Friday, March 1, 2024

'गहराई' - (1980) ........बॉलीवुड में हॉरर फिल्मो की बनी बनाई वर्जनाओं को तोड़ने वाली फिल्म ...

Gehrayee - (1980)
फ़िल्मकार अरुणा राजे के बारे में कहा जाता है कि वह एक ऐसी फिल्म निर्माता थीं जो बोल्ड विषयों पर फिल्में बनाती है उन्होंने पति विकास के साथ मिलकर कुछ आकर्षक फिल्में बनाईं जिनमें 'शक '(1976) और 'गहरायी' (1980) प्रमुख हैं विकास देसाई और अरुणा राजे द्वारा निर्देशित हॉरर थ्रिलर फिल्म 'गहराई' उस समय परदे पर आई थी जब हॉरर फिल्मो को भारत में मुनाफे का सौदा नहीं माना जाता था ऐसी फिल्मे दूरदर्शन पर भी रिलीज़ नहीं होती थी क्योंकि सरकारी निति के अनुसार ऐसी फिल्मे अन्धविश्वास और जादू-टोने को बढ़ावा देती थी 'गहराई' जब रिलीज़ हुई थी तो तब हिंदी फिल्म उद्योग में अलौकिक कहानियों को अक्सर बी-ग्रेड के रूप में ब्रांड किया जाता है यह एक ऐसा समय था जब सिमित बजट की कामुक हॉरर फिल्मो बनाने में रामसे ब्रदर्स मशहूर हो रहे थे  उनकी बनाई ये मसालेदार फिल्मे ज्यादातर मॉर्निंग शो में चलती थी और अपनी लागत आराम से वसूल भी कर लेती थी इन फिल्मो का खास दर्शक वर्ग था 'गहराई' से पहले दरवाजा (1978),दो गज जमीन के नीचे (1972), दहशत- (1981),जादू टोना (1977) जैसी कुछ हॉरर फिल्मे आ चुकी थी कुछ को मामूली सफलता भी मिली 'जादू टोना '(फ़िरोज़ खान-रीना रॉय) को छोड़कर बाकि सभी फिल्मो की स्टार कास्ट साधारण थी अगस्त 1980 को रिलीज़ हुई एन.एन सिप्पी की फिल्म 'फिर वही रात 'भी एक हॉरर सस्पेंस ड्रामा फिल्म थी जिसमे राजेश खन्ना जैसा सुपर स्टार था लेकिन 'गहराई' को ऐसी हॉरर फिल्म की श्रेणी में रखना उचित नहीं होगा क्योंकि इसमें कोई खूंखार चेहरे या बेहूदा मेकअप वाला भूतिया किरदार नहीं था ,ना ही कान फोड़ू हॉरर संगीत से बेवजह दर्शको से डराने की जबरन कोशिश की गई थी इसमें सिर्फ वास्तविक सी लगने वाली घटनाओं का फिल्मांकन था जिससे ही दर्शक सहम गए विजय तेंदुलकर, विकास देसाई और अरुणा राजे  की लिखी और निर्माता एन. बी. कामत  की बनाई यह फिल्म असंतुलित विकास के लिए एक दिलचस्प रूपक की तरह लगती है 

दुर्भाग्य से हमारे यहां हॉरर, थ्रिलर फिल्मो को दोयम दर्जे का सिनेमा बना कर रख दिया गया जबकि हॉलीवुड में इसी जॉनर की कई फिल्में क्लासिक का दर्जा पा चुकी हैं यह उन दिनों की बात है जब भारत में हॉलीवुड की एक हॉरर फिल्म 'The Exorcist' ने हंगामा मचा रखा था ये फिल्म वर्ल्ड वाइड रिलीज़ तो 1973 में ही हो गई थी लेकिन भारत आने में इसे कुछ समय लगा भारत में ऐसी हॉलीवुड हॉरर फिल्मो को देखने वालो की भी एक अलग ऑडियंस थी सत्तर के दशक के उन दिनों में भारत में अंग्रेजी फिल्मो को हिंदी में डब करने की कोई खास तकनीक नहीं थी अंग्रेजी फिल्मो को उनकी मूल भाषा के साथ ही रिलीज़ किया जाता था ऐसी फिल्मो को लेकर हमारे सेंसर बोर्ड की एक सख्त निति हुआ करती ही इसलिए इन्हे हमेशा A सर्टिफिकेट के साथ ही रिलीज़ किया जाता था इसलिए इसके दर्शक भी सिमित होते थे 

विभिन्न देशो की एम्बेसियो से घिरा दिल्ली का 'चाणक्य' सिनेमा हॉल हॉलीवुड फिल्मो के शौकीनों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं था The Exorcist को लेकर कई तरह की कहानियाँ और अफवाहे भी उन दिनों प्रचिलित थी जब 'चाणक्य' में फिल्म 'द एक्सोरसिस्ट' लगी थी तो सिनेमा प्रबंधक को भी सिनेमा घर के बाहर बाकायदा एक एम्बुलेंस की व्यस्था करनी पड़ी थी...किसी भी मेडिकल आपातकाल से निपटने के लिए ये एम्बुलेंस पूरे शो दौरान सिनेमा हॉल के गेट के सामने खड़ी रहती थी बिना हिंदी डबिंग के भी सिर्फ माउथ पब्लिसिटी के कारण पर यह फिल्म भारत में कामयाब रही इस फिल्म का बजट 96 करोड़ 77 लाख था और कमाई की बात करें तो इस फिल्म की कमाई 349 करोड़ थी आज इस फिल्म को रिलीज हुए 50 वर्ष होने को है इसके बाद भी कई हॉरर फिल्मे आई जिसमे यक़ीनन तकनीक भी अच्छी थी लेकिन ''द एक्सॉर्सिस्ट  ''जैसा रोमांच दोबारा परदे पर वापिस न आ सका ऐसे ही माहौल में हलकी गुलाबी ठण्ड की दस्तक के साथ 9 सितम्बर 1980 के दिन निर्देशक विकास देसाई की पारलौकिक विषयों पर बनी एक कम बजट की फिल्म 'गहराई' परदे पर आती है किसी को यकीन भी नहीं हो पाया कि अरुणा-राजे और विकास देसाई की जोड़ी विनोद खन्ना और शबाना आजमी के साथ 'शक-(1976)' जैसी अवॉर्ड विनिंग फिल्म बनाने के बाद सीधे 'गहराई' जैसी अलौकिक शक्तियों की कहानी को आधार बनाएगी अरुणा राजे के मन में यह विचार तब से था जब वह "शक" का सह-निर्देशन कर रही थीं यहाँ हॉलीवुड फिल्म The Exorcist की चर्चा करके आपको यह बताना जरुरी हो जाता है कि अरुणा राजे का कहानी 'गहराई' तभी परदे पर आकार ले सकी जब "द एक्सोरसिस्ट" जैसी विदेशी हॉरर फिल्म भारत में सफलता की कहानी बन गई है 


