महबूब खान की पहली टेक्नीकलर फिल्म 'आन'-(1952) |
हिंदी सिनेमा के दिग्गज फिल्म निर्माता निर्देशक महबूब खान की पहली टेक्नी कलर फिल्म 'आन'-(1952) को भव्य स्तर पर बनाया गया था दिलीप कुमार,निम्मी प्रेम नाथ और नादिरा का अभिनय फिल्म को लोकप्रियता और सफलता की ऊंचाई पर ले गया उस वक्त 'आन' फिल्म की उत्पादन लागत लगभग 35 लाख रुपये आई थी जो आज के लगभग 32 करोड़ के बराबर है यह अपने समय की सबसे महंगी भारतीय फिल्म थी 'आन 'पहली ऐसी भारतीय फिल्म थी, जो अंग्रेजी शीर्षक - 'सैवेज प्रिंसेस 'के नाम से कई देशों में 17 भाषाओं में उपशीर्षक (Sub Title) के साथ रिलीज़ हुई फिल्म का एक भव्य लंदन प्रीमियर में रखा गया था जिसमें महबूब खान उनकी पत्नी सरदार अख्तर और निम्मी ने भाग लिया था अभिनेत्री 'निम्मी' फिल्म में रोमांटिक लीड में नहीं थी और फिल्म के अंतिम भाग में उनकी मौत दिखाई गई थी जिसका उस समय फिल्म वितरकों ने विरोध भी किया था फिर भी निम्मी ने अपने अभिनय से दर्शकों पर एक बड़ा प्रभाव डाला और उनका चरित्र 'मंगला' फिल्म में सबसे लोकप्रिय किरदार के रूप में उभरा .... लेकिन बहुत ही कम दर्शको को पता होगा की महबूब खान ने अपनी फिल्म 'आन 'में पहले अपनी फेवरिट अभिनेत्री नर्गिस को ही साइन किया था नर्गिस आखिर फिल्म आन का हिस्सा क्यों नहीं बन सकी ? जबकि अभिनेत्री नर्गिस महबूब खान की ही खोज थी ये पूरा किस्सा जानने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा ...
दलीप कुमार और नादिरा फिल्म 'आन' के एक दृश्य में |
प्रेमनाथ ,नादिरा और दलीप कुमार फिल्म आन के एक नाटकीय दृश्य में |
वो शायद जुलाई के मानसून का एक उमस भरा चिपचिपा महीना था ...दोनों दोस्त बम्बई के मरीन ड्राइव से गुज़र रहे थे गाडी महबूब खान चला रहे थे बारिश की वजह से सड़के पानी से भरी हुई थी लिहाज़ा जिस गाडी को वो चला रहे थे उसमे भी पानी भर गया और गाडी बंद हो गई इतने में बारिश की बूंदाबांदी भी तेज़ हो गई वो दोनों इसी उधेड़बुन में थे की बारिश से बचने के लिए कहाँ छिपा जाया ? तभी उन्हें जद्दन बाई की याद आई जो पास में ही रहती थी गाडी को किसी तरह मैकेनिक के हवाले कर दोनों ने जद्दन बाई के घर की और तेज़ी से कदम बढ़ा दिए जद्दनबाई भी अपने ज़माने की एक अभिनेत्री और सिंगर रह चुकी है जद्दन बाई के इसी घर में महबूब खान ने पहली बार नर्गिस को बारिशो के महीने में देखा था जो जद्दन बाई की ही बेटी थी उन्होंने अपने दोस्त 'आगा जानी कश्मीरी ' को कहा
''मुंह मीठा कर लो हमें अपनी फिल्म की नायिका मिल गई है ''
और जद्दन बाई के सामने ही उन्होंने नर्गिस को अपनी फिल्म 'तक़दीर' की नायिका घोषित कर दिया
इसके बाद महबूब खान की फिल्मो का नर्गिस एक अहम हिस्सा बन गई थीं तक़दीर के बाद 1949 में 'अंदाज़' आई यह फिल्म दर्शकों को खूब भायी और यह सुपरहिट साबित हुई लेकिन 1950 का दशक बीतते बीतते नर्गिस की जिंदगी में राजकपूर आये तब राज कपूर एक्टिंग के साथ-साथ निर्देशन में भी हाथ आजमा रहे थे दोनों 'आवारा' में एक साथ काम रहे थे महबूब खान भी हमेशा की तरह अपनी महत्वकांक्षी फिल्म आन के लिए नर्गिस को पहले साइन कर चुके थे असल दिक्कत यही शुरू हुई महबूब खान के सेट पर कभी नर्गिस देर से पहुंचने लगी और कभी आती है नहीं थी महबूब खान समेत पूरी यूनिट उनका इंतज़ार करती रहती कुछ दिनों तक तो महबूब खान ने इंतज़ार किया नुकसान भी सहा लेकिन जब 'आन 'फिल्म के सेट पर नर्गिस का इंतज़ार हद से गुजरने लगा तो महबूब खान का सब्र भी टूट गए एक दिन नर्गिस सेट पर देर से आई तो महबूब खान ने उनसे देर से आने का कारण पूछा नर्गिस ने कहा की ....
