Tuesday, February 5, 2019

' गौहर जान '......100 साल पहले पहले करोड़पति बनने वाली देश की पहली मशहूर गायिका

गौहर जान -  ( 26 जून 1873-17 जनवरी, 1930 )
हिन्दी फिल्म इतिहास में संगीत का आगमन या फिल्म संगीत का आरम्भ एक महत्त्वपूर्ण घटना रही है। इससे पूर्व मूक फिल्मे बनती थी और फिर बाद में टाकीज़ में इन मूक चित्रों के साथ साथ ताल से ताल मिलाकर एक कोने में बैठ कर कलाकारों को लाइव संगीत बजाना पड़ता था यानि संगीत देने के लिये पर्दे के बाहर अलग से साजिन्दों सहित फनकारों को बिठाना पड़ता था। ........फिर वो जमाना भी आया जब फिल्म में अभिनय करने वाले अभिनेता और अभिनेत्री को संगीत सुर की जानकारी होना हो गया अनिवार्य था क्योंकि फिल्मो में उनको अपने गाने खुद ही गाने पड़ते थे पाश्व गायन का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था ये काफी बाद में शुरू हुआ...... हिन्दी फिल्म इतिहास में संगीत की अहमियत शुरू से रही उसमें सर्वाधिक प्रासंगिक वह दौर है जब भारतीय समाज में बाईयों और तवायफों का दबदबा कायम था। एक प्रकार से यह हिन्दुस्तानी संगीत का वह आरम्भिक दौर है जब तवायफों का संगीत राजदरबारों, बड़े नवाबी घरानों, महफिलों-मजलिसों एवं कोठों में रचा-बसा था और अपने शिखर पर था। हिन्दी फिल्म संगीत का आरम्भ भी आश्चर्यजनक ढंग से इसी दौर की देन है इन बाईयों और तवायफों ने फिल्मों में कम और महफिलों में बराबर से अपना दबदबा बनाये रखा। इनमे में कई गायिकाओं को फिल्मी दुनिया का सुनहरा पर्दा रास नहीं आया होगा अथवा उन्हें अपना पेशेवर गायिकी का घराना उस समय ज्यादा महफूज़ लगा होगा जिसके चलते उन लोगों ने अपना परम्परागत गायन समाप्त नहीं किया। कुछ ने असमंजस में अपनी सही पहचान को छुपाने तथा फिल्म के ग्लैमर भरे जीवन को थोड़ी इज्जत से जीने की चाहत के चलते नाम बदल लिया 1925-40 के बीच हिन्दी फिल्मों की महत्त्वपूर्ण गायिका रही 'रक्कासा गौहरजान 'भी एक ऐसी ही अदाकार रही है 

26 जून 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में जन्मी भारतीय सिनेमा की मशहूर गायिका का असली नाम' एंजलिना योवर्ड ' था कुछ लोग इन्हे इन्हें 'गौहर कय्यूम मामाजी वाला' भी कहते हैं। गौहर जान का जन्म एक क्रिश्चियन परिवार में हुआ था। गौहर के दादा ब्रिटिश थे ,जबकि दादी हिंदू थीं। उनके पिता अर्मेनिया के थे जो आज़मगढ़ में एक सूखी बर्फ की फैक्ट्री में काम करते थे उनके पिता का नाम विलियम योवर्ड और मां का नाम विक्टोरिया हेमिंग था। गौहर की मां विक्टोरिया भी एक प्रशिक्षित डांसर और गायिका थीं। दुर्भाग्य से गौहर के माता-पिता की शादी लम्बी चल नहीं पाई काफी दिनों तक दोनों ने अपना रिश्ता संभालने की कोशिश की लेकिन यह ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका लिहाज़ा उन दोनों ने इसे खत्म करना ही बेहतर समझा और तलाक के साथ यह रिश्ता खत्म हो गया उनकी माँ ने तलाक के बाद बनारस का रुख किया जब एंजलिना सिर्फ 6 साल की थीं वहां जाकर विक्टोरिया को इस्लाम धर्म से ख़ास लगाव हो गया और इस्लाम धर्म में बढ़ते झुकाव की वजह से उन्होंने धर्म परिवर्तन का निर्णय लिया उन्होंने अपनी बेटी के साथ इस्लाम धर्म कबूल कर लिया इसी के साथ उन दोनों का नाम भी बदल गया उनकी माँ विक्टोरिया से 'मलका जान' बन गयीं  .......इसके बाद विक्टोरिया ने कलकत्ता में रहने वाले मुस्लिम शख्स से शादी कर ली यही से एंजेलिना गौहर जान बन गईं। बनारस में मलका जान ने खुद को एक गायिका और डांसर के रूप में स्थापित कर चुकी थीं वो वह काफी मशहूर भी हो गयी थी यही वजह थी कि वह 1883 में कलकत्ता के नवाब वाजिद अलीम शाह के दरबार में अपनी कला का जादू बिखेरने लगीं उन्होंने इस पेशे से अच्छी रकम कमा कमाई और तीन सालों के अंदर उन्होंने कलकत्ता के 24 चितपोरे सड़क पर 40 हजार रुपये में खुद का घर खरीद लिया।

