मई 1956 को रिलीज़ हलाकू शताब्दी के सबसे बड़े खलनायक प्राण साहेब की फिल्म मानी जाएगी हालांकि फिल्म के नायक अजित है और प्राण शीर्षक भूमिका में है 1940 में जब मोहम्मद वली ने पहली बार पान की दुकान पर फोटोग्राफर प्राण को देखा तो उन्हें फिल्मों में उतारने की सोची इसी के बाद पंजाबी फिल्म ‘यमला जट’ बनाई यह फिल्म बेहद सफल रही उस समय प्राण की उम्र 19 वर्ष थी इस फिल्म के लिये प्राण को पचास रुपये मिले थे उसके बाद 1947 तक वह 20 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके थे और एक हीरो की इमेज के साथ इंडस्ट्री में काम कर रहे थे हालांकि लोग उन्हें विलेन के रूप में देखना ज्यादा पसंद करते थे प्राण को सबसे बड़ी सफलता 1956 में फिल्म ‘हलाकू’ से मिली जिसमें उन्होंने हलाकू खान का सशक्त किरदार निभाया था ‘हलाकू’ में एक बर्बर, सनकी और वहशी तानाशाह की भूमिका में उन्होंने ऐसा खौफ पैदा किया कि हर बड़ी फिल्म में उन्हें खलनायक की भूमिका मिलने लगी गर्दन झुका कर तनी भोहो के साथ तेज़ी से संवाद बोलता हलाकू खान का किरदार प्राण साहिब को अमर कर गया निर्माता पी. एन. अरोड़ा, और निर्देशक डी. डी. कश्यप की ये ब्लैक एन्ड वाइट फिल्म में रोमांस, एक्शन ,ऐतिहासिक ड्रामा के साथ भावनाओं का एक शानदार मिश्रण है हलाकू ने अरब देशों पर कब्जा जमाने के बाद सन 1260 में उसने भारत पर आक्रमण की योजना बनाई, लेकिन भारी-भरकम फौज को लम्बे रास्ते तय करने की कठिनाई के कारण और उत्तर भारत के मौसम की मार के चलते वह रास्ते में ही बीमारी का शिकार हो गया और स्वास्थ्य लाभ के लिए वापस मंगोलिया लौट गया लेकिन यहां पहुंचकर रहस्यमय ढंग से 1265 में उसकी मौत हो गई। इस फिल्म को देखने के बाद आप को लगेगा की प्राण साहेब के आलावा शायद ही कोई अन्य अभिनेता इस रोल के साथ इंसाफ कर पाता लगता है उन्होंने हलाकू के खूंखार पात्र को निभाया नहीं बल्कि खुद जिया है
इस फिल्म में इतिहास के सबसे खूंखार खलनायको में से एक रहे चंगेज़ खान के साथ परवेज़ और नीलोफर की काल्पनिक कहानी को जोड़कर पेश किया गया है हलाकू खान बारहवीं शताब्दी का बेहद क्रूर ,डरावना मंगोल आक्रमणकारी चंगेज़ खान का पोता था। जिसने ईरान समेत दक्षिण-पश्चिमी एशिया के अन्य बड़े हिस्सों पर क्रूर आक्रमण करके मध्य एशिया में थोड़े समय में ही विजय प्राप्त की और वहां इलखानी साम्राज्य स्थापित किया। फिल्म की कहानी ईरान से संबंधित है। जिस पर शक्तिशाली सम्राट हलाकू हमला कर कब्ज़ा कर लेता है परवेज ( अजीत ) और नीलोफर ( मीना कुमारी ) की प्रेम कहानी फिल्म के केंद्र में है दोनों शादी करना चाहते है शादी के तैयारी के सिलसिले में परवेज़ अपने गुलाम (सुंदर ) के साथ दूसरे मुल्क जाता है तो उसके देश ईरान पर सुल्तान हलाकू खान (प्राण ) आक्रमण कर देता है ,हलाकू के सैनिक नीलोफर के वालिद हाकिम नादिर को मार कर नीलोफर को बाजार में बेच देते है ,परवेज नीलोफर को ढूंढ़ता हुआ बाजार में पहुंचता है जहाँ उसकी मोहब्बत नीलोफर की सरेआम बोली लग रही होती है परवेज मुंहमांगे दाम देकर नीलोफर को खरीद लेता है लेकिन हलाकू के सैनिक नीलोफर को पकड़ कर हलाकू के हरम में डाल देते है वह अपनी पत्नी ( मीनू मुमताज ) के विरोध के बावजूद नीलोफर की सुंदरता पर मुग्ध हलाकू खान नीलोफर से जबरन शादी कर अपनी मलिका बनाना चाहता है अब परवेज़ का एक ही मकसद है हलाकू की कैद से नीलोफर और अपने मुल्क ईरान को आज़ाद करवाना .....