन्होंने निर्देशित किया
एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार ने जन्मी फातिमा बेगम की शादी सहचिन रियासत ( गुजरात ) के नवाब सिद्दी इब्राहिम मुहम्मद याकूत खान से हुई उनकी तीन संताने थी जुबेदा,सुलोचना और शहज़ादी .....उनकी विरासत उनकी बेटी अभिनेत्री ज़ुबेदा ने आगे बढ़ाई जिसने एक मूक फिल्म स्टार के अलावा, भारत की पहली टॉकी, आलम आरा (1931) में काम किया ज़ुबेदा को हिंदी सिनेमा की पहली बोलती फिल्म ''आलम आरा (1931) '' की नायिका होने का गौरव प्राप्त है बुलबुले ए परिस्तान में काम करने वाली अभिनेत्रियां ज़ुबेदा और सुल्ताना उनकी सगी बेटिया थी .....अफ़सोस इतिहास रचने वाली फातिमा की फिल्म 'बुलबुले ए परिस्तान ' का अब कोई भी प्रिंट मौजूद नहीं है 1983 में इक्यानबे वर्ष की परिपक्व उम्र में बेगम फातिमा की मृत्यु हो गई अपने अंतिम समय और आखिरी फिल्म तक इन्होने कोहिनूर स्टूडियोज और इंपीरियल स्टूडियोज के लिए काम किया दुनिया क्या है ? (1938 ) उनकी अंतिम फिल्म थी ...........आज भारतीय महिलाये दुनिया के कोने कोने में अपना और देश का नाम रोशन कर रही है कई महिला फिल्म निर्देशकों गुरविंदर चड्डा ,कल्पना लाज़मी ,मीरा नायर की फिल्मे अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में शामिल होती है लेकिन लगभग एक सदी पहले इस असंभव कार्य की शुरूआत करने का श्रेय बेगम फातिमा को जाता है यहाँ आर्देशिर ईरानी का नाम लेना इसलिए आवयशक हो जाता क्योंकि उन्होंने बेगम फातिमा पर भरोसा किया और अपनी फिल्म 'बुलबुले ए परिस्तान 'उन्हें निदेशित करने के लिए दी कभी अभिनेता संजय दत्त की पत्नी रही रिया पिल्लै बेगम फातिमा की बेटी जुबेदा की ही पोती है
पवन मेहरा
(सुहानी यादे बीते सुनहरे दौर की )
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(सुहानी यादे बीते सुनहरे दौर की )
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