Monday, March 4, 2024

चंद्रावल -(1984) .......सफलता के कीर्तिमान बनाने वाली हरियाणवी भाषा की सबसे सफल फिल्म

Chandrawal- (1984)

हिंदी सिनेमा की धूम आज समूचे विश्व में है आज भारत का सिनेमा गलोबल बन चुका है साउथ-वेस्ट ,नार्थ ईस्ट का फर्क मिट चुका है दर्शक सिर्फ अच्छी कहानी पर बनी अच्छी फिल्मे देखना चाहते है लेकिन सत्तर और अस्सी के दशक में जब फिल्म बनाने के संसाधन आज की तरह विकसित नहीं थे तब भारत में क्षेत्रीय भाषा में बनी बेहद कम बजट की कुछ फिल्मो ने सफलता के ऐसे आयाम गढ़े कि टिपिकल हिंदी सिनेमा के आदी दर्शको ने राज्यों ,क्षेत्र और भाषा की सीमाओं को लाँघ कर क्षेत्रीय भाषा की इन फिल्मो को सुपर हिट बनाया 1984 में आई हरियाणवी भाषा की फिल्म 'चंद्रावल ' भी  एक ऐसी ही फिल्म है जिसे उस समय दर्शको का भरपूर प्यार मिला था फिल्म की निर्माता और नायिका उषा शर्मा ने यह फिल्म मात्र 18 दिनों में ही पूरी कर ली 

तब दो हरियाणवी फिल्में 'बीरा शेरा 'और 'हरफूल सिंह जाट जुलानी वाला' बाक्स आफिस पर आई ये फिल्में सराही गई, लेकिन ज्यादा लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाईं 'चंद्रावल' हरियाणवी भाषा की रिलीज़ होने वाली तीसरी और आर्थिक रूप से सफल होने वाली पहली फिल्म है जयंत प्रभाकर द्वारा निर्देशित यह फिल्म खानाबदोश गड़िया लोहार समुदाय की एक लड़की 'चंद्रावल' और एक जाट लड़के 'सूरज' की दुखद प्रेम कहानी हमें दिखाती है चंद्रावल (उषा शर्मा) गाड़िया लोहार जनजाति के मुखिया जोधा सरदार (ओंकार सिंह तेवतिया ) की पोती हैं जिसे अपनी विरासत पर गर्व है कि वे महाराणा प्रताप की वंशज हैं 


दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह हरियाणा में भी हजारों प्रेमियों को जाति और तथाकथित परंपराओं के नाम पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है जिसके कारण यहाँ ऑनर किलिंग सबसे ज्यादा होती है चंद्रावल फिल्म ने 1984 में कुछ ऐसी बाधाओं को दर्शाया था फिल्म की कहानी फ्लेश बैक से आरम्भ होती है खानाबदोश समाज अपनी प्रकृति के अनुसार एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते है उनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं होता इस कबीले का जोधा सरदार राम गढ़ गांव के पास डेरा डालता है जहाँ युवा जाट लड़के सूरज (जगत जाखड़) पहली बार चंद्ररावल को एक विवाह समारोह में नृत्य करते देखता है पहली नजर में ही दोनों जवां दिलों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है उन दोनों का प्रेम प्रसंग समाज के लिए एक खुला रहस्य बन जाता है सूरज के पिता रंजीत चौधरी जो गाँव के चौधरी भी हैं इस प्रेम प्रसंग से बहुत क्रोधित हो जाते हैं दूसरी ओर जोधा सरदार की बिरादरी में भी बहुत तीखी प्रतिक्रिया होती है क्योंकि उनका समाज कभी भी अपनी लड़कियों को दूसरी जाति के लड़कों से शादी नहीं करने देता यह उनका बरसो से चला आ रहा सामाजिक नियम है जोधा सरदार तुरंत गाँव छोड़ने का फैसला करता है क्योंकि उसे यह पसंद नहीं है कि चंद्रावल और सूरज को मिलने का कोई और मौका दिया जाए वह जाते जाते सूरज को 'चंद्रावल' से फिर कभी भी न मिलने की सख्त चेतावनी भी देता है 

