Wednesday, June 13, 2018

दादा मुनि 'अशोक कुमार ' की वो दिलकश भूल जिसे वो जिंदगी भर भुला नहीं पाये

अभिनेता अशोक कुमार
 कहानियाँ ,किस्से ,घटनाएँ यादो की अनमोल विरासत होती है जो आदमी की जिंदगी में चाहे ,अनचाहे स्मृति पटल पर दस्तक देती रहती जिसे याद कर आप अकेले में भी मुस्कुराये बिना नहीं रह पाते आज जो घटना मैं 'यादो के झरोखे से ' की श्रृंखला में आपको बताने जा रहा हूँ उसका सम्बन्ध हमारे हिंदी फिल्मो के लीजेंड दादामुनि 'अशोक कुमार' से है जिन्होंने अपने जीवंत अभिनय से आरम्भिक सिनेमा से ले कर आधुनिक हिंदी सिनेमा में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज़ करवाया अभिनेता अशोक कुमार को 'होमयोपैथिक' दवाइयों का अच्छा खासा ज्ञान था उनका कहना था की '' रोग तो रोग होता है वो कब सोचता है की मैं एक कलाकार को अपने पंजे में दबोच रहा हूँ उसकी नजर में सब बराबर है ''.... वो अक्सर अपनी पत्नी और बच्चो की छोटी मोटी बीमारियों का इलाज खुद करते रहते थे उन्हें ओषिधियों से प्रेम था 

एक बार उनकी पत्नी शोभा देवी सख्त बीमार हो गई ,बम्बई में डॉक्टरों को दिखाया पर कोई आराम पड़ता मालूम नहीं हुआ अशोक कुमार परेशान थे ऐसे में उनके एक बंगाली मित्र ने उन्हें कलकत्ता में एक डॉक्टर का नाम बता पत्नी शोभा देवी को दिखाने को कहा मित्र ने दावा  किया की वो डॉक्टर लगभग सभी बीमारियों का इलाज करते है अशोक कुमार अपनी अपने मित्र की बात मान पत्नी को उस कलकत्ते वाले डॉक्टर के पास ले जाने को तैयार हो गए उनके मित्र ने डॉक्टर से समय ले लिया और अशोक कुमार उनकी पत्नी और वो मित्र तय समय पर कलकत्ता पहुँच गए वो डॉक्टर केवल अपने घर पर ही मरीज़ो को देखते थे उनका कोई कलीनिक नहीं है मित्र साथ था तो डॉक्टर साहेब का घर ढूंढने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई उस डॉक्टर के घर में पहुँच कर अशोक कुमार अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे .......अशोक कुमार ने जब घर में इधर उधर नजर दौड़ाई तो उन्हें एक बात उन्हें बड़ी अजीब लगी वहां लगी वहा मौजूद अलमारियां राजनीति की पुस्तकों से भरी पड़ी थी वो ये सोच कर दुविधा में थे की एक डॉक्टर के घर में मेडिकल की पुस्तकों की बजाय राजनीति किताबो का क्या काम हो सकता है ? अभी अशोक कुमार असमंजस में ही थे की डॉक्टर साहेब का बुलावा आ गया  अपने मित्र और पत्नी को साथ लेकर वह डॉक्टर के केबिन में आ गए केबिन में जाकर अशोक कुमार जी फिर चौंक गए डॉक्टर साहेब गीता पढ़ रहे थे यहाँ भी राजनीति की पुस्तके डॉक्टर साहेब के अगल-बगल पड़ी थी और एक पुस्तक औंधे मुँह उनके टेबल पर पड़ी थी शायद वो उसे भी पढ़ रहे होंगे  ?.......औपचारिक बातो के बाद डॉक्टर साहेब ने उनकी पत्नी का चेकअप किया और बड़े शांत स्वभाव से दवाइयां लिखने में मशगूल हो गए अशोक कुमार ने अपने मित्र की और देखा और फिर अपनी पत्नी की और इशारा कर पूछा ...."डॉक्टर साहेब ये कब तक अच्छी हो जाएगी और आखिर उन्हें क्या बीमारी है ?

