इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी देश की सत्ता पर काबिज़ हुए थे दिल्ली में 84 के दंगो के बाद का सियासी शोर अभी थमा नहीं था लेकिन लोग धीरे धीरे दंगो के सदमे से उबर रहे थे लेकिन अपनी ही मस्ती में मस्त दुनिया से बेखबर स्कूल से आने के बाद हम सबको इंतज़ार रहता था रात को दूरदर्शन पर आने वाले किसी मनोरंजक नाटक का .....जी हाँ...उस समय सीरियल शब्द इतना प्रचलित नहीं था इसलिए हम प्राइम टाइम में आने वाले कर प्रोग्राम को 'नाटक ' ही कहते थे उस समय मनोरंजन का एक मात्र साधन शटर वाला ब्लैक एन्ड वाइट टीवी था हालाँकि कलर टीवी आ चुका था लेकिन किसी किसी के पास था जिसके पास था हम उसे 'अमीर' समझते थे .....उसी दौर में 5 मई 1988 की गर्मियों में दूरदर्शन पर शुरू हुआ धारावाहिक 'वागले की दुनिया' ..........उन दिनों आज की तरह हमारे पास कोई दूसरा चैनल देखने का विकल्प भी नहीं था। क्योंकि सेटेलाइट टीवी तब आम आदमी के जेहन में भी नहीं था। मनोरंजन का जरिया सिर्फ दूरदर्शन था, लिहाज़ा रात को नौ बजे प्रसारित होने वाला 'वागले की दुनिया' सीरियल देखना मजबूरी भी था। धीरे-धीरे लोगो ने इस सीरियल को देखना और बाद में पसंद करना शुरू कर दिया। बनियान और चश्मा पहने अपनी ही घरेलू समस्यो से जूझता 'मिस्टर वागले' हमें अच्छा लगने लगा
'वागले की दुनिया' यह नाम 1988 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले उस सीरियल का है जिसे यादकर आज भी उस मध्यवर्गीय भारतीय की तस्वीर आंखों के सामने उतर आती है जो कभी महंगाई तो कभी भ्रष्टाचार से लड़ता-मरता जिये जा रहा है। 'वागले की दुनिया ' एक सरकारी ऑफिस में काम करने मध्यम वर्गीय कलर्क श्रीनिवास वागले की रोजमर्रा ज़िंदगी की खट्टी मीठी कहानी थी ये कहानी काफी साधारण और रोचक थी। मशहूर लेखक और कार्टूनिस्ट आर. के. लक्ष्मण द्वारा लिखे इस सीरियल का मुख्य किरदार था 'श्रीनिवास वागले'। .....जी हाँ मिस्टर वागले',..... दो बच्चों का बाप मिस्टर वागले, .....घर और बच्चों को संभालने वाली हाउस वाइफ राधिका का पति 'मिस्टर वागले'...अभिनेता अंजन श्रीवास्तव ने ये किरदार निभाया था जो एक थिएटर आर्टिस्ट हैं। उन्होंने सीरियल के साथ साथ थिएटर और फिल्मो में भी काम किया है। वागले और उसकी पत्नी भारती आचरेकर का रोल काफी मनोरंजक था अभिनेता अंजन श्रीवास्तव को लोग आज भी उनके असली नाम को छोड़ 'मिस्टर वागले ' के नाम से ज्यादा जानते है अभिनेता अंजन श्रीवास्तव ने बाद में कई मशहूर फिल्मो में भी काम किया वागले की दुनिया में अंजन श्रीवास्तव के साथ भारती आचरेकर ,दुष्यंत नागपाल ,नरेंदर गुप्ता ,अर्पित सिंघई जैसे थियेटर की दुनिया से जुड़े कलाकार भी थे पाश्व संगीत वनराज भाटिया का था
