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जानकी दास मेहरा |
आप लोगो ने अक्सर पुरानी फिल्मो में हीरो के दोस्त ,डॉक्टर,मुनीम,वकील,सेठजी ,खलनायक नेता आदि के रोल में चश्मा लगाए मोटी मोटी आँखों वाले ,जल्दी जल्दी बोलने वाले एक शख्स को किसी न किसी फिल्म में जरूर देखा होगा इस शख्स ने ज्यादातर चरित्र और कॉमिक रोल बखूबी निभाए ....परदे पर भले ही ये शख्स आपको कोई साधारण सा लगे पर हकीकत में इस शख्स की उपलब्धिया उसके नाम से कही ज्यादा बड़ी थी जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ हरफनमौला
'जानकी दास मेहरा ' की .....उनकी फिल्मो में ज्यादातर उनके चरित्र का नाम भी 'जानकी दास ' ही होता था और वो अपने मूल नाम से ही फ़िल्मी परदे पर आते थे उनका जन्म 1910 में लाहौर के समृद्ध पंजाबी परिवार में हुआ था अच्छी शिक्षा पाने के बाद उन्होंने ब्रिटिश अधीन भारत में स्पोट्स में नाम रोशन किया वो भी एक ऐसे खेल में जो ज्यादा पॉपुलर नहीं था शुरुआत से ही खेलों में रुचि दिखाने वाले जानकीदास 1934 से 1942 के बीच 'साइकिलिंग' में विश्व रिकार्ड बनाने वाले एकमात्र भारतीय रहे जानकी दास ने ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में आयोजित 1938 राष्ट्रमंडल खेलों में साइकिलिंग की चार स्पर्धाओं में हिस्सा लिया लेकिन वह कोई भी पदक नहीं जीत पाए। उन्होंने पुरुषों की 10 मील स्क्रेच रेस, 1000 मीटर टाइम ट्रायल, 1000 मीटर मैच स्प्रिंट पोजीशन और रोड रेस (100 किमी ) स्पर्धाओं में शिरकत की। राष्ट्रमंडल खेलों को तब 'ब्रिटिश एंपायर 'खेल कहा जाता था जानकी दास 1000 मीटर टाइम ट्रायल में तो 14 खिलाड़ियों में अंतिम स्थान पर रहे जबकि अन्य स्पर्धाओं में भी वह पदक के करीब नहीं पहुँच पाए। वह भले ही पदक जीतने में असफल रहे हों लेकिन साइकिलिंग में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे। इन खेलों में मेजबान ऑस्ट्रेलिया का दबदबा देखने को मिला और वह 25 स्वर्ण, 19 रजत और 22 कांस्य पदक के साथ पदक तालिका में चोटी पर रहा। इंग्लैंड 15 स्वर्ण, इतने ही रजत और 10 काँस्य पदक के साथ दूसरे स्थान पर रहा जबकि कनाडा ने 13 स्वर्ण 16 रजत और 15 कांस्य के साथ तीसरे स्थान पर कब्जा जमाया। ....... 1934 से 1942 के बीच उन्होंने साइकलिंग में आठ विश्व रिकॉर्ड तोड़ कर इतिहास बनाया उनका साइकिल चलाने का स्टाइल अपना ही था, जो
'जानकी दास साइकिलिंग स्टाइल' के नाम से मशहूर हुआ वो एक मात्र भारतीय थे जिन्होंने साइकिलिंग' में रिकॉर्ड तोडा वह “जानकी दास साइकिलिंग स्टाइल” आज भी विदेशों में लोकप्रिय है। 1936 में बर्लिन में हुए ओलंपिक गेम्स में वो एक मात्र भारतीय थे जो
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के सदस्य के रूप में कार्यरत थे 1940 के दशक
में उन्होंने सोहराब भूट के साथ भारत में साइकलिंग को बढ़ावा देने के लिए 'साइकलिंग फेडरेशन ' की स्थापना भी की। इस संघ ने ओलंपिक, एशियाई खेलों और अन्य सभी प्रमुख साइक्लिंगप्रतियोगिताओं में अपने देश की साइकिल चालकों की टीमों को भेजा। फिर देश की आज़ादी की लहर में 'जानकी दास ' बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने लगे महात्मा गाँधी के 'असहयोग आंदोलन' से प्रभावित हो उन्होंने ब्रिटिश हकूमत में जीते अवार्ड वापिस कर दिए और आज़ादी की लड़ाई शामिल हो गए उन्होंने विदेशी कपडे भी पहनना छोड़ दिया उन्होंने ज्यूरिख में विश्व स्पोर्ट्स कांग्रेस में भारत के राष्ट्रीय ध्वज ( आजादी पूर्व ) को उखाड़ फेंका और ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय बन गए