'गहराई ' की कहानी एक ऐसे परिवार के बारे में है जहां पिता जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हैं दूसरी ओर उनकी पत्नी ईश्वर से डरने वाली और धर्म के कर्मकांडीय पक्ष में विश्वास रखती है एक दिन उनकी किशोर बेटी पर एक बुरी आत्मा का साया आ जाता है और उस परिवार को पता नहीं होता कि इसके बारे में आखिर उन्हें करना क्या है ? इस परिवार का बड़ा बेटा तर्कसंगत सोच वाला नौजवान है लेकिन जब वह देखता है कि चिकित्सा सहायता के बावजूद उसकी बहन की हालत बिगड़ती जा रही है तो वह तर्कसंगत नहीं रह पाता और अपनी बहन को इस अनजान पारलौकिक शक्ति से बचाने के लिए अपने पिता के खिलाफ खड़ा हो जाता है 

फिल्म की कहानी के अनुसार परिवार का मुखिया चेन्नबासप्पा (डॉ. श्रीराम लागू) एक पढ़ा लिखा और तार्किक वैज्ञानिक सोच वाला रखने वाला व्यक्ति है चेन्नाबसप्पा बैंगलोर में एक प्रतिष्ठित फर्म के सफल प्रबंधक हैं चेन्नबसप्पा एक तर्कवादी हैं वह संवेदी धारणा से परे किसी भी चीज़ में विश्वास नहीं करता हैं वो नास्तिक की तरह हैं ऑफिस और घर दोनों जगह उसका स्वभाव कठोर है उन्नति और विकास के कई समर्थकों की तरह चेन्नबासप्पा को कभी भी दूसरा पक्ष नहीं मिलता यह तब पता चलता है जब एक कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में जब बोर्ड बैठक में कोई मशीनों के कारण मजदूरों की छँटनी पर सवाल उठाता है तो वह बेरुखी से तर्क देता है...... 
 
"हम उन्हें मुआवजा दे रहे हैं..." 

किसका सीधा तात्पर्य है कि उसकी नजरो में गरीबो के श्रम की गरिमा का कोई महत्त्व नहीं है दूसरी और उनकी धर्मपत्नी सरोजा (इंद्राणी मुखर्जी)  ईश्वर में विश्वास रखने वाली सफल गृहणी है उनका बड़ा बेटा नंदीश/नंदू (अनंत नाग) भी आज की आधुनिक पीढ़ी का पढ़ा लिखा नौजवान है पूरा परिवार खुशहाल जिंदगी बिता रहा है चेन्नबासप्पा अपनी नौकरी से रिटायर हो रहा है और परिवार के रहने के लिए बैंगलोर में एक बड़ा घर बनाना चाहता था इस हँसते खेलते परिवार पर तब मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ता है जब एक दिन उनकी किशोर बेटी उमा (पद्मिनी कोल्हापुरे) पर एक अनजान आत्मा आ जाती है अपने स्कूल से घर वापिस आते ही उमा अचानक मर्दाना आवाज़ में अपनी माँ के सामने ही अपने भाई-पिता से अश्लील वार्तालाप करने लगती है उमा का यह नया रूप देख सभी हैरान रह जाते है पिता चेन्नबासप्पा शहर के सबसे बड़े डॉक्टर से संपर्क करता है उमा की हालत देख डॉक्टर उसे शॉक थरेपी देने की बात करता है जिस पर पिता राजी हो जाता लेकिन भाई नंदू बहन की कम उम्र का हवाला देकर शॉक थरेपी का विरोध करता है लेकिन बहन की बिगड़ी हालात पिता की जिद और कोई अन्य विकल्प न देख वो राजी हो जाता लेकिन इस दर्दनाक शॉक थरेपी से उमा को कोई लाभ नहीं होता 

इस बीच उमा के शरीर में आई आत्मा उसके पिता चेन्नबासप्पा के अतीत का एक काला स्याह सच परिवार के सामने खोलकर रख देती है वह परिवार को चेन्नाबसप्पा के अकथनीय और पूरी तरह से अज्ञात उस अंधेरे अतीत के बारे में बताती है जिससे उसका परिवार अब तक अनजान था अपने पिता का नंगा घिनौना सच जान नंदू पिता से नफरत करने लगता है और अपनी बहन की दुर्दशा के लिए पिता को ही ज़िम्मेदार मानने लगता है परिवार के रिश्तो में बेवजह लकीरे खिंच जाती है इधर चेन्नबासप्पा इस बात से हैरान है की उमा के भीतर बैठी आत्मा वो सच कैसे जानती है जो वो खुद भी भूल चुका था ?