गौहर जान ने यही से अपनी मां से नृत्य और गायन का हुनर सीखा। उन्होंने रामपुर के उस्ताद वजीर खान औरबृंदादीन महाराज से कत्थक में भी महारथ हासिल की पंडित बिरजू महाराज बृंदादीन महाराज के ही पड़पोते है उन्होंने रबींद्र संगीत और बंगाली कीर्तन भी सीखा था संगीत विद्या को अपने कंठ में बसाने और नृत्य से सबका मन मोह लेने वाली गौहर जल्द ही मशहूर हो गईं ,छोटी होने के बावजूद भी लोग उन्हें 'बड़ी मलका जान' के नाम से पुकारने लगे थे अपने हुनर और बेमिसाल सौंदर्य की बदौलत 1887 में अपनी पहली ही महफ़िल में ऐसा रंग जमाया की 14 वर्ष की उम्र में गौहर जान एक संगीतकार के रूप में शाही दरबार दरभंगा राज में नियुक्त हो गई इसी दौरान गौहर ने अपनी सबसे पहली ग़ज़ल 'हमदम' भी लिखी थी जो बेहद खूबसूरत है कलकत्ता के प्यारे साहिब से गायन की तालीम हासिल की। गौहर जान को संगीत और नृत्य के गुण वैसे तो विरासत में मिले थे लेकिन गौहर के संगीत सीखने के सफ़र में कई सारे गुरु रहे जिन्होंने समय-समय पर उन्हें संगीत की विभिन्न विधाओं में पारंगत किया सबसे पहले पटियाला के काले खान उर्फ 'कालू,उस्ताद ', वजीर खान और उस्ताद अली बक्श  जरनैल से हुई उन्होंने इनसे हिन्दुस्तानी संगीत की शिक्षा ली गौहर, जहां एक ओर गायन की ट्रेनिंग ले रही थीं वहीँ, दूसरी ओर कत्थक भी सीख  रही थी


बनारस से कलकत्ता और फिर दरभंगा का रुख करने वाली गौहर ने सबका मन मोह लिया था इसके बाद उन्होंने 1896 में कलकत्ता में अपने हुनर की प्रस्तुति देना आरंभ किया अपने संगीत और नृत्य के सफ़र में उनकी जिंदगी में प्यार ने भी दस्तक दी.1904-05 के दौरान गौहर की मुलाकात थिएटर आर्टिस्ट अमृत केशव नायक से हुई वह मूलत पारसी धर्म के थे जल्द ही दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया लेकिन उनकी ये प्रेम कहानी ज्यादा दिनों तक नहींं चल पायी क्योंकि अचानक 1907 में केशव की  मौत हो गईं ......13 साल की कमसिन उम्र में बलात्कार का दर्द झेल चुकी गौहर के लिए ये दूसरा सबसे बड़ा सदमा था इस सदमे से उबरने के बाद गौहर जान के हुनर की चर्चा दिल्ली तक भी पहुंची ,उन्हें 1911 में दिल्ली दरबार में विशेष प्रस्तुति के लिए बुलाया गया यह समारोह किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में आयोजित किया गया था यहाँ उन्होंने इलाहाबाद की जानकीबाई के साथ मिलकर गायन किया था वो ध्रुपद, खयाल, ठुमरी और बंगाली कीर्तन में पारंगत हो गईं। यहीं से गौहर ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। वह भारत की पहली गायिका थी, जिन्होंने भारतीय संगीत के इतिहास में अपने गाए गानों की रिकॉर्डिंग कराई थी यही वजह है कि उन्हें 'भारत की पहली 'रिकॉर्डिंग सुपरस्टार' का दर्जा मिला है वो भारत में 78 आरपीएम पर संगीत रिकॉर्ड करने वाली पहली महिला कलाकार थीं। गौहर के प्रसिद्ध गानों में 'मोरा नाहक लाए गवनवा', 'जब से गए मेरे सुर हुना लाइव', 'रस के भरे तोरे नैन मेरे दर्द-ए-जिगर' शामिल है साथ ही उन्हें भजन गायन के लिए भी जाना जाता है उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत के लम्बे-लम्बे फॉर्मेट को संक्षिप्त कर रिकॉर्ड करने की शुरुआत करने का श्रेय भी जाता है गौहर जान दक्षिण एशिया की पहली गायिका थीं जिनके गाने ग्रामाफोन कंपनी ने रिकॉर्ड किए उनकी रिकार्डिंग की एक खास बात ये होती थी की उसे ख़त्म करने से पहले वो कहती थी 'माय नेम इज़ गौहर खान ' उनका नाम बच्चे बच्चे की जुबान पर मशहूर था