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मधुबाला के साथ फिल्म दौलत (1949 ) में जानकी दास
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उन दिनों सभ्रांत घरो के पढ़े लिखे लड़को का फिल्मो में काम करना अच्छा नहीं समझा जाता था और उन्हें भांड ,मिरासी , जैसे नामो से पुकारा जाता था उनके घरवाले इस बात से बेहद खफा थे की इतना पढ़ने लिखने और सफल खिलाडी और एथलीट के रूप में नाम कमाने के बाद उनका बेटा फिल्मो में काम करे अपने माँ बाप के विरोध के बावजूद जानकी दास जी ने पंचोली आर्ट्स पिक्चर की 'ख़जांची (1941 ) 'से फिल्मो में कदम रखा मर्डर मिस्ट्री पर आधारित इस फिल्म में उन्होंने एक खोजी पत्रकार की भूमिका निभाई थी गुलाम हैदर के संगीत में पंजाबी लोकगीतों और रागो के साथ किये गए प्रयोग के दम पर फिल्म 'ख़जांची' तो चल निकली पर जानकी दास को कोई खास फायदा नहीं हुआ इस बीच उन्हें फिल्मो में कुछ छोटे छोटे रोल मिले लेकिन कोई बड़ा रोल उन्हें ऑफर नहीं हुआ 1946 में आई व्ही शांताराम की ' डॉ कोटनिस की अमर कहानी ' में वो व्ही शांताराम के साथ डॉ मुखर्जी के रोल में नजर आये फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली जानकी दास ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा उन्होंने बॉलीवुड की फिल्मों में अभिनेता, प्रोडक्शन डिजाइनर और लेखक की
भूमिका निभाते हुए 1930 से 1997 के बीच एक हजार से भी अधिक फिल्मों में काम
किया ......बाबुल ( 1950 ) ,मयूर पंख ( 1954 ) , तीसरा कौन ( 1965 ) और तेरे घर के सामने (1963 ) फिल्मो में उनकी भूमिका अच्छी थी जानकीदास की कुछ अन्य मशहूर फ़िल्मों में दौलत (1949), फ़ुटपाथ (1953 ) लीडर, (1964) पड़ोसन (1968) और खिलौना, (1970) ,सीता और गीता (1972 ) ,देस परदेस (1978 ) के नाम भी लिए जा सकते हैं 1985 में आई 'यादो की कसम' की स्क्रिप्ट भी उनकी लिखी हुई थी जानकी दास मेहरा ने अपनी मातृभाषा पंजाबी सहित अन्य भाषाओं की फिल्मो में भी काम किया
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अभिनेता अजीत के साथ जानकी दास
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अभिनेता जानकी दास को हिंदी फिल्म इंडस्ट्रीज़ का पहला 'प्रोडक्शन डिज़ाइनर ' भी कहा जाता है उन्होंने पत्थर और पायल (1974 ) और वारंट (1975 ) जैसी कुछ फिल्मो में बतौर प्रॉडक्शन डिजाइनर भी काम किया फिल्म जगत में उन्हें मधुबाला, मीना कुमारी और माला सिन्हा जैसी सफल
अभिनेत्रियों के कैरियर को संवारने का श्रेय जाता है। उन्होंने सोहराब मोदी की फिल्म ‘दौलत’(1949) में मधुबाला को काम दिलाने में अहम भूमिका
निभाई। ,माला सिन्हा को किशोर साहू की हेमलेट (1954 ) और मीना कुमारी को नाना भाई भट्ट की हमारा घर ( 1950) में काम दिलवाया लेकिन यह फिल्मे बॉक्स ऑफिस पर अधिक सफल नहीं रही .......भावी फिल्म-निर्माण का आयोजन करना, किसी बंद पड़ी फिल्म के बिखरे