सूरज पागलो की तरह 'चंद्रावल' के कबीले के नए डेरे को ढूंढने के लिए दिन रात एक कर देता है अंततः वह अपने दोस्तों की मदद से डेरे की जगह का पता लगाने में सफल हो जाता है जहाँ चंद्रावल को देखकर सूरज भावुक हो जाता है चंद्रावल भी उसे एकटक देखती रह जाती है और अपने दादा की चेतावनी की परवाह किए बिना तुरंत उसकी ओर दौड़ पड़ती है तभी उसका दादा जोधा सरदार 'चंद्रावल' पर चाकू से वार करता है लेकिन सूरज बीच में आ जाता है चाकू उसे लगता है और वो दम तोड़ देता है सूरज के वियोग में चंद्रावल उसी चाकू से अपनी भी जान दे देती है गाड़िया लुहार की बेटी 'चंद्रावल ' और जाट लड़के सूरज की कहानी का दर्दनाक अंत होता है जाति पाती ,ऊंच नीच ,अमीरी गरीबी के सारे बंधन तोड़कर ये दोनों पंछी अपना खुद का आसमान ढूंढने के लिए ये दुनिया जहान छोड़ हमेशा के लिए छोड़ देते है  

हरियाणवी फिल्म 'चंद्रावल' की सफलता में सबसे बड़ा हाथ संगीतकार जे.पी कौशिक का था उन्होंने हरियाणवी लोकगीतों की धुनों में पिरो कर एक ऐसा मधुर संगीत रचा जो आज तक भी एक मिसाल है ........."जीजा तू काला मैं गोरी घनी" "गाड़े आली गजबन छोरी" "मैं सूरज तू चंद्रावल" "नैन कटोरे काजल डोरे" "मेरा चुन्दर मंगा दे हो" "उज्जड़ खेड़े" जैसे हरियाणवी भाषा के गीतों का जादू पूरे भारत में चला संगीत के दम पर 'चंद्रावल' ने बॉक्स ऑफिस के कई रिकॉर्ड तोड़ दिए ये इस फिल्म के लोकप्रिय गानों का ही कमाल था की प्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म  शराबी में मुझे 'नौलखा मंगवा दे' गाना सीधा फिल्म 'चंद्रावल' से ही कॉपी करने से गुरेज़ नहीं किया 


चंद्रावल' हरियाणा ,पश्चिमी यूपी,दिल्ली और राजस्थान के कुछ हिस्सों में सबसे अधिक सफल रही इन क्षेत्रों में तो इसने 'शोले 'और 'बॉबी 'जैसी हिंदी फिल्मों से अधिक कमाई की चंद्रावल ने फ़रीदाबाद के 'गगन सिनेमा 'में अपनी रजत जयंती मनाई और अकेले उस थिएटर से ही फिल्म ने अपनी पूरी लागत (लगभग पांच लाख रुपये ) वसूल कर ली इस फिल्म का इतना क्रेज़ था कि थिएटर में चंद्रावल देखने के लिए सैकड़ों ग्रामीण महिलाये अपनी पारम्परिक पोशाकों में सज धज कर का बड़े समूहों में ट्रैक्टर-ट्रॉलियों और ट्रकों पर सवार होकर आती थी यह फिल्म हर उम्र के लोगों के बीच लोकप्रिय साबित हुई फिल्म की हीरोइन उषा शर्मा की लोकप्रियता का आलम तो यह था कि उन्हें देखते ही लोग चंद्रो-चंद्रो चिल्लाने लगते थे हरियाणा की 'चंद्रो' पूरे भारत के गाडिया लोहरो की प्रतीक बन गई पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक दर्जन सिने दर्शकों को उनके ख़रीदे टिकट देखकर बाकायदा सम्मानित किया जिन्होंने 200 से अधिक बार 'चंद्रावल' देखी थी .....वीसीआर के दौर में गाँव देहात में शादी बयाह के अवसर पर चलने वाली चंद्रावल एक आवशयक फिल्म बन गई चंद्रावल से पहले पहले बॉलीवुड की फिल्मो में हरियाणवी ज्यादा पॉपुलर नहीं थी लेकिन उसके बाद बनने वाली फिल्मो में हरियाणवी बोली का जादू चला और विशेष किरदार गढ़े गए हरियाणवी फिल्म चंद्रावल ने जहां राज्य की सभ्यता व संस्कृति का भरपूर प्रचार किया और इस छोटे से राज्य की बोली को देशभर में लोकप्रिय कर दिया फिल्म के एक गाने 'गाड़ी आली गजवन छोरी में ' हरियाणा के प्रमुख शहरो के नाम भी आते है  