इसमें उनकी मदद एक इंकलाबी ( राज मेहरा ) करता है हलाकू की कैद में एक कनीज़ नवबहार (शम्मी ) नीलोफर की मदद करती है और चोरी छिपे परवेज़ को नीलोफर से मिलवाती भी है हलाकू से संघर्ष के दौरान परवेज़ को गिरफ्तार कर लिया जाता है और अब हलाकू नीलोफर के सामने एक प्रस्ताव रखता है की या तो उसकी मल्लिका बनना कबूल करे या परवेज़ का क़त्ल कर दिया जायेगा नीलोफर परवेज़ की जान बचाने के लिए हलाकू की मल्लिका बनना कबूल करती है परवेज़ को रिहा कर दिया जाता है लेकिन वो नीलोफर को बेवफा समझता है ...परवेज़ समझाता है नोलोफर ने हलाकू की दौलत और शानो शौकत के आगे उसके प्यार को बेच दिया है इधर बड़ी महारानी दोकहज ( वीना ) और उसका बेटा हलाकू को अल्लाह का वास्ता देकर नीलोफर और ईरान की निरीह जनता पर जुल्म ना करने को कहते है अंत में हलाकू और परवेज़ में भीषण संघर्ष होता है .....परवेज़ हलाकू के बेटे जो चंगेजी खानदान का इकलौता वारिस है को मौत में मुंह से बचाता है .... परवेज़ की बहादुरी से कायल हो कर हलाकू उसे कुछ भी मांगने को कहता है परवेज़ बदले में अपनी मोहब्बत नीलोफर को ना मांग कर ईरान की आज़ादी मांग कर हलाकू को अचम्भित कर देता है ..... हलाकू परवेज़ को कहता है की हमने तुम्हारी तमन्ना पूरी है .....लेकिन बहादुरी का इनाम अभी बाकि है .....हलाकू खान ईरान और नीलोफर दोनों को आज़ाद कर देता है
कुछ फिल्मे हिट भले नहीं होती पर उनका संगीत जबरदस्त होता है फिल्म हलाकू शंकर जयकिशन के हिट संगीत के लिए याद रखी जाएगी इस फिल्म में उन्होंने ईरानी और हिंदी संगीत को बड़े ही अच्छे ढंग से मिश्रित किया ये फिल्म शंकर जयकिशन की आरंभिक फिल्मों में से एक मानी जाती है ..... हसरत जयपुरी और शैलेंदर के लिखे गीत उसे मिल गई नई जिन्दगी,' जिसे दर्दे-दिल ने मिटा दिया'... ,'आ जा कि इन्तज़ार में जाने को है बहार भी.'..,' बोल मेरे मालिक तेरा क्या ये ही है इन्साफ़'... ,'ओ सुनता जा, दिल का नग़मा, प्यार की धुन पर'... ,'अजी चले आओ, तुम्हें आँखों से दिल में बुलाया.'.. ,'यह चाँद यह सितारें, यह साथ तेरा मेरा'... ,' दिल का न करना ऐतबार कोई, भूले से भी न करना प्यार'... 'तेरी दुनिया से जाते हैं छुपाए दिल में ग़म अपना'......मधुर है रफ़ी साहेब का गाया 'आ जा कि इन्तज़ार में जाने को है बहार भी ' एक सदाबहार गीत है .... अजी चले आओ, गाना मशहूर डांसर हेलेन पर फिल्माया गया है जो फिल्म की जान है फिल्म के गीत मोहमद रफ़ी, आशा और लता के स्वर में है
हलाकू में शीर्षक भूमिका में प्राण के आलावा अजित ,मीना कुमारी, वीणा, शम्मी, हेलन, मीनू मुमताज़ , सुंदर, राज मेहरा, अमर, वज़ीर मोहम्मद ख़ान, गजेंद्र नरुला, कुंवर केशव, परशुराम "जिया", रमेश कपूर, मुंशी मुनक्का, सेठी,जगदीश कंवल, निरंजन शर्मा ने भूमिकाएं निभाई है अजित परवेज़ भूमिका में जमे है ये फिल्म अजित की उन फिल्मों में से एक है जिन फिल्मों में उन्होंने नायक की भूमिका निभाई है मीना कुमारी नीलोफर की भूमिका में है लेकिन हलाकू खान के रोल में प्राण साहिब सब पर भारी पड़ते है और जब जब जब भी परदे पर आये अपनी क्रूरता से खौफ पैदा करने में कामयाब रहे आप प्राण साहेब के जानदार अभिनय ,अजित और मीना कुमारी पर फिल्माए शंकर जयकिशन के गीतों के लिए ये फिल्म देख सकते है लेकिन इतनी बड़ी स्टार कास्ट और हिट संगीत के बावजूद भी हलाकू बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कमाल नहीं कर सकी और ज्यादा सफल नहीं हो सकी
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