'' मुझे 'आवारा' के सेट पर ही देर हो जाती है राजकपूर 'आवारा 'को ज्यादा समय देने को कहते है इसलिए देर हो जाती है''
यह सुनकर महबूब खान से नरगिस से दो टूक कह दिया .........
'' आज वो फैसला कर ले की उसे राजकपूर की 'आवारा' करनी है या महबूब खान की 'आन ' ?
फिल्म 'आन' पोस्टर में न्यू फाइंड नादिरा लिखा गया कहते है की महबूब ने ऐसा जानबूझ कर किया था |
हालाँकि इस घटना के बाद भी नर्गिस और महबूब खान का रिश्ता कभी कमजोर नहीं पड़ा इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगता है की उन्होंने जब अपनी ही फिल्म 'औरत' (1940) का रीमेक बनाने की सोची तो उन्होंने नर्गिस को मुख्य भूमिका में लिया नर्गिस फिल्म में कमजोर न लगे इसलिए महबूब खान ने दलीप कुमार को भी अपनी फिल्म 'मदर इण्डिया' में नहीं लिया दलीप कुमार फिल्म में नर्गिस के बेटे सुनील दत्त (बिरजू) या पति रामू (राजकुमार) का रोल करने को तैयार थे लेकिन नर्गिस का क़िरदार दलीप कुमार जैसे बड़े कलाकार के सामने कमजोर न पड़े इसलिए महबूब खान ने दलीप साहेब को मदर इंडिया में किसी भी तरह का रोल देने से साफ़ इंकार कर दिया लेकिन बाद में दलीप साहेब ने एक इंटरव्ह्यु में कहा था की ...
''महबूब ने उन्हें बिरजू का रोल ऑफर किया था लेकिन उन्होंने खुद ही नर्गिस के बेटे वाला रोल नहीं किया क्योकि वो नर्गिस के साथ कई फिल्मे में रोमांटिक रोल कर चुके थे और दर्शक उन्हें उसी नर्गिस के बेटे के रोल में कभी स्वीकार नहीं करते''
फिल्म आन का एक पोस्टर आज 72 सालो के बाद भी पहेली बना हुआ है |
अब बात इसी फिल्म के एक पोस्टर की करते है जो 1949 के किसी समय में बना फिल्म 'आन' के पोस्टरों और अन्य प्रचार सामग्री में नर्गिस को प्रमुखता से जगह दी गई थी लेकिन उसी पोस्टरों में नर्गिस में साथ नादिरा को एड कर कुछ पोस्टर भी आये जिसमे नर्गिस के साथ 'न्यू फाइंड नादिरा 'लिखा गया कुछ समीक्षक कहते है की महबूब ने ऐसा जानबूझ कर किया यह पोस्टर नर्गिस ,नादिरा ,निम्मी सहित तीन अभिनेत्रियों को दर्शा रहा है जबकि फिल्म में कोई तीसरी प्रमुख महिला की भूमिका ही नहीं है निम्मी के साथ दिलीप कुमार और नरगिस के साथ नादिरा फिल्म का हिस्सा नहीं हैं आखिर महबूब खान ने अंतिम संस्करण में कहानी में क्या बदलाव किये और नरगिस कौन सी भूमिका निभा रही थीं ? आश्चर्य यह भी है कि इस पोस्टर में प्रेमनाथ का नाम ही नहीं है शायद हो सकता है की नर्गिस और नादिरा बहनों या राजकुमारी की सहेलियों की भूमिका निभा रही थीं ...... मुझे आश्चर्य है कि क्या नादिरा को अपनी भूमिका का महिला संस्करण निभाना था ? यह निम्मी की दूसरी फिल्म थी जिसे उन्होंने साइन किया था इसलिए नरगिस और नादिरा को मूल संस्करण में सहोदर राजकुमारियों की भूमिका निभानी थी इस पोस्टर को देखने के बाद अगर फिल्म 'आन' की कहानी की तुलना करे तो कुछ समझ नहीं आता कि कौन से अभिनेत्री कौन सा रोल निभा रहे थी ? अगर नादिरा राजकुमारी का रोल कर रही थी तो निम्मी और नर्गिस का रोल क्या था ? दलीप