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" कटी पतंग " (1971) | |
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उपन्यास 'कटी पतंग' |
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गुलशन नंदा ' हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे जो 60 के दशक में बतौर लेखक सामने आए उनके आने से पहले ज्यादातर जासूसी उपन्यासकारो के उपन्यास ही युवा वर्ग में मशहूर थे कहते हैं उस समय उन्हें एक पुस्तक के मात्र 100-200 रुपए ही मिलते थे मगर उनकी पुस्तकों की कामयाबी के साथ-साथ उनकी कीमत भी बढ़ती गई एक दौर ऐसा आया कि उनके प्रकाशक उनको मुंहमांगे पैसे पेशगी देने लगे गुलशन नंदा दिल्ली के मशहूर होटलों में बैठकर उपन्यास लिखा करते थे वे पहले लेखक थे जिन्होंने हिंदी के लेखकों को ग्लैमर से परिचित करवाया ,उनकी शाहाना जिंदगी के उन दिनों किस्से छपा करते थे गुलशन नंदा ने संयोगों को कथानक का आधार बनाया उनके पास पूरा ‘मसाला फार्मूला’ मौजूद था अमीर-गरीब, जुड़वां भाई, जन्म-जन्मांतर का प्रेम, शहरी बाबू-गांव की छोरी का प्यार, बड़े आदमी की बेटी का किसी निम्नवर्गीय नायक के प्रेम में पड़ जाना जैसे कुछ सफल मुहावरे उस दौर में व्यावसायिक उपन्यासों के सफलता के फार्मूले माने जाने लगे इन कथानकों को अपनी शायराना भाषा में पिरोकर गुलशन नंदा ने एक ऐसी भाषा-शैली तैयार की उनकी किताबों को पाठक ‘दिल लगाकर’ पढ़ने लगे यह गुलशन नंदा का युग था उनके उपन्यास के विज्ञापन में लिखा रहता था -
‘गुल
तो बहुत हैं मगर एक हैं गुलशन नंदा.’
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उपन्यासकार 'गुलशन नंदा' |
वो ऐसा समय था की गुलशन नंदा के
उपन्यास पाने के लिए बुक स्टॉल्स में लाइन मे लगना पड़ता था पाठक दुकानों
में जा-जाकर पूछा करते थे-
"गुलशन नंदा का अगला उपन्यास कब आने वाला है."?
फिल्म वालों ने भी उन्हें हाथों-हाथ लिया गुलशन की
कहानियों
को आधार रख 1960 तथा 1970 के दशकों में कई हिन्दी फ़िल्में बनाई गईं ये
फिल्मे भी उनकी किताबों की ही तरह हिट भी होने लगी राम माहेश्वरी और
पन्नालाल माहेश्वरी की फिल्म
‘काजल’ (1965) से हिट फिल्मों का ऐसा सिलसिला
चला कि गुलशन नंदा का नाम फिल्म की हिट होने की ज़मानत बन गया 20
साल तक चले इस रिश्ते में फिल्मी दुनिया के सारे दिगज निर्माता-निदेशकों ने
इनकी कहानियों और पटकथाओं पर सफल फिल्में बनाईं इनमें शामिल हैं
यश
चौपड़ा, शक्ति सामंत, प्रमोद चक्रवर्ती, एल.वी.प्रसाद, रामानन्द सागर .....उनके
लगभग दो तिहाई उपन्यासों पर फ़िल्में बनी अभिनेता राजेंद्र कुमार को जुबिली
कुमार कहा जाता था उसी तरह इनको भी उन दिनों गुलशन नंदा को भी 'जुबिली लेखक 'कहा जाने लगा था इसके उपन्यास पर फिल्म बना लो समझो सिल्वर जुबिली पक्की ...... बाद में उनकी सफलता को
काका यानी राजेश खन्ना की सफलता से भी जोड़ा गया यह कहा जाने लगा
'या तो
काका को ले लो या गुलशन नंदा से फिल्म लिखवा लो, अगर दोनों हो तो सोने पे
सुहागा.... '
दाग' (1973) 'महबूबा' (1976) जैसी कुछ ज़बरदस्त सफल फ़िल्में इसका उदाहरण हैं सबकी कहानियाँ सीधे गुलशन नंदा के कलम से निकली थीं.