उस ज़माने में तवायफों की परम्परा में आने वाली गौहर जान 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध की सबसे महंगी गायिका थीं जो महफिलें सजाती थीं। उनका दबदबा ऐसा था कि रियासतों और संगीत सभाओं में उन्हें बुलाना प्रतिष्ठा की बात हुआ करता थी इनके बारे में मशहूर था कि सोने की एक सौ एक गिन्नी लेने के बाद ही वह किसी महफिल में गाने के लिये हामी भरती थीं। वे जामनगर राजदरबार में फिल्मों में आने से पूर्व महफिलें सजाया करती थीं। यह तथ्य इस बात की ओर भी इशारा करता है कि जो बाईयाँ पेशेवर ढंग से फिल्मी जीवन में उतरने से पूर्व अपना कोठा सजाती रही थीं उन्होंने एक्टिंग के क्षेत्र में पदार्पण के साथ अपने पुराने अतीत से भी किनारा करना जरूरी समझा नर्तकी गौहर जान बला की खूबसूरत दिलकश कातिल अदायें ओर सुरीली नशीली आवाज़ की मालकिन थीं उसके दीवानो की फेहरिस्त में राजा ,नवाब नौकरशाह और अंग्रेज़ भी थे गौहर को लगभग 20 भाषाओं में गाने का हुनर हासिल था,नामी रेकोर्ड कम्पनीज तो उनकी आवाज़ की दीवानी थीं 1902 से 1920 के बीच 'द ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया' ने गौहर के हिन्दुस्तानी, बांग्ला, गुजराती, मराठी, तमिल, अरबी, फारसी, पश्तो, अंग्रेजी और फ्रेंच गीतों के छह सौ डिस्क रिकॉर्ड निकाले थे गौहर जान ने कई भाषाओं में ठुमरी से लेकर भजन तक गाए हैं उन्होंने करीब 600 गीत रिकॉर्ड किए थे उन्हें एक गाने के तीन हज़ार से ज्यादा मिलते थे जहाँ एक तरफ़ उनकी एक अदा पर पैसे लुटाने वाले अमीरज़ादों की कमी न थी,वहीं दूसरी ओर उनकी शान-ओ-शौकत ओर शाहाना अदाओं के किस्से बडे मशहूर थे अपनी प्रतिभा के और गायन के चलते गौहर ने गायन तथा रिकॉर्डिंग उद्योग के शुरुआती दिनों में करोड़पति बनी उनका रहन सहन भी उस ज़माने के प्रसिद्ध करोड़पति या अंग्रेज़ अफसरों से मिलता जुलता था .......एक बार तत्कालीन अँग्रेज़ गवर्नर का काफिला ओर गौहर जान की शानदार विक्टोरिया बघ्घी एक ही वक्त पर एक ही रास्ते से गुज़र रहे थे ! गवर्नर ने गौहर की शान-ओ-शौकत को देखा तो अपना क़ाफिला रोक दिया ,अदब से हेट उतार कर गौहर जान का अभिवादन किया किया ओर गौहर जान की बघ्घी को पहले जाने दिया लेकिन जब बाद मे गवर्नर को हक़ीक़त पता चली की उन्होने तवायफ़ बिरादरी की महिला का अभिवादन किया है तो उन्होने अपने आप से बहुत कोफ्त हुयी ओर उसी शाम उसने एक फ़रमान जारी कर उस रास्ते से गौहर जान को गुज़रने पर पाबन्दी लगा दी हुक्म ना मानने पर सज़ा 1000/- जुर्माना रखी गयी  मगर ये गौहर का अपना रुतबा था ओर रईसी सनक भी ,इसलिए गवर्नर के फरमान को गौहर ने नज़र अंदाज़ कर दिया ओर गौहर की बघ्घी बिना नागा उसी रास्ते से गुज़रती रही ओर हर रोज़ गौहर जान 1000/- ज़ुर्माना भरती रहीं ये सिलसिला  पूरे 20 दिनो तक चला ,ओर ताज्जुब की बात की बाद मे गवर्नर ने अपना फरमान वापस ले लिया ये था उनका जलवा !उनका पहनावा और ज़ेवरात उस दौर कि रानियों को मात देते थे वो अपनी हर रिकॉर्डिंग के लिए नए कपड़े और ज़ेवर पहन कर आती थीं कुछ लोग तो ये किस्सा भी बताते थे की गौहर जान ने अपनी पालतू बिल्ली की शादी पर 12 हजार रुपये खर्च कर गए थे और उसी बिल्ली के ब्याहने पर दावत पर बीस हज़ार लुटा दिए अपने रईसी घुड़दौड़ के शौंक को पूरा करने के लिए वो अक्सर बम्बई के महालक्ष्मी रेसकोर्स में भी जाती थी

