Wednesday, November 22, 2023

'बरसात'- (1949) अभिनेता राजकपूर की वो फिल्म जिसने उन्हें फिल्म इंडस्ट्रीज़ में बतौर अभिनेता और निर्देशक सफलता पूर्वक स्थापित किया

बरसात - (1949)
गुजरे जमाने का 40 और 50 का दशक हिन्दी सिनेमा के लिहाज से बेहद शानदार रहा 1949 में राजकपूर की फिल्म 'बरसात' ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई इस फिल्म ने कई लोगो के फ़िल्मी करियर लॉन्च किए जिनमें संगीत निर्देशक शंकर-जयकिशन और गीतकार हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र भी शामिल हैं 'हवा में उड़ता जाये' गाने ने लता मंगेशकर को घर घर में  मशहूर कर दिया इस फिल्म में राज कपूर और नर्गिस की प्रसिद्ध जोड़ी और प्रेमनाथ ने अभिनय किया था इनके आलावा फिल्म में निम्मी,के एन सिंह कुक्कू ने मुख्य भूमिकाये निभाई थी यह अभिनेत्री निम्मी के फिल्मी सफर की शुरुआत भी थी प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन की भी ये पहली फिल्म थी

राजकपूर ने 'बरसात' से पहले फिल्म 'आग' (1948) बनाई थी 'आग' पहली फिल्म थी जिसमें राज कपूर और नर्गिस एक साथ दिखाई दिए थे यह फिल्म फ्लॉप हो गई लेकिन राजकपूर और नर्गिस की जोड़ी को खूब वाहवाही मिली दर्शको ने इसे पसंद किया राजकपूर ने दर्शको की इसी नब्ज को पहचान लिया इसलिए राजकपूर चाहते थे कि उनकी और नर्गिस की जोड़ी को लेकर एक और फिल्म बने 'आग' से अपने निर्देशन की असंतोषजनक शुरुआत के बाद राजकपूर अब एक युवा प्रेम कहानी की तलाश में थे निर्माता-निर्देशक-अभिनेता राज कपूर चाहते थे कि उनके  दर्शक सिर्फ ही रोमांस न देखें, बल्कि उसे शिद्दत से अपने भीतर महसूस भी करें इसके लिए उन्होंने अपने पिता पृथ्वीराज कपूर से सलाह ली पृथ्वी राजकपूर ने उसने कहा ......

''मोहब्बत के नौ रसों को एक कहानी में पिरोकर सिर्फ एक ही आदमी दे सकता है, जिसका नाम रामानंद सागर है.''

रामानंद सागर ने 22 छोटी कहानियां, तीन वृहत लघु कहानी, दो क्रमिक कहानियां और दो नाटक लिखे उन्होंने इन्हें अपने तखल्लुस चोपड़ा, बेदी और 'कश्मीरी 'के नाम से लिखा लेकिन बाद में वह 'सागर' तखल्लुस के साथ हमेशा के लिए 'रामानंद सागर' बन गए 
उन दिनों पृथ्वी थियेटर में देश विदेश के ख्याति प्राप्त नाटक खेले जाते थे उन्ही में से एक नाटक में बाल कलाकार शम्मी कपूर ने मंच पर पदार्पण किया था और राजकपूर को प्रभावित किया उन्हें पता चला कि ये नाटक रामानंद सागर ने लिखा है तो उनसे मिलने को बेताब हो गए  ....... विभाजन के बाद जब रामानंद सागर बम्बई आये तो उन्हें राजकपूर के पिता के पृथ्वी थियेटर ने सहारा दिया जहाँ वो पृथ्वी थिएटर्स के लिए नाटक लिखते थे नाटक लिखने से उन्हें जो वेतन मिलता था उससे उनकी मासिक ज़रूरतें पूरी हो जाती थीं राजकपूर चाहते थे कि रामानंद सागर ही उनके लिए एक जबरदस्त प्रेम कहानी लिखे लेकिन रामानंद सागर ने राजकपूर की 'बरसात' लिखने से पहले उन्हें अपना उपन्यास 'और इंसान मर गया' पूरा करने के लिए छह महीने तक इंतजार कराया अपने उपन्यास के पूरा होने के बाद 'बरसात की कहानी को 'रामानंद सागर 'ने राजकपूर के लिए मुंबई के मलाड में टेरेसा विला की अटारी में बैठ कर लिखा .....  कहानी लिखने के बाद उन्होंने राजकपूर को बुलाया इसके बाद राजकपूर खुद मलाड के उस विला में पहुंचे और कहानी सुनी उन्हें कहानी बेहद पसंद आई उसके अगले दिन वो नर्गिस को भी साथ लेकर आए नर्गिस तो इस फिल्म की कहानी सुनकर रो पड़ी थीं 