हुए सिलसिलों को जोड़ना, दो जरूरतमंद व्यक्तियों को आपस में मिला देना, या
ऐसे और बहुत से काम जानकीदास ने अपने जिम्मे लिये हैं। इसके लिए उन्हें
किसी ने प्रेरित नही किया। स्वभाववश उन्होंने इस काम को अपना लिया है। उनके जुहू निवास स्थान 'जानकी कुटीर' का ड्रांइग रूम हर समय खचाखचभरा रहता था ,मौके की तलाश कर रहे उभरते
कलाकारों, हीरो-हीरोइनों की तलाश में घबराये हुए प्रोड्यूसरों डायरेक्टरों,
अच्छी फिल्मों की उम्मीद में बैठे हीरो-हीरोइनों, संगीतकारों, गायकों,
फोटोग्राफरों, पत्रकारों इन सब का जमघट वहां लगा रहता है जानकी दास की सिफारिश पर ही सुनील दत्त ने अपनी फिल्म' दर्द का रिश्ता '(1982) में खुश्बू को लिया था खुश्बू बाद में दक्षिण भारत की एक बेहद कामयाब अभिनेत्री बनी जानकी दास एक लेखक भी थे और उन्होंने बॉलीवुड और अभिनय पर कई किताबें भी लिखी 1980 में उनकी लिखी '' ‘मिसएडवेंचर इन फिल्मलैंड’ और ‘एक्टिंग फार बिगनर्स’ '' फिल्म प्रेमियों में आज भी खासी लोकप्रिय है
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हास्य कलाकार टुनटुन के साथ जानकी दास |
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विनोद खन्ना और फ़िरोज़ खान के साथ जानकीदास
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अभिनेता सुनील दत्त के साथ जानकीदास |
एक समय था जब जानकी दास की फिल्मो में तूती बोलती थी और अपने समय के लगभग
सभी बड़े सितारों के साथ जानकी दास जी ने काम किया था बड़े -बड़े फिल्म स्टार ,निर्माता निर्देशक उन्हें सम्मान देते थे और फिल्मो से जुड़े हर छोटे बड़े मुद्दे पर जानकी दास से राय लेना नहीं भूलते थे भारतीय फिल्मोद्योग की प्रचीन परम्परा और वर्तमान विचारधारा तथा कार्यप्रणाली के संदर्भ में उन्होंने अनेको ठोस सुझाव दिए। ये उनकी मिलनसारिता और हंसमुख स्वभाव का ही परिणाम है कि सैकड़ो फिल्मों में एक साथ व्यस्त रहते हुए भी वे अपने शुभचिंतको के लिए समय निकाल लेते है और हर काम करने के लिए तैयार रहते है। देव आनंद उनके
सबसे करीबी दोस्तों में शुमार थे शायद बहुत ही कम लोग जानते होंगे की मुंबई के प्रसिद्ध
'पृथ्वी थियेटर' जिसकी की स्थापना शशि कपूर और जेनिफर कपूर द्वारा की गई थी उसकी अधिकतर गतिविधियां उस समय जानकी दास जी के जुहू निवास से ही संचालित होती थी ..... “ड्रीम गर्ल’ हेमामालिनी को पहली
बार फिल्म के पर्दे पर उतारने वाले तथा अभिनय का पहला पाठ पढ़ाने वाले
जोधपुर में जन्मे फिल्म निर्देशक
'महेश कौल ' जब आखिरी दिनों में मुंबई के
नानावटी अस्पताल में भर्ती थे तो आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे थे। बेहोशी की हालत में भी बड़बड़ाते रहते थे-”लाइट ऑन, कैमरा, एक्शन।’ उनके
अभिनेता मित्र जानकी दास को पता चला तो वे देव आनंद को लेकर अस्पताल गए। जानकीदास
ने कौल को नोट दिए तो उन्होंने कहा-
''मुझे दान दे रहे हो ?'' और सारे नोट फेंक
दिए। जानकीदास ने उन्हें समझाया-
''आप जो देव आनंद के लिए फिल्म 'एन
अपॉइंटमेंट विद डेस्टिनी’ लिख रहे हो, उसका एडवांस है यह।'' तब उन्होंने नोट
रख लिए। हालाँकि ऐसा कुछ था ही जानकी दास जानते थे की महेश कौल उनसे बिना