चेन्नाबसप्पा बेटी उमा के लिए बेहतर से बेहतर दवा और उपचार का इंतज़ाम करता है लेकिन कोई फायदा नहीं होता दुर्भाग्य से इसी बीच यह परिवार कई नकली ओझाओं का भी निशाना बन जाता है जो अपनी तर्कहीन बातो  बातों से परिवार को परेशान करना शुरू कर देते हैं और रूहानी इलाज के नाम पर उनसे काफी पैसा लूट लेते है लेकिन असहाय उमा का कोई भला नहीं कर पाते ऐसे ही एक तांत्रिक पुट्टाचारी (अमरीश पुरी) द्वारा परिवार को बेवकूफ बनाया जाता जो वास्तव में अपने निजी स्वार्थ के लिए एक शैतानी ताकत को पुनर्जीवित करने के लिए एक कुँवारी कन्या की तलाश में है और उमा उसके लिए एक अवसर है वह अपने काम के लिए उमा को माध्यम बनाता है और उसके साथ निर्जन जंगल में एक सुनसान रात को गुप्त अनुष्ठान के नाम पर कुछ गलत करने की कोशिश करता है हालाँकि उसकी योजनाएँ तब विफल हो जाती हैं जब भाई नंदू बीच में आता है और उमा को बचाता है अब परिवार का विश्वास तांत्रिको से भी उठ जाता है और डॉक्टर अपनी कोशिश कर पहले ही हार चुके है  

इधर परिवार पर दुष्ट आत्मा का कहर जारी है घर में परिवार के लिए बना खाना अपने आप जानवरो के मल में बदलने लगता है घर का पुराना वफादार नौकर रामा ( रामा कृष्णन ) नंदू को अपने गाँव के एक सिद्ध शास्त्री जी के बारे में बताता है और परिवार में उम्मीद जगाता है की वो उमा को सही कर सकता है लेकिन तांत्रिको से धोखा खाया परिवार किसी तांत्रिक को घर लाने से रामा को सख्ती से मना कर देता है इसकी बजाय चेन्नाबसप्पा उमा को विलायत इलाज के लिए ले जाना चाहता है लेकिन बेटे नंदू रामा के कहने पर परिवार को शास्त्री जी से एक बार मिलने के लिए राजी कर लेता है शास्त्री जी (सुधीर दलवी ) चेन्नाबसप्पा के घर आता है और अनुष्ठान आरम्भ देता है शास्त्री की निशानदेही पर चेन्नाबसप्पा के घर की छत और बगीचे से तंत्र मन्त्र की वस्तुएँ ( एक कील लगा नींबू और एक बदसूरत डरावनी गुड़िया) मिलती है सम्भवता जिसका प्रयोग उमा पर जादू टोने के लिए किया गया है जबकि परिवार घर में मिलने वाली चीजों से अनजान था इसलिए पूरे परिवार का शास्त्री जी पर विश्वास बढ़ जाता है 

शास्त्री उमा के शरीर के अंदर बैठी आत्मा को अपनी पहचान प्रकट करने का आदेश देता है और तब पता चलता है कि यह अपवित्र आत्मा वास्तव में किसी  गांव के तांत्रिक द्वारा उमा के पास भेजी गई थी तांत्रिक से इस घृणित कार्य को करवाने के बदले किसी अन्य व्यक्ति ने बाकायदा उसे मुंहमांगे पैसो का भुगतान किया है  शास्त्री उमा के शरीर में प्रविष्ट आत्मा से संवाद करते है और उमा को हमेशा के लिए छोड़ने के लिए कहते है लेकिन जिद्दी आत्मा ऐसा करने से इंकार कर देती है और उमा को अपने साथ ले जाने का वचन दोहराती है वो वचन जो उसने अपने भेजने वाले को दे रखा है शास्त्री अपने मंत्रो की शक्ति से उस आत्मा को उस व्यक्ति का नाम बताने के लिए मजबूर कर देते है जिसने उसे उमा के शरीर में भेजा है और जब आत्मा उस का नाम 'बस्वा' बताती है तो पूरे परिवार के साथ साथ दर्शक भी भौचक्के रह जाते फिल्म की कहानी पूरे 90 डिग्री में घूम जाती है और दर्शको को फिल्म का पहला सीन याद आ जाता है जब फिल्म की शुरुआत में चेन्नाबसप्पा बेंगलुरु में अपने परिवार के लिए एक घर बनाना चाहता है और उसे पैसों की सख्त जरूरत है जिसके लिए चेन्नाबसप्पा अपने पैतृक गांव जाता है 

चेन्नबासप्पा के अपने पैतृक गांव में कई एकड़ में फैले अपने पान के बागान है गांव जाकर वो अपने बागानों की देखभाल करने वाले बस्वा (सुहास भालेकर) से मिलता है बस्वा अपनी बेटी चेन्नी और दूसरी औरत के साथ चेन्नबासप्पा की जमीन पर ही  झोपड़ी बनाकर रहता है बस्वा चेन्नबासप्पा का वफादार है और उसे बड़ी आत्मीयता से स्नेहवश 'अन्ना' कह कर बुलाता है कई वर्षों से बागान की देखभाल गरीब इसी बस्वा द्वारा की जाती रही है बस्वा चेन्नबासप्पा को ख़ुशी-ख़ुशी खेतो में पैदा होने वाली पान की फसलों के बारे में बताता है और मन लगाकर पहले से अधिक मेहनत करने का प्रण दोहराता है लेकिन चेन्नबासप्पा उसे कहता है उसे अब मेरे खेतो में जी तोड़ मेहनत करने की कोई जरुरत नहीं क्योंकि अपने ये बागान उसने बेच दिए है और अब यहाँ एक साबुन बनाने का कारखाना बनेगा बागान की देखभाल करने वाला बिस्वा यह सुनकर अचंभित रह जाता वह मालिक चेन्नबासप्पा से याचना करता है कि वह उसके साथ ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि ये कृषि भूमि उसकी माँ की तरह है वह तो अनाथ हो जायेगा चेन्नबासप्पा उसे अनसुना कर देता है लेकिन वो अनुकम्पा के आधार पर बस्वा को बैंगलोर में जीवन यापन के लिए नौकरी की पेशकश करता है जिसे क्रोधित बस्वा ठुकरा देता है बस्वा के लिए वो जमीन का टुकड़ा अपनी मां के सामान है जिसे चेन्नाबसप्पा ने सिर्फ पैसे के लिए बेच रहा है गुस्से से उत्तेजित बस्वा चेन्नबासाप्पा के जमीन बेचने के कृत्य को अपनी माँ के बलात्कार के समान मानता है
 