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राजेश खन्ना ,आशा पारेख और बिंदु |
शक्ति सामंत साहब
द्वारा निर्मित व निर्देशित 'कटी पतंग' (1970) फिल्म सुप्रसिद्ध उपन्यासकार गुलशन
नंदा के उपन्यास 'कटी पतंग' पर आधारित है। कटी पतंग' बड़ी ही विचित्र और नाजुक परिस्थितियों में घिरी एक सुन्दर युवती की कहानी है, कटी पतंग फिल्म के बनने
से पहले यह उपन्यास बाजार में आ गया था। यह उस समय का सबसे ज्यादा बिकने
वाला उपन्यास साबित हुआ था इसके स्क्रिप्ट में ज्यादा बदलाव की जरूरत
नहीं पड़ी क्योंकि यह अपने आपमें एक मुकम्मल स्क्रिप्ट जैसा था। सिर्फ
गानों के लिए सिचुएशन निकालने पड़े थे कुछ फ़िल्मी आलोचक गुलशन नंदा की इस कहानी को कॉर्नेल वूलरिच द्वारा लिखे
उपन्यास 'आई विवाइड ए डेड मैन' पर भी आधारित मानते है जिस पर 1950 में एक
हॉलीवुड फिल्म 'No Man of Her Own ' भी बन चुकी है जिसमे मशहूर
अभिनेत्री Barbara Stanwyck ने मुख्य रोल अदा किया था एक जापानी फिल्म Shisha to no kekkon (1960) से भी इसकी तुलना की जाती है कहा जाता है की गुलशन नंदा ने अपने उपन्यास का मूल आईडिया इस फिल्म से कॉपी किया था 1987 में 'कटी पतंग' को तेलुगू में 'पुणमनी चंद्रदु ' के नाम से भी बनाया गया था
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राजेश खन्ना ,आशा पारेख ,और शक्ति सामंत फिल्म के सेट पर |
शक्ति सामंत ने जब फिल्म कटी
पतंग शुरू की तो पहले राजेश खन्ना ने भी आनाकानी की थी। ये वो दौर था जब राजेश खन्ना तेज़ी से सुपर स्टार की कुर्सी की और बढ़ रहे थे उनकी फिल्म
'आराधना' (1969) हर जगह हिट हो रही थी और उनकी इमेज ट्विंकलिंग आइस के साथ एक जबरदस्त रोमांटिक हीरो की बन रही थी ,जबकि कटी पतंग में उनका रोल एक उदास और हताश प्रेमी का था ऐसे में राजेश खन्ना इस रोल को करने से बच रहे थे लेकिन बाद में वे मान
गए।...... राजेश खन्ना को मनाने के बाद हीरोइन तय करने की बारी आई। शक्ति सामंत आशा पारेख की 1970 में आई
'पगला कही का ' देख चुके थे उन्हें उसमे शक्ति सामंत को 'कटी पतंग 'की माधवी दिखाई दी उस समय
कोई अभिनेत्री इस तरह की भूमिका निभाना नहीं चाहती। मुमताज और शर्मिला
टैगोर ने इस भूमिका को करने से इंकार कर दिया। अंत में शक्ति सामंत ने आशा
पारेख से संपर्क किया और कहानी सुनाई। लेकिन उस समय यह डर भी था कि क्या वे विधवा के रोल में
दिखना पसंद करेंगी.?...... वजह साफ थी कि तब आशा पारिख की गिनती ग्लैमरस,
रोमांटिक तथा सफल हीरोइनों में होती थी। फिर भी शक्ति दा ने उनसे बात
करने के लिए हिम्मत जुटाया। वे कहानी लेकर आशा पारिख के पास पहुंचे।
स्क्रिप्ट सुनाने के लिए जैसे ही तैयार हुए आश्चर्य में पड़
गए।.....उन्हें आशा पारिख ने बताया
.... ''सर मैंने वह उपन्यास पढ़ लिया है। मुझे यह उपन्यास काफी अच्छा लगा है और इसीलिए मैं रोल को स्वीकारने में
जरा भी देरी नहीं कर रही हूं। आप निश्चिंत होकर जाएं और आगे की तैयारी
करें। '' आशा पारिख ने फिल्म साइन कर ली