काम के पैसे नहीं लेगा उन्होंने महेश कौल के हाथ में नोटों की एक गड्डी थमाई और लौट गए। उनका मकसद सिर्फ महेश कौल की मदद करना था
जानकीदास अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्तित्व है और उन्होनें ऐस-ऐसे
कार्य किए है जिन पर कोई भी गर्व कर सकता है। खेल के मैदान में प्रसिद्ध
साइकोलोजिस्ट के रूप में चैम्पियन रहे है। देशभक्त के रूप में
महात्मा-गांधी से प्रेरणा लेकर यूरोप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने गौरव
प्राप्त किया। अंग्रेज़ी भाषा की अच्छी जानकारी रखने वाले अभिनेता जानकी दास
को कई
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और अवार्डो से भी नवाज़ा गया 'इंडियन
पिक्चर प्रोडूसर एसोसिएशन 'ने 1996 में 'लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड 'से
सम्मानित किया इसके अलावा,' फिल्म राइटर्स एसोसिएशन ' ने उन्हें उसी वर्ष भी सम्मानित किया। सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन ने 1997 में एक शॉल और सिल्वर ट्रॉफी के साथ जानकीदास जी को सम्मानित किया। 1986 में उन्होंने फिल्म उद्योग को टैक्स में राहत प्रदान
करने के सरकार के खिलाफ भूख हड़ताल भी की थी लेकिन शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे
के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने ये आंदोलन वापिस ले लिया
नब्बे के दशक के आते आते उन्होंने फ़िल्मी दुनिया से दूरी बना ली जिसका कारण जानकी दास का हृदय रोग से पीड़ित होना था लेकिन फिर भी उनके घर के दरवाज़े फिल्मो में संघर्ष करने वाले कलाकारो ,निर्माताओं ,और मदद के लिए आने वाले लोगो के लिए खुले रहते थे जानकीदास जब भी किसी से मिलते साइकिल प्रतियोगिताओं और वर्षों के अपने
कलाकार जीवन के रोचक अनुभव सुनाते थे खासकर पत्रकारों को बड़ी दिलचस्प बातें
बताया करते थे वह आख़िरी साँस तक फ़िल्मोद्योग से जुड़े रहे उसकी मृत्यु से दो दिन पहले उन्हें स्थानीय अस्पताल से छुट्टी दी गई थी। बुधवार 18 जून 2003 को उनके जुहू निवास में कार्डियक अटैक से
जुहू निवास में उनकी मृत्यु हो गई। उस समय वो वह 93 वर्ष के थे......आज भी मुंबई में उनके घर के पास एक चौंक को उनके नाम
'जानकी दास मेहरा चौंक 'के नाम से जाना जाता है यह चौक जुहू में सेंट जोसेफ चर्च और होटल होरिजन के बीच है सरकार ने उन्हें सम्मान देने के लिए इस चौंक का नाम उनके नाम पर रखा ........उनके दो बेटे और और दो बेटियाँ है उनका एक बेटा
'
शानू मेहरा ' फिल्म निर्माता है '
घर की महाभारत (1992 )' में शानू मेहरा
'अभिनय करते
नजर आये थे जिन्होंने फिल्म '
मुलाकात (2002 )'
,'प्यार का रोग (1994 ) 'भी
बनाई थी 'प्यार का रोग' में जानकी दास भी थे दुर्भाग्यवश ये फिल्मे नहीं चली.........आज भी जानकी दास जी की फिल्मो में उनका तकिया कलाम '
'मैं तो कहता हूँ की .... '' जब सुनने को मिलता है तो उनकी याद बरबस आ ही जाती है आज भी उनके घर के पास लगा पत्थर उनकी कहानी कुछ यूँ कहता है.....
'' जानकी दास एक अभिनेता, खिलाड़ी और स्वतंत्रता सेनानी थे ''
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1910 - 18 जून 2003 |
Good information
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