उमा के शरीर आई आत्मा ने चेन्नबासप्पा परिवार के सामने जो रहस्योद्घाटन किया था वो इसी बस्वा से जुड़ा हुआ है दरअसल में बागान मालिक चेन्नाबसप्पा ने अपनी जवानी के दिनों में बस्वा की गैरमौजूदगी में उसकी पत्नी को बहकाया था और उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाये जिससे बस्वा की पत्नी गर्भवती हो गई और बाद में उसने लोक लाज ,बदनामी से बचने के लिए कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली थी अपनी पत्नी के आत्महत्या के इस कारण से बस्वा अनजान है और बस्वा की पत्नी से अवैध सम्बन्ध बनाने के बाद चेन्नबासप्पा ने कभी उसकी कोई सुध नहीं ली को बस्वा की पत्नी गर्भ में पल रहे उसके बच्चे के कारण आत्महत्या कर चुकी है इस बात से खुद चेन्नबासप्पा अनजान था बागान की जमीन से बेदखल करने से क्रोधित बस्वा चेन्नाबासप्पा से बदला लेने का निर्णय करता है वो चेन्नबासप्पा की बेटी उमा शरीर में एक बुरी आत्मा को स्थापित करके बदला लेने का बेहद क्रूर और खतरनाक निर्णय करता है बदले की आग में जलता बस्वा इस कार्य के लिए एक तांत्रिक को अपना सब कुछ बेचकर पैसो का मुंहमांगा भुगतान कर देता है बस्वा का अब बस एकमात्र उद्देश्य अपनी भेजी आत्मा के जरिये चेन्नाबसप्पा और उसकी बेटी उमा के साथ-साथ का सम्पूर्ण परिवार का विनाश है 

चेन्नबासप्पा और उसका परिवार बस्वा के किये गए इस कृत्य से हैरान है शक्तिशाली,समझदार तांत्रिक शास्त्री अपने तपोबल और शक्तिशाली मंत्रो ,अनुष्ठानो की सहायता से उमा के शरीर को प्रविष्ट आत्मा से मुक्त करवा देते है और उस आत्मा से वचन लेते है कि वो अब उमा को और चेन्नबासप्पा के परिवार को कभी तंग नहीं करेगी बदले में शास्त्री के हाथों उस आत्मा को हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है वो आत्मा जाते जाते शास्त्री जी को दिए वचन के मुताबिक चेन्नबासप्पा के घर के बगीचे में लगे नारियल के पेड़ पर लगे एक नारियल को गिराकर हमेशा के लिए इस लोक से मुक्त हो अपने चले जाने का संकेत भी दे जाती है कुछ दिनों के बाद उमा सामान्य हो जाती है इस कार्य के लिए आभारी चेन्नबासप्पा शास्त्री जी को पैसो की पेशकश करता है लेकिन वो कुछ भी लेने से इंकार कर देता है और परिवार को आशीर्वाद देकर चला जाता है 


लेकिन अब नंदू यह राज जानने को बेताब हो जाता है जिस बस्वा के लिए उसके परिवार ने इतना कुछ किया उसने उसकी बहन को इतनी तकलीफ क्यों दी ? बागान की जमीन उनकी अपनी थी और उसे बेचने का अधिकार भी उसके परिवार को था फिर उसने उनके साथ ऐसा बदला क्यों लिया ? लिहाजा वो खुद बस्वा से मिलने का फैसला करता है और परिवार के मना करने के बावजूद उसके पैतृक गांव जा पहुंचता है गाँव में उसे पता चला चलता है कि बस्वा की तो कुछ दिन पहले ही मौत हो गई थी लेकिन नंदू अपने मन में उभरते सवालों के जवाब पाने के लिए उसी गाँव के एक स्थानीय मुस्लिम आलिम साबी ( कुमार साहू ) से बस्वा की आत्मा से एक बार उसे मिला देने की गुहार लगाता है साबी ऐसा करने से मना कर देता है और नंदू को भी चेतावनी देता कि यह खतरनाक ख्याल अपने मन से निकाल दे क्योंकि इस कार्य में बेहद खतरा है लेकिन बस्वा का राज जानने को बेताब नंदू अपने पिता चेन्नबासप्पा के पूर्वजो के अतीत में इस गाँव पर किये उपकारों का हवाला देकर साबी को मना लेता है 