'कटी पतंग' की कहानी बेहद कम पात्रो के होते हुए भी उलझी हुई है फिल्म में मुख्य किरदार तीन हैं, कमल,माधवी और कैलाश ......माधवी ,मधु (आशा पारिख) एक अनाथ लड़की है जो अपने मामा के साथ रहती है माधवी अपने प्रेमी कैलाश ( प्रेम चोपड़ा ) से बेपनाह प्यार करती है मगर माधवी के मामा उसकी शादी कहीं और तय कर देते है माधवी कैलाश के प्यार के भरोसे शादी के मंडप से भाग जाती है। लेकिन वो अपने प्रेमी कैलाश को शबनम ,शब्बो ( बिंदु ) के आगोश में पाती है उसे ये भी पता चलता है की कैलाश उस से नहीं उसकी दौलत से प्यार करता है ,माधवी कैलाश से मिले धोखे से सन्न रह जाती है वह अपने घर वापिस आती है लेकिन उसके एक मात्र अभिवावक उसके मामा उसके घर छोड़कर जाने के सदमे में अपनी जान गँवा चुके है ...........माधवी की जिंदगी में तूफान आ जाता है। उसकी हालत हिचकोले खाती उस कटी पतंग की तरह हो जाती है। जिसे अपनी मंजिल नहीं पता ? माधवी शहर छोड़ कहीं और जाने का फैसला करती है। रेलवे स्टेशन पर उसकी मुलाकात अपनी पुरानी सहेली पूनम ( नाज़ ) से होती । पूनम माधवी को बताती है की उसने अपने घर वालो की बिना मर्ज़ी से प्रेम विवाह किया था। लेकिन अब उसके पति इस दुनिया में नहीं है वह विधवा हो चुकी है। वह अपने बच्चे के साथ अपने ससुराल पहली बार जा रही है पूनम माधवी की स्थिति को देखकर उसे बहन बन कर अपने साथ चलने के लिए कहती है। माधवी के पास भी पूनम की बता मानने के सिवा कोई चारा नहीं ......दुर्भाग्य से रास्ते में ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाता है। पूनम बुरी तरह जख्मी हो जाती है। वह अपने नन्हे बच्चे को माधवी के जिम्मे सौंप दम तोड़ देती है लेकिन मरने से पहले वो माधवी से वचन लेती है वह उसके बच्चे के साथ पूनम बन कर उसके ससुराल जाएगी उसके सास-ससुर ने पूनम को पहले कभी देखा नहीं है माधवी के पास भी अब पूनम की बात मानने के आलावा कोई और रास्ता नहीं है और यही से फिल्म में टर्निंग पॉइंट बनता है माधवी विधवा पूनम का वेश धारण कर पूनम के बच्चे के साथ उसके ससुराल नैनीताल के लिए निकल पड़ते है इसी बीच एक घटना घटती है। माधवी जब बच्चे के साथ नैनीताल जा रही होती है, तो टैक्सी वाला गलत राह पकड़ लेता है। और माधवी को अकेला समझकर लूटने का प्रयास करता है उस टैक्सी वाले से उसे कमल सिन्हा ( राजेश खन्ना ) बचाता है जो एक उम्दा इंसान और कवि होने के साथ इलाके का फारेस्ट आफीसर भी है।
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राजेश खन्ना आशा पारेख और प्रेम चोपड़ा |
पूनम के ससुर, दीवान दीनानाथ
( नाज़ीर हुसैन ) और सास
( सुलोचना लाटकर ) उसकी कहानी सुनकर भाग्य की नियति मान उसे अपनी बहू स्वीकार कर लेते है ,कमल को यह जानकर आश्चर्य होता है कि पूनम ( यानी माधवी ) उसके ही मित्र की विधवा है। यहाँ पूनम को यह जानकार दुख होता है कि कमल वही लड़का है जिससे उसकी शादी होने वाली थी जब वो मंडप से भाग गई थी ,कमल रात-दिन शराब में सिर्फ इसलिए डूबा रहता है। की वो उस लड़की को अपनी तबाही का जिम्मेदार मनाता है पूनम को बेहद आत्मग्लानि होती उसने अनजाने में ही कलम को धोखा दिया ...... माधवी का भाग्य अब पूनम के रूप में फिर कमल के सामने ले आया है ,माधवी कमल को पत्र लिखकर सच्चाई बताना चाहती है, मगर वह पत्र दीनानाथ के हाथ लग जाता है। ससुर दीनानाथ के सामने सच्चाई आ जाती है। यह भी मालूम हो जाता है कि कमल और माधवी एक-दूसरे को चाहते है दीनानाथ कमल के पिता विष्णु प्रसाद
