Sunday, July 15, 2018

जब राजकपूर ने देवानंद से कहा की .." हमारी फ़िल्मों से लोग हमें सदियों याद रखेंगे "


राजकपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार के बीच बहुत गहरी मित्रता थी उनको हमारी हिंदी सिनेमा की "त्रिमूर्ति " भी कहा जाता था आपस में कड़ी परिस्पर्धा होते हुए भी तीनो महान कलाकार एक दूसरे से हर दुःख सुख साँझा करते थे जिसकी मिसाल आज कल देखने पर नहीं मिलती ये तीनों जब भी मिलते तो खूब बाते करते कुछ बातें उनकी फ़िल्मों की होती तो कुछ उनकी निज़ी ज़िन्दगी की इतना ही नहीं राजकपूर साहब आर.के स्टूडियो में अपना मेकअप रूम किसी और को इस्तेमाल नहीं करने देते थे लेकिन सिर्फ देव साहब को ही इज़ाज़त थी कि उस मेकअप रूम को इस्तेमाल कर लें राजकपूर के आर.के स्टूडियो में देव साहब की कई फ़िल्मों की शूटिंग हुआ करती थी लेकिन देव आनंद और राजकपूर दोनों ने एक साथ किसी भी फिल्म में काम नहीं किया


दलीप कुमार और सायरा बानो के विवाह की घोषणा से सिने-जगत में खुशी की लहर दौड़ गई थी निकाह परंपरागत मुस्लिम रीति से हुआ।बरात की अगुवाई पापा पृथ्वीराज कपूर ने की थी। दूल्हे मियाँ सेहरा बाँधकर घोड़ी पर चढ़े थे और आजू-बाजू राज कपूर, देव आनंद चल रहे थे। इस विवाह का खूब प्रचार हुआ था और बड़ी संख्या  में लोग आए थे। संगीत और आतिशबाजी की धूमधाम के बीच जोरदार दावत हुई थी। राजकपूर दलीप कुमार की शादी में घोड़ी की लगाम पकड़ कर झूम झूम के नाचे थे दिलीप कुमार की शादी के बाद जब सायरा बानो जी अपने कमरे में दिलीप साहब का इंतज़ार कर रही थीं तब दिलीप साहब को राजकपूर और देव साहब उन्हें उनके कमरे के बाहर तक छोड़ने गए थे दिलीप साहब की देवानंद और राज कपूर दोनों से दोस्ती थी। लेकिन राज साहब के साथ उनके बड़े नज़दीकी रिश्ते थे। दोनों ही पाकिस्तान के पेशावर शहर में एक ही मोहल्ले, एक ही सड़क के रहने वाले थे। एक ज़माने में दिलीप कुमार भारत के सर्वश्रेष्ठ फ़ुटबॉल खिलाड़ी बनने का सपना देखते थे.खालसा कॉलेज में उनके साथ पढ़ने वाले राज कपूर जब पारसी लड़कियों के साथ फ़्लर्ट करते थे तो तांगे के एक कोने में बैठे शर्मीले दिलीप कुमार उन्हें बस निहारा भर करते थे दोनों ने एक साथ अभिनेता का सपना भी देखा  ..... बिलकुल भाइयों जैसा रिश्ता था उनका...और ये रिश्ता तब भी नहीं टूटा जब फिल्म 'संगम (1964 ) में राजकपूर कपूर दलीप कुमार को साइन करने गए और उन्होंने तल्खी के साथ उनकी फिल्म में काम करने से मना कर दिया

देव साहब थोड़ा अलग किस्म के शख़्स थे लेकिन उनके साथ भी दिलीप साहब ने बड़ी दोस्ती निभाई। हालांकि दोनों ने अपने फ़िल्मी कैरियर में सिर्फ एक ही फिल्म इंसानियत (1955 ) ही एक साथ की थी........राजकपूर के जन्म दिन पर उनके घर पर पार्टी होती तो देव साहब और दिलीप साहब का जाना निश्चित होता था अपना सारा काम छोड़-छाड़ कर राज कपूर के जन्मदिन पर अपने ज़माने के ये तीनों सुपरस्टार मिलते देवानंद हमेशा बताते थे कि ....."मैं किसी भी काम के लिए राज को बुलाऊं तो वो दौड़ा चला आता. ....मैं भी राज के बुलाने पर सारे काम छोड़ कर उनके साथ कहीं भी चला जाता.था "....एक बार देवआनंद अपनी फ़िल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा'- ( 1971) की शूटिंग के सिलसिले में मुमताज के साथ काठमांडू जा रहे थे तब किसी राजनैतिक पार्टी ने मुसीबत खड़ी कर दी और ऐलान किया कि वो इस फ़िल्म की शूटिंग नहीं होने देंगे वो लोग देव को रोकने एयरपोर्ट तक पहुंच गए, .....तब दिलीप जी एयरपोर्ट तक गए और देवआनंद की हिफाज़त में वहां खड़े रहे। सायरो बानो और दिलीप साहब दोनों ने फ़िल्म इंडस्ट्री के कई लोगों को इकट्ठा किया और देवआनंद के समर्थन में लिए एयरपोर्ट में जाकर डट गए। तब जाकर सही सलामत देव काठमांडू रवाना हो सके


इतना ही नहीं जब देवाआनंद की फ़िल्म गाइड (1965) रिलीज़ हुई थी तब राज कपूर लंदन में थे जैसे ही लंदन से लौटे बिना वक़्त देखे उन्होंने रात 2 बजे देव साहब को टेलीफ़ोन लगाया और उन्हें 'गाइड 'फ़िल्म के प्रिंट घर पर भेजने को कहा....पूरी फ़िल्म देखने के बाद राजकपूर ने सुबह 6 बजे फ़ोन किया और बधाई देते हुए कहा था- 'दोस्त कल जब हम लोग नहीं रहेंगे तब हमारी फ़िल्मों से हमें सब सदियों याद रखेंगे .'........ देवानंद अपनी आत्मकथा को दिलीप कुमार से लॉन्च कराना चाहते थे लेकिन दिलीप साहब की ख़राब सेहत के चलते ऐसा ना हो पाया और देव आनंद की ये इच्छा अधूरी ही रह गई आज जब हमारे फिल्म उद्योग में अभिनेता कम और स्टार ज्यादा है तो उन से ऐसी दोस्ती और मोहब्बत की अपेक्षा करना बेकार है वो पहले वाला प्यार और समर्पण आज कल के सौ करोड़ मूवी क्लब के स्टार में तो कतई नहीं है जो राजकपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार के बीच था जिसकी मिसाल दुनिया आने वाले कई युगों तक देती रहेगी

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