अगली रात सबसे पहले वह मुस्लिम आलिम साबी बड़ी मशक्क्त से मृत बस्वा की कब्र खोजता है जहाँ उसे मरने के बाद गाँव वालो ने दफनाया था फिर नंदू को साथ लेकर उसकी कब्र पर अपना काला अनुष्ठान आरंभ कर देता है काफी प्रयासों के बाद मृत बस्वा की आत्मा कब्र से जाग जाती है और उन्हें अपने पीछे आने का संकेत देती है भयभीत नंदू और साबी उस अदृश्य हवा रूपी आत्मा के पीछे पीछे चलने लगते है आत्मा उन्हें फूल गिरा कर अपने पीछे आने का रास्ता बता रही है अंत में वो आत्मा बिस्वा की झोपड़ी के सामने रुक जाती है नंदू के दरवाजा खटखटाने पर विस्वा की बेटी चेन्नी (रीटा भादुड़ी) दरवाजा खोलती है और साबी उसमे बिस्वा की आत्मा को प्रवेश करवा देता है अब बिस्वा की आत्मा उसकी अपनी बेटी के शरीर में प्रवेश कर चुकी है और यहाँ फिल्म हमारे बदलते पर्यावरण की डरावनी तस्वीर से भी जुड़ जाती है और जल-जंगल-जमीन की रक्षा करने वाले कमजोर किसानो,आदिवासियों का पक्ष मजबूती से दर्शको के समक्ष रखती है जो विकास की आंधी में अपनी जड़ो से उखाड़े जा रहे है फिर शुरू होता है फिल्म के कलाइमेक्स का वह रोंगटे खड़े कर देने वाला संवाद जो दर्शको को झंझोड़ देता है जिसे उन्होंने शायद की किसी और हिंदी फिल्म में पहले देखा था

अलीम  साबी बस्वा की आत्मा से प्रश्न करना आरम्भ करता है 

साबी - क्या तुम वही बस्वा है जिसने चेन्नबासप्पा की बेटी को मारने के लिए कोई आत्मा भिजवाई थी ? 

जवाब 'हाँ' मिलता है साथ ही वो पलट कर सवाल भी आता  है  

बस्वा -मुझे क्यों बुलाया गया है ? मुझे जाने दो मैं बेचैन हूँ ,मैं इस दुनिया से तंग आ चुका हूँ 

साबी-अपने साथ आये नंदू की और इशारा करता हुआ पूछता है

इसे जानते हो ? 

बस्वा उसे पहचान लेता है लेकिन उसे वहां से चले जाने को कहता है 

बस्वा -मैं इसकी सूरत  भी नहीं देखना चाहता 

नंदू - साफ साफ को बताओ तुमने एक मासूम लड़की के साथ ऐसा क्यों किया जबकि उसने तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ा था ?

बिस्वा विलाप करते हुए नंदू से पूछता है 

बस्वा -वो कौन था जिसने उसे यतीम बनाया उसकी माँ को बेचा ?

नंदू -वो जमीन हमारी थी उसे बेचने का अधिकार था हमें 

बिस्वा-उस जमीन को मैंने अपने खून और पसीने से सँवारा था मैं उसे अपनी माँ की तरह चाहता था लेकिन एक दिन वो आया और मेरी माँ ,मेरी लक्ष्मी ,मेरी अन्नदाता को मुझसे छीन ले गया 

नंदू -लेकिन तुम्हारी जिम्मेदारी तो मेरे डैडी ले रहे थे 

क्रोधित बिस्वा की आत्मा चीत्कार कर जवाब देती है 

बिस्वा-उसने मेरी बीबी को ख़राब किया यह मुझे मरने के बाद दूसरे लोक जाने पर पता चला , मैं खुश हूँ मैंने उसके साथ जो किया अच्छा किया ,ठीक किया 

नंदू -लेकिन वो मेरे पिता की एक भूल थी , सिर्फ भूल 

बिस्वा -भूल ? एक बड़ा आदमी किसी गरीब की औरत को ख़राब कर सकता है ,उसे मौत के अँधेरे कुंए में ढकेल सकता है ,उसकी माँ को बेच सकता है और गरीब बेबस आदमी चुप रहता है क्यों ?

नंदू -वो एक जमीन का टुकड़ा था ,बस वो जमीन हमारी थी तुम सिर्फ उसकी  देखभाल कर रहे थे 

बिस्वा साबी से -इसे कह दो चला जाये यहाँ से , कोई किसी की माँ को जमीन का टुकड़ा कैसे कह सकता है ? मैं अपनी मां की गोद में सोया करता था 

 नंदू बेबाकी से बस्वा की आत्मा से पूछता है ....  

नंदू - ठीक है वो जमीन तुम्हारी थी और मेरे डैडी ने उसे बेच दिया लेकिन तुमने उसका इसका बदला मेरी बहन से क्यों लिया ? एक मासूम बच्ची को क्यों तड़पाया आखिर तूने परिवार के साथ ऐसा क्यों किया ? जवाब दे कमीने ?

बिस्वा- बताना चाहता था तेरे बाप को की , माँ को बेचने की तड़प क्या होती है ? इसलिए उसकी बेटी को तड़पाया ताकि उसे अहसास हो इसलिए मैंने तांत्रिक की मुंह मांगे पैसे दिए ताकि उसका घर बर्बाद हो जाये मैं चाहता था वो अपनी लड़की को सिसक-सिसक कर मरता हुआ देखे और तभी मैं भी खुश होता 


अपनी बहन के बारे में इतना सुनते ही नंदू अपना आपा खो देता है और बिस्वा की बेटी पर हमला कर देता है वो पूरी ताकत से उसका गला दबाने लगता है साबी उसे रोकने की भरसक कोशिश करता है और उसे चेताता है की वो बिस्वा पर नहीं उसकी बेटी पर अपना गुस्सा निकाल रहा है बिस्वा तो मर चुका है और आत्मा को मारा नहीं जा सकता लेकिन गुस्से में पागल नंदीश यह भूल जाता हैजिसकी वो गर्दन दबाये हुए है वो बिस्वा की बेटी का शरीर है लेकिन देर हो जाती है उसकी बेटी का दम घुट जाता है सब अचंभित होकर देखते रह जाते है नंदू के हाथो बिस्वा की निर्दोष बेटी मारी जारी है दर्शको की तन्द्रा भेदता हुआ परदे पर आया 'दी एन्ड 'और उसके पीछे लगा हुआ ? बहुत कुछ कह जाता है और सवाल छोड़ जाता है 