( मदन पुरी ) से आग्रह करते है की वो दोनों को शादी करने की इज़ाज़त दे ...इस बीच कैलाश की एंट्री होती है जो माधवी और अपने अनैतिक सम्बन्धो को लेकर उसे ब्लैकमेल करता है वह अपनी प्रेमिका शबनम को असली पूनम बना दीवान दीनानाथ के सामने लाता है और माधवी को बदनाम करता है लेकिन दीनानाथ माधवी को सच्चाई जानकर भी अपनी बहु स्वीकार करता है और उसे अपनी संपत्ति का अभिभावक बनाता है
तिलमिलाया कैलाश दीवान दीनानाथ की जहर देकर हत्या कर देता है और इलज़ाम माधवी पर लगा देता है की उसने सम्पति ले लालच में दीनानाथ का खून कर दिया है ...लेकिन कमल को पता चल जाता है की इस पूरे षड़यंत्र के पीछे कैलाश का दिमाग है ,अंत आते-आते सच्चाई से पर्दा खुलने लगता है। कैलाश और शबनम पकडे जाते है। कमल माधवी को वापिस उसी घर में चलने को कहता है जो कल तक उसकी ससुराल थी लेकिन अब उसका मायका बन चुका है कमल और माधवी एक हो जाते हैं। फिल्म का सुखद अंत होता है
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आउटडोर शूटिंग सांग्स 'जिस गली में तेरा घर न हो बालमा ' |
फिल्म कटी
पतंग एक साल में बनकर तैयार हुई थी। इसकी शूटिंग नैनीताल और मुंबई के
नटराज स्टूडियो में हुई... फिल्मकार शक्ति सामंत सत्तर के दशक में जब
नैनीताल में ‘कटी पतंग’ के मुकेश के गाये सोलो गीत
"जिस गली में तेरा घर न
हो बालमा " को नैनी झील में राजेश खन्ना और आशा पारेख पर फिल्मा रहे थे तो शूटिंग देखने वालों की इतनी भीड़ हो गई कि गाना फिल्माना मुश्किल हो
गया वजह जैसे ही कैमरा नाव पर रखकर वह राजेश और आशा पारेख पर इस गीत को
फिल्माने लगे तो पर्यटक नावों पर सवार होकर राजेश और आशा पारेख वाली
नाव के पीछे-पीछे नाव लेकर आ जाते। वह राजेश खन्ना का जमाना था और
उनकी स्टारडम काफी थी.... इसलिए शूटिंग देखने काफी भीड़ जुटी थी। ऐसे
में मैं काफी परेशान हो गया।... कोई तरकीब नहीं सूझ रही थी कि अचानक दिमाग
में एक ख्याल आया कि क्यों न कुछ देर के लिए नैनी झील के किनारे खड़ी सारी
नावें किराये पर क्यों न ले ली जाएं।.? ...उन्होंने सारी नावें किराये पर ले
लीं और नैनी झील में राजेश और आशा पारेख पर यह गीत बड़ी ही मुश्किल से
फिल्माया .....नैनीताल से ही नासिर हुसैन की फिल्म
‘दिल देके देखो’ (1959) से आशा
पारीख जी का फिल्मी कॅरिअर शुरू हुआ था शक्ति दा ने बताया था
कि ....
.'' मुकेश ने उनके लिए उनके पूरे सिनेमाई जीवन में एक गीत गाया था-जिस गली
में तेरा घर न हो बालमा और देखिए कटी पतंग का यह गीत कितना पॉपुलर हुआ।
लोगों की जुबान पर चढ़ गया यह गीत। जब भी इस गीत को सुनता हूं, मुकेश की
याद आती है।'' राजेश खन्ना के लिए किशोर कुमार द्वारा गाए गए गीत फिल्म की सफलता का मुख्य कारण थे, जबकि मुकेश का गाया इकलौता गाना फिल्म का विशेष आकर्षण है आशा भोसले का गया '
'मेरा नाम है शबनम'' अपनी शैली का एक कैबरे सांग्स है जिसे 70 के दशक की खलनायिका बिंदु की कातिल अदाएँ उत्तेजक बना देती है "मेरा नाम है शबनम ".में आर.डी बर्मन ने भी गाया था' कटी पतंग ' के संगीत ने फिल्म की रिलीज़ से पहले ही दिसम्बर 1970 में ही धूम मचा दी
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आर.डी बर्मन,मुकेश और राजेश खन्ना' जिस गली में तेरा घर' गाने की रिकॉर्डिंग के अवसर में अपने ही रंग में |
आशा पारेख ने एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि ..