 अपनी माँ मलका जान के साथ गौहर  
गौहर ने संगीत की दुनिया में अपना सिक्का जमाने में कामयाब रहीं शुरुआती दिनों में गौहर बेहद अमीर महिला थीं। उनके पहनावे और जेवरात उस वक्त की रानियों तक को मात देते थे। अपनी कमाई का काफी हिस्सा उन्होंने कलकत्ता में निवेश किया जहां उनकी कई कोठियां थीं। गौहर जान को जब कोई नवाब अपने यहां महफिल सजाने के लिए बुलावा भेजते तो उन्हें लाने के लिए पूरा का पूरा काफिला भेज दिया करते थे क्योंकि वो बड़े तामझाम के साथ सफर करती थीं। गौहर अपनी हर रिकॉर्डिंग के लिए नए कपड़े और जेवर पहनकर आती थीं। वो अपने गायन और रिकॉर्डिंग उद्योग के शुरुआती दिनों में ही करोड़पति बन गईं गौहर जान को अपने महफिल सजाने के लिए नवाब जब बुलावा भेजते तो पूरी की पूरी ट्रेन ही भेज दिया करते क्योंकि वो बड़े तामझाम के साथ सफ़र करती थी.........एक बेहद रोचक किस्सा उस समय की मशहूर तवायफ और नर्तकी बेनजीर से भी जुड़ा भी है एक महफ़िल में बेनजीर का गायन गौहर से पहले होना था बेनजीर सर से पैर तक बेशकीमती गहनों से लदी थी जब बेनजीर महफ़िल से अपना गायन और नृत्य समाप्त कर मंच से नीचे उतर रही थी गौहर की नजर उस पर पड़ी उसने बेनजीर को ताना मारा......... ''क्या ये चमकते गहने तुम्हारा नृत्य कौशल भी बयां करते है  ? मंच पर सिर्फ प्रतिभा चमकती है गहने नहीं ....उसके बाद गौहर जान ने उस महफ़िल में शानदार प्रदर्शन किया  जब बेनजीर वापिस बम्बई आई तो उसने अपने वो सारे गहने अपने गुरु को देते हुए कहा .....''मुझे शास्त्रीय संगीत की और तालीम चाहिए '' लगभग 10 वर्ष तक कड़ी तालीम हासिल करने के बाद एक बार फिर किसी महफ़िल में गौहर और बेनजीर का आमना सामना हुआ गौहर ने बेनजीर की परफॉरमेंस देख कर कहा ..''अल्लाह तुम्हे सलामत रखे ,आज तुम्हारे गहने और प्रतिभा दोनों सच में चमक रहे है '' उस समय की हर तवायफ गौहर की तरह ही मशहूर होना चाहती थी लेकिन इस चमक धमक के पीछे एक कला स्याह अध्याय भी था जिसे किसी ने नहीं देखा पहले माता-पिता का अलग होना, फिर महज़ 13 साल की उम्र में शोषण का भी शिकार हुई गौहर ने संगीत जगत में अपनी धाक जमाई थी रणजीत फिल्म्स ( स्टूडियो ) के सरदार चंदूलाल शाह के संपर्क में आने के बाद  गौहर जान की दिलचस्पी फिल्मो में भी जागी जागी लेकिन उन्हें 'रखैल' का तमगा भी मिला ,जीवन में काफी संघर्ष के बाद उन्होंने अपार कामयाबी का मुंह देखा और गौहर जान खयाल, ध्रुपद और ठुमरी की महारानी बनीं भातखंडे संगीत घराने ने उन्हें भारत की सबसे बड़ी महिला गायिका घोषित किया। गौहर जान के 145 वे जन्मदिन पर गूगल ने अपने डूडल से उन्हें याद किया था ये भारतीय संगीत के लिए सम्मान की बात है 