क्या ये वाकई अंत है ? क्या बिस्वा वाकई गलत था और उसकी माँ रूपी भूमि उससे छीनने वाला ,उसकी पत्नी का यौन शोषण करने वाला चेन्नबासप्पा क्या सही था ? कमजोर जब जुल्म से तंग आकर टक्कर लेने का फैसला करता है तो बड़े से बड़े ताकतवर को तबाह कर देता है जो किसान बस्वा फिल्म के पहले दृश्य में अपने खेत में रहने वाले जहरीले सांप को अपने खेतो का रक्षक बता कर चेन्नबासप्पा को उसे मारने से रोक देता है वो बस्वा बाद में उसकी 14 वर्ष की बेटी उमा को किसी आत्मा के जरिये क्रूर तरीके से मरवाने को विवश क्यों हो जाता है ? बस्वा एक अनपढ़ किसान था जिसके लिए उसके खेत ही सब कुछ थे उसने जो किया वो बेशक गलत था लेकिन उसके मालिक ने सिर्फ खेत ही नहीं बेचा था उसकी पत्नी को भी ख़राब किया था जिसकी वजह से वो मर गई ये बात बस्वा को खुद मरने के बाद पता चलती है उसका मालिक ताकतवर और पैसे वाला था बिस्वा उससे सीधी टक्कर नहीं ले सकता था इसलिए अपनी समझ को हिसाब से उसे जो तरीका समझ आया उसने उसका इस्तेमाल किया
  
 'गहराई 'अपने समय से काफी आगे की फिल्म थी कहानी में तमाम मोड़ आते है जो दर्शकों को बार बार चौंकाते हैं और फिल्म की शूटिंग के समय भी ऐसे तमाम हादसे हुए थे जिनसेफिल्म की निर्देशक अरुणा राजे चौंकाती रहीं जिस घर में फिल्म की शूटिंग पहले से चल रही थी और बस चार पांच दिन का काम बाकी था तो पता नहीं मकान मालिक को एक दिन क्या हुआ उसने एक दिन सारा सामान बाहर निकालने को कह दिया पता चला कि बाकी बचे दिनों की शूटिंग के लिए वह अब दुगने से भी ज्यादा पैसे मांग रहा था फिल्म के सिमित बजट के चलते अरुणा के लिए ऐसा करना संभव ही नहीं था उनकी अपनी मां का घर भी वहीं पास में था उन्होंने फिल्म के बड़े हिस्से की शूटिंग वहीं पूरी की फिल्म में जंगल दिखता है वह उनकी मां के घर के बाहर खड़े पेड़ हैं अमरूद वाला यह बगीचा भी उनकी मां के घर के पड़ोस का ही है


अपने अभिनय की बदौलत बाद में हिंदी सिनेमा के सबसे महंगे खलनायक बनने वाले अभिनेता अमरीश पुरी इस फिल्म में मेहमान भूमिका में थे साल 1980 अभिनेता अमरीश पुरी के लिए उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ हॉलीवुड के मशहूर निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग की एक फिल्म ‘इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम’ में अमरीश पुरी ने 'मोला राम' नाम के एक खूंखार तांत्रिक का किरदार किया है अमरीश पुरी को ये रोल मिलने के पीछे फिल्म 'गहराई' का बहुत बड़ा हाथ है दरअसल उन दिनों फिल्म 'गहराई' की शूटिंग शुरू हो चुकी थी और फिल्म में अमरीश पुरी तांत्रिक का ही किरदार निभा रहे थे तो जब अमरीश पुरी को ‘इंडियाना जोन्स’ के लिए रेफरेंस फोटोग्राफ्स भेजने को कहा गया तो उन्होंने फिल्म 'गहराई'  के सेट पर खींचे गए अपने फोटो भेज दिए और उन फोटो के आधार पर ही अमरीश पुरी को स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म तो मिली ही उन्हें रिचर्ड अटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ भी मिल गई और अमरीश पुरी अभिनय की गाड़ी यहां से चल निकली जब फिल्म 'गहराई' की शूटिंग की बैंगलोर के पास चल रही थी तो शूटिंग के पहले दिन अमरीश पुरी की कड़क आवाज सुनकर आस पास के गांव वाले डरे सहमे सुनसान रात में शूटिंग की लोकेशन पर भागे चले आए थे उन्हें लगा कि शायद कही बड़ा जबरदस्त  झगड़ा हो गया है ? और किसी को उनकी मदद की जरुरत है उन्हें बड़ी मुश्किल से समझाया गया कि यहाँ कोई झगड़ा नहीं हुआ यहाँ उनकी फिल्म की शूटिंग चल रही है 