"वह नैनीताल को कैसे भूल
सकती हैं। आखिर ‘कटी पतंग’ में शक्ति सामंत ने नैनीताल को उनकी नकली ही
सही पर ससुराल बना दिया। आखिर एक लड़की का अपनी ससुराल से जीवन-मरण का नाता
होता है। यह ठीक है कि यह मेरी फिल्मी ससुराल थी पर आज भी जब उस फिल्म को
देखती हूं तो नैनीताल की खूबसूरती मेरे जेहन में कौंध जाती है "
आशा
ने बताया था कि कटी पतंग की कहानी कुछ ऐसी है कि ट्रेन में मैं अपनी सहेली
की ससुराल नैनीताल आ रही हूं और ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाता है। एक्सीडेंट
में सहेली की मौत हो जाती है और सहेली मरते वक्त उनसे वचन ले लेती है कि
वह नैनीताल में उसकी ससुराल की बहू बनकर चली जाए और उसके लाडले को भी ले
जाए। इस तरह नैनीताल
फिल्म की कहानी के हिसाब से उसकी ससुराल बन गई थी।यह फिल्म उनके लिए मील पत्थर साबित हुई आशा पारिख ने जिस गंभीरता से
फिल्म में माधवी के किरदार को निभाया, उनके काम को लोगों ने खूब पसंद
किया माधवी के रोल में एक महिला के सभी रंग थे। वे युवती से लेकर
विधवा स्त्री के रोल में खूब पसंद की गई। आशा पारेख द्वारा निभाई गई विधवा की भूमिका बहुत चुनौतीपूर्ण थी। इस रोल के लिए आशा पारिख को
उस साल के श्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। 29 जनवरी 1971 को
कटी पतंग रिलीज़ हुई तो राजेश खन्ना की एक और सुपरहिट साबित हुई ये 1971 की
एक बड़ी हिट थी जिसने लगभग चार करोड़ रुपये का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किया

"कटी पतंग' क्लासिक फिल्म तो नहीं थी, मगर एक कामयाब फिल्म जरूर थी, जिसने बाद में
क्लासिक फिल्म का दर्जा पाया। ....फिल्म "कटी पतंग' ने सिल्वर जुबली मनाई थी। शक्ति
सामंत के निर्देशन में बनी इस फिल्म संवाद लेखक बृजेश गौड़ थे। ....संगीत आर. डी. बर्मन का था। गीत लिखे
थे आनंद बख्शी ने। इसके सारे गाने हिट हुए थे।
'न कोई उमंग है न कोई तरंग
है'.., 'ये जो मोहब्बत है, ये उनका है काम.'., 'प्यार दीवाना होता है मस्ताना
होता है', 'ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए.'., 'आज न छोड़ेंगे बस हमजोली,
खेलेंगे हम होली'., 'जिस गली में तेरा घर न हो बालमा.'. आदि लोकप्रिय गीतों
में आज भी शामिल हैं.किशोर कुमार आशा जी लता जी और मुकेश के गाने आज तक हिट
है
आशा पारेख
,राजेश खन्ना ,प्रेम चोपड़ा ,बिन्दू ,नासिर हुसैन,सुलोचना
,लटकर,चंद्रशेखर,सत्येन कप्पू मदन पुरी ,डेज़ी ईरानी ,बीरबल इस फिल्म
में मुख्य सितारे
थे लेकिन पूरी तरह से ये राजेश खन्ना की ही फिल्म थी.... फिल्म
'जाना' Let's Fall in Love (2006) की शूटिंग के दौरान जब सुपर स्टार राजेश खन्ना नैनीताल आये तो एक संवाददाता
ने उन्हें शक्ति सामंत द्वारा दिए गए ‘कटी पतंग’ फिल्म के नैनीताल में
राजेश खन्ना और आशा पारेख पर फिल्माए गए दो दृश्यों के रंगीन फोटो दिखाए तो
काका ने दोनों फोटोज तुरंत मांगे। फोटो की ओर देखा और बड़े तल्ख
अंदाज में कहा-
'फटी पतंग-फटी पतंग..।'...... उस वक्त तल्खी में कहे
गए उनके
ये दो वाक्य संवाददाता को बेहद बुरे लगे थे पर उन्हें महसूस हुआ की कि काका भीतर से बहुत उदास हो चले थे। इतनी स्टारडम के बाद जिन्दगी में कोई कमी थी जो उन्हें भीतर से खाये जा रही थी।
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