फिल्म की कहानी दो दोस्तों गोपाल (प्रेमनाथ) और प्राण (राजकपूर) की कहानी है दोनों दोस्त एकदम विपरीत व्यक्तित्व वाले हैं गोपाल जहाँ सच्चे प्रेम में विश्वास करता है वही गोपाल प्रेम को सिर्फ वासनापूर्ति का जरिया समझाता है जो मनुष्य के शरीर की भोजन और पानी की तरह सिर्फ एक आवशयक खुराक है ..... दोनों दोस्त कश्मीर घाटी में छुट्टियों के दौरान दो पहाडी लड़कियों रेशमा (नर्गिस) नीला (निम्मी) के साथ रूमानी सम्बन्ध में आ जाते हैं प्राण और रेशमा का प्यार सच्चा और पारस्परिक है जबकि गोपाल नीला को सिर्फ अपने इस्तेमाल करने की चीज समझता है प्राण और रेशमा को अपने प्यार को पाने के लिये कई मुसीबतो का सामना करना पड़ता है फिल्म के अंत में लगातार नीला की उपेक्षा करता गोपाल भी उसके सच्चे प्रेम को महसूस करता है लेकिन बहुत देर हो जाती है नीला उसे मृत मिलती है फिल्म में गोपाल अक्सर बरसात के आने के साथ अपनी वापसी की झूठी कहानी अपने प्रेम में डूबी नीला को सुनाता रहता है वही बरसात आखिरकार आ जाती है लेकिन उसे देखने के लिए अब नीला जीवित नहीं है फिल्म गोपाल द्वारा नीला के अंतिम संस्कार के साथ समाप्त होती है 

प्यार के नौ रंगों को समेटे हुए 'बरसात' दो प्यार करने वाले जोड़ों की कहानी थी रामानंद सागर ने कहानी को कश्मीर घाटी की पृष्ठभूमि को आधार बना कर लिखा था उन दिनों ज्यादातर फिल्मे स्टूडियो में सेट बना कर पूरी कर ली जाती थी आउटडोर शूटिंग बहुत कम होती थी लेकिन पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर को सुनहरे परदे पर लाने के लिए राजकपूर ने अपनी यूनिट के साथ के कश्मीर घाटी में डेरा डाल दिया राज कपूर ने कश्मीर घाटी में फिल्म 'बरसात' के कुछ हिस्सों की शूटिंग की यह कश्मीर घाटी में शूट की जाने वाली पहली हिंदी फिल्म बन गई उसके बाद तो फिल्मो की आउटडोर शूटिंग के लिए कश्मीर सबकी पंसदीदा जगह बन गई बरसात राज कपूर द्वारा निर्देशित पहली बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी 'बरसात' से 2 महीने पहले रिलीज हुई महबूब खान की 'अंदाज' को पछाड़ते हुए 'बरसात' उस वर्ष की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली ऐसी फिल्म बन गई जिससे बॉक्स ऑफिस भी गुलज़ार रहा 

इस फिल्म का एक दृश्य बाद में आर.के स्टूडियोज का प्रसिद्ध आधिकारिक LOGO बन गया 'बरसात' फिल्म के एक सीन में नरगिस राजकपूर की तरफ दौड़ती हुई आती हैं एक हाथ में वायलिन लिए राजकपूर दूसरे हाथ से उसे अपनी बाँह में थामते है नर्गिस सर के बल पीछे की ओर झुकती है और राजकपूर की बाँहो में झूल जाती है और एक सहज,अंतरंग कामुक मुद्रा बनाती है यही वह विवादस्पद और मशहूर सीन था जिसने आर.के फिल्म्स को अपना खुद का एक नया LOGO दिया इसी मुद्रा वाले फिल्म के बहुप्रशंसित पोस्टर को मास्टर कलाकार डॉ.ए-एम पंडित ने बनाया था बरसात के प्रतिष्ठित इस पोस्टर में राज कपूर को एक हाथ में नरगिस और दूसरे हाथ में वायलिन पकड़े हुए दिखाया गया था फिल्म का यह दृश्य और पोस्टर अपने आप में इतना प्रतिष्ठित हो जाता है कि यह आर.के फिल्म्स की पहचान और प्रतीक बन जाता है छह दशक बाद कोई अभी भी आर.के LOGO को देखता है तो  उस प्यार को याद करता है जो सुनहरे परदे पर जगमगा उठा था और फिल्म 'बरसात' जिसका एक जरिया बनी इस LOGO ने भी समय के साथ कई रंग देखे राजकपूर की 'आह' (1953) जैसी फिल्मो के आरम्भ होने से पहले में ये LOGO उनके पिता पृथ्वी राजकपूर के पूजा करते हुए एक शॉट्स के बाद आता है जिसमे नर्गिस और राजकपूर को स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता है लेकिन उसके बाद जब नर्गिस की शादी सुनील दत्त से हो गई तो राजकपूर और नर्गिस के चेहरे वाले लोगो को बदल दिया गया इसे प्रतीकात्मक (symbolic) आर्ट का रूप दे दिया गया आर.के बैनर्स की बाद की फिल्मो में यह इसी आर्टिस्टिक रूप में दिखा 