अब बात फिल्म के उस महत्वपूर्ण दृश्य की जिसके बाद परिवार का विश्वास तांत्रिको से उठ जाता है जिस सीन के चलते पद्मिनी कोल्हापुरे का नाम विवादों में आ गया दरअसल फिल्म 'गहराई' में एक न्यूड सीन था जिसे मात्र 14 साल की पद्मिनी कोल्हापुरे पर फिल्माया गया था जो फिल्म में पारलौकिक शक्तियों का केंद्र थी फिल्म में जब पद्मिनी पर किसी प्रेत आत्मा का साया पड़ जाता है उस आत्मा को शरीर से निकालने के लिए एक दृश्य में तांत्रिक की भूमिका निभा रहे अमरीश पुरी बाल कलाकार पद्मिनी के पूरे कपड़े उतरवा देतें है और उसकी निर्वस्त्र पूजा करते हैं बड़ी खूबसूरती और चालाकी से कैमरे के पीछे के एंगल से लिए गए लगभग ढाई मिनट के दृश्य में अँधेरे में जलती आग की रोशनी से पूरा नग्न बदन साफ दिखता है उस समय कोई वीएफएक्स की तकनीक भी नहीं थी जिस पर सारा दोष डाला जा सकता था इसलिए यह यो कन्फर्म है कि इसे इसके वास्तविक रूप में ही इसे शूट किया गया होगा अमरीश पुरी को इसी दृश्य में एक मूर्ति के माध्यम से योनि पूजा करते भी दिखाया गया था उस दौर में ऐसे सीन को करना ही बहुत बड़ी बात है यह सीन उस समय किसी बॉडी डबल ने किया या पद्मिनी ने खुद ये एक बहस का विषय हो सकता है ? लेकिन अपवाद का विषय यह है की यह सीन सेंसर बोर्ड से पास कैसे हो गया ? उस समय महिला और बाल अधिकारों के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं और आयोग की नजर से ये कैसे बच गया किसी ने इसका विरोध क्यों नहीं किया ? क्योंकि ये तो आज भी संभव नहीं लगता आज इस दृश्य को संभवता चाइल्ड पोनोग्राफी की केटेगरी में रखा जा सकता है और आज भी ऐसा बाल-नग्न दृश्य सेंसर बोर्ड से पास होना संभव नहीं है तो उस समय इसे कैसे पास कर दिया गया ? लेकिन उस समय इस सीन की वजह से फिल्म चर्चा में आ गई थी और इस सीन को देखने के लिए फिल्म के टिकट ब्लैक में बिके थे पद्मिनी कोल्हापुरे निसंदेह एक एक मंझी हुई कलाकार है पद्मिनी का बाल मासूम चेहरा गजब का असर छोड़ता है फिल्म के कई दृश्यो में उसका अभिनय कई दिग्गज कलाकारों को मात देता दिखाई पड़ता है इसलिए उनका कथित नग्न दृश्य सभी दर्शकों को नग्नता से ज्यादा कला और कलाकार के प्रति सम्मान से भर देता है


सन 1980 में रिलीज हुई फिल्म 'गहराई'को उस वक्त की एक और घटना ने खूब चर्चा दिलाई लोगों को तब पद्मिनी कोल्हापुरे के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन एक दिन देश दुनिया के अखबारों में उनके नाम का हल्ला हो गया हुआ यूं कि भारत दौरे पर पहुंचे प्रिंस चार्ल्स जब एक फिल्म की शूटिंग देखने बंबई पहुंचे तो वहां मौजूद पद्मिनी कोल्हापुरे ने उन्हें जोश में आकर चूम लिया प्रोटोकॉल के हिसाब से पद्मिनी को वहां पहुंचे प्रिंस चार्ल्स का माला पहनाकर स्वागत करना था लेकिन माला पहनाने के बाद पद्मिनी ने जब प्रिंस चार्ल्स को KISS किया तो वह फोटो पूरी दुनिया भर के अखबारों और मेगज़ीन्स में छपा और पद्मिनी का नाम एकाएक सुर्खियों में आ गया फिल्म 'गहराई' को भी इससे खूब चर्चा मिली 


फिल्म की निर्देशक अरुणा राजे चूंकि तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित वीडियो संपादक रही हैं तो उन्हें बतौर निर्देशक फिल्म के तकनीकी पक्ष की साज-संभाल करनी खूब आती है वह जब फिल्म बनाती हैं तो कैमरे से लेकर साउंड तक में पूरा दखल रखती हैं इस फिल्म की शूटिंग के समय कैमरा कई बार खुद अरुणा राजे ही संभाल लेती थीं स्टैडीकैम जैसा कुछ तब होता नहीं था तो वह कैमरे को हाथों में ही पकड़ कर चल देतीं और विकास पीछे से उनको थामे रहते ताकि कहां रुकना है कहां चलना है इसका अंदाजा लगता रहे 
 
फिल्म में डॉ.श्रीराम लागू,अनंत नाग इन्द्राणी मुखर्जी ,रीटा,भादुड़ी,सुधीर दलवी,कुमार साहू,रामा कृष्णन,सुहास भालेकर और अमरीश पुरी के अलावा 14 साल की पद्मिनी कोल्हापुरे के भी अभिनय किया हैं पारलौकिक शक्तियों का केंद्र वही है पूरी फिल्म के एकमात्र गाने 'रिश्ते बस रिश्ते होते है' के लिए अरुणा ने शीर्ष संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल सर्वश्रेष्ठ गीतकार गुलज़ार और गायक किशोर कुमार को साइन किया 

