Saturday, February 9, 2019

शशि कपूर की फिल्म 'उत्सव- (1984) ' का इकलौता 'मदनोत्सव ' का दृश्य और गाना

यह तस्वीर फिल्ममेकर सत्यजीत रे के फोटोग्राफर रहे 'नेमई घोष 'ने फिल्म 'उत्सव 'की शूटिंग के दौरान खींची थी
प्राचीन समय से ही भारत में बारह महीनों को छः ऋतुओं में बाँटा गया है जिसमें प्रीति पूर्वक परस्पर सहसंबंध स्थापित करने के लिए प्रत्येक जीव-जंतु के लिए भिन्न-भिन्न ऋतुएँ होती हैं ताकि वो उपयुक्त समय के अनुसार प्रजनन कर सके ,लेकिन मनुष्य के लिए ऋषियों ने' वसंत ऋतु ' को ही सर्वाधिक उपयुक्त मानकर 'वसंत पंचमी' के दिन इसके स्वागत का उत्सव मनाने का भी संकेत दिया है। जाड़े की ठिठुरन कम होने के बाद सूर्य के उत्तरायण होते ही वसंत ऋतु के दो महीने प्रकृति नई अँगड़ाई के संकेत देने लगती है। पतझड़ के बाद जहाँ पेड़-पौधों में बहार आने लगती है, वहीं मानव के प्रेमी हृदय में खुमार की मस्ती छाने लगती है। आम के पेड़ों में बौर फूटने लगती है, कलियाँ धीरे-धीरे खिलती हुई मधुर मधु के प्यासे भौरों को आकृष्ट करने लगती हैं। तब मानवता शीत की ठिठुरी चादर छोड़ कर हर्षोल्लास मनाने लगती है और तितलियां तथा भंवरे फूलों पर मंडराकर मस्ती का गुंजन गान करते दिखाई देते हैं। हर ओर मादकता का आलम रहता है। .........ऐसे में कामदेव अपने पुष्प रूपी पलाश आदि पाँचों बाणों को तरकश से निकाल मानव के दिलो-दिमाग में बेधने लगता है। इसलिए वसंत को 'मदनोत्सव 'के रूप में रति एवं कामदेव की उपासना का पर्व कहा गया है। हमारे देश में बसंतपंचमी के बाद मदनोत्सव पूरे महीने रहता है जो असल में प्रेमी-प्रेमिकाओं का ही पर्व है श्रीमद भागवत महापुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें पति रूप में चाहने वाली गोपियों के साथ इसी दिवस पर वृंदावन में महारास किया था। श्रीकृष्ण कामदेव से भी अधिक सुंदर होने के कारण मदन मोहन यानी कामदेव को भी मोहित करने वाले अथवा मन्मथ यानी सभी प्राणियों के मन को मथने वाले कामदेव के भी मन को मथने वाले कहे गए है। मदनोत्सव प्रेम का शालीन पर्व यानी जिस बसंत पंचमी को हम हजारों साल से मना रहे हैं और इसकी प्रक्रिया रति और कामदेव के श्रृंगाररस से भरी है।' मदनोत्सव 'का अधिष्ठाता कामदेव को हिंदू शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है। उनका स्वरूप युवा और आकर्षक है। वह विवाहित हैं और रति उनकी पत्नी हैं। वह इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है। उनके अन्य नामों में रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मन्मथ, मनसिजा, मदन, रतिकांत, पुष्पवान, पुष्पधन्वा आदि प्रसिद्ध हैं। कामदेव, हिंदू देवी श्रीलक्ष्मी के पुत्र और कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का अवतार हैं। कामदेव के आध्यात्मिक रूप को हिंदू धर्म में वैष्णव अनुयायियों द्वारा कृष्ण को भी माना जाता है। जिन्होंने रति के रूप में 16 हजार पत्नियों से महारास रचाया था और व्रजमंडल की सभी गोपियां उनपर न्यौछावर थीं ।