इस फिल्म ने जहाँ हिंदी सिनेमा की प्रेम कहानियॉ में मजबूती से स्थापित हो चुके परंपरागत ढांचे को धवस्त किया वही उस पीढ़ी के प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रेम का नेतृत्व भी किया जिसका समाज में विरोध होना लाज़मी था यह राजकपूर और नर्गिस का वो खुला सेल्युलाइड रोमांस था जिसपर 40 के दशक में अपने अदम्य जुनून से चोरी छिपे प्यार करने वालो को बदनाम करने के आरोप भी लगे 'बरसात' फिल्म जबरदस्त हिट हुई उस समय इस फिल्म 1 करोड़ 10 लाख का बिजनेस किया था जो आज का करीब 700 करोड़ होता है इन्हीं रुपयों से राजकपूर ने आर.के स्टूडियो बनाया था राजकपूर की 'बरसात' ने न सिर्फ कमाई के मामले में रिकॉर्ड तोड़े थे बल्कि आज भी ये फिल्म लोगों के दिलों में मीठी याद बनकर जिंदा है 

'बरसात'में "छोड़ गए बालम","हवा में उड़ता जाए","जिंदगी में हरदम रोता","बरसात में हमसे मिले","जिया बेकरार है","मुझे किसी से प्यार","पतली कमर है","बिछड़े हुए परदेसी","अब मेरा कौन सहारा","मेरी आँखों में बस" जैसे 10 हिट गाने थे जिसे शंकर जयकिशन ने संगीतबद्ध किया था इन गीतों को रमेश शास्त्री ,शैलेंदर,जलाल मलीहाबादी और हसरत जयपुरी ने लिखा था इस गीतों का फिल्म 'बरसात' के हिट होने में भरपूर योगदान था जिन्हे गायक मुकेश,मोहम्मद रफ़ी,और गायिका लता जी ने अपने स्वर दिए थे बरसात की ज़बरदस्त सफलता के बाद राज कपूर ने वर्ष 1950 में आर.के-नरगिस-शंकर-जयकिशन-हसरत-शैलेंद्र की पूरी टीम की स्थापना की 'बरसात' के संगीत को हिंदी सिनेमा के 100 सबसे श्रेष्ठ साउंड ट्रैक्स मे से एक माना जाता है 

फिल्म 'बरसात' के एक दृश्य में अभिनेत्री निम्मी यह अभिनेत्री निम्मी के फिल्मी सफर की शुरुआत भी थी

'बरसात' 30 सितंबर 1949 को रिलीज़ हुई और ब्लॉकबस्टर रही दिलचस्प बात यह है कि इसे पहली बार 'यू' सर्टिफिकेट के साथ पास किया गया था लेकिन 1949 में जब 'वयस्क' और 'अप्रतिबंधित' प्रदर्शन के लिए एक नया सेंसरशिप वर्गीकरण शामिल करने के लिए भारतीय सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1918 में संशोधन किया गया तो इस के जारी प्रमाणपत्र की फिर से समीक्षा की गई और 'यू/ए' प्रमाणपत्र के साथ इसे फिर से सेंसर प्रमाणपत्र दिया किया गया आपको जानकर ताज्जुब होगा इस फिल्म को उस जमाने में सेंसर बोर्ड ने 'यू/ए' ' सर्टिफिकेट इसलिए    क्योंकि अभिनेत्री नरगिस और निम्मी ने दुपट्टा नहीं ओढ़ा था उस ज़माने की तेज़-तरार खूबसूरत डांसर 'कुक्कू 'का प्रेमनाथ के साथ फिल्माया गया डांस आईटम सांग 'पतली कमर' को अश्लील माना गया था इस का फिल्म को फायदा ही हुआ और माउथ पब्लिसिटी की वजह से सिने प्रेमियों में हलचल मच गई और सिनेमाघरों में भारी भीड़ 'बरसात' देखने उमड़ पड़ी 

आज न तो राजकपूर जीवित है और ना ही नर्गिस ,उनका आर.के स्टूडियो भी अब बिक चुका है राजकपूर की फिल्मो से जुडी ज्यादातर चीजे 2017 में लगी  आर.के स्टूडियो में लगी भीषण आग की भेंट चढ़ गई राजकपूर की आगे आने वाली नई पीढ़िया उनकी विरासत को सहेज नहीं सकी अब तो राजकपूर अपनी फिल्मो के जरिये ही जिन्दा है लेकिन अपनी जिस फिल्म 'बरसात' से कमाए हुए रुपयों से राजकपूर ने अपना खुद का आर.के स्टूडियो बनाया और देश-विदेश में ग्रेट शोमेन कहलाये उनकी जिस फिल्म ने उन्हें आर के बैनर्स का अपना LOGO दिया वो 'बरसात' आज भी दर्शको के दिलों में मीठी याद बनकर जिंदा है 



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