सौ साल पहले गौहर पहली कलाकार थीं जिन्होंने ग्रामोफोन कंपनी के लिए गाने गाए जबकि उस समय दिग्गज कलाकारों ने मना कर दिया था वो चांस नहीं लेना चाहते थे क्योंकि भारतीय संगीत की ठुमरी या किसी ख्याल को तीन मिनट में गाना मुश्किल है लेकिन ये गौहर ने कर दिखाया वो बहुत ही मज़बूत औरत थीं अपनी शर्तों पर,अपनी ज़िंदगी,अपने अंदाज़ में जीने वाली औरत  इसलिए शायद उनको तकलीफ़ भी ज़्यादा हुई ,हर तवायफ़ वेश्या नहीं होती थी उस ज़माने में सबसे टेलेंन्टेड और बुद्धिमान लड़कियां तवायफ़ बनती थी या बनाई जाती थी गौहर जान उत्तम शिक्षा प्राप्त सुसंस्कृत महिला थीं लेकिन उस ज़माने में तवायफ कहलाने वाली इन गायिकाओं पर पैसे तो भरपूर लुटाया जाता था लेकिन कोई इनसे शादी नहीं करना चाहता था और इन्हें मर्द गायकों जैसा सम्मान भी नहीं मिलता था शायद यही वजह थी कि ग़ौहर ने बार-बार प्यार में धोखा खाया ख़ासतौर पर तब जब उनकी गायकी और यौवन ढलान पर आ गए प्रौढ़ावस्था में गौहर अपनी उम्र से आधे एक पठान से शादी तो कर ली लेकिन वो शादी चली नहीं। शायद वैवाहिक सुख उन्हें नसीब न था उनके पति ने गौहर की ज़ायदाद शुरुआती दिनों में ही अपने नाम करा ली थी ,रिश्ते बिगड़े और दोनों अलग हो गए थे मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंच गया इस मुकदमे बाजी में गौहर को अपनी जायदाद बेचनी पड़ी और मानसिक प्रताड़ना के दौर से भी गुजरना पड़ा