अशोक कुमार अपनी धर्म पत्नी शोभा देवी के साथ
डॉक्टर साहेब ने अपना चश्मा साफ़ करते हुए बड़े इत्मियान से कहा ......"आप घबराये नहीं इन्हे कोई खास बीमारी नहीं ,बस थोड़ा खाने पीने का परहेज़ करेगी तो जल्द अच्छी हो जाएगी आप ये दवाइयाँ समय पर देते रहे ....ये सुनकर अशोक कुमार और उनके मित्र को थोड़ी राहत मिली ......जब तीनो चलने लगे तो फीस की बात आई ....."मैं फ़ीस नहीं लेता"  .......डॉक्टर का जवाब सुन अशोक जी फिर हैरान जो गए उन्होंने डॉक्टर का धन्यवाद किया और केबिन से बाहर आने के लिए मुड़ गए  .........लेकिन अचानक अशोक कुमार वापिस मुड़े और डॉक्टर से मुखातिब हो कर बोले ......''डॉक्टर साहेब एक बात पूंछू ,आप बुरा तो नहीं मानेगे क्या आपकी राजनीति में कोई खास दिलचस्पी है ? '' अशोक कुमार मुंह से ये बात सुनकर उनके साथ आये मित्र उन्हें कुहनी मारने लगे और उनका कुर्ता खींच कर उन्हें ये बात नहीं पूछने को कहने लगे लेकिन अशोक कुमार को कुछ समझ नहीं आया  ...डॉक्टर साहेब ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया .....'' क्यों राजनीति कोई बुरी चीज़ है ? ....वैसे सच कंहू तो मुझे राजनीति विरासत में मिली है या आप कह ले ,घुट्टी में मिली है ...ये डॉक्टरी तो मेरा पेशा नहीं शौंक है " डॉक्टर साहेब का जवाब सुन अशोक कुमार जी डॉक्टर से विदा ले कर मित्र और पत्नी के साथ घर से बाहर आ गए 

घर से बाहर निकल कर उनके मित्र ने उन्हें कहा ....."यार तुम अजीब अहमक हो बंगाल के मुख्यमंत्री डॉक्टर डॉ॰ बिधान चंद्र राय से ही पूछ रहे थे की तुम्हारी राजनीति में दिलचस्पी क्यों है ? भला वो क्या सोचेंगे ?......अब उछलने की बारी अशोक कुमार की थी ......डॉ॰ बिधान चंद्र राय ?..... तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया की तुम मुझे उनके घर ले जा रहे हो ?.....मैं उस हस्ती से दो मिनट भी बात नहीं कर पाया " अशोक कुमार को अपनी भूल पर गुस्सा आ रहा था लेकिन वो मन मार के रह गए .......हालाँकि बाद में अशोक कुमार जी की मुलाकात डॉ॰ बिधान चंद्र राय से कई बार हुई लेकिन वो पहली मुलाकात वाली भेंट अनोखी थी जिसे वो पूरी जिंदगी नहीं भूल पाए दरअसल गलती उनके मित्र की थी जिसने उन्हें विस्तार से बताया ही नहीं था की वो किसके घर जा रहे है  ? उनको सिर्फ ये पता था की वो किसी डॉक्टर के घर जा रहे है

डॉ॰ बिधान चंद्र
अब बात उस डॉ॰ बिधान चंद्र की ....... डॉ॰ बिधान चंद्र राय एक मशहूर चिकित्सक तथा स्वतंत्रता सेनानी थे बिधान चंद्र के पूर्वज बंगाल के राजघराने से सम्बंधित थे और उन्होंने मुग़लों का जमकर मुकाबला किया डॉ बिधान चंद्र राय महाराजा प्रतापदित्य के वंशज थे वे पश्चिम बंगाल के द्वितीय मुख्यमंत्री रहे है 14 जनवरी 1948 से अपनी मृत्यु तक लगातार 14 वर्ष तक वे इस पद पर रहे उन्हे वर्ष 1961 में भारत रत्न से सम्मनित किया गया। विभाजन से त्रस्त तथा शरणार्थी समस्या से ग्रस्त प्रदेश के सफल संचालन में उन्होंने अपूर्व राजनीतिक कुशलता एवं दूरदर्शिता का परिचय दिया। बंगाल के औद्योगिक विकास के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहे दामोदर घाटी निगम और इस्पात नगरी दुर्गापुर बंगाल को डाक्टर राय की देन हैं एक वरिष्ठ चिकित्सक, शिक्षाशास्त्री, स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता और आजाद हिन्दुस्तान में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में डॉ॰ बिधान चंद्र एक नामचीन हस्ताक्षर हैं .........1 जुलाई 1962 को उनके जन्मदिन के ही दिन उनकी मृत्यु हुई उनके जन्मदिन 1 जुलाई को भारत मे 'चिकित्सक दिवस' के रूप मे मनाया जाता है। बिधानचंद्र राय एक महान विभूति थे। बंगाल में आज भी लोग उनका नाम बड़े आदर से लेते है  .......बाद में अशोक कुमार जी ने इस मजेदार घटना का जिक्र 14 जुलाई 1963 को छपी  मशहूर पत्रिका ' धर्मयुग ' के अंक में भी किया


2 comments:

  1. बेहद सुंदर दृष्टांत । आज तो राय साहेब राजनेता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है ।

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  2. Very nice, sir. I would quote this episode on my Doctor's Day speech next time.

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