बसंत को कामदेव का मित्र या सहायक भी माना जाता है वसंत पंचमी पर सरस्वती उपासना के साथ-साथ कामदेव की उपासना के गीत भी भारत की लोक शैलियों में आज भी विद्यमान हैं। आजकल हमारे देश में युवा वर्ग वेलेंटाइन डे के दिन पाश्चात्य संस्कृति का जश्न तो बेसुध हो कर मनाते दिखाई देते हैं लेकिन वसंत पंचमी को 'मदनोत्सव' के रूप में मनाना भूलते जा रहे हैं जिसका संबंध मनुष्य की उत्पत्ति के ऋतु-काल धर्म से जुड़ा हुआ है। भारतीय परंपरा में शालीन एवं मर्यादित स्वरूप मदनोत्सव को सदियों से मनाया जाता रहा है। मदनोत्सव पति-पत्नी, प्रेमी प्रेमिका के आपसी मर्यादित प्रेम की अभिव्यक्ति एवं सुदृढ़ीकरण का शालीन पर्व है। मदनोत्सव' पर पत्नी पति को अतीव सुंदर मदन यानी कामदेव का प्रतिरूप मानकर उसकी पूजा करती है। कामदेव का एक नाम अनंग भी है। इसीलिए इस तिथि को अनंग त्रयोदशी कहा जाता है।.......... बसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव हदय में प्रेम एवं आकर्षण का संचार किया था और तभी से यह दिन बसंतोत्सव तथा मदनोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। ........वैदिक काल से वर्तमान काल तक प्रत्येक युग के भारतीय साहित्य में वसंत के मनबहलावों का मनोरंजक वर्णन प्राप्त होता है। प्राचीन काल में वसंत में 'वन विहार' 'झूला दोलन', ( झूले पर झूलना ), 'फूलों का शृंगार' और मदनोत्सव मनाने की अदभुत परंपरा थी। उद्यान यात्राएँ ,वन विहार और सैर सपाटे प्राय:वसंत काल में ही होते थे, जबकि स्त्री पुरुष एक साथ एकत्र होकर मद्यपान करते थे। ,फूलों को चुनने और सजाने से संबंधित अनेक प्रकार के वसंतकालीन मनोरंजन भारतीय साहित्य में मिलते हैं। संक्षेप में मन बहलाव के लिये स्त्रियाँ कभी फूल पत्तियाँ चुनतीं, कभी उनके गहने बनातीं, कभी अशोक वृक्षों पर पैरों से प्रहार करतीं और कभी मौलश्री पर सुरा के कुल्ले करतीं। ,कभी केशों को फूलों से सजातीं, आम की कोपलें तोड़तीं, शेफाली और सिंदुवार के तिलक लगातीं ओर कभी प्रियतम के कानों में फूल खोंस कर उसे हृदय से लगातीं। एक ही झूले पर बैठ कर पति पत्नी बेधड़क गीत गाते थे। स्त्रियाँ मदमत्त होती थीं, उनके नूपुर झूले की गति के साथ बज रहे थे। जब कभी वे अपने पैरों से अशोक वृक्षों को छू देतीं उनकी कलियाँ खिलने लगतीं और फिर एकांत में शुद्ध प्रकृतिक वातावरण और जल प्रताप ,तालाबों ,नदियों के समीप प्रेमालाप करते और वन आखेट का आनंद लेते, मदनोत्सव रति और कामदेव का सभ्य स्वरूप है, जिसमें होली के मधुर रस भरे भजन और प्रेम के राग गाने की शु़रुआत हो जाती है 

कहा जाता है की कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती है। यानी, कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं, तो उसकी आवाज नहीं होती। इसका मतलब यह अर्थ भी समझा जाता है कि काम में शालीनता जरूरी है। कामदेव के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी होता है। इसी विपरीत लिंगी आकर्षण से बंधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है। कामदेव का एक लक्ष्य खुद काम हैं, जिन्हें पुरुष माना गया है, जबकि दूसरा रति हैं जो स्त्री रूप में जानी जाती हैं। कवच सुरक्षा का प्रतीक है। कामदेव का रूप इतना बलशाली है कि यदि इसकी सुरक्षा नहीं की गई तो विप्लव ला सकता है। इसीलिए यह कवच कामदेव की सुरक्षा से निबद्ध है। यानी सुरक्षित काम प्राकृतिक व्यवहार केलिए आवश्यक माना गया है, ताकि सामाजिक बुराइयों और भयंकर बीमारियों को दूर रखा जा सके।दूसरी ओर सीधा-सादा पर्व प्रकृति नख से शिख तक सजी नजर आती है आयुर्वेद में वसंत को स्वास्थ्य के लिए हितकर माना गया है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका उत्सव के साथ ही वसंत पंचमी या 'मदनोत्सव' मनाया जाता है और होली का उत्सव इसका चरमबिन्दु है

भारत में पिछले कुछ वर्षों से वेलेन्टाइन डे मनाने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। इसकी चकाचौंध में आज भारतीय समाज में मदनोत्सव विस्मृत-सा होकर रह गया है। 'वेलेन्टाइन डे के विपरीत मदनोत्सव में विवाहेत्तर अथवा विवाहपूर्व संबंधों के लिए कोई स्थान नहीं है, बल्कि यह विशुद्घ रूप से दांपत्य संबंधों को मजबूत करने का पर्व होने के कारण नैतिक-सामाजिक दृष्टि से पूरी तरह स्वीकार्य है, जबकि वेलेन्टाइन डे ऐसी खामियों की वजह से भारतीय समाज में आज भी सर्व स्वीकार्य नहीं है।आज पश्चिमी जगत तो एक ही दिन Valentine’s Day मनाता है, हम तो पूरे एक महीने का 'मदनोत्सव 'मनाते थे। अब आप सोच रहे होगे की मैं आज आपसे 'मदनोत्सव 'का जिक्र क्यों कर रहा  हूँ ?