कुमार के साथ फिल्म में किस अभिनेत्री की लव केमिस्ट्री रही होगी थी ? जब प्रेमनाथ फिल्म में थे ही नहीं तो उनकी एंट्री फिल्म 'आन 'में कैसे हुई ? क्या नर्गिस के फिल्म छोड़ने के बाद महबूब खान की कहानी ही बदल दी थी ये सारी बाते आज भी समझ से परे है जिस पर यदा कदा आज भी चर्चा होती रहती है अब महबूब खान,निम्मी ,नर्गिस भी दुनिया से चले गए हैं दिलीप साहेब भी अब नहीं रहे इसलिए ये एक पहेली ही रहेगा
महबूब खान हिंदी सिनेमा के ऐसे फिल्म मेकर रहे है जिन्होंने कभी भी स्कूल की चौखट पर पाँव नहीं रखा लेकिन अपनी मेहनत और दक्षता के दम पर ऐसा कर दिखाया की आज फिल्मो पढ़ाई करने वाले छात्र उन्हें पढ़ते है उन्होंने देश और समाज के उस समय के हालातो को अपनी फिल्मो में दिखाया उन्होंने अपनी फिल्मो के जरिये महत्वपूर्ण मुद्दे उठाये इसलिए जब उन्होंने भारत की पहली टेक्नीकलर फिल्म बनाने की सोची तो कई पहलुओं पर गौर किया आन फिल्म के निर्माण को लेकर एक बेहद ख़ास बात है फिल्म 'सैरन्ध्री '(1933-मराठी) के निर्माण के दौरान दिग्गज फिल्ममेकर व्ही शांताराम एक गलती पहले कर चुके थे और उनकी फिल्म 'सैरन्ध्री 'भारत की पहली रंगीन फिल्म बनने से रह गई थी उन्होंने फिल्म सैरन्ध्री को रंगीन शूट भी कर लिया था लेकिन फिल्म 'सैरन्ध्री 'को रिलीज़ किया गया तो भारत के सिनेमाघरों में रंगीन फिल्म दिखाने वाले उच्च कार्बन युक्त प्रोजेक्टर थे ही नहीं क्योंकि उस वक्त भारत में सारी फिल्मे ब्लैक एन्ड वाइट ही रिलीज़ होती थी लिहाजा जब 'सैरन्ध्री 'कलर में रिलीज़ हुई तो परदे पर आंशिक रूप से धुंधली दिखती थी व्ही शांता राम का प्रयोग सफल नहीं हुआ...... महबूब खान ये बात जानते थे इसलिए उन्होंने इस बात से सबक लेते हुए अपनी फिल्म 'आन 'को बिना 35 mm के सिर्फ 16 mm से ही शूट करने का निर्णय लिया क्योंकि भारत के अधिकांश सिनेमाघर सिर्फ एक कलर फिल्म के लिए अपना महंगा मोडिफिकेशन करवाने के लिए आर्थिक रूप से बिलकुल भी सक्षम नहीं थी
जैसा की ईस्टमैन कलर फिल्मो में होता है फिल्म 'आन' ब्लैक / व्हाइट से कलर नही बनाई गई थी इसे महबूब ने 16 mm से 35 mm में बनाया गया क्योंकि उस समय 35 mm की नेगेटीव भारत में आसानी से नही मिलती थी उसे विदेशो से आयात किया जाता था जिस पर भारी शुल्क चुकाना पड़ता था .....शूटिंग के बाद 16mm कलर नेगेटीव से 35mm प्रिंट निकाले गए थे दिलचस्प बात ये थी की अगर महबूब का ये प्रयोग असफल हो जाता तो साथ मे 35mm की ब्लेक / व्हाइट शूटिंग भी उपलब्ध थी ......ये उस महबूब साहेब का कमाल था जिहोने कभी स्कूल की चौखट पर पाँव तक नहीं रखा लेकिन अपने कौशल के दम पर खुद को फिल्म इंडस्ट्रीज़ में एक उच्च संस्था के रूप में स्थापित कर दिखा दिया 4 जुलाई 1952 को जब 'आन' रिलीज़ हुई तो महबूब खान के इसी नए प्रयोग के वजह से उन्हें भारत के दिग्गज फिल्म मेकर्स में शुमार किया गया फिल्म में दस गाने थे जिनका संगीत नौशाद साहेब ने दिया था
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