देश में अब महौल बदल रहा था 1890 के आसपास भारत में पारंपरिक देवदासियों, तवायफ़़ों और नर्तकियों को लेकर नैतिकतावादी सवाल उठने लगे थे। 1893 में मद्रास के गवर्नर को एक अर्ज़ी दी गई कि 'नाच-गाने का गंदा धंधा' बंद करवाया जाए।1909 में मैसूर महाराजा ने 'देवदासी परंपरा 'को अवैध घोषित कर दिया। पंजाब की प्योरिटी एसोसिएशन और मुंबई की सोशल सर्विस लीग जैसी संस्थाओं ने भी अपनी आपत्ति दर्ज कराई। कलकत्ता की मशहूर तवायफ़़ गौहर जान उस समय देश की चोटी की गायिका थीं और बदलती हवा को भाँप रही थीं। शानदार विरासत और ज़ायदाद मुकदमेबाज़ी के दौरान वकीलों की भेंट पहले ही चढ़ चुकी थी बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में कोठे और महफिलें वैसी पारम्परिक ढंग की नहीं रह गयीं थीं, जिस तरह वह नवाबी शासनकाल के दौरान या वाजिद अली शाह के समय में होती थीं। संकीर्ण तत्कालीन विलायती सोच वाले लोग उन पर पतिता का ठप्पा लगा कर कोठे बंद कराने पर आमादा थे कई अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे रईस उन्हें देखकर मुँह बिचकाते थे गौहर ने काशी में 1921 में 'तवायफ़ संघ' बनाकर असहयोग आंदोलन से अपनी जमात को जोड़ लिया इसलिए 1920 में जब गाँधी जी कलकत्ता में स्वराज फंड के लिए चंदा जुटा रहे थे उन्होंने गौहर जान को बुलवा कर उनसे भी अपने हुनर की मदद से आंदोलन के लिये चंदा जुटाने की अपील की ,गौहर जान ने बापू की बात सर माथे पर ली लेकिन गौहर ने बापू के सामने एक शर्त भी रख दी की वे एक खास मुजरा करेंगी जिसकी पूरी कमाई वे स्वराज़ फंड को दान कर देंगी पर उनकी एक शर्त यह है की कि बापू ख़ुद उनको सुनने महफिल में तशरीफ़ लाएं ,स्वराज आंदोलन की जनसभाओं में संगीत के आकर्षण का महत्व गाँधी भी समझते थे कहते हैं कि बापू राज़ी भी हो गए थे, पर ऐन दिन कोई बड़ा राजनैतिक काम सामने आ गया सो वे वादे के मुताबिक गौहर की महफ़िल में नहीं जा सके गौहर की निगाहें काफी देर तक बापू की राह तकती रहीं पर वे नहीं आए........खैर, भरे हॉल में गौहर का का मुजरा पूरा हुआ और उसकी कमाई कुल 24 हज़ार रुपए हुई जो उस समय बहुत बड़ी रकम थी अगले रोज़ बापू ने मौलाना शौकत अली को गौहर जान के घर चंदा लेने को भेजा रूठी और मुँहफट गौहर ने कुल कमाई का आधा 12 हज़ार रुपये ही शौकत को दिया और रुपया थमाते हुए मौलाना से तंज़ भरे अंदाज़ में वे यह कहना न चूकीं......'' आपके बापू जी ईमान और एहतराम की बातें तो काफ़ी किया करते हैं पर एक अदना तवायफ़़ को किया वादा नहीं निभा सके ,लेकिन ये तवायफ गौहर जान अपना वादा पूरा करेगी वादे के मुताबिक वे खुद नहीं आए लिहाज़ा फंड की आधी रकम पर ही उनका हक बनता है....


उम्र की ढलान पर गौहर अब अच्छी तरह से दुनिया देख चुकी थीं और जानती थीं कि समाज में पेशेवर गायिकाओं को लेकर किस तरह की सोच व्याप्त हो रही है गौहर जान का व्यक्तित्व भव्य और आकर्षक रहा था और उन्होनें अपना जीवन पूरी शान-औ-शौकत से अपनी शर्तों पर जिया ,कुछ समय बाद गौहर जान मैसूर के महाराजा कृष्णे राज वाडियार चतुर्थ के आमंत्रण पर 1928 में दक्षिण भारत के मैसूर चली गईं वहां उन्हें शाही गायिका की उपाधि भी मिली वही  इस महान गायिका की लगभग अचर्चित हालत में मौत हुई ....वो गौहर जिसकी एक अदा पर निज़ाम ,राजे ,रजवाड़े अपनी तिजोरिया खोल देते थे वो ग़ौहर अख़िरी दिनों में बिल्कुल तन्हा रह गई थीं इसी तन्हाई और ज़माने की रुसवाई के अँधेरे में भटकते हुए 17 जनवरी, 1930 को मैसूर में उनका निधन हो गया 1900 के शुरुआती दशक में महिलाओं के शोषण, धोखाधड़ी और संघर्ष की कहानी 'गौहर जान' ने पुरुष प्रधान समाज में महिला होते हुए भी जो शोहरत और दौलत हासिल की वह तब से आज लेकर अब तक एक मिसाल है वो गौहर जान जिसे महफ़िल में बुलाना विलासिता और शान ओ शौकत का प्रतीत माना जाता था,जिस महफ़िल में वो चली जाती उसकी इज़्ज़त में चार चाँद लग जाते थे ,जिसका रहन सहन महारानियो जैसा था ,उस गौहर जान का महज़ 37 वर्ष की आयु में ही दुनिया से गुमनाम चले जाना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है अब तो शायद ही कोई उन्हें याद भी ना करना चाहे ....2018 में पृथ्वी थियेटर के सहयोग से निर्देशक लिटिल दुबे ने एक नाटक के माध्यम से दुनिया को गौहरजान की कहानी से परिचित करवाने का प्रयास किया था जिसमे गौहर की भूमिका अभिनेत्री 'राजेशवरी सचदेव 'ने निभाई थी लेकिन इस नाटक के ज्यादातर संवाद अंग्रेजी में होने और महँगी टिकटों  के कारण ये सिर्फ अभिजात्य वर्ग तक ही सिमित रहा

 रक्कासा गौहरजान

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