इस सीरियल के दो सीजन रहे हैं। दूसरे सीजन में वागले की पत्नी को छोड़ कर सभी कलाकार पिछले सीजन के ही हैं आर.के लक्ष्मण द्वारा बनाए गए पात्रों के आधार पर कुंदन शाह द्वारा निर्देशित सीरियल को अपने समय की प्रख्यात अभिनेत्री दुर्गा खोटे ने बनाया था यह दूरदर्शन पर चलने वाले सबसे ज्यादा मनोरंजक सीरियल में से एक था इसके कुल 44 एपीसोड प्रसारित हुए थे इसका पहला एपीसोड 5 मई 1988 को और आखरी एपीसोड 12 जनवरी 1989 को दूरदर्शन पर टेलीकास्ट हुआ था वागले के किरदार को आज भी याद किया जाता है। आप इस सीरियल को अपने परिवार के साथ मिल कर देख सकते हैं। 80 के दशक में यह सीरियल सबसे ज्यादा देखा जाता था। इसके 11वे एपिसोड में अभिनेता शाहरुख़ खान ने भी अभिनय किया था जिसमें शाहरुख खान वागले को अपनी मारुति कार से ठोक देते है फिर घंटों के लंबे इंतजार के बाद पुलिस स्टेशन से आपस् में समझौता कर के ही निकलते हैं इस एपिसोड का सबसे मज़ेदार सीन वो है जब एक खोये हुए बच्चे को पुलिस स्टेशन में पुलिसवाले खूब खिलाते पिलाते हैं और बाद में पता चलता है कि ये तो मामला कुछ और ही था एक्टर अविनाश वधावन के इंकार करने पर शाहरुख़ खान ने ये छोटा सा रोल किया था लेकिन अपने सबसे यादगार एपिसोड में से मुझे वो दिवाली वाला एपिसोड बेहद पसद है जब दीपावली के दौरान वागले पर्दे के लिए कपड़ा खरीदने के लिए बाजार जाते है और सेल के चक्कर में कपड़े की आवश्यक मात्रा में 10 गुना खरीद लाते है इस प्रकार परिवार में न केवल पर्दे ही पर्दे होते हैं बल्कि सोफा कवर, शर्ट और पत्नी की साड़ी भी पर्दे की होती है। इस एपीसोड में एक मिडिल क्लास परिवार की सेल वाली खरीदारी की मानसिकता को बखूबी दिखाया गया था
अपनी पत्नी के साथ मध्यम वर्ग के परिवार की रोज़मर्रा संघर्ष की ज़िंदगी जी रहे मिस्टर वागले की ज़िंदगी मुझे आज अपने परिवार की ज़िन्दगी लगाती है 'वागले की दुनिया' सीरियल के 30 साल बाद बेशक आज लैंडलाइन फ़ोन की जगह मोबाइल फ़ोन ने ले ली है, टीवी को कंप्यूटर और इन्टरनेट मात दे रहा है, दोस्तों से मुलाकात खेल के मैदान या फिर कैंटीन के बाहर न होकर फेसबुक और ट्विटर जैसी वर्चुअल दुनिया में हो रही है लेकिन असलियत यही है कि आज भी हमारी ज़िन्दगी से महंगाई, भ्रष्टाचार और आतंकवाद नहीं निकल पाए हैं। एक मध्य वर्गीय भारतीय परिवार की ज़िन्दगी जीता मिस्टर वागले आज भी हमारे आस पास ही कही आसानी से मिल जायेगा वो कभी लाइसेंस बनवाने के लिए सरकारी ऑफिस में धक्के खा रहा होता तो कभी बिजली का मीटर बदलवाने के लिए रिश्वत को लेकर परेशान है , कभी बच्चों की ट्यूशन फीस की चिंता तो कभी छोटी सी सेलरी में परिवार के गुजारे के साथ-साथ परिवार के हर सदस्य के शौक पूरे करने की कवायद, पेट्रोल महंगा हुआ तो स्कूटर में पेट्रोल भरवाने की बजाए बस में ऑफिस जाने की मजबूरी।........ मुझे वागले की वो दुनिया आज भी मेरी ज़िन्दगी के साथ वही खड़ी लगती है ।
शानदार पोस्ट ၊ वागले की दुनिया एक बेहतरीन नाटक था।
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