समूचा बालीवुड भी' चंद्रावल 'की सफलता से हैरान रह गया था क्योंकि चंद्रावल फिल्म मात्र पांच लाख में बनी थी और इसने पौने दो करोड़ का बिजनेस किया था यह बेहद कम बजट की फिल्म थी सिनेमाटोग्राफर चतर सिंह और विलास क़ुरालकर ने इसकी शूटिंग ज्यादातर सूरज की नेचुरल रोशनी में की थी क्योंकि रिफ्लेक्टर के लिए बजट ही नहीं था यहाँ तक की नायिका ऊषा शर्मा पूरी यूनिट के सदस्यों को खुद खाना तक परोसने में कोई संकोच नहीं करती थी 

1984 में आई चंद्रावल में एक अधूरी प्रेम कहानी दिखाई गई थी इसकी सफलता को भुनाने के लिए 28 साल बाद 2012 में इस फिल्म का एक सीक्वल आया था जिसमे उस कहानी को इस नई फिल्म में पूरा दिखाने की कोशिश की गई फिल्म में आइटम सॉन्ग भी है बड़े-बड़े मल्टीप्लेक्स में तो यह फिल्म कही नजर नहीं आई लेकिन हरियाणा और यूपी के छोटे सिनेमा हॉल में इस फिल्म को चंद्रावल -2 के रिलीज किया गया जिसमे फरीदाबाद का नीलम सिनेमा हॉल प्रमुख था पहली चंद्रावल ने फरीदाबाद के ही गगन सिनेमा हॉल में सिल्वर जुबली की थी 'चंद्रावल-2' प्रसिद्ध हरियाणवी निर्माता-निर्देशक दिवंगत देवी शंकर प्रभाकर (फिल्म की निर्माता और नायिका उषा शर्मा के पति) का एक ड्रीम प्रोजेक्ट था लेकिन किसी कारणवश वे इसे पूरा नहीं कर सके थे इस सीक्वल की निर्माता उषा शर्मा थी जिन्होंने चंद्रावल में शीर्षक भूमिका की थी लेकिन चंद्रावल -2 पुरानी वाली चंद्रावल का इतिहास नहीं दोहरा पाई 


प्रभाकर फिल्म्स बैन को वैसे तो चंद्रावल के लिए विशेष रूप से जाना जाता है लेकिन चंद्रावल के पश्चात इस बैनर के नीचे बनी अन्य फिल्मों लाडो बसंती (1985), फूल बदन (1986), और जाटणी (1991) जैसी हरियाणवी फिल्मों को भी उत्तरी भारत में काफी सराहा गया आज भी चंद्रावल फिल्म को क्षेत्रीय भाषी फिल्मों में एक मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इसने उस समय बॉक्स ऑफिस के कई रिकॉर्ड तोड़ दिए थे और फ़िल्मी पंडितो और समीक्षकों को आशर्यचकित कर दिया था इसके गाने जैसे "जीजा तू काला मैं गोरी घानी" और "गाड़े आली गजबन छोरी" आज भी लोकप्रिय हैं पलवल निवासी हास्य अभिनेता डा.प्रशांत शुक्ल और नसीब सिंह कुंडू ने इस फिल्म में हास्य कलाकारों 'रूंडे-खुंडे' का जीवंत अभिनय किया खासकर ग्रामीण इलाकों में फिल्म में 'रुण्डा-खुण्डा 'के नाम के दो कलाकरो के हास्य अभिनय को तो आज भी याद किया जाता ये मशहूर किरदार आज भी गाँव देहात में किसी को छेड़ने के लिए एक एक मुहावरा के तौर पर इस्तेमाल किये जाते है 29 फ़रवरी 1984 को कुछ गिने चुने सिनेमा घरो में रिलीज़ हुई फिल्म 'चंद्रावल' में उषा शर्मा नसीब सिंह कुंडू ,जगत जाखड़ ,दरयाव सिंह मलिक ,मनफूल चाँद डांगी ,राजू मान ,देवी शंकर प्रभाकर ,ओंकार सिंह जैसे साधारण कलाकारों ने अपने अभिनय से जो असधारण छाप छोड़ी उसकी गूँज आज भी है ...

दिलराज कौर ,विजय मजूमदार ,और भाल सिंह की आवाज़ में हरियाणवी फिल्म चंद्रावल के गानो की गूँज आज भी सुनी जा सकती है आज जब हरियाणवी भाषा पॉप गायकी के रूप में बढ़ते फूहड़पन और शोर-शराबे का शिकार होती जा रही है तो रात के अँधेरे में दूर कही किसी शादी विवाह में डीजे पर बजते "जीजा तू काला मैं गोरी घनी" की मीठी आवाज़ आपको सकून देगी और आपको 'चंद्रावल' की 'चंद्रो 'के उस सुनहरे दौर में वापिस खींच ले जाएगी 

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