सब सवाल ये उठता है की जिस 'मदनोत्सव' का जिक्र हमारे पुराणों और कहानियो में भी है वो हमारे हिंदी सिनेमा के फिल्मकारों से छूट कैसे गया ? ये बड़े दुर्भाग्य की बात है की विदेशी सभ्यता का भारत में अशलील प्रचार करने वाले 'वैलेंटाइन डे ' के आकंठ प्रेम में डूबे हमारे हिंदी सिनेमा के फिल्मकारों ने 'मदनोत्सव ' पर बहुत ही कम फिल्मांकन किया है शशि कपूर निर्मित 'उत्सव (1984) ' में फिल्म के कलाइमेक्स में बसंत सेना ( रेखा ) के अपने प्रेमी चारुदत्त ( शेखर सुमन ) से मिलने की व्याकुलता को उन्होने 'मदन उत्सव 'के दौरान बखूबी फिल्माया है मेरे ख्याल से हिंदी सिनेमा में ये इकलौता मदनोत्सव सिक़्वेन्स है जिसमे भास के 'चास्र्दत्त' नाटक में 'कामदेवानुयान' नामक एक जलूस का वर्णन है जिसमें कामदेव के एक चित्र के साथ संगीत नृत्य करते हुए अनेक नागरिक सम्मिलित होते हैं फिल्म 'उत्सव 'का ये सिक़्वेन्स शायद 'चास्र्दत्त' से लिया गया है अभिनेता और निर्माता शशि कपूर ने भारतीय सिने दर्शको को बिना बाजार की परवाह किये एक अपना अलग ही स्वाद का सिनेमा परोसा है जिसके के लिए वो बधाई के पात्र है शशि कपूर की

फिल्म 'उत्सव 'महाराज शूद्रक' के नाटक 'मृच्छकटिकम् ' पर आधारित थी यह नाटक ईस्वी पहली शती या दूसरी शती का है नाटक की पृष्टभूमि पाटलिपुत्र ( आधुनिक पटना ) है जहाँ ब्राह्मण, व्यापारी और निम्नवर्ण सब मिलकर मदान्ध क्षत्रिय राज्य ( शशि कपूर ) को उखाड़ फैकना चाहते है एक कहानी विवाहित चारुदत्त की है दूसरी कहानी आर्यक के विद्रोह की कथा है दरिद्र चारुदत्त ( शेखर सुमन ) बेहद सुन्दर नगर वधु वसंत सेना ( रेखा ) से प्रेम करता है उत्सव में रेखा ने बसंत सेना नामक एक नगर वधू का बोल्ड रोल निभाया था ये उस काल की कहानी है जब नगर वधू ( राज्य की वैश्या ) को भी शाही सम्मान प्राप्त था उन्हें बड़े सम्मान की नजर से देखा जाता था चारुदत्त की पत्नी (अनुराधा पटेल ) को भी उसके नगर वधू बसंत सेना से संबंधो से कोई एतराज़ नहीं है तीसरी कहानी महर्षि मल्लनाग वात्सायन की है जो स्वंय ब्रह्मचारी होते हुए नगरवधू बसंत सेना के सहयोग से अपने दो चेलों के साथ कामशास्त्र की रचना में मशगूल है फिल्म के सेट बहुत अच्छे है और फिल्म का संगीत पक्ष बड़ा मजबूत है शशि कपूर बिना लाभ और हानि की परवाह किये बिना ऐसे विलक्षण और दुलर्भ बोल्ड विषय को सिनेमा के परदे पर साकार किया ये बात बेहद महत्वपूर्ण है 

उनकी फिल्म 'उत्सव' में एक पूरा गाना  ''मेरे मन बाजे मृदंग '' ही 'मदनोत्सव' को समर्पित है जिसमे बड़े सुन्दर ढंग से नगर के नर और मदमस्त नारियो को उन्मुक्त तरीके से मदनोत्सव' मानते दिखाया गया उसके बाद शायद ही किसी अन्य फिल्म में कभी 'मदनोत्सव' का फिल्मांकन दर्शको को देखने को मिला हो ये शायद एकमात्र ऐसी विलक्षण फिल्म है जिसमे 'कामसूत्र' लिखने वाले महर्षि मल्लनाग वात्सायन को भी दिखाया गया है ये रोल अभिनेता अमजद खान ने निभाया था 'मेरे मन बाजे मृदंग ही 'गाने मे फिल्म 'उत्सव 'का कलाइमेक्स फिल्माया गया है अगर इस फिल्म का बजट कुछ और ज्यादा होता तो ये एक भव्य अंतराष्ट्रीय फिल्म बनती ये ऐतिहासिक तस्वीर अंराष्ष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे के फोटो ग्राफर रहे नेमई घोष ने फिल्म उत्सव के इसी गाने ''मेरे मन बाजे मृदंग '' के दौरान खींची थी 

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