''गहरायी'' उन दुर्लभ बॉलीवुड हॉरर फिल्मों में से एक है जो अपनी बात कहने के लिए हल्के-फुल्के ध्वनि प्रभाव और घटिया कामुक दृश्यों पर निर्भर नहीं है इसके अधिकांश डरावने दृश्यों में कोई बैकग्राउंड संगीत नहीं है और दृश्य की तीव्रता केवल इसमें शामिल सभी कलाकरो के शानदार अभिनय प्रदर्शन के कारण ही आती है यह अरुणा राजे का ही कमाल था कि संगीतकार लक्ष्मी-प्यारे की जोड़ी ने इस फिल्म के लिए तिब्बती साज मंगाने से लेकर अमेरिकी संगीत की जानकारी रखने वालों तक की सेवाएं लीं फिल्म के संगीत में भी अरुणा राजे ने तमाम प्रयोग किए प्राकृतिक आवाजों में अनपेक्षित आवाजें मिलाकर फिल्म का जबरदस्त बैकग्राउंड म्यूजिक तैयार हुआ है और बच्ची पद्मिनी पर जो आत्मा आती है उसकी आवाज अभिनेता जलाल आगा ने निकाली है फिल्म के कलाइमेक्स में रीटा भादुड़ी जब बस्वा की आत्मा के रूप में बात करती है तो मेल-फीमेल का डबल साउंड इस्तेमाल किया गया है यह प्रयोग उस समय सम्भवता पहली बार हुआ था रीटा भादुड़ी का शानदार अभिनय और यह डबल साउंड तकनीक दर्शको की रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा करने में सफल रही जो काम आर.डी बर्मन से रमेश सिप्पी ने फिल्म 'शोले' में कराया तकरीबन वैसा ही कुछ काम अरुणा राजे ने फिल्म 'गहराई' में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कराया है कई साउंड डिजाइन तकनीकी एस्पेर्टस इसे फिल्म 'शोले' की टक्कर का मानते है मशहूर फिल्म निर्माता श्याम बेनेगल को भी इस फिल्म ने बेहद प्रभावित किया उन्होंने लगभग पांच साल बाद अपनी फिल्म "त्रिकाल" (1985) में वो दृश्य बहुत अद्भुत और कलात्मक तरीके से फिल्माए थे जहां नीना गुप्ता के माध्यम से उसकी मालकिन अपने मृत पति की आत्मा का आव्हान करती है इस फिल्म का कलाइमेक्स फिल्म 'गहराई' के इस दृश्य से ही प्रभावित प्रतीत होता है   

फिल्म 'गहराई' की कहानी लिखने और निर्देशित करने वाली अरुणा राजे प्रयोगधर्मी वीडियो संपादक होने साथ एक हिम्मती महिला भी है वो साधारण से विषय को परदे पर सिर के बल खड़ा कर देने वालीं क्रिएटिव  विचारवान, सहज, सरल और सुलभ फिल्मकार हैं जीवन के 74 बरसों ने अरुणा को बहुत रुलाया भी है और बहुत हंसाया भी  पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से निकलने से पहले उन्हें विकास देसाई नामक पुरुष से उन्हें प्यार हुआ और जिस दिन उनकी बेटी गार्गी का निधन हुआ उसके 24 घंटे बाद ही विकास ने उनके सामने तलाक का प्रस्ताव रख दिया इससे पहले अरुणा ने अपनी बेटी गार्गी को हुए बोन कैंसर के इलाज के लिए अमेरिका समेत दुनिया भर चक्कर लगाए  वह पर अपनी प्यारी बेटी को बचा नहीं सकीं गार्गी को बोन कैंसर का पता तब चला जब वह अपने माता पिता के साथ फिल्म ‘सितम’-(1982 ) की शूटिंग कर रही थीं जब वह बेटी को लेकर यहां वहां भाग रही थीं और उसे सहारे की जरुरत थी तभी उनके पति विकास को उनकी ही एक करीबी महिला दोस्त से प्रेम हो गया लेकिन अब अपने जीवन को करीब करीब वैराग्य को समर्पित कर चुकी अरुणा सब कुछ भूलकर इन दोनों को कब का क्षमा कर चुकी हैं 

अभी कुछ वर्ष पहले एक मशहूर फिल्म ने 'गहराई' को डिजिटली रिस्टोर कर इसे डिजिटल फॉर्मेट में देखने लायक बनाया है और इसकी डीवीडी भी लॉन्च की है इससे फिल्म की गुणवत्ता उच्च कवालिटी की हो गई है आज आपको बेशक 'गहराई' देखते वक्त मौजूदा तकनीक के सन्दर्भ में इसकी एडिटंग कुछ त्रुटिपूर्ण लगे लेकिन अरुणा राजे की  बेहद कम बजट में बनाई ये फिल्म तब बॉलीवुड में बनने वाली हॉरर फिल्म की बनी बनाई वर्जनाओं को तोड़ने में कामयाब रही ये फिल्म आज भी शुरू से आखिर तक देखने की इच्छा बार बार बनाए रखती है अरुणा राजे मुताबिक किसी फिल्म को बार बार देखने से हर बार उसे देखने का नजरिया भी बदलता रहता है मैंने तो बहुत ही सीधी सादी कहानी लेकर एक फिल्म बनाई थी लेकिन देखने वालों ने उसे दूसरे नजरिए से भी देखा। कहीं किसी ने इसे विकास में पर्यावरण की अनदेखी से भी जोड़कर देखा कि किसान का सम्मान न करने के चलते ही साइंस में यकीन रखने वाले एक शख्स के साथ ये सब हुआ लेकिन सच पूछें तो फिल्म बनाते समय ऐसा कुछ मैंने सोचा नहीं था उस युग के कई प्रतिभाशाली अभिनेताओं के साथ एक्सोरसिस्ट का एक गंभीर रूपांतरण स्क्रीन पर लाने के लिए निर्देशक जोड़ी अरुणा-विकास का यह एक बेहतरीन प्रयास था लेकिन दुर्भाग्य से इसे भुला दिया गया क्योंकि दुनिया भर में उन दिनों ‘द एक्जॉरसिस्ट’ का हल्ला था फिर भी आज हिंदी सिनेमा में पारलौकिक विषयों पर बनी फिल्मों में 'गहराई' का नाम बहुत ही सम्मान से लिया जाता है आज भी Indian Horror Zoner की फिल्मों में ये फिल्म टॉप पर है 

1 comment:

  1. Sir jithanks, मैं पंजाब का रहने वाला हूं कृपया आपका फ़ोन नंबर चाहता हूं आपसे कुछ बात करना ज़रूरी है.. या आप मुझे कॉल कर सकते हैं.. my number is 9814055989..वैसे मैं एक youtuber हू उसी सिलसले में आपसे बात करनी है

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